बदलता बिहार: इस बार चुनाव में अस्मिता का सवाल, औद्योगिक विकास जैसे मुद्दे क्यों दिख रहे हावी? एक्सपर्ट की राय
Bihar Chunav 2025: बिहार चुनाव 2025 में इस बार सियासी बहस जातीय समीकरणों से आगे बढ़कर प्रदेश की अस्मिता, रोजगार और औद्योगिक विकास जैसे ठोस मुद्दों पर केंद्रित है. हालांकि, जाति की जड़ें अब भी पहले की तरह ही मजबूत है. पर नए मुद्दों का केंद्र में आना बदलाव का संकेत है. युवाओं का झुकाव अब 'जाति' की राजनीति से हटकर ‘पहचान और प्रगति की राजनीति’ की ओर तेजी से बढ़ा है. इस बात से कोई इनकार नहीं कर सकता.
Bihar Election 2025: बिहार की राजनीति लंबे समय से जातीय समीकरणों के इर्द-गिर्द घूमती रही है, लेकिन इस बार चुनाव में एक दिलचस्प बदलाव देखने को मिल रहा है. मतदाता अब विकास और रोजगार के मुद्दों पर ज्यादा मुखर हैं. साथ ही बिहार की सांस्कृति, भाषा, विरासत और बिहारी पहचान को लेकर लोग मुखर हो गए हैं. काम न करने वाले नेताओं से लोग सीधे मुंह बात नहीं कर रहे हैं. साफ है सियासी दलों के उम्मीदवार अब केवल दिलासा देकर चुनाव नहीं लड़ सकते. चुनाव लड़ भी लिए, तो जीत नहीं सकते.
'बिहारी अस्मिता' अहम का सवाल, कौन देगा जवाब?
विशेषज्ञ मानते हैं कि प्रवासी बिहारी युवाओं की भूमिका इस बार अहम है. दिल्ली, मुंबई और विदेशों में काम करने वाले युवाओं ने राज्य की छवि बदलने की बात को चुनावी विमर्श में शामिल कर लिया है. 'बिहारी होना अब गर्व की बात बन गया है.'
औद्योगिक विकास पर फोकस
यही वजह है कि बिहार में रोजगार सृजन, इंफ्रास्ट्रक्चर और औद्योगिक निवेश को लेकर सभी पार्टियां वादों की झड़ी लगा दी हैं. एनडीए ने जहां ‘औद्योगिक बिहार’ का खाका पेश किया है. चार औद्योगिक पार्क विकसित करने का वादा किया है. वहीं, महागठबंधन के नेता ‘सरकारी नौकरी और शिक्षा सुधार’ पर सबसे ज्यादा जोर दे रहे हैं.
युवाओं का नजरिया
18 से 30 वर्ष के मतदाता अब नेताओं से ठोस योजनाएं मांग रहे हैं. सोशल मीडिया पर ‘बदलता बिहार’, ‘हम बिहारी हैं’ जैसे हैशटैग ट्रेंड कर रहे हैं. यह संकेत है कि इस बार भावनात्मक मुद्दों के साथ-साथ व्यावहारिक नीतियों पर भी जनता की नजर टिकी है.
सांस्कृतिक पहचान अहम कैसे?
बिहार के मिथिला क्षेत्र में राजनीतिक दल चुनावों से पहले सांस्कृतिक पहचान ('पाग' मखान की फसल, मैथिल पहचान) को भावनात्मक जुड़ाव के रूप में इस्तेमाल कर रहे हैं. यह दर्शाता है कि कैसे क्षेत्रीय-सांस्कृतिक पहचानों को सिर्फ जाति या दलीय सीमाओं से परे राजनीतिक रूप से संगठित किया जा रहा है. यह इस बात का प्रतीक भी है कि सियासी पार्टियां विशिष्ट क्षेत्रों और सांस्कृतिक समुदायों से जुड़ने के नए तरीके खोजने लगे हैं. उदाहरण के लिए मखाना बोर्ड.
वहीं, आरजेडी की ओर से भाषाई अस्मिता को उभारा जा रहा है. महागठबंधन ने अपने घोषणा पत्र में भोजपुरी, अंगिका, बज्जिका और मगही अकादमी बनाने की वादा किया है. साथ ही साथ बिहार की सांस्कृतिक पहचान पर भी जोर देने का वादा किया है.
मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, “इस चुनाव में जो दल बिहार की अस्मिता को विकास से जोड़ पाएगा, वही जनता का विश्वास जीत पाएगा. जातीय गठजोड़ अब निर्णायक नहीं बल्कि नीतिगत भरोसा ज्यादा अहम हो गया है.”
एक्सपर्ट की राय:
'बिहारी अस्मिता' नई और चौंकाने वाली बात - राजीव रंजन
वरिष्ठ पत्रकार राजीव रंजन तिवारी के मुताबिक, "बिहार में जाति की जड़ें अब भी कमजोर नहीं हुई हैं, लेकिन चुनाव प्रचार की प्रक्रिया में लंबे समय के बाद पहली बार बिहार में नया चीज देखने को मिल रहा है. जो देखने को मिल रहा है, उसे भले ही गंभीरता से नहीं लिया जा रहा है, लेकिन यही चुनावी मुद्दे आगामी कुछ वर्षों में बिहार को अलग पहचान दिलाएंगे."
