बेटा बना मंत्री तो कुशवाहा की पार्टी में दिखने लगी फूट! कोर टीम के नेता बाहर, लगाए निजी हित के लिए काम करने के आरोप
उपेंद्र कुशवाहा द्वारा बेटे दीपक प्रकाश को मंत्री बनाने के बाद से राष्ट्रीय लोक मोर्चा में बड़े पैमाने पर असंतोष की खबरें सामने आ रही हैं. उपेंद्र कुशवाहा के करीबी नेता पार्टी छोड़ने लगे हैं. इतना ही नहीं, दो नेताओं ने तो निजी हितों के लिए काम करने का आरोप लगाया है. जानें राष्ट्रीय लोक मोर्चा में भगदड़ क्यों हैं.
बिहार में राष्ट्रीय लोक मोर्चा (RLM) के भीतर इन दिनों सियासी भूचाल आया हुआ है. पार्टी प्रमुख उपेंद्र कुशवाहा के सबसे भरोसेमंद और करीबी माने जाने वाले नेता एक-एक कर संगठन से किनारा करने लगे हैं. राष्ट्रीय लोक मोर्चा के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष रहे जितेंद्र नाथ प्रदेश प्रवक्ता सह प्रदेश महासचिव राहुल कुमार ने पार्टी की सदस्यता तक से इस्तीफा दे दिया. दोनों नेताओं ने इस्तीफा देने वाले कुशवाहा पर एकतरफा निर्णय, संगठन की अनदेखी और निजी एजेंडे पर काम करने का आरोप लगाए हैं. इस उथल-पुथल के बीच बड़ा सवाल यह है कि क्या RLM में बड़ा टूट होने वाला है और आगे उपेंद्र कुशवाहा की रणनीति क्या होगी? क्या वो पार्टी को बचा पाएंगे? यह सवाल इसलिए वाजिब है कि पार्टी के चार में तीन विधायक नाराज हैं और एक विधायक तो उनकी पत्नी ही हैं.
कोइरी समाज के नाम पर सबको दिया धोखा - जितेंद्र नाथ
राष्ट्रीय लोक मोर्चा के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष रहे जितेंद्र नाथ का कहना है कि मैं, उपेंद्र कुशवाहा का सबसे ज्यादा भरोसेमंद शख्स था. आरएलएम में कुशवाहा के बाद सेकंड मैन था. वह चुनाव के समय से ही उपेक्षा करने लगे थे. टिकट बंटवारे को लेकर भी किसी से कोई बात तक नहीं की. ऐसा पार्टी के अधिकांश जमीनी कार्यकर्ताओं के साथ हुआ. जिन लोगों को उपेंद्र कुशवाहा से कुछ कर गुजरने की अपेक्षा थी, वो धूमिल हो गई. यह धोखा देने जैसा है.
उपेंद्र पार्टी के नेताओं को कहते रहे कि नीतीश बाबू के वैचारिक आधार को लेकर आगे बढ़ेंगे. उसी धारा को आगे बढ़ाएंगे. अब पार्टी में वैसा कुछ नहीं दिख रहा. तब उन्हें लगा कि मेरे जैसा आदमी हां में हां नहीं मिलाएंगे. इसलिए उन्होंने उम्मीदवारों के चयन के समय ही खुद को सबसे किनारा कर लिया था. उनका बेटा दीपक कुशवाहा जो विधानसभा का सदस्य भी नहीं है, उसे मंत्री बना दिया. इससे अच्छा स्नेहलता को मंत्री बना देते. विधायक छोड़कर चले जाते हैं, लेकिन क्या उनको अपनी पत्नी पर भी भरोसा नहीं रहा.
उपेंद्र कुशवाहा को इसके पीछे दिया गया तर्क हास्यास्पद है. वह खुद सांसद हैं. पत्नी को विधायक बना दिया और बेटा को मंत्री. आने वाले दिनों में वह एमएलसी हो जाएगा. लगता है खुद का सियासी अस्तित्व समाप्त होने से पहले अपना परिवार सेट कर लिया. पार्टी के हजारों कार्यकर्ताओं को भगवान भरोसे छोड़ दिया. वह सभी से कहते हैं कि नीतीश कुमार का कहना है कि जब अपने के लिए कुछ करेंगे तो सभी मक्खी की तरह भिनभिनाने लगते हैं. क्या पार्टी के नेता और कार्यकर्ता मक्खी है? ऐसे में जब पार्टी में सम्मान ही नहीं मिलेगा, तो वहां रहने से क्या फायदा?
उपेंद्र कुशवाहा की सैद्धांतिक आधार पर बड़ी बात करते रहे लेकिन जमीन पर वैसा कुछ नहीं किया. नीतीश का स्टैंड समन्वयवादी है. जबकि वो अपनी जाति और पैसा के पीछे भागते रहे. जबकि बिहार के अंदर मध्य मार्ग ही चलेगा. अतिवाद नहीं चलेगा.
