क्या महाराष्ट्र सरकार में सब कुछ ठीक चल रहा? शिंदे और फडणवीस के बयान से गरमाई राजनीति, किसने की शाह से शिकायत
महाराष्ट्र में एकनाथ शिंदे और देवेंद्र फडणवीस के हालिया बयानों ने सियासी कयास बढ़ा दिए हैं. यह बयान उस समय आया है जब महाराष्ट्र में स्थानीय निकाय चुनाव की प्रक्रिया जारी है. खास बात यह है कि सियासी माहौल महायुति के अनुकूल है, लेकिन विरोधाभासी बयानों से यह सवाल उठ खड़ा हुआ है. क्या सरकार पूरी तरह तालमेल में है? जानें महायुति की राजनीति में क्या हो रहा है?
महाराष्ट्र की राजनीति एक बार फिर चर्चा में है. मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस और उपमुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे के बयान ऐसे समय में सामने आया है, जब राजनीतिक परिदृश्य पहले से ही नाजुक मोड़ पर है. महायुति के दोनों प्रमुख नेताओं के सुर थोड़े अलग दिखाई दिए, जिसके बाद यह सवाल उठने लगे हैं कि क्या राज्य सरकार में सब कुछ सामान्य है या भीतर कहीं खटास बढ़ रही है?
इस बीच महायुति सरकार में महाराष्ट्र के डिप्टी सीएम एकनाथ शिंदे ने दिल्ली में गृह मंत्री अमित शाह से मुलाकात की. दोनों नेताओं के बीच मीटिंग करीब 50 मिनट तक चली. इस बैठक में शिवसेना स्थानीय नेताओं को BJP में शामिल करने पर शिंदे ने नाराजगी जताई. उन्होंने कहा कि लोकसभा चुनाव में जीत के बाद अब लोकल बॉडी इलेक्शन की रणनीति पर भी चर्चा हुई.
सूत्रों की मानें तो महाराष्ट्र बीजेपी नेताओं के रवैये से नाराज एकनाथ शिंदे ने अमित शाह से उनकी शिकायत की है. भाजपा के प्रदेशाध्यक्ष रवींद्र चव्हाण के खिलाफ शिंदे ने अमित शाह के सामने नाराजगी जताई है.
महाराष्ट्र में बढ़ी हलचल, किसने-क्या कहा?
हाल ही में एक सियासी कार्यक्रम के दौरान शिंदे और फडणवीस ने सरकार की प्राथमिकताओं को लेकर कुछ अलग-अलग किस्म के बयान दिए. शिंदे ने जनकल्याण और सत्ता की स्थिरता को लेकर अपनी प्राथमिकता बताई. वहीं, फडणवीस ने गठबंधन अनुशासन और निर्णय-प्रक्रिया पर जोर दिया. राजनीतिक गलियारों में यह माना जा रहा है कि इन दोनों बयानों का टोन अलग था, जिससे 'तालमेल' पर सवाल खड़े हो गए.
महायुति में अंदरूनी खींचतान के संकेत?
महाराष्ट्र में बीजेपी, एकनाथ शिंदे गुट और अजित पवार गुट की तिकड़ी सरकार चल रही है. इस बहु-स्तरीय गठबंधन की वजह से फैसले लेने में देरी, संसाधनों का बंटवारा और मंत्रालयों को लेकर असहमतियां जैसी चुनौतियां लंबे समय से सामने आती रही हैं. अब जब दोनों बड़े नेताओं ने अपने-अपने मुद्दों पर अलग फ्लेवर के बयान दिए तो इसे अंदरूनी खटास का संकेत माना जाने लगा है.
शिंदे-फडणवीस के बयानों पर विपक्ष ने तुरंत प्रतिक्रिया दी. शिवसेना (उद्धव गुट) ने कहा - “यह सरकार समझौते की सरकार है, स्थिरता सिर्फ दिखावे की है.” वहीं, कांग्रेस और NCP (शरद पवार गुट) ने दावा किया कि “गठबंधन के अंदर असंतोष है, इसलिए नेता अलग-अलग भाषा बोल रहे हैं.” विपक्ष इसे अपने नैरेटिव के लिए मौका मानकर जमकर निशाना साध रहा है.
क्या वाकई में तनाव है?
महाराष्ट्र के सियासी जानकारों की मानें तो गठबंधन सरकारों में इस तरह की बयानबाजी आम होती है, लेकिन शिंदे व फडणवीस के हालिया बयान राजनीतिक संकेतों का हिस्सा भी हो सकते हैं. बीजेपी आगामी चुनावों के लिए अपनी रणनीति टाइट कर रही है. शिंदे अपनी पार्टी और समर्थन बेस को मजबूत दिखाना चाहते हैं. इसलिए दोनों के बयान सियासी positioning भी हो सकते हैं.
सरकार की सफाई - सब ठीक है
उधर सरकार के सूत्रों का कहना है कि यह विवाद बेवजह उछाला जा रहा है. गठबंधन में सब कुछ सामान्य है. मीडिया बयान को गलत तरीके से जोड़ रहा है. सरकार का दावा है कि CM–डिप्टी CM के बीच किसी तरह का तनाव नहीं है और फैसले आपसी सहमति से लिए जा रहे हैं.
क्या बदलेगा सत्ता संतुलन?
राजनीतिक सूत्रों के अनुसार आने वाले महीनों में बीजेपी के भीतर भी समीक्षा होगी. शिंदे गुट अपनी राजनीतिक जमीन चुनौतियों के बीच मजबूत करने की कोशिश करेगा. अजित पवार गुट का रुख भी सरकार के समीकरणों को प्रभावित करेगा. अगले चुनावों के मद्देनजर यह बयानबाजी आने वाले समय की राजनीतिक तैयारी भी मानी जा रही है.
विरोधाभासी बयानों से जनता में भ्रम
दरअसल, विधानसभा चुनावों में मिली जीत के बाद स्थानीय निकाय चुनावों में गठबंधन के लिए काफी अनुकूल माहौल है. निकाय चुनावों की प्रक्रिया के बीच कुछ नेता उस माहौल को खराब करने की कोशिश कर रहे हैं. इससे विपक्ष की खूब किरकिरी हो रही है. मीडिया में अनावश्यक विरोधाभासी खबरें आ रही हैं. इससे भी जनता में भारी भ्रम की स्थिति है.





