हरियाणा-दिल्ली की तरह Bihar में अकेले चुनाव लड़ेगी कांग्रेस, महागठबंधन में महाभारत का क्या होगा असर?
Mahagathbandhan Seat Sharing: बिहार महागठबंधन में सीट शेयरिंग का मसला चरम पर पहुंच गया है. एक तरफ जहां तेजस्वी यादव बिहार अधिकार यात्रा पर हैं तो दूसरी तरफ कांग्रेस ने हरियाणा और दिल्ली की तरह अकेले चुनाव लड़ने के संकेत दिए है. हालांकि, दोनों में से किसी ने आधिकारिक रूप से कुछ नहीं कहा है. माना जा रह है कि अभी तक इस मुद्दे पर तेजस्वी यादव और राहुल गांधी में कोई बात नहीं हुई है.;
Bihar Mahagathbandhan Politics: लोकसभा चुनाव 2024 में पहले से ज्यादा सांसद चुने जाने के बाद से कांग्रेस लगातार अपनी चुनावी रणनीति में बदलाव कर रही है. हरियाणा और दिल्ली में जिस तरह पार्टी ने अलग राह चुनी, उसी तर्ज पर अब बिहार में भी समीकरण बनते दिखाई देते हैं. हालांकि, बिहार में कांग्रेस की स्थिति अभी अच्छी नहीं है, इसके बावजूद देश की सबसे पुरानी और दूसरी बड़ी पार्टी होने के नाते पार्टी के नेता नई भूमिका तलाशने की कोशिश में है. सवाल यह है कि क्या कांग्रेस गठबंधन की राजनीति से आगे बढ़कर अपने बूते चुनाव लड़ेगी या फिर विपक्षी एकता में बनी रहेगी?
क्या है गठबंधन की मुश्किलें?
बिहार में कांग्रेस 1995 के बाद से कांग्रेस आरजेडी की पिछलग्गू पार्टी है. हालांकि, 2010 का विधानसभा चुनाव दोनों अलग-अलग लड़े थे. जबकि 2015 से अब तक महागठबंधन का हिस्सा है. लोकसभा चुनाव के बाद से आरजेडी और जेडीयू के रिश्तों में तनाव की खबरें आती रही हैं. अब बिहार में सीट बंटवारे से लेकर चुनावी एजेंडे सहित कई मुद्दों पर मतभेद सामने आए हैं. हालांकि, महागठबंधन में टूट को लेकर कांग्रेस के एक नेता ने नाम न बताने की शर्त पर कहा कि गठबंधन टूटने का सवाल नहीं है. हमारी पार्टी 62 से 63 सीटों पर चुनाव लड़ने के लिए तैयार हो जाएगी.
कांग्रेस का नया सियासी दांव
हरियाणा और दिल्ली में कांग्रेस ने गठबंधन की बजाय अपने बूते चुनाव लड़ने का संकेत दिया. इस रणनीति के तहत पार्टी का मकसद संगठन को मजबूत करना और वोट बैंक को सीधे साधना है. बिहार में भी पार्टी अब उसी राह पर है. अगर आरजेडी के साथ सीट बंटवारे पर बात नहीं बनी तो एकला चलो की राह पर आगे बढ़ने का फैसला ले सकती है.
दरअसल, महागठबंधन में कांग्रेस और आरजेडी के अलावा वाम दल और अन्य छोटे दल भी ज्यादा सीटों की मांग कर रहे हैं. ऐसे में आरजेडी के लिए सभी को संतुष्ट करना मुश्किल होगा. हालांकि, यह भी सच है कि दोनों ही दलों के शीर्ष नेतृत्व के बीच अभी तक आमने-सामने बात नहीं हुई है. दोनों पार्टी के नेता बताते हैं कि मतभेद तो है, लेकिन आगे क्या होगा इस बारे में राहुल गांधी और तेजस्वी यादव ही अंतिम फैसला लेंगे.
