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'बिहार में NDA और महागठबंधन से ऊब चुके लोग चाहते हैं नया विकल्प', प्रशांत किशोर बोले- हम 160-170 सीटों पर तीसरी ताकत होंगे

प्रशांत किशोर ने दावा किया है कि बिहार चुनाव 2025 में जन सुराज 160–170 सीटों पर मुकाबले में रहेगा. उन्होंने कहा कि राज्य के लोग NDA और महागठबंधन दोनों से ऊब चुके हैं और एक नया विकल्प चाहते हैं. किशोर ने खुद के चुनाव न लड़ने की बात दोहराते हुए कहा कि वे “X फैक्टर” नहीं हैं, बल्कि बिहार के लोग हैं. उनके मुताबिक, अब बिहार तीसरे राजनीतिक विकल्प के लिए तैयार है.

बिहार में NDA और महागठबंधन से ऊब चुके लोग चाहते हैं नया विकल्प, प्रशांत किशोर बोले- हम 160-170 सीटों पर तीसरी ताकत होंगे
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( Image Source:  ANI )
प्रवीण सिंह
Edited By: प्रवीण सिंह

Updated on: 1 Nov 2025 9:42 AM IST

बिहार विधानसभा चुनाव 2025 में राजनीतिक समीकरण तेजी से बदल रहे हैं. जहां एक ओर NDA और महागठबंधन के बीच पारंपरिक लड़ाई जारी है, वहीं अब चुनावी मैदान में जन सुराज आंदोलन के संस्थापक प्रशांत किशोर (Prashant Kishor) तीसरे मोर्चे के रूप में उभरते दिख रहे हैं. NDTV के एक कार्यक्रम में उन्होंने कहा कि उनकी पार्टी 160 से 170 सीटों पर मुकाबले में होगी और बिहार की राजनीति में एक “नया विकल्प” बनेगी. उन्होंने साफ कहा कि जनता अब दोनों गठबंधनों से ऊब चुकी है और बदलाव चाहती है. किशोर ने यह भी स्पष्ट किया कि उन्होंने कभी खुद के चुनाव लड़ने की घोषणा नहीं की थी. उन्होंने कहा, “मैं X फैक्टर नहीं हूं, बिहार के लोग हैं.”

उनके अनुसार, लगभग एक-तिहाई मतदाता अब न NDA को वोट देना चाहते हैं, न महागठबंधन को. यही कारण है कि जन सुराज को बिहार में “तीसरी ताकत” के रूप में देखा जा रहा है. जातीय समीकरणों और पुराने नारों से परे, किशोर का अभियान “शासन में पारदर्शिता, सामाजिक सुधार और विकास की नई राजनीति” पर केंद्रित है. अब सवाल यह है कि क्या यह जन आंदोलन वोटों में तब्दील होकर बिहार की सियासत की दशा और दिशा बदल पाएगा?

"हम या तो 10 से कम सीटें लाएंगे या 150 से ज्यादा"

47 वर्षीय प्रशांत किशोर ने इस दौरान आत्मविश्वास भरे लहजे में कहा कि जन सुराज या तो बहुत कम सीटें जीतेगा या बहुत बड़ी सफलता हासिल करेगा. उन्होंने बताया, “मुझे पूरा विश्वास है कि हम या तो 10 से कम सीटें जीतेंगे या 150 से ज्यादा. हमारे लिए यह चुनाव सिर्फ सीटों का नहीं, बल्कि एक आंदोलन का विस्तार है.” उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि उन्होंने कभी यह नहीं कहा कि वे खुद चुनाव लड़ेंगे. किशोर ने कहा, “लोगों को यह निराशा हुई कि मैंने चुनाव लड़ने की घोषणा नहीं की, लेकिन मैंने कभी नहीं कहा था कि मैं लड़ूंगा. मैंने बस इतना कहा था कि अगर लड़ूंगा, तो करगहर से लड़ूंगा. मैं इस चुनाव का X फैक्टर नहीं हूं.”

“बिहार में अब तीसरा विकल्प उभर रहा है”

प्रशांत किशोर का दावा है कि बिहार में लगभग एक-तिहाई मतदाता ऐसे हैं जो न NDA को वोट देना चाहते हैं और न महागठबंधन को. “आंकड़े बताते हैं कि राज्य में करीब 33% लोग किसी भी बड़े गठबंधन के साथ नहीं हैं. यही वो लोग हैं जो अब जन सुराज को विकल्प के रूप में देख रहे हैं,” उन्होंने कहा. प्रशांत किशोर ने कहा कि “बिहार की राजनीति में एक विश्वास की छलांग (leap of faith) की जरूरत है. लोग बदलाव चाहते हैं, लेकिन वोट देने के लिए उन्हें भरोसा चाहिए कि यह नया रास्ता सही है.”

