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लखनऊ में BLO की संदिग्ध मौत, नोएडा में इस्तीफा... आखिर जिम्मेदार कौन? ग्राउंड रिपोर्ट ने हिलाया सिस्टम- सुनिए बीएलओ ने क्या कहा

देश के 12 राज्यों में मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण (SIR) का काम तेज़ी से चल रहा है, लेकिन इसी बीच उत्तर प्रदेश से लगातार आ रही घटनाएं इस पूरी प्रक्रिया पर सवाल खड़े कर रही हैं. लखनऊ में एक BLO की संदिग्ध हालत में मौत और नोएडा में अत्यधिक दबाव के चलते एक स्कूल टीचर का नौकरी छोड़ देना, ये दोनों घटनाएं बता रही हैं कि जमीनी स्तर पर BLOs किस हद तक तनाव और बोझ झेल रहे हैं... SIR यानी Special Intensive Revision, जो कि हर वोटर के घर जाकर वेरिफिकेशन, फॉर्म चेकिंग, दस्तावेज़ अपलोड और अपडेट जैसे कई चरणों से गुजरता है, इस जिम्मेदारी का सबसे बड़ा भार BLOs पर ही आता है... लेकिन एक BLO पर आखिर कितना काम होता है? एक दिन में वह औसतन कितने घंटे फील्ड में रहता है? क्या सिस्टम में कुछ गंभीर खामियाँ हैं? और आखिर क्यों हाल के दिनों में BLOs की मौत और मानसिक तनाव बढ़ते जा रहे हैं? इन्हीं सवालों को लेकर State Mirror Hindi ने एक BLO से बात की, लेकिन लगातार डर और दबाव के माहौल को देखते हुए उन्होंने अपना नाम और पहचान उजागर न करने की शर्त रखी, जिसके बाद हमने उनकी पहचान पूरी तरह गुप्त रखी... देखिए यह रिपोर्ट...

लखनऊ में BLO की संदिग्ध मौत, नोएडा में इस्तीफा... आखिर जिम्मेदार कौन? ग्राउंड रिपोर्ट ने हिलाया सिस्टम- सुनिए बीएलओ ने क्या कहा
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देश के 12 राज्यों में मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण (Special Intensive Revision – SIR) का काम तेज़ी से चल रहा है, लेकिन उत्तर प्रदेश से सामने आ रही घटनाएँ इस पूरी प्रक्रिया की विश्वसनीयता और मानवीय संवेदनशीलता पर बड़े सवाल खड़े कर रही हैं. लखनऊ में एक BLO की संदिग्ध मौत और नोएडा में एक महिला शिक्षक का मानसिक दबाव में इस्तीफा बताता है कि जिस कर्मचारी पर चुनाव प्रणाली की रीढ़ होने का दायित्व है, वही आज सबसे अधिक तनाव, जोखिम और असुरक्षा में काम कर रहा है.

State Mirror Hindi ने एक BLO से खास बातचीत की. हालांकि, नाम और पहचान उजागर न करने की शर्त पर उन्होंने अपना अनुभव साझा किया. BLO के अनुसार, उन पर काम का बोझ किसी एक दिशा से नहीं आता, बल्कि एक साथ कई मोर्चों पर दबाव होता है:

1- रोज़ाना 10–12 घंटे तक का कार्यभार

  • सुबह से शाम तक घर-घर जाकर मतदाता सूची का सत्यापन,
  • नए वोटर्स के फॉर्म 6 लेना,
  • मृत मतदाताओं के सत्यापन की रिपोर्ट देना,
  • पता बदले वाले वोटर्स के रिकॉर्ड अपडेट करना,
  • दिव्यांग या 80+ मतदाताओं के लिए विशेष फॉर्म भरना.
  • इनमें से हर काम की डिजिटल एंट्री तुरंत करनी होती है, जिसके लिए BLO को अपनी ड्यूटी खत्म होने के बाद भी देर रात तक काम करना पड़ता है.