अगर कांग्रेस ने हरियाणा और दिल्ली में आम आदमी पार्टी का इंडिया गठबंधन में सहयोगी होने के बाद अलग होकर चुनाव लड़ने का फैसला किया. वैसा ही बिहार में हुआ तो महागठबंधन में टूट की आशंका से इनकार नहीं किया जा सकता. माना जा रहा है कि कांग्रेस अपनी राजनीतिक प्रासंगिकता और लोकसभा चुनाव के बाद बढ़ी अपनी स्थिति को भुनाना चाहती है.
आरजेडी का सख्त रुख
दूसरी तरफ आरजेडी सबसे बड़े दल के रूप में अपनी हिस्सेदारी सुनिश्चित करना चाहता है. दोनों के बीच की खींचतान से यह गठबंधन टूट की ओर भी बढ़ सकता है. लेकिन, अभी यह कहना जल्दबाजी होगी. आने वाले दिनों में यह स्पष्ट होगा कि क्या दोनों दल आपसी सहमति से कोई समाधान निकाल पाएंगे या यह आंतरिक कलह महागठबंधन में टूट का सबब बनेगा.
इस बीच तेजस्वी यादव ने मुजफ्फरपुर की एक रैली में सभी 243 सीटों पर चुनाव लड़ने का बयान देकर कांग्रेस की मांग पर पलटवार किया. यह बयान एक तरह की दबाव की रणनीति भी हो सकती है, लेकिन इसके जरिए तेजस्वी ने कांग्रेस को साफ संकेत दे दिया है कि आरजेडी गठबंधन में सबसे बड़े हिस्सेदार के रूप में अपनी स्थिति को कमजोर नहीं होने देगा.
ज्यादा सीट क्यों नहीं देना चाहती RJD
आरजेडी सूत्रों का कहना है कि 2020 में कांग्रेस के खराब स्ट्राइक रेट के कारण ही महागठबंधन सत्ता में आने से चूक गया था. आरजेडी के सख्त होने की एक वजह यह भी है कि कांग्रेस ने अब तक तेजस्वी यादव को मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार के रूप में खुल कर समर्थन नहीं दिया है. कांग्रेस की यह चुप्पी भी आरजेडी और तेजस्वी के लिए असहज स्थिति पैदा कर रही है. फिर, तेजस्वी यादव ने अपनी बिहार अधिकार यात्रा में महागठबंधन के सहयोगी दलों को शामिल नहीं किया है. हालांकि, राहुल गांधी की वोटर अधिकार यात्रा में महागठबंधन के सभी दल साथ थे.
क्या होगा गठबंधन पर असर?
कांग्रेस बिहार में हरियाणा और दिल्ली की तरह गठबंधन से अलग राह अपनाती है तो विपक्षी एकता पर बड़ा असर पड़ेगा. आरजेडी को नुकसान हो सकता है. जबकि बीजेपी को अप्रत्यक्ष फायदा मिल सकता है. वहीं, कांग्रेस के लिए यह जोखिम भरा दांव होगा क्योंकि पार्टी का राज्य में जनाधार बहुत कम है. बता दें कि साल 2020 विधानसभा चुनाव में आरजेडी 144 तो कांग्रेस 70 सीटों पर चुनाव लड़ी थी. आरजेडी 75 सीटें जीतने में कामयाब हुई थी तो कांग्रेस को 19 सीटों से ही संतोष करना पड़ा था.
एक साथ लड़ेंगे चुनाव, बिहार में सत्ता विरोधी लहर - मस्कूर उस्मानी
बिहार कांग्रेस के नेता डॉ. मस्कूर अहमद उस्मानी ने गठबंधन में मतभेद को लेकर कहा कि ऐसी कोई बात नहीं है. गठबंधन किसी हाल में नहीं टूटेगा. सीटों को लेकर बातचीत जारी है. महागठबंधन में शामिल सभी सियासी दल एक साथ मिलकर एनडीए के खिलाफ चुनाव लड़ेंगे. उन्होंने कहा कि इस बार बिहार में सत्ता विरोधी लहर है. महागठबंधन की जीत होगी. इस बार एनडीए वाले सत्ता से बाहर होंगे.