यहां 300 साल से चली आ रही गोबर फेंकने की रस्म, शिव जी से जुड़ा है संबंध, जानें कहां मनाया जाता है ये त्योहार
भारत की सांस्कृतिक विविधता में ऐसे कई त्योहार शामिल हैं, जिनकी परंपराएं पहली नज़र में अजीब लग सकती हैं, लेकिन उनके पीछे गहरी आस्था और सदियों पुरानी मान्यताएं छिपी होती हैं. ऐसा ही एक अनोखा उत्सव पिछले करीब 300 वर्षों से मनाया जा रहा है, जहां लोग एक-दूसरे पर गोबर फेंकते हैं.
भारत सिर्फ त्योहारों का देश नहीं है, यह परंपराओं का जीवित संग्रहालय है. यहां हर कुछ किलोमीटर पर भाषा बदलती है, खानपान बदलता है और रीति-रिवाज़ों का रंग भी. कुछ परंपराएं तर्क से परे लगती हैं, कुछ हैरान करती हैं और कुछ मुस्कान ला देती हैं.
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ऐसी ही एक अनोखी परंपरा दक्षिण भारत के एक सुदूर गांव में देखने को मिलती है, जहां लोग खुशी-खुशी एक-दूसरे पर गोबर फेंकते हैं और इसे उत्सव की तरह मनाते हैं. यह परंपरा करीब 300 साल से चली आ रही है, जिसे लोग भगवान शिव से जोड़ते हैं. चलिए जानते हैं आखिर क्यों और कहां मनाई जाती है गोबर की होली?
कहां मनाते हैं गोबर की होली?
तमिलनाडु के इरोड ज़िले के थलावडी क्षेत्र में स्थित एक छोटा-सा गांव है, जहां पिछले करीब 300 सालों से एक अनोखा त्यौहार मनाया जा रहा है. दिवाली के चार दिन बाद गांव के लोग बीरेश्वर मंदिर के आंगन में इकट्ठा होते हैं. ढोल-नगाड़ों की आवाज़, ठहाके और उत्साह के बीच शुरू होती है गोबर फेंकने की रस्म. यह कोई आधुनिक प्रयोग नहीं, बल्कि पीढ़ियों से चली आ रही परंपरा है, जिसे गांव वाले पूरी श्रद्धा और उमंग के साथ निभाते हैं.
शिवजी से जुड़ा है संबंध
इस उत्सव की जड़ें आस्था और लोककथाओं में छुपी हैं. गांव के बुज़ुर्गों का मानना है कि सदियों पहले जिस गड्ढे में पशुओं के लिए गोबर जमा किया जाता था, वहीं शिवलिंग प्रकट हुआ था. बाद में उसी शिवलिंग को स्थापित कर बीरेश्वर मंदिर बनाया गया. यही वजह है कि गोबर यहां सिर्फ एक पदार्थ नहीं, बल्कि पवित्रता और समृद्धि का प्रतीक माना जाता है. त्योहार के दौरान गोबर फेंकना भगवान शिव के प्रति श्रद्धा प्रकट करने का एक तरीका है.
गांव में बांटा जाता है गोबर
इस उत्सव का एक व्यावहारिक पक्ष भी है. जब गोबर फेंकने की रस्म पूरी हो जाती है, तो वही गोबर गांव वालों में बांट दिया जाता है. किसान इसे अपने खेतों में खाद के रूप में इस्तेमाल करते हैं. उनका विश्वास है कि इससे मिट्टी की ताकत बढ़ती है और फसल अच्छी होती है.इस तरह यह उत्सव आस्था, मस्ती और खेती-तीनों को एक साथ जोड़ देता है.
कर्नाटक में गोरेहब्बा का त्योहार
कर्नाटक और तमिलनाडु की सीमा के पास स्थित गुमातापुरा गांव में भी ऐसा ही नज़ारा देखने को मिलता है. यहां दिवाली के बाद ‘गोरेहब्बा’ नाम का त्योहार मनाया जाता है, जिसमें लोग गोबर की होली खेलते हैं. कहा जाता है कि यह परंपरा सौ साल से भी ज़्यादा पुरानी है और आज भी पूरे जोश के साथ निभाई जाती है.
गोबर फेंकने का यह त्योहार हमें सिखाता है कि भारत की खूबसूरती उसकी विविधता में है. यहां हर परंपरा के पीछे एक कहानी है, हर उत्सव के पीछे एक सोच. यही अनोखापन भारत को सिर्फ एक देश नहीं, बल्कि एक जीवंत संस्कृति बनाता है.





