बिहार चुनाव में प्रवासियों की एंट्री: छठ पर्व पर 50 लाख वोटर लौटे घर, क्या बनेंगे किंगमेकर?
बिहार के लोगों के छठ पर्व महान आस्था का पर्व है. इस अवसर पर प्रदेश से बाहर रहने वाले प्रवासी बिहारी बड़ी संख्या में अपने घर लौटते हैं. एक अनुमान के मुताबिक ऐसे 50 लाख प्रवासी वोटर चुनावी समीकरण को इस बार नया मोड़ दे सकते हैं. हर जिले में मतदाताओं का रुझान बदलने की संभावना, जानें कैसे बनेगा ‘प्रवासी फैक्टर’ किंगमेकर.
बिहार में छठ पर्व की वजह से न केवल आस्था की लहर है, बल्कि सियासत की गर्मी भी चरम पर है. अनुमान है कि करीब 50 लाख प्रवासी बिहारी वोटर मुंबई, कोलकाता, दिल्ली बेंगलुरु, हैदराबाद, चंडीगढ़ व अन्य शहरों ने अपने गांव लौटे हैं. इनमें से बड़ी संख्या में ऐसे लोग हैं जो पहली बार वोट डालेंगे या लंबे समय बाद बिहार के चुनावी मैदान में अपनी भूमिका निभाएंगे. अब सवाल ये है कि क्या ये ‘छठिया वोटर’ इस बार चुनावी नतीजे पलट सकते हैं?
छठ पर्व बिहार की पहचान
छठ महापर्व बिहार की सबसे बड़ी सांस्कृतिक पहचान है. हर साल लाखों प्रवासी बिहारी इस पर्व को मनाने के लिए अपने गांव लौटते हैं, लेकिन इस बार खास बात ये है कि छठ पर्व और विधानसभा चुनाव की तारीखें करीब-करीब एक साथ पड़ी हैं, जिससे प्रवासी मतदाताओं का वोटिंग में हिस्सा लेना तय माना जा रहा है. प्रवासी वोटरों को लुभाने के लिए सियासी दलों के नेता अपने-अपने मिशन में जुटे है, ताकि उन्हें मतदाताओं को समर्थन मिल सके.
50 लाख से अधिक लौटे प्रवासी वोटर
रेलवे और परिवहन विभाग के आंकड़ों के मुताबिक छठ से एक सप्ताह पहले तक बिहार में लगभग 50 लाख लोगों की एंट्री हुई है. इनमें दिल्ली, मुंबई, गुजरात, पंजाब, बेंगलुरु, चेन्नई और दुबई जैसे राज्यों और देशों से लौटे लोग शामिल हैं. IRCTC के अनुसार सिर्फ दिल्ली-पटना रूट पर पिछले 10 दिनों में 25 लाख से ज्यादा टिकट बुक हुए हैं. वहीं मुंबई से भी 10 लाख यात्रियों ने बिहार का रुख किया.
क्या बदलेगा समीकरण?
- राजनीतिक विश्लेषकों के मुताबिक प्रवासी बिहारी प्रायः रोजगार, विकास और शिक्षा के मुद्दों पर वोट डालते हैं.
- इन वोटरों में बड़ी संख्या 18-35 वर्ष युवा मतदाताओं की है.
- 243 विधानसभा सीटों में से करीब 100 सीटें ऐसी हैं जहां प्रवासी वोट निर्णायक भूमिका निभा सकते हैं.
- पटना, दरभंगा, मधुबनी, गया, सीवान, मुजफ्फरपुर, सहरसा, कटिहार, सीतामढ़ी और समस्तीपुर जैसे जिलों में इसका सबसे बड़ा असर देखा जा सकता है.
किसे होगा फायदा?
- एनडीए को उम्मीद है कि केंद्र और राज्य की योजनाओं से लाभ पाने वाले प्रवासी परिवार उनका समर्थन करेंगे.
- महागठबंधन का मानना है कि बेरोजगारी और पलायन का मुद्दा इन वोटरों को उनके पक्ष में ला सकता है.
- छोटे दल जैसे विकासशील इंसान पार्टी (वीआईपी) और हम (हमारे अधिकार मोर्चा) भी इस वोट बैंक को साधने में जुटे हैं.
टाइमिंग का होगा बड़ा असर
छठ के तुरंत बाद पहले चरण के चुनाव हैं. इसका मतलब यह कि लौटे हुए प्रवासी सीधे तौर पर वोट डाल पाएंगे. इस वजह से इस बार मतदान प्रतिशत में भी 5-7% तक की बढ़ोतरी संभव मानी जा रही है.
सियासी जानकारों का कहना है, “प्रवासी बिहारी सिर्फ धार्मिक कारणों से नहीं लौटे, बल्कि इस बार वे मतदान को लेकर जागरूक भी हैं. अगर 50 लाख में से 30-35% भी वोट डालते हैं, तो नतीजों में बड़ा फेरबदल संभव है.”





