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छत्तीसगढ़ में पत्थर की होती जा रही है 14 साल की राजेश्वरी, क्या है Ichthyosis Hystrix बीमारी? परिवार ने बचाने की लगाई गुहार

उसके परिवार के अनुसार, यह समस्या चार साल की उम्र से शुरू हुई, जब उसके शरीर पर छोटे-छोटे फफोले उभरने लगे. धीरे-धीरे ये फफोले सख्त होकर पूरे शरीर पर फैल गए हाथ, पैर, टांगें और अन्य हिस्सों पर. चेहरे पर अभी तक यह प्रभाव कम है, लेकिन बाकी शरीर पर यह इतना गंभीर है कि वह ठीक से बैठ या चल नहीं पाती. दर्द इतना ज्यादा है कि रोजमर्रा के काम जैसे नहाना, कपड़े पहनना या खेलना उसके लिए चुनौती बन गए हैं.

छत्तीसगढ़ में पत्थर की होती जा रही है 14 साल की राजेश्वरी, क्या है Ichthyosis Hystrix बीमारी? परिवार ने बचाने की लगाई गुहार
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( Image Source:  X: @JyotiDevSpeaks )
रूपाली राय
Edited By: रूपाली राय

Updated on: 20 Dec 2025 10:10 AM IST

छत्तीसगढ़ के दूरदराज के आदिवासी इलाके में एक दिल दहला देने वाला मामला सामने आया है, जहां एक युवा लड़की राजेश्वरी एक दुर्लभ और गंभीर बीमारी से जूझ रही है. यह बीमारी उसके शरीर की त्वचा को धीरे-धीरे सख्त और पत्थर जैसा बना रही है, जिससे उसका दैनिक जीवन बेहद कष्टदायक हो गया है. इस मामले ने सोशल मीडिया पर वायरल वीडियो के माध्यम से ध्यान आकर्षित किया है, जहां लोग मुख्यमंत्री विष्णु देव साय (@vishnudsai) से मदद की गुहार लगा रहे हैं. आइए इस मामले को विस्तार से समझते हैं, जिसमें राजेश्वरी की स्थिति, परिवार की चुनौतियां और बीमारी के कारण शामिल हैं.

राजेश्वरी छत्तीसगढ़ के दंतेवाड़ा जिले के अबूझमाड़ क्षेत्र की रहने वाली एक आदिवासी लड़की है, जो नारायणपुर के पास स्थित है (कुछ रिपोर्टों में विजयवाड़ा का जिक्र गलती से हो सकता है, क्योंकि विजयवाड़ा आंध्र प्रदेश में है, जबकि संदर्भ छत्तीसगढ़ का है). उसकी उम्र लगभग 13-14 वर्ष बताई जा रही है, हालांकि पुरानी रिपोर्टों में 2020 में उसे 9 साल की बताया गया था.

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पत्थर होती जा रही है स्किन

यह मामला पहली बार 2020 में सुर्खियों में आया था, जब एक वीडियो में उसकी त्वचा पर पत्थर जैसे फफोले और सख्त परतें दिखाई गईं. हाल ही में, दिसंबर 2025 में यह वीडियो फिर वायरल हुआ है, जिसमें राजेश्वरी अपने हाथ-पैर दिखाती नजर आ रही है उसकी त्वचा इतनी सख्त और खुरदरी हो गई है कि वह पेड़ की छाल या पत्थर जैसी लगती है. वीडियो में वह बैठी हुई है, और उसके अंगों पर गहरी दरारें और स्केल्स (परतें) साफ दिख रही हैं, जो उसे चलने-फिरने में मुश्किल पैदा कर रही हैं.

चार साल की उम्र झेल रही है दर्द

उसके परिवार के अनुसार, यह समस्या चार साल की उम्र से शुरू हुई, जब उसके शरीर पर छोटे-छोटे फफोले उभरने लगे. धीरे-धीरे ये फफोले सख्त होकर पूरे शरीर पर फैल गए हाथ, पैर, टांगें और अन्य हिस्सों पर. चेहरे पर अभी तक यह प्रभाव कम है, लेकिन बाकी शरीर पर यह इतना गंभीर है कि वह ठीक से बैठ या चल नहीं पाती. दर्द इतना ज्यादा है कि रोजमर्रा के काम जैसे नहाना, कपड़े पहनना या खेलना उसके लिए चुनौती बन गए हैं. परिवार गरीब है और ग्रामीण इलाके में रहता है, जहां मेडिकल सुविधाएं सीमित हैं. उसके चाचा काला राम ने बताया कि स्थानीय लोग और बच्चे उसे डर से दूर रहते हैं, क्योंकि उन्हें लगता है कि यह संक्रामक बीमारी है (जो गलत है). इससे राजेश्वरी सामाजिक रूप से अलग-थलग पड़ गई है, और उसके मानसिक स्वास्थ्य पर भी असर पड़ रहा है. परिवार इलाज के लिए भटक रहा है, और वायरल वीडियो में अधिकारियों से जांच और मदद की अपील की गई है.

