वाइल्डलाइफ़ की दुनिया में नई खोज, असम में दिखा पहला एशियाई अल्बिनो वाटर स्नेक, जानें इस शांप की खासियत
असम में रिसर्चर्स को पहली बार एशियाई अल्बिनो वाटर स्नेक देखने को मिला है, जो प्राकृतिक दुनिया में बेहद दुर्लभ माना जाता है. अल्बिनो अवस्था में किसी जीव के शरीर में मेलानिन पिग्मेंट की कमी होती है, जिसकी वजह से उसका रंग सफेद या हल्का दिखाई देता है.
गुवाहाटी के पास स्थित असम स्टेट जू में इन दिनों एक अनोखी खोज की चर्चा जोरों पर है. यहां की रिसर्च टीम ने ऐसा नजारा देखा जिसे कई एक्सपर्ट भी सालों से ढूंढते रह गए. एक दिन साधारण से दिखने वाले इलाके में अचानक एक ऐसा दुर्लभ जीव सामने आया जिसने वैज्ञानिकों को चौंका दिया.
यह था चेकर्ड कीलबैक प्रजाति का एक अल्बिनो सांप, जो असम में पहली बार दिखाई दिया. इस दुर्लभ सांप का दिखना न केवल साइंटिफिक स्टडी के लिए जरूरी है, बल्कि बायोडायवर्सिटी के रेफरेंस में असम की अनोखी प्राकृतिक धरोहर को भी दिखाता है. चलिए जानते हैं क्यों खास है यह सांप.
कैसे मिला यह अनोखा जीव?
असम स्टेट जू और बॉटनिकल गार्डन की टीम जब रोज़ की तरह इंस्पेक्शन कर रही थी, तभी उन्हें 290 मिलीमीटर लंबाई का एक छोटा दूधिया रंग का सांप दिखाई दिया. रंग देखकर तुरंत समझ में आ गया कि यह साधारण चेकर्ड कीलबैक नहीं है. टीम ने इसे सुरक्षित जगह पर ले जाकर अच्छे से चेक किया. इसके शरीर की बनावट, स्केल्स और पैटर्न को मिलाकर वैज्ञानिकों ने कंफर्म किया कि यह फाउली पिस्केटर है. यानी एशियन वाटर स्नेक की ही प्रजाति है, लेकिन अल्बिनिज़्म के कारण पूरी तरह सफेद है. यह सांप तीन दिनों तक स्टडी के लिए रखा गया और फिर इसे सुरक्षित वन क्षेत्र में वापस छोड़ दिया गया.
इस सांप की खासियत
चेकर्ड कीलबैक एक आम गैर-विषैला सांप है जो नदियों और तालाबों के पास आसानी से देखा जा सकता है. लेकिन इसका अल्बिनो रूप बेहद दुर्लभ माना जाता है. एक अंतरराष्ट्रीय रिसर्च मैग्जीन में छपी स्टडी के अनुसार, अल्बिनिज़्म एक ऐसी अनूठी अनुवांशिक स्थिति है जिसमें मेलानिन पिगमेंट नहीं बनता है. इसके कारण जीव का रंग हल्का या बिल्कुल सफेद हो जाता है और अक्सर आंखें लाल दिखाई देती हैं. भारत में अल्बिनिज़्म या आंशिक रंग कमी (ल्यूसीज़्म) के मामले पहले गुजरात, महाराष्ट्र, मिजोरम और पश्चिम बंगाल में मिले थे. नेपाल के धनुषा जिले में भी ऐसा एक मामला दर्ज हुआ था.
असम का बढ़ता महत्व
स्टडी से जुड़े विशेषज्ञ रूपंकर भट्टाचार्जी, अश्विनी कुमार, देबरत फुकन, प्रांजल महनंदा और जयदित्य पुरकायस्थ का कहना है कि यह खोज न सिर्फ जैव विविधता के लिए महत्वपूर्ण है, बल्कि यह दर्शाती है कि असम अब वन्यजीव संरक्षण और शोध के क्षेत्र में तेजी से आगे बढ़ रहा है. एक जू अधिकारी के अनुसार, यह रिकॉर्ड भारतीय वन्यजीवों में दुर्लभ आनुवांशिक गुणों पर भविष्य के अध्ययनों के लिए बेहद अहम साबित होगा.





