ढाका से इस्लामाबाद तक खामोश चालें, पाकिस्तान-बांग्लादेश की सीक्रेट डिफेंस डील से क्या भारत को होनी चाहिए चिंता?
भारत के खिलाफ एक नए रणनीतिक चक्रव्यूह की आहट के बीच पाकिस्तान और बांग्लादेश के बीच कथित सीक्रेट डिफेंस डील की तैयारी की चर्चा तेज हो गई है. लगातार पाक रक्षा अधिकारियों की ढाका यात्राएं, नाटो-स्टाइल सैन्य समझौते के संकेत और खुफिया साझेदारी की संभावनाएं भारत की सुरक्षा चिंताओं को बढ़ा रही हैं. चुनाव से पहले डील को फाइनल करने की पाकिस्तान की जल्दबाज़ी और यूनुस सरकार की भूमिका पर भी सवाल उठ रहे हैं.
पिछले कुछ महीनों में बांग्लादेश की राजधानी ढाका में जो हलचल दिखी है, वह केवल कूटनीतिक नहीं बल्कि रणनीतिक भी है. पाकिस्तान के शीर्ष रक्षा अधिकारियों की लगातार ढाका यात्राएं-जॉइंट चीफ्स ऑफ स्टाफ कमेटी के चेयरमैन से लेकर नेवी चीफ और ISI प्रमुख लेफ्टिनेंट जनरल आसिम मलिक तक. इस बात का संकेत हैं कि इस्लामाबाद और ढाका के बीच रिश्ते एक नए मोड़ पर पहुंच चुके हैं. यह सब ऐसे समय हो रहा है, जब मोहम्मद यूनुस के नेतृत्व में बांग्लादेश की विदेश नीति धीरे-धीरे दिल्ली से दूरी बनाकर इस्लामाबाद की ओर झुकती दिख रही है.
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भारत के साथ बढ़ते तनाव के बीच अब पाकिस्तान और बांग्लादेश के बीच एक संभावित रक्षा समझौते की चर्चा तेज हो गई है. बताया जा रहा है कि यह समझौता नाटो-स्टाइल यानी “एक पर हमला, दोनों पर हमला” वाले मॉडल पर आधारित हो सकता है. ठीक वैसा ही जैसा पाकिस्तान ने हाल ही में सऊदी अरब के साथ किया था. अगर यह डील होती है, तो 1971 के बाद पहली बार दोनों देशों के बीच औपचारिक सैन्य गठजोड़ बनेगा, जो इतिहास की विडंबना भी है.
सऊदी मॉडल से प्रेरित पाकिस्तान की नई रणनीति
सितंबर में पाकिस्तान और सऊदी अरब के बीच हुए रणनीतिक रक्षा समझौते ने क्षेत्रीय राजनीति में हलचल मचा दी थी. इस समझौते की सबसे चर्चित पंक्ति थी.“किसी एक देश पर आक्रमण, दोनों पर आक्रमण माना जाएगा.” पाकिस्तान में इसे भारत के खिलाफ रणनीतिक प्रतिरोधक (deterrence) के रूप में देखा गया. यही मॉडल अब इस्लामाबाद बांग्लादेश के साथ दोहराना चाहता है.
ढाका में रक्षा समझौते की पटकथा तैयार
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, पाकिस्तान और बांग्लादेश ने प्रस्तावित रक्षा समझौते के मसौदे के लिए एक संयुक्त तंत्र (joint mechanism) भी बना लिया है. अगर यह डील साइन होती है, तो दोनों देशों के बीच खुफिया जानकारी साझा करने, संयुक्त सैन्य अभ्यास और सुरक्षा सहयोग का रास्ता खुलेगा. हालांकि, अभी तक यह साफ नहीं है कि इस समझौते में परमाणु सहयोग (nuclear cooperation) भी शामिल होगा या नहीं. अगर ऐसा हुआ, तो यह भारत के लिए गंभीर सुरक्षा चिंता बन सकता है-खासकर पूर्वी मोर्चे पर.
चुनाव से पहले डील पर पाकिस्तान की जल्दबाज़ी
बांग्लादेश में दो महीने बाद चुनाव होने हैं और पाकिस्तान चाहता है कि यह समझौता उससे पहले ही पक्का हो जाए. मौजूदा राजनीतिक अस्थिरता और हाल ही में कट्टर नेता शरीफ उस्मान हादी की हत्या के बाद बढ़ी भारत-विरोधी भावना ने पाकिस्तान को मौका दे दिया है. मंगलवार को पाकिस्तान की सत्तारूढ़ पार्टी के एक नेता ने खुले मंच से दोनों देशों के बीच औपचारिक सैन्य गठबंधन की मांग कर दी. पाकिस्तान मुस्लिम लीग के नेता कामरान सईद उस्मानी ने कहा कि 'अगर भारत ने बांग्लादेश पर हमला किया, तो पाकिस्तान पूरी ताकत के साथ ढाका के साथ खड़ा होगा… जो बंदरगाहों और समुद्रों पर नियंत्रण रखता है, वही दुनिया पर राज करता है।” उनका दावा था कि पाकिस्तान-बांग्लादेश सैन्य साझेदारी क्षेत्रीय शक्ति संतुलन को पूरी तरह बदल देगी.
भारत की चिंता और चुप्पी
भारत सरकार ने फिलहाल इस पूरे घटनाक्रम पर कोई आधिकारिक बयान नहीं दिया है, लेकिन सूत्रों के हवाले से कहा जा रहा है कि नई दिल्ली हालात पर करीबी नजर बनाए हुए है. अगर यह रक्षा समझौता परमाणु सहयोग तक जाता है, तो यह भारत की पूर्वी सीमा के लिए बड़ी चुनौती बन सकता है.
बांग्लादेश की राजनीति और पाकिस्तान का दांव
इस बीच, बांग्लादेश की आंतरिक राजनीति भी अहम भूमिका निभा रही है. अवामी लीग के चुनाव से बाहर होने के बाद भारत की नजर बांग्लादेश नेशनल पार्टी (BNP) पर है, जिसे जमात-ए-इस्लामी की तुलना में दिल्ली के ज्यादा करीब माना जाता है. रिपोर्ट्स के मुताबिक, अगर BNP सत्ता में आती है, तो यह रक्षा समझौता अटक सकता है. यही वजह है कि पाकिस्तान मौजूदा यूनुस प्रशासन के रहते इस डील को अंतिम रूप देना चाहता है-एक ऐसी सरकार, जिसने भारत से दूरी और इस्लामाबाद से नजदीकी को प्राथमिकता दी है.





