क्या मुस्लिम बहुल सीटों पर महागठबंधन का पलड़ा भारी है? आंकड़ों से समझें पूरा समीकरण
बिहार की मुस्लिम बहुल सीटों को लेकर चुनावी मुकाबला दिलचस्प होता जा रहा है. माना जा रहा था कि इन सीटों पर महागठबंधन का पलड़ा भारी है, लेकिन ताजा आंकड़े और ग्राउंड रिपोर्ट कुछ और कहानी बयां कर रहे हैं. ऐसा इसलिए कि कुल 243 विधानसभा सीटों में से 86 सीटों ऐसी हैं जिस पर मुस्लिम मतदाता निर्णायक भूमिका निभाते हैं. इनमें 51 सीटें मुस्लिम बहुल आबादी वाले शामिल हैं.
बिहार चुनाव में मुस्लिम वोट बैंक हमेशा से राजनीतिक समीकरण तय करने में अहम भूमिका निभाता आया है. इस बार कई सीटों पर मुकाबला त्रिकोणीय हो गया है. सवाल उठ रहा है कि क्या मुस्लिम बहुल इलाकों में महागठबंधन (MGB) का पलड़ा भारी है या इस बार NDA और AIMIM जैसी पार्टियों ने भी इसमें सेंध लगा दी है? यह सवाल इसलिए वाजिब है कि इन सीटों में अधिकांश सीटों पर पिछले तीन विधानसभा चुनावों में एनडीए गठबंधन को ज्यादा पर जीत मिली है.
इसके बावजूद, अगर कोई किसी से यह पूछे कि बिहार में मुस्लिम बहुल सीटों पर किस गठबंधन को बढ़त हासिल है? लोग यही बताते हैं कि महागठबंधन ही आगे है. महागठबंधन यानी राष्ट्रीय जनता दल, कांग्रेस, सीपीआई-एमएल, सीपीआई, सीपीएम, वीआईपी और आईपी गुप्ता की पार्टी. लोग ऐसा इसलिए कहते हैं कि वो सही आंकड़ों से अनजान होते हैं. आम लोगों में यह सेट है कि हमेशा से मुस्लिम मतदाता सिर्फ उन्हीं को वोट डालते हैं. इतना ही नहीं, महागठबंधन के नेता सब कुछ जानते हुए भी इस बात का दावा भी बढ़कर करते हैं कि मुसलमान उन्हीं का वोट बैंक है. लेकिन, हकीकत इससे अलग है.
NDA का स्ट्राइक रेट 70 फीसदी
सच यह है कि बिहार के मुस्लिम बहुल इलाकों की 51 विधानसभा सीटों में से भारतीय जनता पार्टी और उसके सहयोगियों ने 2020 के चुनावों में 35 सीटें जीतीं. राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन का स्ट्राइक रेट लगभग 70 प्रतिशत रहा, जो राज्य के अन्य हिस्सों की तुलना में काफी ज्यादा है.
जहां तक 2015 में संपन्न चुनाव की बात है तो उसमें भाजपा और उसकी प्रमुख सहयोगी जनता दल (यूनाइटेड) ने अलग-अलग चुनाव लड़ा, तो उनका प्रदर्शन गिर गया. बिहार विधानसभा चुनाव 2010 में भी एनडीए गठबंधन की ही जीतने वाले उम्मीदवारों की संख्या ज्यादा थी. यानी तीनों चुनावों में यही पैटर्न रहा है और हर बार भाजपा सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी है.
दरअसल, बिहार विधानसभा की 51 सीटें सात जिलों (किशनगंज, कटिहार, अररिया, पूर्णिया, दरभंगा, पश्चिम चंपारण और सीतामढ़ी) जिलों के हैं. इन जिलों में मुस्लिम आबादी 20 प्रतिशत से अधिक और 70 प्रतिशत तक है. किशनगंज राज्य का एकमात्र मुस्लिम बहुल जिला है, जहां मुसलमानों की आबादी लगभग 68 प्रतिशत है. कटिहार में मुसलमानों की आबादी 45 प्रतिशत, अररिया में 43 प्रतिशत और पूर्णिया में 38 प्रतिशत है. शेष तीन जिलों में मुसलमानों की आबादी लगभग 22 प्रतिशत है.
