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NDA के सर्वे में बिहार में कांटे की टक्‍कर, नीतीश कुमार पर कायम है भरोसा, प्रशांत किशोर भी खींचेंगे अच्छे खासे वोट

बिहार विधानसभा चुनाव 2025 से पहले एक आंतरिक सर्वे में एनडीए और विपक्षी गठबंधन के बीच कड़ा मुकाबला बताया गया है. हिंदुस्तान टाइम्स के मुताबिक, एनडीए को मामूली बढ़त मिल सकती है और उसे करीब 130 सीटें मिलने का अनुमान है, जबकि विपक्षी गठबंधन को 102-107 सीटें. सर्वे में नीतीश कुमार को 65% जनता का समर्थन मिला है और प्रशांत किशोर की जन सुराज पार्टी को 9% वोट शेयर मिलने की संभावना जताई गई है.

NDA के सर्वे में बिहार में कांटे की टक्‍कर, नीतीश कुमार पर कायम है भरोसा, प्रशांत किशोर भी खींचेंगे अच्छे खासे वोट
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प्रवीण सिंह
Edited By: प्रवीण सिंह

Updated on: 14 Oct 2025 11:49 AM IST

बिहार में होने वाले विधानसभा चुनावों से पहले राजनीतिक समीकरण तेजी से बदल रहे हैं. एक नए आंतरिक सर्वेक्षण के अनुसार राज्य में सत्तारूढ़ राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) और विपक्षी गठबंधन के बीच बेहद करीबी मुकाबला देखने को मिल सकता है. सर्वे में दोनों गठबंधनों के वोट शेयर में केवल 1 प्रतिशत का अंतर बताया गया है.

हिंदुस्तान टाइम्स की रिपोर्ट के अनुसार एनडीए द्वारा कराए गए इस सर्वे ने सत्ताधारी गठबंधन को मामूली बढ़त दी है. रिपोर्ट के मुताबिक, 2020 के विधानसभा चुनावों में एनडीए को मिली 125 सीटों की तुलना में इस बार गठबंधन बढ़त हासिल करते हुए करीब 130 सीटें जीत सकता है. सर्वे में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की लोकप्रियता को भी मजबूत बताया गया है, जिन्‍हें सर्वे में शामिल 65% लोगों ने अपनी पसंद बताया है. वहीं, राजनीतिक रणनीतिकार से नेता बने प्रशांत किशोर की ‘जन सुराज पार्टी’ को लगभग 9% वोट शेयर मिलने का अनुमान लगाया गया है, जो बिहार की राजनीति में एक नए समीकरण की झलक दिखाता है.

नीतीश कुमार के खिलाफ नहीं है एंटी-इंकम्बेंसी लहर

हिंदुस्तान टाइम्स की रिपोर्ट यह भी बताती है कि कांग्रेस के शुरुआती ग्राउंड रिपोर्ट्स में भी यह साफ संकेत मिला है कि नीतीश कुमार के खिलाफ कोई बड़ी एंटी-इंकम्बेंसी लहर (anti-incumbency) नहीं है. 18 वर्षों से सत्ता में रहने के बावजूद जनता के एक बड़े वर्ग में उनके प्रति भरोसा कायम है, खासकर ग्रामीण इलाकों में.

क्‍या कहते हैं एक्‍सपर्ट?

हालांकि, यह भी ध्यान देने योग्य है कि इस तरह के आंतरिक सर्वेक्षण (Internal Surveys) अक्सर उन्हीं पार्टियों के पक्ष में झुकाव रखते हैं, जिन्होंने उन्हें करवाया हो. पहले भी कई चुनावों में ऐसे सर्वे गलत साबित हुए हैं - खासकर उन राज्यों में जहां जातीय और सामुदायिक समीकरण बेहद जटिल होते हैं. राजनीतिक विश्लेषकों के अनुसार, इस सर्वे को नतीजों की सटीक भविष्यवाणी नहीं बल्कि राज्य के राजनीतिक रुझान और मतदाताओं के मूड का संकेत माना जाना चाहिए.

तेजस्‍वी के वादे बनाम नीतीश की योजनाएं

एनडीए के विधान परिषद सदस्य नीरज कुमार ने कहा, “लोग नीतीश कुमार के नेतृत्व में गांव-स्तर पर विकास देख सकते हैं. तेजस्वी यादव हर परिवार को सरकारी नौकरी देने का वादा कर रहे हैं, जो न तो व्यावहारिक है और न ही किसी राज्य सरकार के अधिकार क्षेत्र में संभव है. इसके विपरीत, हमारी सरकार ‘जीविका दीदी’ योजना के माध्यम से हर महिला को ₹10,000 देने और उन्हें आत्मनिर्भर बनाने का काम कर रही है.”

