UP BJP President: कुर्मी समाज के पंकज चौधरी पर बीजेपी क्यों खेल रही बड़ा दांव, प्रदेश की राजनीति पर कितना पड़ेगा असर?
उत्तर प्रदेश अध्यक्ष पद को लेकर चर्चाओं के बीच कुर्मी समाज से आने वाले पंकज चौधरी पर बीजेपी बड़ा दांव खेलने की तैयारी में है. उनका प्रदेश बीजेपी अध्यक्ष बनना लगभग तय है. ऐसा इसलिए कि शनिवार को तय समय तक किसी शख्स ने अध्यक्ष पद के लिए उनके खिलाफ पर्चा दाखिल नहीं किया.यानी उनका निर्विरोध अध्यक्ष बनना तय है. जानें इस फैसले के पीछे की रणनीति और उत्तर प्रदेश की राजनीति पर इसका संभावित असर.
उत्तर प्रदेश बीजेपी में नेतृत्व परिवर्तन की अटकलों के बीच कुर्मी समाज से आने वाले पंकज चौधरी का नाम प्रदेश अध्यक्ष पद के लिए न केवल सबसे आगे चल रहा है, बल्कि वह इस पद पर निर्विरोध चुन लिए गए हैं. उनका अध्यक्ष पद पर उनके चयन को लेकर एलान सिर्फ औपचारिकता भर रह गया है. बीजेपी का यह दांव चलता है, तो यह सिर्फ संगठनात्मक बदलाव नहीं होगा, बल्कि 2027 विधानसभा चुनाव से पहले सामाजिक और सियासी संतुलन साधने की बड़ी कोशिश मानी जा रही है. सवाल यह है कि बीजेपी आखिर यूपी में कुर्मी चेहरे पर इतना बड़ा दांव क्यों खेल रही है और इसका असर प्रदेश की राजनीति, खासकर विपक्षी दलों की रणनीति पर कितना गहरा पड़ेगा? आइए, जानते हैं, कौन हैं पंकज चौधरी और उनका सियासी सफर अब तक कैसा रहा है.
स्टेट मिरर अब WhatsApp पर भी, सब्सक्राइब करने के लिए क्लिक करें
कौन हैं पंकज चौधरी?
पंकज चौधरी भारतीय जनता पार्टी के अनुभवी नेता माने जाते हैं. वह लंबे समय से पार्टी के भीतर संगठन और चुनावी प्रबंधन से जुड़े रहे हैं. बीजेपी नेतृत्व उन्हें एक ऐसे चेहरे के तौर पर देखता है जिसकी यूपी में जमीनी पकड़ और सामाजिक संतुलन बनाने में माहिर हैं. वह संगठन और सरकार के बीच तालमेल बनाने और सबको साधने की क्षमता रखते हैं.
पंकज चौधरी संगठन केंद्रित राजनीति करते हैं. यही वजह है कि वह हाईकमान के भरोसेमंद चेहरा बनकर उभरे हैं. वह हमेशा विवादों से दूर रहे हैं. चुनावी रणनीति और कैडर मैनेजमेंट में दक्ष माने जाते हैं. उनकी राजनीति आक्रामक भाषणों से ज्यादा संगठन मजबूत करने पर टिकी मानी जाती है.
किस समुदाय से है ताल्लुक?
पंकज चौधरी को OBC (अन्य पिछड़ा वर्ग) नेतृत्व के रूप में देखा जाता है. इसी कटेगरी से केशव प्रसाद मौर्य भी आते हैं, जो वर्तमान में प्रदेश सरकार में डिप्टी सीएम और यूपी की राजनीति में बड़ा चेहरा माने जाते हैं. यूपी की राजनीति में यह फैक्टर बेहद अहम है क्योंकि OBC वोट बैंक निर्णायक भूमिका निभाता है. बीजेपी गैर-यादव OBC को साधने की रणनीति पर लगातार काम कर रही है. इस लिहाज से उनकी नियुक्ति सामाजिक संतुलन का संदेश माना जा रहा है.
सियासी सफर
बीजेपी नेता पंकज चौधरी छात्र राजनीति के समय से ही संगठन से जुड़े रहे हैं. वह धीरे-धीरे पार्टी के संगठनात्मक ढांचे में जगह बनाते रहे. चुनावी अभियानों में वह काफी सक्रिय रहते हैं. संगठन और बूथ स्तर पर काम कर चुके हैं. वरिष्ठ नेतृत्व के साथ उनका करीबी का नाता है. वर्तमान में पार्टी के भीतर विश्वसनीय और मैनेजमेंट-ओरिएंटेड नेता हैं. वह हमेशा से गुटबाजी से ऊपर रहे हैं.