उन्होंने आगे कहा, "इस बार पलायन और रोजगार के साथ बिहार की सांस्कृतिक, भाषाई, औद्योगिक विकास और प्रदेश की समृद्धि को लेकर दावे-प्रति दावे किए जा रहे हैं. इन मसलों को ने केवल पीएम मोदी, अमित शाह व नीतीश कुमार बल्कि राहुल गांधी, तेजस्वी यादव और प्रशांत किशोर भी उठा रहे हैं."
राजीव रंजन कहते हैं कि इस बार मतदाताओं के सामने दो विकल्प अहम हैं. एक दो से तीन करोड़ को रोजगार देने तो दूसरी तरफ दो करोड़ महिलाओं को 10-10 हजार रुपया मिलने पर आने वाले दिनों में स्टार्टअप शुरू करने के लिए बैंक से लाखों रुपये मुहैया कराना अहम विकल्प है. इसी पर चुनाव परिणाम तय होगा.
तेजस्वी के इस रूप को देख चौंक गए पत्रकार
राजीव रंजन ने तेजस्वी के एक इंटरव्यू का जिक्र करते हुए कहा कि उनसे एक पत्रकार ने पूछा कि हर परिवार के एक सदस्य को आप नौकरी कैसे दे पाएंगे? ये ख्याली पुलाव का दिलासा देकर आप जन भावनाओं से कब तक खेलेंगे. इसके जवाब में उन्होंने कहा कि आप मुझसे कागज पर लिखवा लीजिए. जो कह रहा हूं, उसे पूरा कर दिखाऊंगा. पत्रकार भी पीछे नहीं हटे, उन्होंने एक पेपर पर तेजस्वी से वादा निभाने का संकल्प ले लिया. आरजेडी नेता ने लिखा, 'हर परिवार के एक व्यक्ति को सरकारी नौकरी दूंगा.'
इतना ही नहीं, साक्षात्कार ले रहे पत्रकार ने कहा कि इस पर आप साइन भी कर दीजिए. इस पर तेजस्वी ने अपना साइन कर दिया. साथ ही तेजस्वी ने कहा कि इस पेपर को आप आप अपने पास रखिएगा. जब मैं वादा पूरा करूंगा तो लोगों को दिखाइगा जरूर.
युवा मतदाताओं का सवाल लाएगा बदलाव - योगेंद्र वर्मा
पटना यूनिवर्सिटी लॉ फैकल्टी के डीन योगेंद्र वर्मा के अनुसार, "इस बार मराठी, गुजराती, बंगाली अस्मिता की तरह बिहार के सियासी दल भी 'बिहारी अस्मिता' के मसले को जोरदार तरीके से उठा रहे हैं. यही वजह है कि कभी 'मिथिला पाग' का मुद्दा उठ रहा है तो कभी बिहार में इंडस्ट्रियल पार्क का. इतना ही नहीं, बिहार में प्रचलित भोजपुरी, मगही, अंगिका और बज्जिका भाषा का अकादमी बनाने की मांग भी जोरों पर है, ताकि बिहार में भाषाई विविधता का संरक्षण हिंदी और मैथिली की तरह हो सके."
लोग पूछ रहे सवाल - रोजगार का आधार क्या?
योगेंद्र वर्मा ने ये भी कहा, "हर बार चुनाव में कोई न कोई प्रलोभन दिए जाते हैं. लेकिन इस बार जाति राजनीति के बीच नए मसले जो उठे हैं, उसे सभी को गंभीरता से लेकर की जरूरत है. बिहार का युवा वर्ग बिहार के औद्योगीकरण, आर्थिक समृद्धि और विकास पर वोट करेगा. इसके अलावा, रोजगार भी बड़ा मसला है. इस मसले पर अभी प्रदेश के मतदाता तेजस्वी के दावों पर विश्वास नहीं कर पा रहे हैं. लोगों का सवाल है कि जिस रोजगार की वो बात कर हैं, उसका आधार क्या होगा? इसकी कोई चर्चा नहीं है."
इंडस्ट्री का विकास होगा तो बदलेगा बिहार
लॉ फैकल्टी के डीन योगेंद्र वर्मा के मुताबिक, 'बिहार इंडस्ट्री का विकास लाजिमी है. तभी जाकर लोग अपनी माटी की खुशबू को बढ़ा दे पाएंगे. इसी तरह औद्योगीकरण, जानकी मंदिर का निर्माण, पर्यटन केंद्रों का विकास भी अहम मसला है. इससे डायरेक्ट रोजगार भले ही कम मिले, लेकिन अप्रत्यक्ष रूप से बड़े पैमाने पर लोगों को रोजगार का अवसर मिलता है.' योगेंद्र वर्मा ने एक अहम बात यह भी बताया कि अगर प्रदेश सरकार वाटर मैनेजमेंट का ही काम ठीक से पूरा कर ले तो बिहार देश को धनी राज्य हो जाएगा. फिलहाल, मतदाताओं की नजर इस सभी पहलुओं पर है. प्रदेश के शिक्षित लोग इसे नोट कर रहे हैं.