तमाम आरोपों के बावजूद नीतीश पर भरोसा कायम

नीतीश कुमार (74) के नेतृत्व को विपक्षी दलों ने कई मोर्चों पर घेरा है - भ्रष्टाचार, बेरोजगारी और स्वास्थ्य को लेकर उन पर लगातार हमले हो रहे हैं. आरजेडी नेता तेजस्वी यादव ने तो हाल ही में नीतीश की सेहत को लेकर भी टिप्पणी की थी. वहीं, प्रशांत किशोर ने भी राज्य सरकार और जेडीयू नेताओं पर भ्रष्टाचार के आरोप लगाए हैं. इसके बावजूद एनडीए सर्वे में केवल 31% उत्तरदाताओं ने कहा कि नीतीश कुमार का शासनकाल ‘खराब’ रहा है, जबकि बहुमत ने इसे सकारात्मक बताया.

महागठबंधन दे सकता है कांटे की टक्‍कर

सर्वे में विपक्षी गठबंधन को 102 से 107 सीटें, और अन्य दलों को 2 से 3 सीटें मिलने का अनुमान जताया गया है. इन “अन्य दलों” में प्रशांत किशोर की जन सुराज पार्टी भी शामिल है. विश्लेषकों का कहना है कि यह स्थिति कुछ हद तक 2020 के लोक जनशक्ति पार्टी (LJP) वाले परिदृश्य जैसी हो सकती है, जब चिराग पासवान की पार्टी ने सिर्फ एक सीट जीती थी, लेकिन कई सीटों पर जेडीयू उम्मीदवारों को नुकसान पहुंचाया था.

कांग्रेस के पूर्व चुनाव रणनीतिकार और अब टिकट दावेदार शशांक शेखर ने कहा, “हम आगे हैं, लेकिन प्रशांत किशोर का प्रभाव लगभग 6-7% तक सीमित रहेगा. वह हमारे वोट बैंक को काटने की कोशिश करेंगे, लेकिन जनता उन्हें समझ चुकी है. उनकी पार्टी का प्रभाव कुछ सीमित इलाकों तक रहेगा.”

कई सीटों पर दिखेगा त्रिकोणीय मुकाबला

राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि इस बार बिहार में उम्मीदवार चयन (candidate selection) निर्णायक भूमिका निभा सकता है. एनडीए और विपक्ष दोनों के नेता मानते हैं कि हर विधानसभा सीट पर उम्मीदवारों की घोषणा के बाद ही वास्तविक तस्वीर साफ होगी. कई सीटों पर तीन-कोणीय मुकाबला (triangular contest) भी देखने को मिल सकता है, जिसमें जन सुराज या छोटे दलों के प्रत्याशी वोट शेयर में सेंध लगा सकते हैं.

कहीं 2020 जैसी ही ना हो स्थिति

2020 के विधानसभा चुनावों में एनडीए ने 243 में से 125 सीटें जीती थीं, जबकि विपक्षी महागठबंधन को 110 सीटें मिली थीं. दिलचस्प बात यह है कि उस चुनाव में दोनों गठबंधनों के वोट शेयर में सिर्फ 0.03% का फर्क था - यानी मुकाबला पूरी तरह बराबरी का था. यही कारण है कि इस बार भी राजनीतिक पंडित बिहार में एक बार फिर कांटे की टक्कर (neck-and-neck fight) की भविष्यवाणी कर रहे हैं.

राजनीतिक पर्यवेक्षकों के अनुसार, यदि जन सुराज पार्टी अपने अनुमानित 9% वोट शेयर के आसपास भी पहुंच जाती है, तो वह बिहार की कई सीटों पर ‘किंगमेकर’ की भूमिका निभा सकती है. फिलहाल, राज्य की सियासी फिजा गर्म है और सभी दल प्रचार की तैयारियों में जुट चुके हैं. आने वाले कुछ हफ्तों में उम्मीदवारों की लिस्ट जारी होने के बाद यह तय होगा कि बिहार का असली मुकाबला ‘विकास बनाम वादा’, ‘अनुभव बनाम नई सोच’ के बीच होगा या जातीय समीकरण एक बार फिर निर्णायक भूमिका निभाएंगे.

बिहार विधानसभा चुनाव 2025नीतीश कुमारप्रशांत किशोर
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