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बिहार में पहले चरण में रिकॉर्ड वोटिंग, बदलाव का संकेत या नीतीश कुमार की सत्ता में वापसी का भरोसा?

बिहार विधानसभा चुनाव 2025 के पहले चरण में रिकॉर्ड 64.66% मतदान हुआ, जो राज्य के इतिहास में सबसे ज्यादा है. महिला मतदाताओं की भारी भागीदारी और जनसुराज पार्टी के एंट्री से मुकाबला त्रिकोणीय हो गया है. अब सवाल यह है कि क्या यह बंपर वोटिंग बदलाव की आहट है या नीतीश कुमार की वापसी का संकेत... जवाब 14 नवंबर को नतीजों के साथ मिलेगा.

बिहार में पहले चरण में रिकॉर्ड वोटिंग,  बदलाव का संकेत या नीतीश कुमार की सत्ता में वापसी का भरोसा?
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( Image Source:  ANI )

Bihar Election 2025 Phase 1 Voting Percentage: बिहार विधानसभा चुनाव 2025 के पहले चरण का मतदान गुरुवार को शांतिपूर्ण ढंग से संपन्न हुआ. राज्य की 121 सीटों पर हुई वोटिंग में मतदाताओं ने रिकॉर्ड उत्साह दिखाया. इस बार मतदान प्रतिशत 64.66% तक पहुंच गया, जो 2020 के मुकाबले करीब 8 प्रतिशत ज्यादा है. यह बिहार के चुनावी इतिहास में पहले चरण की सबसे अधिक वोटिंग है.

साल 2020 में पहले चरण में 56.1%, 2015 में 55.9% और 2010 में 52.1% वोटिंग हुई थी. यानी, 2025 में मतदाताओं ने भागीदारी का नया अध्याय लिख दिया.

36 लाख ज्यादा लोगों ने किया मतदान

2020 में पहले चरण में कुल 3.70 करोड़ वोटर थे, जिनमें से 2.06 करोड़ ने वोट डाला था. इस बार 3.75 करोड़ वोटरों में से करीब 2.42 करोड़ लोगों ने अपने मताधिकार का प्रयोग किया. राजनीतिक हलकों में अब यह बड़ा सवाल है कि क्या यह बढ़ा हुआ मतदान बदलाव का संकेत है या नीतीश कुमार की सत्ता में वापसी का भरोसा?

क्या अधिक वोटिंग का मतलब सत्ता परिवर्तन होता है?

भारत के चुनावी इतिहास में एक धारणा रही है कि ज्यादा वोटिंग का मतलब सत्ता परिवर्तन होता है, यानी 'Anti-Incumbency'. हालांकि, यह हमेशा सच नहीं होता. कुछ उदाहरण इस धारणा को चुनौती देते हैं;

  • मध्य प्रदेश (2023) : 77% वोटिंग, फिर भी BJP की वापसी.
  • ओडिशा (2014) : 73.65% वोटिंग, BJD ने दोबारा सरकार बनाई.
  • गुजरात (2012) : 11.53% अधिक वोटिंग, फिर भी मोदी सरकार की वापसी.
  • बिहार (2010) : 6.82% अधिक वोटिंग, तब भी नीतीश सरकार लौटी थी.

यानी, बंपर वोटिंग का अर्थ हमेशा सत्ता परिवर्तन नहीं, बल्कि यह जनता के मुद्दों और मूड पर निर्भर करता है.

जब अधिक वोटिंग से हुआ सत्ता परिवर्तन

दूसरी ओर, कुछ चुनावों में ज्यादा मतदान ने सरकार बदल दी;

  • राजस्थान (2023) : 74.45% वोटिंग, कांग्रेस की हार.
  • तमिलनाडु (2011) : 7.19% अधिक मतदान, DMK हारी और AIADMK जीती.
  • उत्तर प्रदेश (2012) : 13.44% अधिक मतदान, BSP हारी और SP सत्ता में आई.

पहले चरण में कौन-कौन सी सीटें और किसका दबदबा?

पहले चरण की वोटिंग दरभंगा, तिरहुत, कोसी, सारण, मुंगेर और भागलपुर डिवीजनों में हुई. 2020 में इन 121 सीटों में से 60 एनडीए और 61 महागठबंधन के खाते में गई थीं. इस बार प्रशांत किशोर की जनसुराज पार्टी के मैदान में उतरने से मुकाबला त्रिकोणीय हो गया है. एनडीए इसे जनसमर्थन की लहर बता रहा है, जबकि महागठबंधन इसे बदलाव की आहट कह रहा है.

महिलाओं का वोट बनेगा किंगमेकर

इस बार महिला मतदाताओं की भागीदारी अभूतपूर्व रही. बिहार में 2005 के बाद से महिलाएं नीतीश कुमार की राजनीतिक ताकत रही हैं, साइकिल योजना, आरक्षण और शराबबंदी जैसी योजनाओं ने उन्हें बड़ी संख्या में जोड़ा. हालांकि, 2020 में यह समर्थन कुछ कम हुआ था, लेकिन 2025 में नीतीश सरकार ने 10,000 रुपये की सहायता योजना का दांव चलाया है. वहीं, तेजस्वी यादव ने हर महिला को ₹30,000 देने का वादा कर महिला वोट बैंक में सेंध लगाने की कोशिश की है. कहा जा रहा है कि महिला वोट ही इस बार बिहार की सत्ता का फैसला करेगा.

अब सबकी नजर दूसरे चरण पर

राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि इस बार का वोटिंग पैटर्न स्थानीय मुद्दों पर आधारित होगा. जहां नीतीश की योजनाएं सफल रहीं, वहां NDA को बढ़त मिल सकती है, जबकि बेरोजगारी और पलायन वाले क्षेत्रों में महागठबंधन को लाभ हो सकता है. जनसुराज पार्टी कुछ सीटों पर वोटकटवा और कुछ पर किंगमेकर बन सकती है. अब सबकी नजर 11 नवंबर पर है, जब दूसरे चरण की वोटिंग होगी... और 14 नवंबर को साफ हो जाएगा कि बिहार की जनता ने बदलाव चुना या नीतीश की निरंतरता पर मुहर लगाई.

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