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SIR के आंकड़े चौंकाने वाले, बिहार के 3 जिलों से सबसे ज्यादा कटे वोटरों के नाम, भड़के मतदाता, दो तिहाई सीटों...

Bihar SIR: बिहार में मतदाता सूची से बड़े पैमाने पर नाम हटाए जाने के बाद सियासी बवाल की स्थिति है. एसआईआर रिपोर्ट से जो खुलासा हुआ है, वो चौंकाने और मतदाताओं को आतंकित करने वाला है. प्रदेश के 3 जिलों से सबसे ज्यादा वोटर्स के नाम काटे गए हैं. इस बदलाव का सीधा असर विधानसभा चुनाव 2025 की दो-तिहाई सीटों होने की आशंका है. वोटर्स की नाराजगी से साफ है कि इसका असर चुनाव परिणामों पर भी देखने को मिल सकता है.

SIR के आंकड़े चौंकाने वाले, बिहार के 3 जिलों से सबसे ज्यादा कटे वोटरों के नाम, भड़के मतदाता, दो तिहाई सीटों...
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( Image Source:  ANI )

Bihar SIR Election Commission: बिहार में विधानसभा चुनाव से पहले मतदाता सूची में बदलाव ने सियासी पारा में चरम पर पहुंच गया है. चुनाव आयोग की ओर से जारी एसआईआर (SIR) रिपोर्ट सामने आने के बाद से हजारों मतदाता मताधिकार का अधिकार खोने की आशंका से डरे हुए हैं. इसको लेकर मतदाताओं में भारी नाराजगी है. लाखों की संख्या में वोटरों के नाम लिस्ट से हटा दिए गए हैं. खासतौर पर प्रदेश के 3 जिलों में सबसे ज्यादा कटौती हुई है. मतदाता सूची में यह बदलाव आगामी चुनाव में राजनीतिक समीकरणों को भी प्रभावित कर सकता है.

किन-किन जिलों से सबसे ज्यादा कटे वोटर्स?

इंडियन एक्सप्रेस ने चुनाव आयोग की एसआईआर रिपोर्ट के हवाले से बताया है कि बिहार के 3 जिलों से सबसे अधिक मतदाताओं के नाम हटाए गए. भारत के चुनाव आयोग (ईसीआई) द्वारा 18 अगस्त को प्रकाशित हटाए गए मतदाताओं के आंकड़ों से पता चलता है कि पटना, मधुबनी और पूर्वी चंपारण, तीन जिले जहां सबसे अधिक मतदाता हटाए गए हैं, महिलाओं की संख्या पुरुषों से अधिक है और 18-40 वर्ष की आयु के मतदाता हटाए गए मतदाताओं का एक तिहाई से अधिक हैं.

3 जिलों की सूची से हटे 10.63 लाख मतदाता

चुनाव आयोग के आंकड़ों के मुताबिक मतदान केंद्र स्तर के विश्लेषण से पता चलता है कि इन तीन जिलों में कुल 10.63 लाख मतदाता हटाए गए, जो राज्य के 38 जिलों में कुल 65 लाख हटाए गए मतदाताओं का 16.35% है. ये तीन जिले राज्य के चार सबसे अधिक आबादी वाले जिलों में से हैं, जिनमें कुल 243 विधानसभा क्षेत्रों में से 36 शामिल हैं. भाजपा-जेडीयू गठबंधन ने 2020 के विधानसभा चुनावों में इन तीन जिलों में 22 सीटें जीती थीं. जबकि विपक्षी महागठबंधन (जिसमें राष्ट्रीय जनता दल और कांग्रेस शामिल हैं) ने 14 सीटें जीती थीं. यह जिले चुनावी दृष्टि से बेहद अहम माने जाते हैं. यहां की सीटों पर जीत-हार का अंतर अक्सर बहुत कम वोटों से तय होता है.

दो-तिहाई सीटों पर होगा असर

रिपोर्ट बताती है कि वोटर लिस्ट से नाम हटाए जाने का असर करीब दो-तिहाई विधानसभा सीटों पर होगा. इसका सीधा मतलब है कि यदि वोटर्स को सही समय पर लिस्ट में शामिल नहीं किया गया तो चुनावी नतीजे पलट सकते हैं. विपक्षी पार्टियों ने इसे सत्ता पक्ष की रणनीति बताया है. जबकि चुनाव आयोग का कहना है कि यह कार्रवाई 'मृतक वोटरों' के नाम हटाने के लिए की गई है.

