Kisse Netaon Ke: लालू यादव के सुझाव ने लिखा नया इतिहास, VP सिंह रह गए दंग, बदल गई भारत...
Ankahee Kahani: लालू यादव 10 मार्च 1990 को पहली बार बिहार के सीएम बने थे. उसके कुछ महीने बाद वह तत्कालीन पीएम विश्वनाथ प्रताप सिंह से मिलने दिल्ली पहुंचे. उन्होंने वीपी सिंह को चौधरी देवीलाल के सियासी प्रपंच के खिलाफ कार्रवाई करने को कहा. साथ ही मंडल कमीशन को लागू करने का सुझाव भी दिया. उनके इस रुख पर पूर्व पीएम और मांडा के राजा वीपी सिंह अवाक रह गए, पर क्यों?
Lalu ke Kisse: यह घटना उस समय की है जब बोफोर्स घोटाला सामने आने के बाद हुए आम चुनाव में पूर्व पीएम राजीव गांधी चुनाव हार गए थे. केंद्र में वीपी सिंह की सरकार बनी थी. सरकार में दो धुरी बने हुए थे. एक वीपी सिंह की और दूसरी चौधरी देवीलाल की, जो केंद्र सरकार में उस समय डिप्टी पीएम थे. कुछ महीनों बाद दोनों के बीच अनबन की वजह से सरकार पटरी से उतरने वाली थी. इस सियासी उठापटक को भांपते हुए बिहार में नए-नए सीएम बने लालू यादव परेशान हो उठे. उन्होंने सोचा, इसी तरह दिल्ली में दोनों लड़ते रहते तो केंद्र सरकार का गिरना तय है. इसी उधेड़बुन में उन्होंने दिल्ली स्थित पीएम आवास में फोन मिला दिया. उन्होंने तत्कालीन पीएम वीपी सिंह से बात की और मिलने का समय मांगा. उन्हें अगले दिन का समय भी मिल गया. फिर, क्या था, वह दिल्ली के लिए रवाना हो गए.
पहली मुलाकात में लालू ने कह दी ऐसी बात...
बिहार का सीएम बनने के बाद लालू यादव की वीपी सिंह से पहली मुलाकात थी. दिल्ली में मुलाकात के दौरान उन्होंने तत्कालीन पीएम को मंडल कमीशन लागू करने का सुझाव दिया. पूर्व पीएम को जरा भी इस बात का भान नहीं था कि लालू यादव इस तरह चौधरी देवीलाल को सियासी पटखनी देने का नुस्खा सुझा देंगे. यही वजह है कि लालू यादव की ओर से बिन मांगे मिले सुझाव पर तत्कालीन पीएम विश्वनाथ प्रताप सिंह अवाक रह गए. पूर्व पीएम धर्म संकट में फंस गए कि बिहार के सीएम को क्या जवाब दें?
नलिन वर्मा की पुस्तक 'गोपालगंज से रायसीना - मेरी राजनीतिक यात्रा' में इस बारे में डिटेल में जिक्र है. नलिन वर्मा की पुस्तक के मुताबिक, बात उस समय की है, जब बोफोर्स घोटाले के बाद स्व. राजीव गांधी चुनाव हार गए. केंद्र में वीपी सिंह की सरकार बनी. इस सरकार के दो धुरी थे. एक वीपी सिंह स्वयं और दूसरा चौधरी देवीलाल, जो उस समय डिप्टी पीएम थे. राष्ट्रपति आवास कैंपस में ही बनाए के डिप्टी पीएम आवास गाय और भैंस भी पालने लगे थे. कुछ महीने बाद ही दोनों के बीच सियासी मसलों पर मतभेद खुलकर बाहर आने लगे थे.
देवीलाल को हटा क्यों नहीं देते?
उसी समय, डिप्टी पीएम चौधरी देवी लाल के सहयोग से लालू बिहार के सीएम बने थे. लालू को लगा कि पीएम और डिप्टी पीएम के बीच तकरार इसी तरह जारी रहा तो सरकार गिर जाएगी. उन्होंने पीएम से मिलने का बिना वजह बताए समय मांगा. समय मिलने पर वह तत्काल पटना से दिल्ली पहुंच गए. वीपी सिंह से मिले. मुलाकात होते ही उन्होंने बिना भूमिका बांधे वीपी सिंह से कहा, "आप चौधरी देवीलाल को हटा क्यों नहीं देते?"
