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तारीक रहमान का बांग्‍लादेश की सियासत में क्‍या रहेगा असर? वतन वापसी पर पहली ही स्‍पीच में खींच दी लाइन

बीएनपी (BNP) नेता तारिक रहमान की बांग्लादेश में एक दिन पहले वापसी ने वहां की राजनीति को नए मोड़ पर ला खड़ा किया है. उनके आने से बांग्लादेश में चुनावी माहौल प्रतिस्पर्धी होने के संकेत मिले है. क्या बांग्लादेश की राजनीति में उनका उभार सत्ता-विपक्ष के टकराव को और तेज करेगा या फिर लंबे राजनीतिक संकट के बाद देश को स्थिर सरकार का रास्ता दिखाएगा?

तारीक रहमान का बांग्‍लादेश की सियासत में क्‍या रहेगा असर? वतन वापसी पर पहली ही स्‍पीच में खींच दी लाइन
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( Image Source:  @tariquebd78 )

17 साल के बाद लंदन से बांग्लादेश की राजनीति में BNP के कार्यवाहक चेयरमैन तारिक रहमान की गुरुवार को वतन वापसी ने सत्ता संतुलन को हिला दिया है. एक और उनके समर्थक इसे लोकतंत्र की बहाली का संकेत बता रहे हैं, तो दूसरी ओर शेख हसीना सरकार इसे राजनीतिक अस्थिरता की नई पटकथा मान रही है. जबकि जमात ए इस्लामी के सामने बड़ी चुनौती खड़ी कर दी है. अब जमात का सत्ता में आना मुश्किल भरा हो गया है. इस बीच असल सवाल यह है कि क्या तारिक रहमान की मौजूदगी सत्ता-विपक्ष के टकराव को बढ़ाएगी या फिर बांग्लादेश को एक स्थिर और प्रतिस्पर्धी राजनीतिक व्यवस्था की ओर ले जाएगी?

पूर्व प्रधानमंत्री खालिदा ज़िया के बेटे और राजनीतिक वारिस और बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी (BNP) के कार्यवाहक अध्यक्ष तारिक रहमान की वापसी ऐसे समय में हुई है, जब उनका देश एक चौराहे पर खड़ा है. बांग्लादेश के लोगों को उम्मीद है कि वो देश को नई दिशा देने के साथ संकट से उबारने में कामयाब होंगे. तारिक रहमान की पार्टी फरवरी 2026 में प्रस्तावित चुनाव में सबसे आगे है. खुद रहमान ने इस बार सत्ता में वापसी करने पर नई लाइन खींचने के संकेत दिए हैं.

दरअसल, मई में तारिक रहमान ने चुनावों और सुधारों की आवश्यकता पर जोर देते हुए, यूनुस के दीर्घकालिक विदेश नीति निर्णय लेने के जनादेश पर सवाल उठाया था. ऐसे बांग्लादेश के लोगों के सामने अहम सवाल यह है कि तरिक रहमान पार्टी की ओर से खुद प्राथमिकता तय करते हैं.

यही वजह है कि तारीक रहमान (Tarique Rahman) की वापसी या सक्रियता बांग्लादेश की राजनीति में बड़ा टर्निंग प्वाइंट माना जा रहा है. उनका असर सिर्फ BNP तक सीमित नहीं रहेगा, बल्कि सत्ता संतुलन, सेना–सियासत रिश्तों और भारत–बांग्लादेश समीकरण तक दिखेगा. समझें तारिक रहमान के वापसी का भविष्य में क्या होगा असर?

1. बांग्लादेश फर्स्ट की पॉलिसी

तारिक रहमान ने यह स्पष्ट कर दिया कि बांग्लादेश रावलपिंडी या दिल्ली के साथ घनिष्ठ संबंध नहीं चाहिए बल्कि बांग्लादेश को पहले रखेगा. ढाका के नया पलटन इलाके में एक विशाल रैली में उन्होंने घोषणा की, "न दिल्ली, न पिंडी, सबसे पहले बांग्लादेश," और समर्थकों से इस नारे को दोहराने की अपील की थी.