2- ऑनलाइन पोर्टल पर तुरंत अपडेट का दबाव

SIR अभियान में सबसे बड़ी चुनौती है कि हर घर से जुटाए गए डेटा को तत्काल मोबाइल ऐप या पोर्टल पर अपलोड करना पड़ता है. BLO के शब्दों में, “हम लोग मैदानी क्षेत्र में 6–7 घंटे घूमते हैं, और फिर रात को मोबाइल पर डेटा भरते-भरते 11 बज जाते हैं. गलती हो जाए तो वरिष्ठ अधिकारी फटकार देते हैं.”

3- घर-घर जाकर मिलने वाली मुश्किलें

  • कई बार लोग दरवाज़ा नहीं खोलते
  • असहयोग करते हैं
  • गलत जानकारी देते हैं
  • महिला BLO को सुरक्षा संबंधी जोखिम बढ़ जाते हैं
  • बड़े अपार्टमेंट और गेटेड सोसाइटी में प्रवेश मुश्किल होता है
  • लोग समय नहीं देते और अपमानजनक भाषा का इस्तेमाल भी करते हैं

बातचीत में BLO ने बताया, “हम गांव-शहर सब जगह जाते हैं. न कोई सुरक्षा, न कोई परिवहन सुविधा. कई बार लोग कहते हैं, ‘हमें समय नहीं है, कल आना.’ ऐसे में एक ही घर के लिए 3–4 बार जाना पड़ता है.”

4- बढ़ते दबाव और डर का माहौल

BLO का कहना है कि अधिकारियों की ओर से लगातार फोन आते रहते हैं;

  • यह अपलोड किया?
  • यह फॉर्म कितने हुए?
  • आज का टारगेट पूरा क्यों नहीं?

BLO के अनुसार, “हमसे कहा जाता है-अगर डेटा गलत गया तो कार्रवाई होगी. ऐसे में मानसिक दबाव बहुत बढ़ जाता है.”

'आत्महत्या सॉल्यूशन नहीं'

बीएलओ ने बताया कि आत्महत्या सॉल्यूशन नहीं है. उन्होंने बताया कि फील्ड में कोई नहीं दिख रहा- न लेखपाल, न आंगनबाड़ी कार्यकर्ता और न ही कोई और... बीएलओ की स्थिति यह है कि करो या मरो... बीएलओ ने बताया कि समस्याएं तो हैं, लेकिन उनका निदान वे लोग खुद ढूंढ़ ले रहे हैं.

BLO मौतें: सिस्टम की भयावह तस्वीर

लखनऊ में एक BLO की संदिग्ध मौत और नोएडा में एक BLO का इस्तीफा यह दिखाता है कि दबाव इतना बढ़ गया है कि लोग टूट रहे हैं. हाल के दिनों में दो BLO की मौतें रिपोर्ट हो चुकी हैं, जबकि एक अन्य को स्ट्रोक आया. परिवारों का आरोप है, "लगातार तनाव, लंबे घंटे और बिना रुके काम ने जान ले ली."

ECI और राज्य सरकारों के बीच खिंचाव

SIR अभियान के बीच ही अधिकारी BLOs को “सिस्टम की रीढ़” कहते हैं, फिर भी स्थिति यह है कि BLO खुद असुरक्षित, असहाय और दबाव में हैं. ममता बनर्जी जैसी राज्य सरकारें SIR के तरीके पर सवाल उठा रही हैं. BLO संघ भी काम के नए पैटर्न को 'अमानवीय' बता रहा है.

सबसे बड़ा सवाल: सिस्टम BLO को कब इंसान समझेगा?

मतदाता सूची लोकतंत्र की नींव है, और BLO उसका सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा, लेकिन वे पूछ रहे हैं, क्या हमारी जान की कीमत कोई समझेगा? क्या हमें समय, सुरक्षा और सम्मान मिलेगा? क्या रात-दिन बिना रुके काम करने वाले BLO को कोई इंसानी दृष्टि से देखेगा? यहां सबसे बड़ा प्रश्न बार-बार उभरता है, अगर लोकतंत्र की रीढ़ ही टूटने लगे, तो चुनाव प्रक्रिया कितनी सुरक्षित रह जाएगी?

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