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Bihar Election Results 2025: क्या यादवों ने बिगाड़ दिया तेजस्वी का खेला? 5 पॉइंट में समझें कैसे लालू के लाल हो गए चारों खाने चित्त

बिहार की राजनीति में साल 2025 का चुनाव एक बड़े मोड़ की तरह दर्ज हो रहा है. जिस चुनाव में तेजस्वी यादव ने खुद को मुख्यमंत्री पद का सबसे मजबूत दावेदार दिखाने की कोशिश की थी, वही चुनाव उनके लिए सबसे बड़ी राजनीतिक निराशा बनकर सामने आया.

Bihar Election Results 2025: क्या यादवों ने बिगाड़ दिया तेजस्वी का खेला? 5 पॉइंट में समझें कैसे लालू के लाल हो गए चारों खाने चित्त
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( Image Source:  X-@yadavtejashwi )
हेमा पंत
Edited By: हेमा पंत

Updated on: 14 Nov 2025 1:55 PM IST

जब पटना की गलियों में चर्चा थी कि इस बार शायद सत्ता परिवर्तन होगा, उस वक्त तेजस्वी यादव सबसे आगे दिखाई देते थे. हर मंच पर वे आत्मविश्वास से कहते दिखे कि शपथग्रहण की तारीख तय है. लेकिन नतीजों ने कहानी पलट दी. जिन रुझानों पर पूरा बिहार नजर गड़ाए बैठा था, उन्होंने आरजेडी के लिए वो झटका ला दिया जिसे संभालना आसान नहीं होगा.

बिहार विधानसभा चुनाव 2025 ने साबित कर दिया कि तेजस्वी यादव की सियासी बढ़त सिर्फ भीड़, सोशल मीडिया ट्रैक्शन और आक्रामक कैंपेन से नहीं बनती. जिस दीवार को वे जीत की मजबूत नींव मानकर चल रहे थे, वह अब धराशायी होते नजर आ रहे हैं.

1. नहीं चला राजद का MY फैक्टर

इस बार पारंपरिक MY गठजोड़ न तो एकजुट दिखा और न ही पहले जैसा निर्णायक असर छोड़ सका. कई सीटों पर मुस्लिम वोटों में बिखराव और यादव वोटरों का आंशिक शिफ्ट आरजेडी के लिए बड़ा झटका साबित हुआ, जिससे पार्टी का सबसे भरोसेमंद सामाजिक आधार भी कमजोर पड़ गया.

2.सीट शेयरिंग ने बढ़ाई मुश्किलें

महागठबंधन के भीतर सीट बंटवारे की खींचतान आखिरी दौर तक बनी रही. कई जगहों पर उम्मीदवारों की घोषणा में देर हुई, जिससे कार्यकर्ताओं का मनोबल टूटा. करीब दर्जन भर सीटों पर “फ्रेंडली फाइट” की नौबत आई. यानी एक ही गठबंधन के धड़े आपस में भिड़ गए. नतीजा यह हुआ कि विरोधियों को सीधे फायदा मिला.

3. यादव परिवार की दरार बनी मुश्किल

तेज प्रताप यादव इस बार अलग रास्ता चुन चुके थे. उन्होंने अपनी पार्टी बनाकर चुनाव लड़ा, लेकिन नतीजा उनके खुद के लिए भी हार और आरजेडी के लिए भी नुकसान बनकर आया. जहां-जहां उनके उम्मीदवार उतरे, वहां वोटों का बंटवारा हुआ. परिवार की कलह ने आरजेडी को वैसा ही झटका दिया जैसा कभी सपा को यूपी में 2017 में लगा था. जनता को भरोसे की बजाय भ्रम ज्यादा नजर आया.

4. तेजस्वी के वादे, मतदाताओं के सवाल

तेजस्वी यादव ने इस बार के चुनाव को ‘युवा रोजगार मिशन’ की थीम पर लड़ने की कोशिश की. हर परिवार को एक सरकारी नौकरी देने का बड़ा वादा किया गया. लेकिन जनता के एक हिस्से को ये वादा ज्यादा भावनात्मक लगा और कम यथार्थवादी. इसके मुकाबले नीतीश सरकार की 10 हजार रुपये की नकद योजना अधिक भरोसेमंद लगी. चुनावी राजनीति में वादों की जगह जमीन पर भरोसे ने बाजी मार ली.

5. नीतीश-मोदी की जोड़ी ने साधा संतुलन

एनडीए की तरफ देखें तो उनके अभियान में अनुशासन और योजना दोनों दिखे. उम्मीदवारों की घोषणा समय पर हुई, सीट बंटवारे में विवाद नहीं पनपा, और प्रचार में भी स्पष्ट चेहरा सामने था. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार जब एक साथ मंच साझा करते दिखे, तो संदेश साफ गया कि स्थिरता और भरोसे की सरकार. इस जोड़ी ने विरोधियों की बिखरी तस्वीर के मुकाबले वोटरों को ठोस विकल्प दिया.

तेजस्वी के लिए बड़ा सबक

रुझानों से साफ है कि यह चुनाव सिर्फ हार नहीं, बल्कि संदेश भी है. बिहार की राजनीति में लालू यादव के बाद तेजस्वी ही सबसे बड़ा चेहरा हैं. लेकिन इस नतीजे ने उन्हें यह भी सिखाया है कि भावनाओं को संगठन, समन्वय और भरोसे के साथ जोड़ना जरूरी है. राजनीति में लहरें कभी स्थायी नहीं होतीं. फिलहाल बिहार में हवा फिर एनडीए की दिशा में बहती दिख रही है और तेजस्वी यादव की ‘वापसी यात्रा’ फिलहाल स्थगित होती नजर आ रही है.

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