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एक विज्ञापन, एक नाराज़ मुख्यमंत्री और नरेंद्र मोदी की राष्ट्रीय राजनीति की शुरुआती आहट, नितिन नबीन का 2010 का वो अनसुना किस्सा

15 दिसंबर को नितिन नबीन ने भाजपा के राष्ट्रीय कार्यकारी अध्यक्ष के रूप में कार्यभार संभाला, जहां उन्हें न सिर्फ जेपी नड्डा बल्कि अमित शाह ने भी कुर्सी पर बैठाया. लेकिन आज जिस मुकाम पर नितिन नबीन पहुंचे हैं, उसकी नींव साल 2010 के एक सियासी किस्से में छिपी है. वही किस्सा, जिसने उन्हें पटना की सीमाओं से निकालकर दिल्ली के सत्ता गलियारों तक पहुंचा दिया. आइए जानते हैं उस किस्से को जिसने नितिन नवीन को भाजपा में अर्श तक पहुंचाने की कहानी लिखी...

एक विज्ञापन, एक नाराज़ मुख्यमंत्री और नरेंद्र मोदी की राष्ट्रीय राजनीति की शुरुआती आहट, नितिन नबीन का 2010 का वो अनसुना किस्सा
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साल था 2010… सियासत के पन्नों पर वो दौर अब भी ज़िंदा है. गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी बीजेपी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में शामिल होने के लिए बिहार की राजधानी पटना आए थे. शहर में हलचल थी, सियासी सरगर्मी अपने चरम पर. तब शायद किसी ने अंदाज़ा नहीं लगाया था कि उसी बैठक से जुड़ा एक छोटा-सा किस्सा आगे चलकर एक नेता की पूरी राजनीतिक पहचान बदल देगा. ठीक 15 साल बाद, 15 दिसंबर 2025 को जब नितिन नबीन को भाजपा का राष्ट्रीय कार्यकारी अध्यक्ष बनाया गया और जेपी नड्डा व अमित शाह ने उन्हें खुद अध्यक्ष की कुर्सी में वकायदे हाथ पकड़कर बैठाया. जिसके बाद साल 2010 का किस्सा फिर से लौट आया. पटना से शुरू होकर दिल्ली की सत्ता गलियारों तक पहुंचा नितिन नवीन का ये किस्सा...

बिहार की राजनीति में नितिन नवीन आज जिस मुकाम पर खड़े हैं, उसकी जड़ें साल 2010 की उस घटना में छिपी हैं, जिसने पटना से लेकर दिल्ली और अहमदाबाद तक सियासी तूफान खड़ा कर दिया था. आज जब नितिन नवीन को बीजेपी के राष्ट्रीय कार्यकारी अध्यक्ष जैसे बड़े पद की जिम्मेदारी मिली है, तो राजनीतिक गलियारों में एक बार फिर वही पुराना किस्सा चर्चा में है- एक विज्ञापन, एक नाराज़ मुख्यमंत्री और नरेंद्र मोदी की राष्ट्रीय राजनीति की शुरुआती आहट.

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नितिन नवीन को नरेंद्र मोदी के क़रीबी नेताओं में गिना जाता है. खुद नितिन नवीन इस घटना को याद करते हुए कहते हैं, 'साल 2010 की बात है, जब गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी बीजेपी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में शामिल होने पटना आए थे.' यही वह पल था, जब बिहार की राजनीति ने एक ऐसा मोड़ लिया, जिसने नितिन नवीन की पहचान दिल्ली तक पहुंचा दी.

जब एक विज्ञापन से मच गया सियासी भूचाल

बीजेपी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक पटना में होनी थी. बैठक खत्म होने के बाद तत्कालीन मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने देशभर से आए बीजेपी नेताओं के लिए मुख्यमंत्री आवास पर डिनर का कार्यक्रम तय किया था. सारी तैयारियां पूरी हो चुकी थीं.लेकिन बैठक से ठीक एक दिन पहले बिहार के सभी बड़े अख़बारों में एक फुल पेज विज्ञापन छपा. विज्ञापन में गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी की बड़ी तस्वीर थी. इस विज्ञापन को छपवाया था-नितिन नवीन और संजीव चौरसिया ने.

यही विज्ञापन नीतीश कुमार को नागवार गुज़रा.

नीतीश कुमार की नाराज़गी और डिनर की रद्दी करण कहानी

नितिन नवीन बताते हैं, “विज्ञापन की उस तस्वीर के विरोध में नीतीश कुमार ने बीजेपी नेताओं के लिए रखा गया डिनर का कार्यक्रम रद्द कर दिया था.' नीतीश कुमार की नाराज़गी इतनी तीखी थी कि बीजेपी के कई वरिष्ठ नेताओं ने उन्हें मनाने की कोशिश की, लेकिन बात नहीं बनी. सुशील मोदी ने भी अपनी नाराज़गी ज़ाहिर की, फिर भी नीतीश अपने फैसले पर अडिग रहे. इस एक फैसले ने बिहार की राजनीति में यह साफ कर दिया कि नरेंद्र मोदी को राष्ट्रीय स्तर पर प्रोजेक्ट करना नीतीश कुमार को मंज़ूर नहीं था.

