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संचार साथी ऐप पर बगावत! Apple–Google ने सरकार को सीधे दी चुनौती, Samsung के फैसले से मोबाइल इंडस्ट्री को उम्मीद

भारत सरकार के संचार साथी ऐप को सभी स्मार्टफोन्स में अनिवार्य रूप से प्री-इंस्टॉल करने के आदेश पर Apple और Google खुलकर विरोध में आ गए हैं. दोनों कंपनियों का कहना है कि यह यूज़र की प्राइवेसी, सिस्टम सुरक्षा और अंतरराष्ट्रीय नीतियों के खिलाफ है. सरकार साइबर सुरक्षा और फर्जी IMEI रोकने को इसकी जरूरत बता रही है, जबकि टेक दिग्गज इसे खतरनाक मिसाल मानते हैं. विवाद बढ़ने के साथ मामला कानूनी चुनौती तक पहुंच सकता है.

संचार साथी ऐप पर बगावत! Apple–Google ने सरकार को सीधे दी चुनौती, Samsung के फैसले से मोबाइल इंडस्ट्री को उम्मीद
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( Image Source:  sancharsaathi.gov.in )
नवनीत कुमार
Edited By: नवनीत कुमार

Published on: 3 Dec 2025 9:24 AM

दुनिया की दो सबसे बड़ी टेक कंपनियां Apple और Google एक ऐसे सरकारी आदेश के सामने खड़ी हैं, जिसने भारत के डिजिटल इकोसिस्टम में नई बहस छेड़ दी है. सरकार ने सभी नए स्मार्टफोन्स में संचार साथी ऐप को अनिवार्य रूप से प्री-इंस्टॉल करने का निर्देश दिया है, जबकि कंपनियां निजता, सिस्टम सुरक्षा और तकनीकी हस्तक्षेप को लेकर गहरी चिंता जता रही हैं. यह टकराव सिर्फ एक ऐप को लेकर नहीं है, बल्कि यह उस सीमा को परिभाषित कर सकता है जहाँ उपभोक्ता की प्राइवेसी और सरकार का साइबर-सुरक्षा एजेंडा आमने-सामने आ जाते हैं.

भारत दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा स्मार्टफोन बाजार है, जहां 650 मिलियन से अधिक स्मार्टफोन उपयोगकर्ता हैं. ऐसे विशाल बाज़ार में किसी भी तकनीकी नीति का प्रभाव सिर्फ कंपनियों पर ही नहीं, बल्कि करोड़ों नागरिकों की गोपनीयता और उनके डिजिटल अधिकारों पर भी पड़ता है. संचार साथी ऐप को अनिवार्य करने का निर्णय टेक समुदाय में "संवैधानिक सहमति बनाम सुरक्षा" की नई बहस लेकर आया है.

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संचार साथी ऐप क्या है और विवाद क्यों?

संचार साथी सरकार द्वारा विकसित एक साइबर-सुरक्षा ऐप है, जो फ्रॉड कॉल्स, फर्जी मोबाइल कनेक्शन और चोरी हुए फोन की रिपोर्टिंग का सिस्टम प्रदान करता है. लेकिन समस्या यह नहीं कि ऐप उपयोगी नहीं है. मुसीबत यह है कि सरकार इसे सबके फोन में जबरन प्री-इंस्टॉल करवाना चाहती है, जिससे स्वतंत्र पसंद और डेटा प्राइवेसी के प्रश्न उठने लगे हैं.

यूज़र की प्राइवेसी खतरे में: Apple और Google

दोनों कंपनियां दुनिया में कहीं भी सरकारी ऐप्स को जबरन प्रीलोड नहीं करतीं. Apple के लिए यह उसकी मूल कंपनी नीति के खिलाफ है कि iPhones में किसी भी तीसरे पक्ष का ऐप डाल दिया जाए. वहीं Google को डर है कि भारत के लिए कस्टम Android वर्ज़न बनाना पड़ेगा, जो न सिर्फ तकनीकी रूप से महंगा है बल्कि दूसरी सरकारों को भी इसी तरह की मांग करने का रास्ता खोल देगा.

यह एक खतरनाक मिसाल बन जाएगी

इंडस्ट्री के अधिकारियों का कहना है कि यदि भारत की मांग मानी गई, तो रूस, चीन, तुर्की और कई अन्य देशों की सरकारें भी उनके फोन में स्टेट-ऐप प्रीलोड करने की मांग कर सकती हैं. रूस ने हाल ही में WhatsApp के विकल्प “MAX” को जबरन प्रीलोड करने का आदेश दिया था. Big Tech डरती है कि एक बार रास्ता खुल गया तो मांगों की लाइन लग जाएगी.

IMEI फ्रॉड और साइबर सुरक्षा का गंभीर खतरा

दूसरी ओर सरकार का दावा है कि डुप्लीकेट और स्पूफ IMEI वाले फोन राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए बड़ा खतरा हैं. संचार साथी ऐप के जरिये फोन की वास्तविकता और IMEI की जांच आसान हो जाती है. सरकार के अनुसार, "नागरिक सुरक्षा व्यक्तिगत पसंद से ऊपर है”.

कानूनी लड़ाई की भी तैयारी

कई स्मार्टफोन कंपनियों ने स्पष्ट संकेत दिया है कि यदि सरकार अपनी मांग नहीं हटाती, तो वे कानूनी चुनौती देने के लिए भी तैयार हैं. इस मुद्दे पर फिलहाल पर्दे के पीछे व्यापक बातचीत चल रही है. इसका असर आने वाले महीनों में भारत–टेक कंपनियों के रिश्तों पर गहरा पड़ सकता है.

Samsung बीच में, कौन सा रास्ता चुनेगा?

Samsung न तो पूरी तरह सरकार के पक्ष में है और न ही Apple–Google की तरह खुलकर विरोध कर रहा है. कंपनी फिलहाल “मौन मूल्यांकन” के चरण में है. टेक विश्लेषकों का मानना है कि Samsung का फैसला बाकी कंपनियों के रवैये को प्रभावित कर सकता है.

फंक्शनल क्रीपिंग का खतरा

डिजिटल अधिकार समूहों का कहना है कि एक बार ऐप प्री-इंस्टॉल हो गया तो भविष्य में इसके फीचर्स बढ़ाकर इसे निगरानी के टूल में भी बदला जा सकता है. इसे तकनीकी भाषा में functional creeping कहा जाता है यानी ऐप धीरे-धीरे अपने मूल उद्देश्य से आगे बढ़कर कुछ और बनने लगे.

किस तरफ झुकेगा पलड़ा?

एक तरफ है सरकार का राष्ट्र-सुरक्षा एजेंडा, दूसरी तरफ Apple और Google की कठोर प्राइवेसी नीतियां. ये विवाद भविष्य में भारत की डिजिटल नियमावली के लिए दिशा तय कर सकता है. क्या सरकार थोड़ी नरमी दिखाएगी या क्या Big Tech कंपनियां झुकने को मजबूर होंगी यह आने वाले महीनों में साफ होगा.

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