नए सीएम और अपने विरोधी गुट के नेता लालू के इस सुझाव को पाकर वीपी सिंह चौंक गए. पीएम ने लालू से कहा - "ये आप कह रहे हैं. देवी लाल तो आपके अपने आदमी हैं." इस पर लालू ने कहा - "वो हमारे अपने हैं, पर सरकार को खतरा है." इस पर वीपी सिंह ने आगे कहा - "उन्हें कुछ कहूंगा तो वह गरीब, पिछड़ों, किसान और दलितों के बीच जाकर कहेंगे, 'पीएम को देश के आम लोगों की चिंता नहीं है. सरकार चलाने का ज्ञान नहीं है."
मंडल कमीशन लागू कर दीजिए
इस पर लालू यादव ने कहा - "ऐसी बात है तो आपके पास दमदार जवाब या यूं कहें कि समाधान है. इस पर वीपी सिंह ने पूछा वो क्या है? लालू यादव ने कहा - 'बीपी मंडल ने कई साल पहले ओबीसी आरक्षण लागू करने की अनुशंसा की थी. आप इसे लागू कर दीजिए. उसके बाद चौधरी देवी लाल कुछ भी बोलेंगे तो उनकी बातों पर कोई ध्यान नहीं देगा. ऐसा इसलिए कि देश की बहुसंख्यक आबादी ओबीसी कोटे के तहत 27 प्रतिशत आरक्षण मिलने पर खुश होगी. गरीब, दलित, पिछड़ी जातियों के युवाओं को सरकारी अफसर बनने से हर स्तर पर नौकरी पाने का मौका मिलेगा."
लालू यादव ने यह सुझाव, यह जानते हुए दिया कि पूर्व पीएम वीपी सिंह और पूर्व डिप्टी पीएम चौधरी देवीलाल 1989 में राजीव गांधी की अगुवाई वाली कांग्रेस सरकार को सत्ता से बेदखल करने करने के लिए एकजुट होकर काम किया था, लेकिन अब एक दूसरे को लेकर असहज हो गए थे. लालू यादव यह भी जानते थे कि कुछ स्वार्थी तत्वों ने देवीलाल को वीपी सिंह के खिलाफ भड़काया, मानो वे राजीव गांधी की सत्ता के खिलाफ संघर्ष करने वाले साथी न होकर, एक दूसरे के प्रतिद्वंद्वी हों. यही वजह है कि दोनों के बीच जो सौहार्दपूर्ण रिश्ता था, वह धीरे-धीरे खत्म होने लगा था.
लालू ने क्यों दिया ऐसा सुझाव
पुस्तक में लालू यादव के हवाले से यह भी कहा गया है कि उन्हें चिंता होनी लगी कि वीपी सिंह और देवीलाल के बीच बढ़ते तनाव से राष्ट्रीय मोर्चा की सरकार गिर सकती है और इसका असर बिहार में मेरी सरकार पर भी पड़ सकता है. मेरा यह भय जायज था, क्योंकि पिछले दशक में केंद्र सरकार में उथल-पुथल का असर पटना तक में महसूस किया गया था. मैंने जनता पार्टी की सरकार को अंदरूनी झगड़े के कारण गिरते देखा था और नहीं चाहता था कि जनता दल का सरकार का भी यही हश्र हो. इस बात को ध्यान में रखते हुए, अगस्त 1990 में वीपी सिंह की सरकार को बचाने के लिए मैंने एक फॉर्मूला ईजाद किया.
चुपचाप मांगा समय, पहुंच गए दिल्ली
इसके बाद लालू यादव ने किसी भी केंद्रीय मंत्री को जरा-सी भी भनक न लगने देकर पीएम से मिलने के लिए समय मांगा और वह इसके लिए सहज ही तैयार हो गए. फिर क्या था, मैं दिल्ली पहुंचा. तब तक व्यक्तिगत तौर पर वीपी सिंह से मिला नहीं था. फिर, प्रधानमंत्री को मेरी मुलाकात के मकसद के बारे में एहसास तक नहीं था. औपचारिकताओं के बाद, मैंने उनसे दो टूक शब्दों में कहा, "आप देवीलाल देवीलाल के खिलाफ कार्रवाई करनी चाहिए, वरना सरकार गिर जाएगी."
लालू की बात सुन VP
वीपी सिंह अवाक रह गए. उन्होंने दूर-दूर तक भी कल्पना नहीं की थी कि मैं ऐसा कर सकता हूं. वीपी सिंह जानते थे कि मैं देवीलाल कैंप का आदमी हूं. लिहाजा, मेरी टिप्पणी से उन्हें धक्का लगा. उनका हैरत में पहना बहुत स्वाभाविक था कि आखिर मैं क्यों देवीलाल के खिलाफ कार्रवाई करने के लिए कह रहा हूं, जो कि मेरे हितैषी थे. मगर इसके साथ ही वह खुश हुए होंगे कि देवीलाल का एक कट्टर समर्थक उनके खेमे में आ रहा है.