25 में से 18 सीटें जीती थी जेडीयू और बीजेपी

इन तीन जिलों के कुल 36 विधानसभा क्षेत्रों में से 25 में हटाए गए मतदाताओं की संख्या निर्वाचित उम्मीदवार की जीत के अंतर से अधिक है. भाजपा-जेडीयू गठबंधन के पास इन 25 सीटों में से 18 पर कब्जा है.

38 फीसदी मतदाता सूची से बाहर

40 वर्ष से कम आयु के जिन मतदाताओं को सूची से हटा दिया गया है वे अभी तक मतदाता सूची में शामिल थे. इन मतदाताओं को वोटर लिस्ट में अपना नाम बनाए रखने के लिए चुनाव आयोग ने तय दस्तावेज आवेदन पत्र के साथ जमा करने को कहा था. ताकि उनकी भारतीय नागरिकता प्रमाणित हो सके. मतदाताओं द्वारा ऐसा न करने की वजह से ये इनका नाम वोटर लिस्ट से हटा दिया गया. एसआईआर के भाग के रूप में नागरिकता प्रमाण प्रस्तुत करना आवश्यक था (क्योंकि वे 2003 की मतदाता सूची का हिस्सा नहीं थे, जो गहन संशोधन के बाद बनाई गई अंतिम मतदाता सूची थी), इन तीन जिलों में हटाए गए सभी मतदाताओं का 4.02 लाख या 37.87% हिस्सा थे।

महिला मतदाताओं के नाम कटे ज्यादा

इन तीन जिलों में पुरुषों की तुलना में अधिक महिला मतदाताओं का नाम हटाया गया. 5.67 लाख हटाए गए, जो इन तीन जिलों में हटाए गए सभी मतदाताओं का 53.35% था. हालांकि, इन जिलों की 36 विधानसभा सीटों में से प्रत्येक में पुरुषों की संख्या महिला मतदाताओं से अधिक है.

नाम हटाने के पीछे EC का तर्क

चुनाव आयोग ने नाम हटाने के चार कारण गिनाए हैं. इनमें पहला 'स्थायी रूप से स्थानांतरित', 'मृत', 'अनुपस्थित' और 'पहले से नामांकित.' इन तीन जिलों में, 'स्थायी रूप से स्थानांतरित' सबसे ज्यादा मामले सामने आए हैं. कुल नाम हटाने का 3.9 लाख या 36.74% था. इसके बाद 'मृत' 3.42 लाख (32.23%), 'अनुपस्थित' 2.25 लाख (21.2%), और पहले से नामांकित' 1.04 लाख (9.82%) थे.

चुनाव आयोग के अधिकारियों के अनुसार, 'स्थायी रूप से स्थानांतरित' का अर्थ उन मतदाताओं से है जो राज्य से बाहर चले गए हैं. 'पहले से नामांकित' का अर्थ उन मतदाताओं से है जो राज्य के भीतर कहीं और मतदान के लिए पंजीकृत हैं, और 'अनुपस्थित' वे मतदाता हैं जो उस पते पर उपलब्ध नहीं हैं जहां वे मतदान के लिए पंजीकृत थे.

तीनों जिलों में महिलाओं का नाम कटने की वजह उनका 'स्थायी रूप से स्थानांतरित' होना था. जबकि पुरुषों के लिए यह 'मृत्यु' था. हालांकि, बिहार में बाहर जाने वाले प्रवासियों की आबादी सबसे ज्यादा है. उत्तर प्रदेश के बाद दूसरे स्थान पर बिहार है. साल 2011 की जनगणना से पता चला है कि रोजगार प्रवास का सबसे आम कारण था और महिलाओं की तुलना में पुरुषों द्वारा इसे कहीं ज्यादा शिफ्ट होना. जबकि महिलाओं के लिए विवाह प्रवास का सबसे आम कारण था.

चुनावी समीकरण में बदलाव के संकेत

सियासी विशेषज्ञों का मानना है कि इस बदलाव से न सिर्फ वोटिंग प्रतिशत प्रभावित होगा बल्कि कई सीटों पर परिणाम भी बदल सकते हैं. जिन इलाकों में सबसे ज्यादा कटौती हुई है, वे राजनीतिक दलों के पारंपरिक गढ़ रहे हैं. ऐसे में 2025 का चुनाव नए समीकरणों के साथ लड़ा जाएगा.

बिहार विधानसभा चुनाव 2025बिहार
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