“हम वही कर रहे हैं जो 2014 में मोदी अभियान ने किया था”

किशोर ने अपने चुनावी अभियान की तुलना 2014 के मोदी कैंपेन से की, जिसे उन्होंने बतौर रणनीतिकार संभाला था. “2014 में जब नरेंद्र मोदी मुख्यमंत्री से राष्ट्रीय नेता बने, तब भी वह एक नई राजनीतिक फॉर्मेशन थी. जन सुराज भी उसी तरह है - एक नया विचार, नई संरचना. फर्क बस इतना है कि हम यह बिहार के लोगों के साथ मिलकर कर रहे हैं.”

बिहार चुनाव का परिदृश्य

बिहार विधानसभा की 243 सीटों पर चुनाव दो चरणों में होंगे - पहला चरण 6 नवंबर को और दूसरा चरण 11 नवंबर को. मतगणना 14 नवंबर को होगी. राज्य में सत्ता पक्ष NDA में बीजेपी, जेडीयू (नीतीश कुमार), एलजेपी (चिराग पासवान), हम (जीतन राम मांझी) और आरएलएम (उपेंद्र कुशवाहा) शामिल हैं. वहीं महागठबंधन में आरजेडी (तेजस्वी यादव), कांग्रेस और वाम दल प्रमुख घटक हैं. इस पारंपरिक दो-ध्रुवीय राजनीति के बीच जन सुराज अपने उम्मीदवारों के साथ मैदान में है - जिनमें से 240 प्रत्याशी पहले ही घोषित किए जा चुके हैं.

“जाति को समझना और जातिवाद करना - दोनों अलग बातें हैं”

जब उनसे पूछा गया कि क्या जन सुराज भी बिहार में जाति समीकरणों पर आधारित राजनीति कर रहा है, तो किशोर ने कहा, “जाति को समझना और जातिवादी राजनीति करना, दोनों अलग बातें हैं. हर प्रत्याशी किसी न किसी जाति से आता है, इसे मिटाया नहीं जा सकता. लेकिन जन सुराज पर कोई यह आरोप नहीं लगा सकता कि हम जाति के नाम पर राजनीति कर रहे हैं.” उन्होंने कहा कि उनका आंदोलन "सामाजिक सुधार और शासन में पारदर्शिता" पर आधारित है, न कि जाति और धर्म के विभाजन पर.

“जन सुराज कोई पार्टी नहीं, एक सोच है”

किशोर ने यह भी कहा कि जन सुराज एक पारंपरिक राजनीतिक दल नहीं बल्कि एक “आंदोलन और विचार की प्रक्रिया” है. “जन सुराज किसी व्यक्ति का प्रोजेक्ट नहीं है. यह जनता का आंदोलन है. मैं इसे नेतृत्व नहीं कर रहा, बल्कि बिहार के लोग इसे चला रहे हैं. अगर जनता को भरोसा है, तो यह आंदोलन बिहार की राजनीति को हमेशा के लिए बदल देगा.”

“महागठबंधन बनाम NDA” की थकान

बिहार की राजनीति दो दशकों से अधिक समय से एनडीए बनाम महागठबंधन के बीच घूम रही है. एक तरफ भाजपा-जेडीयू का गठबंधन विकास और स्थिरता का दावा करता है, वहीं दूसरी तरफ तेजस्वी यादव के नेतृत्व वाला महागठबंधन रोजगार और सामाजिक न्याय की बात करता है. लेकिन राज्य में बेरोजगारी, प्रवास, शिक्षा और स्वास्थ्य जैसी बुनियादी समस्याओं के हल न निकलने से जनता में असंतोष लगातार बढ़ा है. विशेषज्ञों का मानना है कि यही असंतोष प्रशांत किशोर के ‘जन सुराज’ आंदोलन को उभरने का अवसर दे रहा है.

"हमारा लक्ष्य सिर्फ सत्ता नहीं, सुधार है"

किशोर ने कहा, “हम चुनाव सिर्फ जीतने के लिए नहीं लड़ रहे, बल्कि बिहार की राजनीति को साफ करने के लिए लड़ रहे हैं. जो लोग कहते हैं कि विकल्प नहीं है - उन्हें हम यह दिखाना चाहते हैं कि विकल्प मौजूद है.”

बिहार विधानसभा चुनाव 2025प्रशांत किशोर
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