अगर मैंने देवीलाल को...
वीपी सिंह तेज दिमाग और अच्छी राजनीतिक सूझबूझ वाले व्यक्ति थे. उन्होंने जवाब दिया, 'देवीलाल जी जाटों और पिछड़ों के नेता हैं. यदि, मैंने उनके खिलाफ कार्रवाई की तो वह देश भर में घूम सकते हैं और प्रचार कर सकते हैं कि मैं पिछड़ा और गरीब विरोधी हूं.' बेशक वह सही थे, लेकिन मैं भी पूरी तरह से तैयार था. मैंने कहा - "इसका भी एक रास्ता है. मंडल आयोग ने 1983 में अपनी रिपोर्ट दी थी, जिसमें उसने सरकारी नौकरियों में पिछड़ा वर्गों को 27 फीसदी आरक्षण दिए जाने की सिफारिश की थी. उसकी सिफारिश आपके दफ्तर में धूल खा रही है. उसे तत्काल प्रभाव से लागू कीजिए."
पूर्व PM को किस बात का सता रहा था डर
मेरा पक्का भरोसा था कि पूर्व पीएम ने यदि ऐसा कर दिया तो, देवीलाल वीपी सिंह को पिछड़ा विरोधी नहीं बता पाएंगे. उनके ऐसे किसी भी प्रयास को यह फैसला बेअसर कर देगा. प्रधानमंत्री इसके खिलाफ थे. संभवतया उनको भय था कि इससे परिणाम में समाज में बड़े पैमाने पर अशांति फैल सकती है.
मंडल आयोग को बिना देर किए कर दें लागू
लालू यादव के मुताबिक, पर मैं अड़ा रहा, मैं इस बात से आश्वस्त था कि वह पूरे देश में गरीब और पिछड़ों के बीच मसीहा बनकर उभरेंगे और गरीब और समाज के वंचित तबके उनकी पूजा करेंगे. मैंने, जोर देकर कहा कि मंडल आयोग की रिपोर्ट को लागू करने से उनकी राजनीतिक स्थिति मजबूत होगी और देवीलाल के खिलाफ उन्हें ताकत मिलेगी. मैंने वीपी सिंह से आग्रह किया कि वह बिना देर किए मंडल आयोग की रिपोर्ट लागू करें.
आखिरकार, वीपी सिंह इस बात से सहमत लगे. उन्होंने जानना चाहा कि मैं कहां ठहरा हूं? मैंने उन्हें बताया कि मैं चाणक्यपुरी स्थित बिहार भवन में ठहरा हूं. मैंने उन्हें भरोसा दिलाया कि वह जब भी महसूस करें, मुझे बुला सकते हैं. इसके साथ ही मैंने कहा कि वह पहले मंत्रिमंडल की बैठक बुलाएं और बिना और सोचे रिपोर्ट को लागू करें.
लालू पटना के लिए रवाना हो गए
शरद यादव, रामविलास पासवान जैसे वरिष्ठ नेताओं को प्रधानमंत्री के साथ मेरी मुलाकात के बारे में पता नहीं था. इसके बाद मैंने उन्हें भरोसे में लिए और हैरत में पड़े इन नेताओं को बताया कि वीपी सिंह मंडल आयोग की रिपोर्ट को लागू करने के लिए सहमत हो गए हैं. मेरे बिहार भवन के लिए रवाना होने के बाद वीपी सिंह ने मंत्रिमंडल की बैठक बुलाई और तय किया गया कि रिपोर्ट लागू की जाएगी. वीपी सिंह ने एक विशेष संदेशवाहक के जरिए मेरे पास अधिसूचना की एक प्रति भिजवाई. मैंने, उसे अपने ब्रीफकेस में रखा और पटना के लिए रवाना हो गया, लेकिन मंडल आयोग की रिपोर्ट लागू होते ही देश में ऐसा बवाल मचा कि वीपी सिंह को देना पड़ा इस्तीफा. फिर कांग्रेस के सहयोग से चंद्रशेखर बने पीएम. कुछ महीने बाद गिर गई उनकी सरकार. कराना पड़ा आम चुनाव और सत्ता में लौट आई कांग्रेस. इतना ही नहीं, देश की राजनीति की तस्वीर बदल गई. उस फैसले का नतीजा यह हुआ कि वर्तमान राजनीति में सरकार का भाग्य ओबीसी और पिछड़ों की राजनीति से तय होता है.





