Begin typing your search...

NDA की ऐतिहासिक जीत के बाद असम मंत्री की 'गोभी' पोस्ट पर बवाल, 1989 के कुख्यात लोगैंन नरसंहार की यादें फिर ताज़ा

बिहार में NDA की ऐतिहासिक जीत के बाद असम के मंत्री आशोक सिंघल की ‘गोभी’ वाले खेत की पोस्ट पर बड़ा विवाद खड़ा हो गया है. सोशल मीडिया यूज़र्स का कहना है कि यह 1989 के भयावह लोगैंन नरसंहार की तरफ इशारा है, जहां सैकड़ों मुस्लिमों की हत्या के बाद शवों को छिपाने के लिए खेत में गोभी के पौधे लगा दिए गए थे. इस पोस्ट को लेकर जनता में गुस्सा है और कई लोग इसे अमानवीय व संवेदनहीन बताकर मंत्री की आलोचना कर रहे हैं.

NDA की ऐतिहासिक जीत के बाद असम मंत्री की गोभी पोस्ट पर बवाल, 1989 के कुख्यात लोगैंन नरसंहार की यादें फिर ताज़ा
X
सागर द्विवेदी
By: सागर द्विवेदी

Published on: 14 Nov 2025 10:42 PM

एनडीए की प्रचंड जीत के बाद जहां पूरे बिहार में जश्न का माहौल था, वहीं सोशल मीडिया पर एक पोस्ट ने सन्नाटा फैला दिया. असम के मंत्री अशोक सिंघल ने एक गोभी के खेत की तस्वीर साझा करते हुए कैप्शन लिखा- "Bihar approves Gobi farming." देखते ही देखते यह पोस्ट विवादों में घिर गया, क्योंकि कई यूज़र्स ने इसे 1989 के भयावह लोगैंन नरसंहार की कनेक्टेड प्रतीकात्मक पोस्ट बताया.

दरअसल, लोगैंन कांड की याद दिलाने वाली गोभी की तस्वीरें पिछले कई वर्षों से कुछ समूहों द्वारा सांप्रदायिक हिंसा के संदर्भ में इस्तेमाल की जाती रही हैं. यही कारण है कि मंत्री की पोस्ट ने लोगों में आक्रोश और हैरानी की लहर पैदा कर दी. सोशल मीडिया पर कई यूज़र्स ने पोस्ट के ‘घिनौने संदर्भ’ पर सवाल उठाए. एक यूज़र ने लिखा कि बीजेपी के असम मंत्री द्वारा पोस्ट की गई गोभी के खेत की तस्वीर का इस्तेमाल हिंदू कट्टरपंथियों द्वारा 1989 के भागलपुर नरसंहार में मुसलमानों की सामूहिक हत्या का महिमामंडन करने के लिए किया जाता रहा है. उस समय सबूत छिपाने के लिए शवों को दफनाकर उन पर गोभी के पौधे लगाए गए थे.”

क्या है 1989 का लोगैंन नरसंहार?

1989 में भागलपुर दंगों के दौरान लोगैंन गांव में 100 से अधिक मुस्लिम महिलाओं, बच्चों और पुरुषों की बेरहमी से हत्या कर दी गई थी. शवों को खेतों में दफनाकर उन पर गोभी की पौध रोप दी गई थी, ताकि किसी को संदेह न हो. यह घटना भारत के आधुनिक इतिहास का सबसे दर्दनाक सांप्रदायिक नरसंहार मानी जाती है.

मृतकों की संख्या 116 के करीब बताई गई थी, लेकिन दंगों का कुल आधिकारिक आंकड़ा 1,070 मौतों तक पहुंच गया था. हजारों लोग बेघर हुए, मोहल्ले जला दिए गए और दशकों बाद भी पीड़ित न्याय की प्रतीक्षा करते रहे.

कैसे भड़की थी हिंसा?

24 अक्टूबर 1989 को रामशिला जुलूस मुस्लिम बहुल तातारपुर इलाके में पहुंचा. पहला जुलूस शांति से निकल गया था, लेकिन दूसरा जुलूस उकसाने वाले नारों से तनाव में बदल गया. प्रशासन की मध्यस्थता के बीच अचानक पास के मुस्लिम हाई स्कूल से बम फेंके जाने की घटना हुई, जिसमें पुलिसकर्मी घायल हुए. इसके बाद पुलिस फायरिंग हुई, दो लोगों की मौत हुई और कुछ ही मिनटों में जुलूस भीड़ में तब्दील होकर हिंसक हो गया. दुकानें जलाई गईं, हमले हुए और अगले दिनों में हिंसा पूरे शहर में फैल गई.

नरसंहार के बाद क्या हुआ?

भागलपुर के नयाबाज़ार में 11 बच्चों सहित 18 मुसलमानों की हत्या कर दी गई. चांधेरी तालाब से 61 शव बरामद हुए. लोगैंन गांव में 116 लोगों को मारकर दफनाया गया. पीछे छूटीं सिर्फ राख, खंडहर और टूटे हुए परिवार.

कई जांच आयोग बने, लेकिन पुलिस की लापरवाही और राजनीतिक संरक्षण के आरोप दशकों तक गूंजते रहे. फैसले वर्षों तक लटके, मुआवजा अधूरा रहा और पीड़ितों को आज भी लगता है कि न्याय पूरा नहीं हुआ. असम मंत्री की गोभी वाली तस्वीर के बाद सोशल मीडिया पर गुस्सा फूट पड़ा. कई यूज़र्स ने इसे “असंवेदनशील राजनीतिक जश्न” बताया और कहा कि यह पोस्ट सीधे तौर पर नरसंहार की दर्दनाक यादों को कुरेदती है.

कुछ यूज़र्स ने पूछा कि “क्या एनडीए की जीत का जश्न मनाने का यही तरीका है?” “इतिहास के सबसे भयानक नरसंहार को मीम में बदल देना किस संवेदनशीलता का संकेत है?” हालांकि मंत्री ने इस संदर्भ पर कोई स्पष्टीकरण नहीं दिया है, लेकिन चर्चा तेजी से बढ़ रही है. चुनावी माहौल में पुराने जख्म फिर क्यों हरे हुए? यह पहली बार नहीं है जब गोभी का प्रतीक सांप्रदायिक हिंसा के संदर्भ में सामने आया हो.

असम न्‍यूज
अगला लेख