यह उस विदेश नीति से बहुत अलग है जो मुहम्मद यूनुस ने बिना किसी निर्वाचित जनादेश के बांग्लादेश के लिए बनाई है. यूनुस ने अपदस्थ प्रधानमंत्री शेख हसीना द्वारा अपनाई गई विदेश नीति की दिशा के मामले में बिल्कुल विपरीत रास्ता अपनाया है. यूनुस ने भारत और बांग्लादेश के ऐतिहासिक रिश्तों की कीमत पर पाकिस्तान के साथ करीबी संबंधों की वकालत की है.

हसीना ने भारत के साथ घनिष्ठ संबंध बनाए और चीन और भारत के मामले में बांग्लादेश के हितों को संतुलित किया. साथ ही पाकिस्तान से सुरक्षित दूरी बनाए रखी.

तारिक रहमान की बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी शेख हसीना के नेतृत्व वाली सरकार की बहुत आलोचना करती रही है, क्योंकि उसे उसके शासन में फासीवाद और लोकतंत्र में गिरावट का सामना करना पड़ा है. कई मुद्दों पर यूनुस के नेतृत्व वाली अंतरिम सरकार के साथ भी उसके मतभेद रहे हैं.

असल में, बांग्लादेश पर नजर रखने वालों का मानना है कि मोहम्मद यूनुस को BNP के दबाव में फरवरी में चुनाव घोषित करने पड़े, जिसने चुनाव कराने को लेकर यूनुस सरकार से टकराव मोल लिया था. BNP और जमात-ए-इस्लामी बांग्लादेश पहले भी गठबंधन में रह चुके हैं, लेकिन बांग्लादेश के हिंसक राजनीतिक इतिहास के असर के बारे में तारिक रहमान से बेहतर कोई नहीं जानता. मुहम्मद यूनुस द्वारा शेख हसीना की पार्टी, बांग्लादेश अवामी लीग को चुनाव में हिस्सा लेने से बैन किए जाने के बाद तारिक रहमान की BNP बांग्लादेश की राजनीति के केंद्र में है.

2. BNP में जान फूंकने वाला फैक्टर

खालिदा जिया की बीमारी और सीमित सक्रियता के बाद BNP में नेतृत्व का शून्य था. तारिक रहमान की रणनीतिक वापसी से पार्टी कैडर में जोश पैदा होगा. पार्टी के चुनावी प्रचार को नई दिशा मिलेगी. चुनावी मोड में संगठन की तैयारी

तेज होगी. BNP अब सिर्फ विरोध नहीं, सत्ता का प्रबल दावेदार बनना चाहती है.

3. अवामी लीग के लिए खतरे की घंटी!

शेख हसीना की अवामी लीग लंबे समय से सत्ता में है, लेकिन महंगाई, बेरोजगारी, मानवाधिकार आरोप, चुनावी निष्पक्षता पर सवाल, जैसे मुद्दों से एंटी-इनकम्बेंसी बढ़ी है. तारिक रहमान पार्टी के पक्ष में इस असंतोष को राजनीतिक लहर में बदल सकते हैं.

4. सेना और सत्ता का समीकरण

बांग्लादेश की राजनीति में सेना की भूमिका हमेशा निर्णायक रही है. तारिक रहमान को सेना के एक धड़े का समर्थन मिल सकता है. नौकरशाही के पुराने नेटवर्क की मौन सहानुभूति मिलने की भी उम्मीद है. अगर ऐसा हुआ, तो

सत्ता परिवर्तन की राह और आसान हो सकती है.

5. चुनावी राजनीति में क्या बदलेगा?

विपक्षी गठबंधन मजबूत होगा. चुनाव बहिष्कार की बजाय टकराव की रणनीति को बढ़ावा मिलेगा. अंतरराष्ट्रीय दबाव बढ़ेगा कि चुनाव निष्पक्ष हों. तारिक रहमान का असर चुनाव को एकतरफा नहीं रहने देगा.

6. गेम चेंजर या जोखिम?

तारिक रहमान BNP के लिए गेम चेंजर साबित हो सकते हैं. वह अवामी लीग के लिए सबसे बड़ा चैलेंज बन गए हैं. भारत के लिए रणनीतिक रूप से रहमान की वापसी जोखिम भरा हो सकता है. बांग्लादेश के लिए राजनीतिक अस्थिरता बनाम सत्ता परिवर्तन का प्रतीक साबित हो सकता है. चुनाव परिणाम से यह तय होगा कि बांग्लादेश स्थिर लोकतंत्र की ओर जाएगा या फिर 1970–90 के दशक की अस्थिर राजनीति की ओर लौटेगा.