'मक्खी' समझ लिया था - राहुल कुमार
आरएलएम के प्रदेश प्रवक्ता सह प्रदेश महासचिव राहुल कुमार ने कहा कि उपेंद्र कुशवाहा पहले वाले न हीं रहे. वह अब परिवार तक सीमित हो गए हैं. वो सोचने लगे हैं कि घर बैठने से पहले परिवार को सेट कर लिया जाए. यही वजह है कि पार्टी के नेता उनसे नाराज चल रहे हैं. उनका बेटा कुछ नहीं जानता है. उसे अचानक मंत्री बना दिया. कहा पढ़ा-लिखा है. तो क्या पार्टी में और सभी लोग मूर्ख हैं. ऐसा ही रहा तो पार्टी नहीं चलेगी.
बेटे को मंत्री बनाने के पीछे उन्होंने तर्क दिया इससे पहले जो लोग विधायक बने वो पार्टी छोड़कर चले गए. इसका मतलब ये तो नहीं हो सकता न कि आप नए विधायकों पर ही भरोसा न करें. जब आप विधायकों पर भी भरोसा नहीं करेंगे तो पार्टी कैसे चलाएंगे. वह जिस कार्यकर्ता से दिन रात काम लेते हैं, उसे टिकट नहीं देते हैं. टिकट देने के बदले पैसा लेते हैं. यही वजह है कि चुनाव जीतने वाले विधायक उन्हें छोड़कर चले जाते हैं. वह कहते हैं एक हाथ से मक्खी हटाओ एक हाथ से खाओ. यानी वो राजनीति माल खाने के लिए कर रहे हैं. बहुत जल्द पार्टी का अस्तित्व समाप्त होने वाला है.
राहुल कुमार यह पूछे जाने पर कि आगे क्या करेंगे? उन्होंने कहा कि एक महीने तक कार्यकर्ताओं के साथ बैठक करूंगा. उसके बाद किसी राष्ट्रीय दल से जुड़ने की कोशिश करूंगा. कुल मिलाकर बाहर हुए नेताओं ने सीधे तौर पर उपेंद्र कुशवाहा पर आरोप लगाया कि वे संगठन को विस्तार देने की बजाय सत्ता समीकरण और व्यक्तिगत महत्वाकांक्षा पर अधिक ध्यान दे रहे हैं.
RLM के वोट बैंक पर असर?
पार्टी के असंतुष्ट नेताओं का कहना है कि RLM का मुख्य आधार कुशवाहा (कोइरी) समुदाय रहा है, लेकिन पिछले कुछ वर्षों में समुदाय का बड़ा हिस्सा अन्य दलों के साथ खड़ा दिखा है. अब जब कोर टीम ही टूटने लगी है, यह संकेत नजर आ रहा है कि पार्टी का संगठनात्मक ढांचा कमजोर हो रहा है. यह स्थिति आगामी किसी भी चुनाव में यह RLM की स्थिति को और कठिन बना सकता है.
उपेंद्र कुशवाहा - सब कुछ नियंत्रण में
उपेंद्र कुशवाहा ने आरोपों को नकारते हुए कहा कि पार्टी में सब कुछ सामान्य है. उन्होंने कहा, “छोड़कर जाने वाले लोग बीजेपी-जेडीयू के दबाव में हैं. RLM के अंदर कोई संकट नहीं है.” हालांकि, राजनीतिक विश्लेषक इसे सामान्य नहीं मान रहे. उनका कहना है कि
RLM अब सीमित राजनीतिक प्रभाव में सिमटता जा रहा है, अब नेतृत्व पर सवाल और सहयोगियों का बाहर होना पार्टी की छवि को और नुकसान पहुंचा सकता है.
क्या RLM टिक पाएगा?
राजनीतिक रूप से देखा जाए तो RLM की चुनौती अब सिर्फ विपक्षी दल नहीं हैं, बल्कि अंदरूनी बिखराव भी है. पार्टी के नेताओं का कहना है कि यदि आने वाले महीनों में पार्टी नेतृत्व विश्वास बहाली में सफल नहीं हुआ तो RLM में और टूट संभव है. टूट नहीं भी हुई तो भी उसका असर लगभग समाप्त हो जाएगा.
बता दें कि दीपक प्रकाश ने चुनाव नहीं लड़ा था और न ही विधान परिषद के सदस्य हैं. उपेंद्र कुशवाहा ने अपने जीते हुए प्रत्याशियों की जगह बेटे पर भरोसा जताया और RLM कोटे से दीपक प्रकाश को मंत्री बना दिया. दीपक प्रकाश के मंत्री बनने पर उपेंद्र कुशवाहा पर विपक्ष की तरफ से सवाल उठने शुरू हो गए. वहीं परिवारवाद को लेकर भी सवाल खड़े किए गए. अब चर्चा है कि एमएलसी चुनाव में उन्हें विधान परिषद का सदस्य बनाकर सदन भेजा जाएगा.