'जब मोदी राष्ट्रीय राजनीति में चर्चा में नहीं थे…'

नितिन नवीन इस पूरे घटनाक्रम को एक लाइन में समेटते हैं इस तरह से हम कह सकते हैं कि जब नरेंद्र मोदी की राष्ट्रीय राजनीति में कोई चर्चा नहीं थी, तब से ही नितिन नबीन का मोदी की तरफ़ झुकाव था.” यही झुकाव आगे चलकर नितिन नवीन को मोदी-शाह खेमे का भरोसेमंद चेहरा बनाता चला गया.

पिता की विरासत से राजनीति की शुरुआत

पटना के वरिष्ठ पत्रकार संजय वर्मा मानते हैं कि नितिन नवीन की पूरी कहानी उनके पिता नवीन किशोर प्रसाद सिन्हा से जुड़ी है. उनके पिता पटना सदर और परिसीमन के बाद बैंकिपुर सीट से छह बार विधायक रहे. 2005 में उनके निधन के बाद बीजेपी ने 2006 के उपचुनाव में नितिन नवीन को टिकट दिया. संजय वर्मा कहते हैं कि अपने पिता की अच्छी छवि की वजह से नितिन चुनाव जीत गए. उसके बाद उनका पता भी पटना की राजनीति में चलने लगा.”

क्या नितिन नवीन का कद इतना बड़ा था?

नितिन नवीन का बीजेपी का राष्ट्रीय कार्यकारी अध्यक्ष बनना कई लोगों को आज भी हैरान करता है. बिहार के सियासी जानकारों का एक वर्ग मानता है कि नितिन नवीन का कद इतना बड़ा नहीं था कि उन्हें दुनिया की सबसे बड़ी पार्टी के शीर्ष पदों में से एक पर बैठाया जाए. हालांकि दूसरा पक्ष यह भी कहता है कि बिहार में प्रतिभाओं की कमी नहीं है, लेकिन कई बार परिस्थितियों की वजह से उन्हें मौके नहीं मिल पाते- राजनीति में भी यही सच है.

2010 की घटना ने बदली पहचान

नितिन नवीन पहली बार बड़े स्तर पर सुर्खियों में 2010 की उसी राष्ट्रीय कार्यकारिणी बैठक के दौरान आए. एक विज्ञापन ने उन्हें अचानक बिहार की राजनीति के केंद्र में ला खड़ा किया. उस दिन के बाद से नितिन नवीन नीतीश कुमार के विरोधी खेमे में गिने जाने लगे. आज भी उन्हें नीतीश के राजनीतिक विरोधियों में माना जाता है. इसके बावजूद नितिन नवीन का राजनीतिक कद बढ़ता गया. वे पहले बीजेपी बिहार युवा मोर्चा के महामंत्री बने, फिर बीजेपी राष्ट्रीय युवा मोर्चा के महामंत्री. इसके बाद उन्हें बंगाल, ओडिशा और छत्तीसगढ़ का प्रभारी बनाया गया.

छत्तीसगढ़ में उन्होंने जमीनी स्तर पर काम किया, जिसका नतीजा यह रहा कि वहां भूपेश बघेल की कांग्रेस सरकार को हराने में बीजेपी सफल रही. इसके बाद एक बार फिर नितिन नवीन मोदी और शाह की नजर में आए. नितिन नवीन लगातार पांच बार बैंकिपुर से विधायक चुने जा चुके हैं. 2021 में वे पहली बार नीतीश कुमार के मंत्रिमंडल में शामिल हुए और 2025 में भी मंत्री बने. हालांकि वरिष्ठ पत्रकार संजय वर्मा कहते हैं, नितिन नवीन न तो कभी ओजस्वी वक्ता रहे, न दबंग नेता माने गए.” लेकिन पर्दे के पीछे उनकी सक्रियता और दिल्ली तक उनकी सीधी पहुंच उन्हें अलग पहचान देती रही.

मोदी-शाह तक पहुंच का फायदा?

राजनीतिक जानकारों का मानना है कि नितिन नवीन लंबे समय से मध्यस्थों के जरिए मोदी-शाह के संपर्क में रहे और बिहार की जमीनी जानकारी हाईकमान तक पहुंचाते रहे. शायद यही वजह है कि उन्हें राष्ट्रीय कार्यकारी अध्यक्ष जैसी बड़ी जिम्मेदारी दी गई. हाजीपुर के कारोबारी रूपेश कुमार कहते हैं, “नितिन नवीन के पिता छह बार और खुद नितिन पांच बार बैंकिपुर से जीते हैं. यानी 11 बार लगातार बाप-बेटे एक ही सीट से चुने गए.” उनका मानना है कि बैंकिपुर कायस्थ बहुल सीट नहीं है, इसके बावजूद जीत यह दिखाती है कि नितिन नवीन का परिवार दिखावे की नहीं, ज़मीनी राजनीति में भरोसा रखता है.

बिना विवाद, बिना शोर- लेकिन लगातार चर्चा में

नितिन नवीन का नाम कभी किसी बड़े विवाद या भ्रष्टाचार से नहीं जुड़ा. हाल के दिनों में वे लगातार चर्चा में हैं और शीर्ष नेतृत्व की नजर में बने रहने का फायदा उन्हें मिला है. साल 2010 का वो विज्ञापन आज भी उनकी राजनीति की पहचान का सबसे बड़ा मोड़ माना जाता है- एक ऐसा किस्सा, जिसने नितिन नवीन को न सिर्फ बिहार, बल्कि दिल्ली की सत्ता के गलियारों तक पहुंचा दिया.

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