7. BNP सत्ता में आई तो भारत पर क्या होगा असर?

बांग्लादेश की राजनीति पर पकड़ रखने वाली किताब 'पॉलिटिकल पार्टीज की लेखिका रौनक जहां ने लिखा है कि BNP ने पारंपरिक रूप से भारत विरोधी रुख अपनाया है. जबकि अवामी लीग ने नरम रुख बनाए रखा है. अवामी लीग की विचारधारा धर्मनिरपेक्षता और समाजवाद की ओर झुकी हुई है. जबकि BNP बांग्लादेशी राष्ट्रवाद और इस्लामी पहचान पर ज़ोर देती है.

1991 में पहली बार प्रधानमंत्री चुनाव लड़ते समय खालिदा ज़िया ने दावा किया था कि अगर अवामी लीग जीतती है, तो भारत फेनी तक बांग्लादेशी शहरों पर कब्जा कर लेगा. उन्होंने भारत-बांग्लादेश मैत्री संधि को 'गुलामी की संधि' बताया था.

यहां पर इस बात का भी उन्होंने जिक्र किया है कि BNP ऐतिहासिक रूप से बांग्लादेश में भारत विरोधी चरमपंथी समूहों के करीब रही है. 1991 में इसने जमात-ए-इस्लामी के समर्थन से सरकार बनाई थी.

BNP शासन के दौरान भारत की सबसे बड़ी चिंता पूर्वोत्तर में अलगाववादी हिंसा थी, जिसमें कथित तौर पर बांग्लादेशी क्षेत्र का इस्तेमाल विद्रोही समूहों का समर्थन करने के लिए किया जा रहा था. इस दौरान पाकिस्तान की ISI ने भी बांग्लादेश के रास्ते भारत के पूर्वोत्तर को अस्थिर करने की कोशिश की थी.

अगर BNP सत्ता में लौटती है, तो भारत को सीमा सुरक्षा, बांग्लादेश में हिंदू अल्पसंख्यकों की सुरक्षा और शेख हसीना के कार्यकाल के दौरान बने राजनीतिक भरोसे से संबंधित चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है.

8. भारत सतर्कता से उठा रहा हर कदम

भारत ने सतर्क रुख अपनाया है. 1 दिसंबर को, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने खालिदा जिया के स्वास्थ्य के बारे में ट्वीट किया. जवाब में, तारिक रहमान ने कहा कि वैश्विक नेताओं का समर्थन ताकत का एक बड़ा स्रोत है. 8 दिसंबर को, BNP के वरिष्ठ नेता इश्तियाक अजीज उल्फत ने कहा कि भारत ने सही कदम उठाया है और मोदी के संदेश को एक बहुत ही सकारात्मक कदम बताया.

तारीक रहमान के नेतृत्व में शांतिपूर्ण चुनावों के माध्यम से एक स्थिर BNP सरकार बनती है, तो यह आखिरकार भारत के लिए अच्छा होगा. संबंध तुरंत बेहतर नहीं हो सकते हैं, लेकिन बांग्लादेश में स्थिरता तारीक को भारत के साथ संबंध सुधारने के लिए मजबूर करेगी. बांग्लादेश अनिश्चित काल तक चीन और पाकिस्तान पर निर्भर नहीं रह सकता है.

9. रहमान की चुनौतियां

तारीक रहमान के सामने देश को एकजुट करने का काम है. अगर उनकी पार्टी चुनाव जीतती है और वह प्रधानमंत्री बनते हैं. रहमान ने पहले ही एक कैंपेन की रूपरेखा तैयार कर ली है. कई कार्यक्रमों की घोषणा की है, जिन्हें BNP चुने जाने के बाद लागू करेगी.

रहमान ने खुद को और अपनी पार्टी को लोकतंत्र और चुनी हुई सरकार की वापसी के चैंपियन के तौर पर पेश किया है. इस महीने की शुरुआत में BNP की एक सभा को संबोधित करते हुए, रहमान ने कहा, "सिर्फ़ लोकतंत्र ही हमें इससे बचा सकता है और आप, बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी के हर एक सदस्य, उस लोकतंत्र की नींव को मजबूत कर सकते हैं.

