Bihar Politics: बंदे में है दम या बात कुछ और... बीजेपी क्यों चाहती है नीतीश बने रहें CM, कहीं ये तो नहीं है वजह?
Bihar Politics: बिहार की राजनीति में नीतीश कुमार को लेकर बीजेपी का रवैया हमेशा से 'संतुलित' रहा है. इसके पीछे वजह एक नहीं, कई हैं. अगर बिहार में बीजेपी को सत्ता में अकेले दम पर लाने की योजना है, उसे नीतीश कुमार के जरिए ही रास्ते तलाशने होंगे. या फिर केंद्रीय नेतृत्व को वही काम करना होगा, जो उसने लोकसभा चुनाव 2014 से पहले यूपी में अमित शाह को भेजकर किया था. उन्होंने यूपी बीजेपी का संगठन बूथ लेवल तक तैयार करने के साथ और सबकी जिम्मेदारी तय की. उसके बाद पार्टी सपा-बसपा से लोहा लेने सियासी जंग में कूद गई.

BJP-JDU Alliance Bihar: बिहार विधानसभा चुनाव 2025 को लेकर जेडीयू, आरजेडी, कांग्रेस, एलजेपी रामविलास और जन सुराज पार्टी सबसे ज्यादा सक्रिय है. दूसरी तरफ बीजेपी का हाल ये है कि पार्टी के नेता चुनाव नजदीक होने के बाद भी 'नीतीश नाम केवलम्' की रट लगा रहे हैं. आश्चर्य की बात यह है कि जो पार्टी दुनिया की सबसे बड़ी सियासी पार्टी है. जिसके शीर्ष कर्ताधर्ता नरेंद्र मोदी और अमित शाह हैं. योगी आदित्यनाथ जैसा सीएम उसके पास है, उस पार्टी का बिहार में हाल यह है कि स्टेट लेवल का कोई लीडर नहीं है. जबकि बिहार में पिछले 20 साल से बीजेपी सत्ता में है. यही वजह है कि बीजेपी शीर्ष नेतृत्व और प्रदेश स्तरीय नेता शोर मचाने के बावजूद चाहते हैं कि नीतीश इधर-उधर झांके बगैर एनडीए में बने रहें. नहीं तो तेजस्वी यादव को प्रदेश का सीएम बनने को मौका मिल सकता है.
क्यों लड़ें अलग चुनाव? नीतीश मिश्रा का जवाब
बिहार सरकार में उद्योग और पर्यटन विभाग के मंत्री नीतीश मिश्रा का कहना है कि हमारी पार्टी जेडीयू से अलग हटकर चुनाव क्यों लड़े? इसका कोई लॉजिक नहीं है. क्योंकि बीजेपी-जेडीयू गठबंधन 28 साल से है. गठबंधन सरकार बेहतर तरीके से काम कर रही है. दोनों पार्टियों के नेताओं और कार्यकर्ताओं के बीच तालमेल अच्छा है. ऐसे में अलग चुनाव लड़ने की बात करना लॉजिकल नहीं हो सकता.
बिहार बीजेपी के नेता नंद किशोर यादव ने यह पूछने पर कि बिहार में खुद की सरकार बनाने के लिए पार्टी अकेले चुनाव क्यों नहीं लड़ती, इसके जवाब में उन्होंने कहा कि मैं इसका उत्तर नहीं दे सकता. यह तय करने का काम केंद्रीय नेतृत्व का है, वही इसका जवाब दे सकते हैं. बिहार से बीजेपी एमएलसी और राष्ट्रीय प्रवक्ता ने कहा कि इसका जवाब तो बैठकर बातचीत करने पर ही देना उचित रहेगा.
बिहार बीजेपी वाणिज्य प्रकोष्ठ की नेता डॉ. सुनंदा केसरी का कहना है कि मेरी राय यह है कि दिलीप जायसवाल इसके लिए सबसे उपयुक्त नेता हो सकते हैं. नीतीश से अलग हटकर चुनाव लड़ने और अपने दम पर सरकार बनाने की बात पर उन्होंने कहा कि अभी बिहार में इसके लिए उपयुक्त समय नहीं है. बिहार में जाति के नाम पर वोटिंग करने की वजह से पार्टी के लिए ऐसा निर्णय लेना भी उचित नहीं कहा जा सकता.
