मुकेश सहनी को अब तक एक भी चुनाव में नहीं मिली जीत, फिर भी चाहिए 24 सीटें... क्या 'सन ऑफ मल्लाह' की मांगों के आगे झुकेगा महागठबंधन?
बिहार की सियासत में मुकेश सहनी का असर लगातार बढ़ रहा है. VIP नेता सहनी मल्लाह, निषाद और सहनी समुदायों के प्रतिनिधि हैं, जिनका 9% वोट बैंक 2025 के चुनाव में निर्णायक साबित हो सकता है. महागठबंधन उन्हें 15 सीटें देने पर विचार कर रहा है, जबकि सहनी 24 सीटों की मांग पर अड़े हैं. उनकी राजनीतिक महत्वाकांक्षा और जातीय समर्थन चुनावी समीकरण बदलने की क्षमता रखते हैं.

Bihar election 2025 Mukesh Sahani Vikassheel Insaan Party: बिहार की सियासत के रंगीन ताने-बाने में जहां जाति और समाज के समीकरण ही चुनावी जीत-हार तय करते हैं, वहीं विकासशील इंसान पार्टी (VIP) के मुखिया मुकेश सहनी की भूमिका अब एक दिलचस्प मोड़ पर है. 44 वर्षीय सहनी न सिर्फ ‘मल्लाह समाज’ की आवाज़ बनकर उभरे हैं, बल्कि बिहार की राजनीति में ‘किंगमेकर’ बनने का सपना भी देख रहे हैं.
सहनी की पार्टी VIP बिहार के मल्लाह, सहनी और निषाद समुदायों की प्रतिनिधि मानी जाती है, जो राज्य की कुल आबादी का लगभग 9 फीसदी हैं (2023 जातीय जनगणना के अनुसार). यही वोट बैंक बिहार की राजनीति में समीकरण बदलने की ताकत रखता है. इस वक्त महागठबंधन (RJD-कांग्रेस-लेफ्ट) सहनी को करीब 15 सीटें देने पर विचार कर रहा है, जबकि सहनी 24 सीटों की मांग पर अड़े हैं. यह सिर्फ सत्ता का सौदा नहीं, बल्कि समाज की पहचान और हिस्सेदारी की लड़ाई है.
बॉलीवुड से राजनीति तक: सहनी का सफर
मुकेश सहनी ने बतौर सेट डिज़ाइनर और फिल्म प्रोड्यूसर मुंबई में करियर शुरू किया था, लेकिन जल्द ही राजनीति में कूद पड़े. पहले भाजपा के साथ दिखे, फिर राजद से गठबंधन किया और फिर 2020 के विधानसभा चुनाव से ठीक पहले एनडीए में शामिल होकर बीजेपी के समर्थन से मंत्री बने. हालांकि, 2022 में उन्होंने योगी आदित्यनाथ और पीएम मोदी पर हमला बोलकर बीजेपी को नाराज़ कर दिया. नतीजा- नीतीश कुमार ने उन्हें मंत्रिमंडल से बर्खास्त कर दिया. उनकी पार्टी के तीनों विधायक भी भाजपा में चले गए. इसके बावजूद सहनी अब भी दावा करते हैं कि 2020 के चुनाव में उन्होंने एनडीए को 74 सीटें दिलाने में अहम भूमिका निभाई थी.
मल्लाह-निषाद वोट बैंक की ताकत
मल्लाह समाज की उपस्थिति बिहार के उत्तर और पूर्व जिलों में बेहद मजबूत है- खासकर वैशाली, मुजफ्फरपुर, दरभंगा, मधुबनी, खगड़िया, कटिहार और पूर्णिया में... यह समुदाय अत्यंत पिछड़ा वर्ग (EBC) श्रेणी में आता है, जो बिहार की जनसंख्या का 36% से अधिक हिस्सा है. सहनी का प्रभाव इन्हीं इलाकों में सबसे ज्यादा है और यही वजह है कि महागठबंधन उन्हें साधना चाहता है.
मुजफ्फरपुर से कई मल्लाह बने सांसद
मुजफ्फरपुर से मल्लाह समुदाय के कई सांसद चुने गए हैं, जिनमें भाजपा के अजय निषाद भी शामिल हैं. अजय निषाद मुजफ्फरपुर के पूर्व सांसद, बेहद लोकप्रिय कैप्टन जयनारायण निषाद (1930-2018) के पुत्र हैं. सांसद चुने जाने से पहले, वह एक उद्यमी थे और मुजफ्फरपुर में रसोई गैस के शुरुआती डीलरों में से एक थे.
सहनी की चुनौती और महागठबंधन की चिंता
सहनी की बढ़ी हुई सीट मांग यह संकेत है कि अब ये समुदाय ‘किसी दल का वोट बैंक’ नहीं रहना चाहता, बल्कि राजनीतिक हिस्सेदारी चाहता है. अगर महागठबंधन उनकी मांगों को नज़रअंदाज़ करता है, तो 2025 के चुनाव में यह 9 फीसदी वोट बैंक निर्णायक साबित हो सकता है. मुकेश सहनी अब सिर्फ एक नेता नहीं, बल्कि बिहार की जातीय राजनीति में उभरते आत्मसम्मान और हिस्सेदारी की नई कहानी बन चुके हैं.
हार के बावजूद भाजपा ने बनाया मंत्री
सहनी ने अपने राजनीतिक करियर की शुरुआत भाजपा के लिए प्रचार से की, फिर 2019 में RJD के साथ जुड़ गए, लेकिन उनकी पार्टी ने चुनाव में सफलता नहीं पाई। अक्टूबर 2020 में सहनी ने एनडीए में शामिल होकर VIP को 11 सीटों का कोटा मिला, जिसमें से चार सीटें जीतने में सफल रही, हालांकि खुद सहनी चुनाव हार गए. इसके बावजूद उन्हें मंत्री बनाया गया और विधान परिषद भेजा गया.
सहनी की राजनीतिक रणनीति हमेशा सक्रिय रही, जैसे यूपी विधानसभा चुनाव में 50 से अधिक उम्मीदवार उतारना, हालांकि सभी हार गए. 2020 के बाद से, सहनी महागठबंधन के साथ नजदीकी बढ़ाने की कोशिश कर रहे हैं और अब 24 सीटों की मांग कर रहे हैं, जो उनके समुदाय की बढ़ती राजनीतिक चेतना को दर्शाती है.