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CWC Meet Patna: मंथन शिविर से निकलेगा जीत का मंत्र! क्या बिहार में राहुल लगा पाएंगे कांग्रेस की नैया पार?

पटना में कांग्रेस कार्यसमिति की बुधवार को होने वाली बैठक ने बिहार की राजनीति में हलचल मचा दी है. राहुल गांधी की रणनीति और महागठबंधन के भीतर सीटों के बंटवारे को लेकर चर्चा जोरों पर है. तेजस्वी यादव की मुख्यमंत्री पद की दावेदारी और कांग्रेस की बढ़ती सक्रियता से चुनावी माहौल गरमा दिया है. सवाल यह है कि बिहार कांग्रेस को इसका चुनावी लाभ उठा पाएगी या नहीं.

CWC Meet Patna: मंथन शिविर से निकलेगा जीत का मंत्र! क्या बिहार में राहुल लगा पाएंगे कांग्रेस की नैया पार?
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( Image Source:  ANI )

बिहार की राजधानी पटना में 24 सितंबर 2025 को कांग्रेस कार्यसमिति (CWC) की बैठक है. राहुल गांधी पटना पहुंच गए हैं. देश की आजादी के बाद बिहार में पहली बार बिहार सीडब्लूसी की बैठक हो रही है. बैठक में कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे, राहुल गांधी, प्रियंका गांधी और पार्टी के अन्य वरिष्ठ नेता भाग ले रहे हैं. बैठक में बिहार की बेरोजगारी, पलायन, कानून व्यवस्था, आरक्षण और वोट चोरी जैसे मुद्दों पर चर्चा होने की संभावना है. कांग्रेस ने इस बैठक को 2025 के विधानसभा चुनाव से अधिक 2030 के लोकसभा चुनाव की तैयारी के रूप में लेकर चल रही है.

राहुल गांधी बिहार में अति पिछड़ा जाति के वोट बैंक को ध्यान में रखकर महागठबंधन के लिए नई रणनीति बनाने जुटे हैं. कांग्रेस कार्यसमिति की बैठक में अति पिछड़ा जाति के लिए अलग आरक्षण और नवीं अनुसूची में शामिल करने की रणनीति पर भी मंथन होगा. बिहार की अति पिछड़ी जातियां कुल आबादी का 36 प्रतिशत है और ये मुख्य रूप से जेडीयू और बीजेपी के वोटर माने जाते हैं.

अति पिछड़ों को आरक्षण देने की योजना

सूत्रों के अनुसार ईबीसी और ओबीसी को लेकर बैठक के बाद नई घोषणा भी कर सकते हैं. माना जा रहा है कि वो देशभर में अति पिछड़ों को अलग से आरक्षण देने की घोषणा कर सकते हैं. साथ ही कांग्रेस इसे नौवी सूची में शामिल करने की मंशा हैं. ताकि कोई भी इसे सुप्रीम कोर्ट में चुनौती ना दे सके. अब सबसे बड़ा सवाल है कि आखिर राहुल गांधी करना क्या चाहते हैं?

बिहार जाति सर्वेक्षण 2022 के मुताबिक 36 फीसदी आबादी अति पिछड़ी जातियों की है. ओबीसी की आबादी 27 प्रतिशत है. दोनों मिलाकर 63 प्रतिशत वोटर हो जाता है. अभी तक यह परंपरागत रूप से जेडीयू और बीजेपी का वोटर रहा है. राहुल गांधी को पता है कि बिना इस वोट बैंक में सेंध लगाए कुछ नहीं होगा. कांग्रेस ने पहले ही दलित प्रदेश अध्यक्ष बना कर दलित वोट बैंक में सेंध लगाने की कोशिश की है. अब रविदास वोटरों पर कांग्रेस की नजर है.

राहुल के निशाने पर कौन, NDA या RJD

वोट अधिकार यात्रा के दौरान राहुल गांधी वीआईपी पार्टी के नेता मुकेश सहनी को अपने बगल में जगह देते रहे. उन्हें मालूम है कि मुकेश सहनी के पास 3 फीसदी के अधिक वोट हैं. सीपीआई माले के नेता दीपांकर भट्टाचार्य को भी अपने बगल में रखा क्योंकि माले के पास भी अति पिछड़ा वोट है.

हालांकि, तेजस्वी यादव भी वोटर अधिकार यात्रा के दौरान राहुल को साथ कई मौकों पर दिखे, लेकिन सीट बंटवारे को लेकर आरजेडी और कांग्रेस के बीच मतभेद चरम पर पहुंच गया है. सूत्रों के अनुसार कांग्रेस को 240 में से 60 सीटें गठबंधन कोटे के तहत मिलने की उम्मीद है. जबकि आरजेडी भी अपने परंपरागत क्षेत्रों में समझौता करने के मूड में नहीं दिख रही है. इससे सीटों के बंटवारे पर गतिरोध बना हुआ है. कांग्रेस की मांग 76 सीटों की है.

राहुल गांधी बिहार का लगातार दौरा कर यह जान गए हैं कि आरजेडी का परंपरागत यादव मुस्लिम वोट उनके साथ रहेगा. कुछ अन्य पिछड़ी जातियों के वोट उन्हें मिलते हैं. मगर वो उम्मीदवार पर निर्भर करता है. चुनाव जीतने के लिए यह काफी नहीं है. इसलिए, अति पिछड़ा जातियों को जोड़ना जरूरी है. राहुल को मालूम है कि ये काम कांग्रेस ही कर सकती है. अभी कुछ सर्वण जातियों के वोट उनके साथ हैं. साथ ही दलित वोट का एक हिस्सा और अति पिछड़ा वोट का एक हिस्सा यदि महागठबंधन को मिला तो बात बन सकती है.

जवाबी कार्रवाई के लिए तेजस्वी तैयार

दूसरी तरफ तेजस्वी यादव ने अपनी 'बिहार अधिकार यात्रा' जहानाबाद से वैशाली तक निकाल चुके हैं. इस यात्रा में उन्होंने सहयोगी पार्टी को शामिल नहीं किया. इस यात्रा का उद्देश्य आरजेडी के पक्ष में सियासी माहौल बनाना और अपनी मुख्यमंत्री पद की दावेदारी को मजबूत करना था. यहां पर एक बात और भी जो आरजेडी को खल रही है, वो यह है कि कांग्रेस ने अभी तक तेजस्वी यादव को मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित नहीं किया है, जिससे गठबंधन में असमंजस की स्थिति बनी हुई है.

मंशा साफ, पिछलग्गू नहीं अगुवा बनेंगे

अब ऐसे में इतना तो तय है कि बिहार में चौथे नंबर की पार्टी कांग्रेस ने इस बार माहौल बना दिया है. कांग्रेस की मंशा साफ है अब वो पिछलग्गू पार्टी नहीं बने रहना चाहती है. लोग चाय और पान दुकानों पर इसकी चर्चा भी कर रहे हैं. बस देखना ये है कि क्या कांग्रेस का संगठन जमीन पर इतना है कि वो इसको वोट में तब्दील कर सके, पर क्या पार्टी के पास ऐसे जिताउ उम्मीदवार हैं जो चुनाव में पार्टी की नैया पार लगा सके.

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कांग्रेस के नेताओं का उत्साह चरम पर

कांग्रेस कार्यसमिति की बैठक को लेकर बिहार कांग्रेस के नेता बहुत उत्साहित हैं. होना भी स्वभाविक है. 85 साल बाद बिहार में सीडब्लूसी बैठक हो रही है. प्रदेश कांग्रेस मुख्यालय को दुल्हन की तरह सजा दिया गया है.

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