13 साल की उम्र में दिलीप कुमार जैसा बनने का देखा सपना, आज दुनिया कहती है He-Man...एक्टिंग में नाकाम रहने पर यह था Plan B
13 साल के एक शर्मीले लड़के का सपना-फिल्में, दिलीप कुमार और सिनेमा... उन्हें भारतीय फिल्म इंडस्ट्री के सबसे बड़े सितारों में से एक बना गया. वही धर्मेंद्र, जिन्होंने आईने के सामने एक्टिंग सीखी और असफल होने पर टैक्सी चलाने का बैकअप प्लान बनाया था, आज 300 से अधिक फिल्मों के साथ ही-मैन कहलाए. ‘शोले’ के वीरू से लेकर ‘सत्यकाम’ तक, उनका हर किरदार यादगार रहा.. उनका जाना सिर्फ एक एक्टर की विदाई नहीं, बल्कि एक युग का अंत है.
Dharmendra Inspiration Dilip Kumar: फिल्म शोले में वीरू का मशहूर डायलॉग, “अब मरना कैंसिल”, लोग आज भी याद करते हैं... लेकिन इस बार, जब 89 साल के धर्मेंद्र के निधन की खबर आई, तो प्रशंसक चाहते थे कि यह खबर भी 'कैंसिल' हो जाए. कुछ दिन पहले उनकी तबीयत बिगड़ने पर अफवाह उड़ चुकी थी, लेकिन इस बार खबर सच थी. भारतीय सिनेमा के ही-मैन, सबके चहेते धर्मेंद्र देओल नहीं रहे.
लुधियाना के नसराली की तंग गलियों में घूमने-खेलने वाला 13 साल का एक लड़का, धर्मेंद्र, जिन्हें उस समय सिर्फ कृष्ण देओल के नाम से जाना जाता था, पहली बार सिनेमा घर गया. फिल्म थी- 1948 की ‘शहीद’, जिसमें दिलीप कुमार, कामिनी कौशल और लीला चिटनिस मुख्य भूमिकाओं में थे... कुछ महीने पहले धर्मेंद्र ने इसी फिल्म से जुड़ी एक फोटो शेयर करते हुए लिखा था, “मेरी जिंदगी की पहली फिल्म ‘शहीद’… उसकी हीरोइन कामिनी कौशल से पहली मुलाकात.” यही फिल्म उनके भीतर एक सपना जगा गई- फिल्मों का, सितारों का, और एक दिन दिलीप कुमार जैसा बनने का...
एक पोस्ट से हुआ भ्रम- कौन थी धर्मेंद्र की “पहली हीरोइन”?
कामिनी कौशल के निधन पर कई मीडिया रिपोर्ट्स ने लिखा कि वह धर्मेंद्र की पहली ऑन-स्क्रीन हीरोइन थीं, क्योंकि उन्होंने 1965 की ‘शहीद’ में धर्मेंद्र के साथ काम किया था.... पर सच्चाई कुछ और थी... धर्मेंद्र 1948 की ‘शहीद’ की बात कर रहे थे, वह फिल्म जो उन्होंने जीवन में पहली बार देखी थी. कामिनी कौशल वही अभिनेत्री थीं, जिनको देखकर एक 13 वर्षीय लड़के के मन में सिनेमा के लिए प्रेम पैदा हुआ था.
“मैं दिलीप कुमार बनना चाहता हूं” आईने के सामने धर्मेंद्र ने शुरू की एक्टिंग
सिनेमा देखकर वापस लौटे धर्मेंद्र ने रोज़ शाम आईने के सामने खड़े होकर डायलॉग बोलने की प्रैक्टिस शुरू कर दी. उन्होंने कहा था, “आईने में खुद को देखकर कहता था- मैं दिलीप कुमार बनना चाहता हूं.” नौकरी करते समय भी उनकी रातें इन्हीं एक्टिंग प्रैक्टिस में बीतती थीं... एक छोटे गांव का शर्मीला लड़का, सपनों को सच करने में लगा था...
मुझे भी इनके बीच होना चाहिए... दिलीप कुमार को देखकर हुआ फैसला पक्का
इंडिया टीवी को दिए इंटरव्यू में धर्मेंद्र ने कहा था, “जब दिलीप साहब और दूसरे कलाकारों को देखा, तो लगा ये खूबसूरत लोग कहां से आते हैं… मुझे भी इनके बीच होना चाहिए.” ये आत्मविश्वास किसी हीरो का नहीं, बल्कि एक संघर्षरत युवा का था, जिसने खुद को हर परिस्थिति में साबित किया... बीमारी से पहले भी धर्मेंद्र अपनी पोस्टों में अक्सर भावुक कविताएं लिखते थे- “आजकल ग़म-ए-दौरां से दूर, ग़म-ए-दुनिया से दूर… अपने ही नशे में झूमता हूं.”
बैकअप प्लान- “अगर असफल हुआ, तो टैक्सी चला लूंगा”
ही-मैन होना एक बात है, लेकिन ज़मीन से जुड़े रहना दूसरी... धर्मेंद्र के पास एक्टिंग करियर असफल होने पर एक प्लान बी था... उन्होंने अपनी पहली कार—एक फिएट—इस सोच के साथ खरीदी थी कि अगर काम न मिला, तो उसे टैक्सी बनाकर गुज़ारा करेंगे... उनके भाई अजीत ने कहा था- “पाजी, हीरो हो… ओपन कार ले लेते.” पर उनका जवाब था- इंडस्ट्री पर भरोसा नहीं. कल काम मिला नहीं, तो यही फिएट टैक्सी बनेगी.” यह विनम्रता और व्यावहारिक सोच ही धर्मेंद्र को महान बनाती है.
300 से ज्यादा फिल्में… और हर दशक में ब्लॉकबस्टर
1960 की पहली फिल्म ‘दिल भी तेरा हम भी तेरे’ में उन्हें सिर्फ 51 रुपये मिले थे... लेकिन मेहनत और लगन ने उन्हें हिंदी सिनेमा का सबसे बड़ा एक्शन स्टार बना दिया. उनकी यादगार फिल्में, फूल और पत्थर (1966), अनुपमा (1966), आए दिन बहार के (1966), आंखें (1968), मेरे हमदम मेरे दोस्त (1969), शोले (1975), वीरू, चुपके-चुपके (1975), सत्यकाम, लाइफ इन ए मेट्रो और यमला पगला दीवाना... जल्द आने वाली फिल्म ‘इक्कीस’ में भी वे नजर आने वाले थे.
300 से अधिक फिल्मों का सफर… और हर उम्र में अभिनय का वही जुनून... धर्मेंद्र, एक सपना जो पूरा हुआ, और एक युग जो विदा हुआ... एक 13 साल का लड़का, जिसने दिलीप कुमार को देखकर सपना देखा था... वही बच्चा बाद में भारत का ही-मैन बना, और करोड़ों दिलों का हिस्सा भी... उनका सफर प्रेरणा है, उनकी सादगी मिसाल है, और उनका जाना-एक युग का अंत...