सियासी समीकरण पर कितना पड़ेगा असर?
उनका अध्यक्ष बनने से यूपी में भारतीय जनता पार्टी को बूथ स्तर पर मजबूती मिलेगी. पुराने नेताओं और नए कार्यकर्ताओं में संतुलन बनेगा. कुर्मी, निषाद, पटेल, गैर यादव ओबीसी वोट बैंक को साधने में पार्टी के लिए अहम साबित हो सकते हैं. वह योगी सरकार के साथ बेहतर तालमेल बनाने में भी कामयाब होंगे.
यूपी की चुनावी राजनीति में स्पष्टता आएगी. उनकी ताजपोशी साफ है कि बीजेपी शीर्ष नेतृत्व ने 2027 विधानसभा चुनाव की तैयारी लगभग शुरू कर दी है. वह टिकट वितरण में संगठन की भूमिका मजबूत होगी और क्षेत्रीय असंतोष को साधने में मदद मिलेगी.
क्या होंगी चुनौतियां?
यूपी बीजेपी में गुटबाजी को काबू में रखना उनकी सबसे बड़ी चुनौती होगी. उन्हें पुराने दिग्गजों की अपेक्षाओं को पूरा करने के साथ विपक्ष के जातीय और सामाजिक नैरेटिव का तोड़ भी निकालना होगा. लोकसभा के बाद विधानसभा चुनाव की कारगर रणनीति बनानी होगी.
अगर पंकज चौधरी यूपी बीजेपी अध्यक्ष बनते हैं, तो यह केवल चेहरा बदलने का नहीं, रणनीति बदलने का संकेत माना जाएगा. उनकी नियुक्ति से साफ संदेश जाएगा कि बीजेपी संगठन, सामाजिक संतुलन और 2027 की तैयारी यानी तीनों पर एक साथ काम करना चाहती है. यूपी में पंकज चौधरी को बीजेपी अध्यक्ष बनने ये सपा, बसपा और कांग्रेस की राजनीति पर कितना पड़ेगा असर
विपक्ष पर कितना पड़ेगा असर?
- अगर पंकज चौधरी को उत्तर प्रदेश बीजेपी की कमान मिलती है तो इसका असर सिर्फ सत्ताधारी दल तक सीमित नहीं रहेगा. उनकी नियुक्ति सीधे तौर पर समाजवादी पार्टी (सपा), बहुजन समाज पार्टी (बसपा) और कांग्रेस की रणनीतियों को चुनौती दे सकती है. खासकर OBC राजनीति और 2027 विधानसभा चुनाव के लिहाज से.
- जहां समाजवादी पार्टी (SP) के OBC, यादव मुस्लिम समीकरण का गैर यादव OBC से देंगे. वह सपा के OBC विस्तार प्लान को झटका दे सकते हैं. यानी अखिलेश यादव की सोशल इंजीनियरिंग को चुनौती उनसे मिल सकती है. सपा बीते कुछ चुनावों से ( कुर्मी, लोध, मौर्य ओबीसी और गैर ओबीसी), कुशवाहा जैसे वर्गों में सेंध लगा सकते हैं. यानी सपा के पीडीए थ्योरी को नुकसान हो सकता है.
- बसपा को वह जाटव और गैर जाटव दलित प्लस ओबीसी को अपने पक्ष में कर कमजोर कर सकते हैं. अगर ऐसा हुआ तो वह बसपा के बचे-खुचे सामाजिक आधार को भी खत्म कर देंगे. बसपा लंबे समय से ब्राह्मण–दलित का कार्ड भी खेलती आई है, लेकिन बीजेपी ऐसे वर्गों को अपने साथ जोड़ने में आगे हमेशा से आगे रही है. फिर बसपा का कैडर बामसेफ अभी निष्क्रिय है.
- अगर कांग्रेस पार्टी की बात करें तो वह यूपी में पहले से ही कमजोर स्थिति में है. इसका चुनाव लड़ने की क्षमता बहुत कम सीटों पर है. ऐसे में बीजेपी का ओबीसी विस्तार कांग्रेस के स्पेस को और कम करेगा. इस रणनीति के तहत 2027 में पंकज चौधरी बीजेपी के लिए तुरुप का पत्ता साबित हो सकते है.