2020: कटिहार में 4 सीटें NDA को मिली थी
किशनगंज एक ऐसा जिला है, जहां भाजपा अभी तक मुस्लिम वोटों में सेंध नहीं लगा पाई है. पार्टी और उसके सहयोगियों ने अन्य छह जिलों में टैक्टिकल वोटिंग का लाभ उठाते हुए अपना दबदबा बनाए रखा है. कटिहार में 2020 के चुनावों में भाजपा ने सात में से तीन सीटें जीती थीं. जबकि एक सीट उसके सहयोगी जेडीयू के खाते में गई थी. अररिया और पूर्णिया में भी स्थिति ऐसी ही रही, जहां भाजपा-जेडीयू गठबंधन ने 13 में से आठ सीटें जीतीं.
सीमांचल की 24 सीटों में साल 2020 में 9 सीट बीजेपी, पांच सीट कांग्रेस, पांच सीट एआईएमआईएम और एक सीट आरजेडी के खाते में गई थी.
35 में से 24 सीटें BJP-JDU जीती थी
इसी तरह पूर्वी चंपारण, सुपौल, मधुबनी और सीवान जिलों में कुल मिलाकर 35 विधानसभा सीटें हैं. यहाँ भी स्थिति लगभग एक जैसी ही है. इस सभी जिलों में एनडीए के उम्मीदवार समीकरण के हिसाब से उतारे जाते हैं. माहौल हिंदू बनाम मुस्लिम का माहौल बनने पर वोटों का ध्रुवीकरण होता है. ऐसे टैक्टिकल वोटिंग होता है. इसका सीधा लाभ बीजेपी और जेडीयू को मिलता है.
इसी तरह साल 2020 और 2015 के चुनावों में भाजपा इन निर्वाचन क्षेत्रों में सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरी थी. जबकि 2010 में यह उपलब्धि जेडीयू के खाते में गई. भाजपा और जेडीयू की संयुक्त संख्या 2020 में 24 सीटें और 2010 में 35 में से 31 सीटें थीं. इसके उलट, विकासशील समाज अध्ययन केंद्र के सर्वेक्षणों के मुताबिक बिहार में मुसलमानों का अधिकांश वोट महागठबंधन में शामिल दलों को जाता है.
NDA की रणनीति
BJP और JDU ने इस बार कई मुस्लिम बहुल इलाकों में नए चेहरे और विकास के मुद्दे को प्राथमिकता दी है. प्रधानमंत्री मोदी और नीतीश कुमार की रैलियों में भी इन इलाकों को खास टारगेट किया गया है. चुनाव से ठीक पूर्व सीमांचल के पूर्णिया जिले में एयरपोर्ट सेवा की शुरुआत हुई है. NDA का फोकस यह दिखाने पर है कि सुरक्षा, शिक्षा और रोजगार और अन्य सुविधा के मुद्दे पर मुस्लिम वोटों का भरोसा जीता जा सकता है.
महागठबंधन की चुनौती
RJD के रणनीतिकार मान रहे हैं कि AIMIM और छोटे दलों के मैदान में आने से वोट बंट सकते हैं. खासतौर से किशनगंज, पूर्णिया और जोकीहाट जैसी सीटों पर MGB के उम्मीदवारों को कड़ी टक्कर मिल रही है.
राजनीतिक जानकारों का कहना है कि मुस्लिम वोट अब एकमुश्त नहीं रहा. जहां NDA ने विकास और योजनाओं के जरिए कुछ वोट आकर्षित किए हैं, वहीं AIMIM ने धार्मिक और पहचान की राजनीति को मुद्दा बनाया है. यही वजह है कि महागठबंधन के लिए यह इलाका अब उतना सुरक्षित नहीं जितना 2010 से पहले होता था.