10. कट्टरपंथ और अतीत की छाया

भारत और बांग्लादेश के बीच यह सबसे बड़ा विवाद का विषय है. तारिक रहमान पर भ्रष्टाचार और 2004 ग्रेनेड हमले के आरोपी हैं. चरमपंथी संगठनों से नरमी जैसे आरोप रहे हैं. भारत और पश्चिमी देशों को डर है कि BNP सत्ता में आई तो इस्लामिक कट्टरपंथ और पाकिस्तान समर्थक धड़ा फिर मजबूत हो सकता है.

11. भारत-बांग्लादेश के रिश्ते

शेख हसीना भारत की सबसे भरोसेमंद साझेदार रही हैं. BNP शासन के दौरान भारत विरोधी बयान आते रहते थे. आतंकी नेटवर्क को बढ़ावा मिला था. सीमा सुरक्षा में तनाव देखने को मिला था. तारिक रहमान की मजबूती नई दिल्ली के लिए रणनीतिक चिंता का विषय हो सकता है. लेकिन, बांग्लादेश वापसी के बाद तारिक रहमान एक जनसभा को संबोधित किया, जो उनके पहले के रुख से थोड़ा अलग. जानें कैसे?

  • बीएनपी नेता तारिक रहमान ने 25 दिसंबर को लंदन से बांग्लादेश वापसी करने के बाद एक जनसभा में कहा था कि बांग्लादेश में लोकतांत्रिक संस्थाएं कमजोर हो चुकी हैं और उनकी सबसे बड़ी लड़ाई लोकतंत्र को वापस लाने की है.
  • उन्होंने साफ कहा कि “जब तक निष्पक्ष, स्वतंत्र और स्वीकार्य चुनाव नहीं होंगे, राजनीतिक संकट खत्म नहीं होगा.” इससे संकेत मिला कि BNP अब चुनावी टकराव के लिए तैयार है.
  • तारिक रहमान ने आरोप लगाया कि प्रशासन, पुलिस, न्यायपालिका, को सत्ता के हित में इस्तेमाल किया जा रहा है. उन्होंने कहा कि सत्ता में आने पर राजनीतिक मुकदमे वापस लिए जाएंगे. विपक्षी नेताओं को डराने की नीति खत्म होगी.
  • महंगाई, डॉलर संकट और बेरोजगारी पर हमला करते हुए कहा कि आम जनता की थाली से रोटी गायब हो रही है, सत्ता में बैठे लोग आंकड़ों में खुश हैं. उन्होंने ये भी कहा था कि बांग्लादेश की स्थिरता के लिए सेना को संवैधानिक दायरे में रहना होगा. यह बयान सेना और सत्ता दोनों के लिए संदेश माना जा रहा है.
  • तारिक रहमान ने कहा कि धर्म का इस्तेमाल राजनीति के हथियार के तौर पर नहीं होना चाहिए. यह बयान भारत और पश्चिमी देशों के लिए डैमेज कंट्रोल की कोशिश माना जा रहा है. उन्होंने कहा कि BNP लोकतंत्र, मानवाधिकार, अंतरराष्ट्रीय नियमों का सम्मान करेगी और दुनिया से टकराव को बढ़ावा नहीं देगी.
  • भारत का नाम सीधे न लेते हुए कहा कि पड़ोसियों के साथ सम्मानजनक और बराबरी के रिश्ते होंगे. यह संकेत है कि BNP खुला टकराव नहीं चाहती.
  • कुल मिलाकर तारिक रहमान का यह भाषण सिर्फ वापसी का एलान नहीं, बल्कि चुनावी संघर्ष, सत्ता परिवर्तन और अंतरराष्ट्रीय भरोसा हासिल करने की राजनीतिक पटकथा है. उन्होंने अपने पहले के रुख से अलग हटने और बांग्लादेश को आगे बढ़ाने की बात की है. इससे साफ है कि बांग्लादेश की राजनीति शेख हसीना बनाम तारिक रहमान की सीधी लड़ाई की ओर बढ़ रही है.
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