बीजेपी की अकेले दम पर चुनाव न लड़ने की वजह क्या है?
1. बिहार बीजेपी में बड़े नेता का न होना
सत्ता में होने के बावजूद भी पिछले दो दशक के दौरान बीजेपी बिहार में कोई बड़ा नेता नहीं बना पाई, जो प्रदेश को मजबूत नेतृत्व नहीं दे सके. बिहार के वोटर्स भरोसे व्यक्तित्व चाहते हैं, जो बीजेपी के पास स्थानीय स्तर पर नहीं हैं. सुशील कुमार मोदी कुछ हद इसकी कमी पूरा कर रहे थे, जो अब इस दुनिया में नहीं हैं. सम्राट चौधरी, विजय कुमार सिन्हा, दिलीप जायसवाल, नित्यानंद राय, नंद किशोर यादव, नितिन नवीन और मंगल पांडे जैसे नेता पार्टी के पास हैं, की साख जनता के बीच अभी ज्यादा मजबूत नहीं है. ऐसे में पार्टी नीतीश से पीछा छुड़ाने का जोखिम नहीं उठाना चाहती है. ऐसा करने पर, इसका लाभ सीधे लालू यादव के बेटे तेजस्वी यादव को भी मिल सकता है.
2. गठबंधन पर निर्भरता
बीजेपी के पास बड़ा नेता नहीं होने से उसे सहयोगी दलों पर निर्भर रहना पड़ता है. इससे पार्टी के नेता सियासी सौदेबाजी आत्मविश्वास के साथ नहीं कर पाते हैं. न ही किसी मसले को प्रभावी मुद्दा बना पाते हैं. बड़ा नेता कार्यकर्ताओं के लिए प्रेरणा और एकजुटता का केंद्र होता है. अगर ऐसा चेहरा न होने पर कार्यकर्ता की क्षमता का लाभ पार्टी चाहते हुए भी नहीं उठा पाती है.
3. मतदाताओं में भ्रम
बीजेपी जैसी पार्टी के नेताओं से मतदाता को साफ समझ आना चाहिए कि जीतने के बाद सीएम या प्रमुख नेता कौन होगा? इसको लेकर बीजेपी की नीति बिहार में हमेशा से साफ नहीं रही है. यही वजह है कि बीजेपी चाहती है कि गठबंधन सरकार को लेकर जनता में यह संदेश जाए कि एनडीए स्थिर और मजबूत है. बार-बार मुख्यमंत्री बदलने या टकराव दिखाने से असंतोष का माहौल बनने के डर से बीजेपी नेता रिस्क नहीं ले रहे हैं.
4. स्थानीय मुद्दों पर बीजेपी की पकड़ कमजोर
प्रदेश की राजनीति में राष्ट्रीय नेताओं पर ज्यादा निर्भरता के चलते पार्टी स्थानीय मुद्दों पर सही ढंग से काम नहीं कर पाती. बिहार में इस समय बेरोजगारी, पलायन, शिक्षा, स्वास्थ्य, गरीबी उन्मूलन व सभी क्षेत्रों में विकास की जरूरत है, लेकिन स्थानीय बीजेपी नेता इस मसले को नहीं उठाते.
5. सुशासन बाबू और जेडीयू का वोट बैंक
बिहार में नीतीश कुमार की छवि सुशासन बाबू की है. उनका अपना मजबूत वोट बैंक है. नीतीश कुमार ने महिला मतदाताओं में भी अपनी पकड़ मजबूत की है. नीतीश कुमार उम्र और स्वास्थ्य के लिहाज से कमजोर पड़े हैं, लेकिन प्रदेश के लोगों को उनका कोई विकल्प भी तो नहीं मिल पा रहा है. न ही बीजेपी खुलकर सामने आना चाहती है. ऐसे में बीजेपी नीतीश कुमार को 'चेहरे' के तौर पर बनाए रखते हुए अपना संगठन और वोट बैंक मजबूत करना चाहती है. ताकि सही समय आने पर सत्ता पर पूरा नियंत्रण उसके हाथ में आ जाए.