बीमारी का नाम और लक्षण

द सन के मुताबिक, यह बीमारी एक रेयर स्किन डिसऑर्डर्स है, जिसे इचथियोसिस हिस्ट्रीक्स (Ichthyosis Hystrix) कहा जाता है. यह इचथियोसिस का एक गंभीर रूप है. इचथियोसिस का मतलब है 'मछली जैसी त्वचा', क्योंकि इसमें त्वचा सूखी, स्केली और सख्त हो जाती है. हिस्ट्रीक्स रूप में यह और भी दुर्लभ है, जहां त्वचा पर पत्थर जैसे कठोर फफोले बनते हैं. दुनिया भर में ऐसे केवल 24 मामले दर्ज किए गए हैं, जिससे शोध और इलाज मुश्किल है.

मुख्य लक्षण:

त्वचा का लाल होना, स्केलिंग (परतें बनना) और गंभीर फफोले

शरीर के अधिकांश हिस्सों पर कठोर, फटी हुई त्वचा, जो संक्रमण का खतरा बढ़ाती है

पसीना कम आना, जिससे गर्मी में ओवरहीटिंग की समस्या

दर्द, गतिशीलता में कमी – चलना, बैठना या काम करना मुश्किल

विटामिन डी की कमी और कुपोषण, क्योंकि मोटी त्वचा पोषण अवशोषण प्रभावित करती है

अगर कान या आंखों के आसपास त्वचा जमा हो जाए, तो सुनने या देखने में समस्या हो सकती है

यह बीमारी संक्रामक नहीं है, बल्कि जन्मजात है, और इसका कोई पूर्ण इलाज नहीं है. दवा से फफोले के बढ़ने को रोका जा सकता है, लेकिन साइड इफेक्ट्स ज्यादा हैं.

बीमारी के कारण

इचथियोसिस हिस्ट्रीक्स मुख्य रूप से जेनेटिक म्युटेशन के कारण होती है. यह त्वचा की प्रक्रिया को बाधित करती है – सामान्य त्वचा हर 28 दिनों में नई कोशिकाएं बनाती है और पुरानी गिरती हैं, लेकिन इस बीमारी में कोशिकाएं सख्त होकर जमा हो जाती हैं. जीन स्तर पर म्यूटेशन से केराटिन (त्वचा का प्रोटीन) असामान्य रूप से बनता है, जिससे त्वचा मछली के स्केल्स या पत्थर जैसी हो जाती है. यह में जेनेटिक मिल सकती है, यानी माता-पिता से बच्चे को. पर्यावरणीय कारक जैसे गरीबी, कुपोषण या संक्रमण इसे बदतर बना सकते हैं, लेकिन मूल कारण आनुवंशिक है. छत्तीसगढ़ जैसे आदिवासी क्षेत्रों में जागरूकता की कमी और मेडिकल पहुंच न होने से डायग्नोसिस देर से होता है.

इलाज और सुझाव

वर्तमान में कोई इलाज नहीं है, लेकिन लक्षणों को प्रबंधित किया जा सकता है: साबुन-मुक्त क्लेंजर और नमक वाले पानी से नहाना, डेड स्किन हटाने के लिए. मोटे एमोलिएंट-आधारित मॉइस्चराइजर लगाना. विटामिन ए रेटिनॉइड और विटामिन डी सप्लीमेंट्स. संक्रमण रोकने के लिए एंटीबायोटिक्स. साइकोलोजिस्ट काउंसलिंग, क्योंकि सामाजिक बहिष्कार से मानसिक तनाव होता है. द सन के मुताबिक, डॉक्टर यशा उपेंद्रवा जैसे एक्सपर्ट्स ने सुझाव दिया है कि रेगुलर थेरेपी से जीवन गुणवत्ता सुधारी जा सकती है. परिवार को सरकारी मदद, एनजीओ या क्राउडफंडिंग की जरूरत है. मुख्यमंत्री विष्णु देव साय से अपील की जा रही है कि मामले की जांच कर इलाज के लिए सहायता प्रदान करें, क्योंकि ग्रामीण क्षेत्रों में रेयर डिसीसेस के लिए विशेष योजना होनी चाहिए.

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