Begin typing your search...

वोटर अधिकार यात्रा' में अखिलेश यादव के शामिल होने के क्या हैं सियासी मायने? UP से लगते इन जिलों में पड़ेगा असर

बिहार की राजनीति में समाजवादी पार्टी (सपा) की अहमियत बहुत सीमित, वो भी प्रतीकात्मक और विचारधारात्मक ही है. यूपी में सपा एक बड़ी राजनीतिक ताकत है, लेकिन बिहार में इसे कभी भी बड़ा जनाधार नहीं मिला. वोट और सीटों के लिहाज से यह नगण्य है. यहां की सियासत में यादव-मुस्लिम समीकरण पर पहले से ही आरजेडी और कुछ हद तक जेडीयू का दबदबा है. इसके बावजदू अखिलेश यादव के बिहार दौरे के असर से इनकार नहीं किया जा सकता.

वोटर अधिकार यात्रा में अखिलेश यादव के शामिल होने के क्या हैं सियासी मायने? UP से लगते इन जिलों में पड़ेगा असर
X
( Image Source:  ANI )

बिहार में दो महीने बाद विधानसभा चुनाव 2025 होने की वजह से यूपी की राजनीति में अहम भूमिका निभाने वाले समाजवादी पार्टी (सपा) के अध्यक्ष अखिलेश यादव पिछले कुछ समय से यहां एक्टिव दिखाई दे रहे हैं. राहुल गांधी के वोट अधिकार दिवस यात्रा में 30 अगस्त को शामिल होकर वह बड़ा सियासी संदेश देने का प्रयास करेंगे. अखिलेश यादव का यह कदम सिर्फ चुनावी मूड ही नहीं बल्कि विपक्षी राजनीतिक और सामाजिक समीकरणों की ओर भी इशारा करता है. उनके आने से बिहार चुनाव में कांग्रेस और आरजेडी को लाभ मिल सकता है. राहुल गांधी और तेजस्वी यादव की रणनीति इस मौके का लाभ उठाने की है. ताकि उत्तर प्रदेश के सीमाई क्षेत्रों से लगती सीटों पर महागठबंधन में शामिल दलों को इसका लाभ मिले.

यादव मतदाता प्रभाव वाले UP से लगते बिहार के जिले

उत्तर प्रदेश से लगे बिहार के सीमावर्ती जिलों में यादव मतदाताओं की अच्छी-खासी संख्या है. ये जिले राजनीतिक रूप से बिहार काफी प्रभावी भी हैं. यादव समाज को बिहार की राजनीति में परंपरागत रूप से राष्ट्रीय जनता दल का कोर वोट माना जाता है.

यूपी के देवरिया और बलिया जिले से सीवान लगती है. यहां यादव मतदाताओं की अच्छी खासी आबादी है, जो चुनावी नतीजों को प्रभावित करती हैं. इसके अलावा, गोपालगंज यूपी के कुशीनगर और देवरिया से जुड़ा हुआ. यादव, मुस्लिम और राजपूत मतदाता यहां समीकरण बनाते हैं. छपरा (सारण) यूपी के बलिया से जुड़ा है. इस जिले में भी यादव मतदाता निर्णायक स्थिति में हैं. बक्सर, यूपी के गाजीपुर और बलिया की सीमा से सटा है. इस जिले में यादवों के साथ भूमिहार और ब्राह्मण वोट भी मजबूत हैं. भोजपुर (आरा) यूपी के बलिया और गाजीपुर की तरफ सीमा से जुड़ा है. यहां यादव मतदाताओं का अच्छा असर है. कैमूर (भभुआ) यूपी के चंदौली और मिर्जापुर से सीमा लगती है. यहां यादव, पासवान और कुशवाहा वोट अहम माने जाते हैं. रोहतास (सासाराम), यूपी के सोनभद्र और मिर्जापुर से जुड़ा है.

उत्तर प्रदेश से बिहार के पश्चिमी और दक्षिण-पश्चिमी सीमाई जिलों सीवान, गोपालगंज, सारण, बक्सर, भोजपुर, कैमूर और रोहतास में यादव मतदाताओं का गहरा प्रभाव है.ये जिले राजद के पारंपरिक गढ़ भी कहे जाते हैं और यूपी के यादव वोट बैंक से इनकी सामाजिक-सांस्कृतिक कड़ी भी मजबूती से जुड़ी है.

विपक्षी एकजुटता का संदेश

वैसे भी 'वोटर अधिकार यात्रा' में अखिलेश यादव की सक्रियता को लेकर राजनीतिक हलकों में चर्चाओं का बाजार गर्म है. लोकसभा चुनाव से पहले उनके इस पहल को विपक्षी एकजुटता और बीजेपी के खिलाफ बड़े मोर्चाबंदी से जोड़कर देखा जा रहा है. अखिलेश यादव का इस यात्रा में शामिल होना विपक्ष को एक मजबूत संदेश देता है. यह साफ करता है कि आने वाले चुनावों में सपा सिर्फ अकेले लड़ने की बजाय बड़े विपक्षी गठजोड़ का हिस्सा बने रहना चाहती है.

समाजवादी वोट बैंक की मजबूती

वोटर अधिकार यात्रा का मकसद आम जनता और खासकर युवाओं व अल्पसंख्यकों को यह संदेश देना है कि उनके वोट का महत्व सबसे बड़ा है. सपा अध्यक्ष ने इस मौके को यूपी में अपने परंपरागत वोट बैंक को और मजबूत करने के लिए इस्तेमाल किया है.

BJP के खिलाफ रणनीति

अखिलेश यादव भाजपा सरकार पर चुनावी धांधली और लोकतंत्र कमजोर करने के आरोप लगते रहे हैं. अब वह बिहार के सियासी मंच का उपयोग कर बीजेपी पर सीधा हमला बोलेंगे. इससे यह साफ होता है कि 2024 और आगे 2025 के चुनावी समीकरणों में सपा खुलकर सत्ता पक्ष को चुनौती देने की तैयारी में जुटी है. उनके इस प्रयास को युवाओं और पहली बार वोट देने वालों को खुद से जोड़ने की पहल भी माना जा सकता है.

चुनावी समीकरणों पर असर

उत्तर प्रदेश की राजनीति में छोटे-छोटे वोट बैंक भी नतीजों को बदलने की ताकत रखते हैं. वोटर अधिकार यात्रा में शामिल होकर अखिलेश यादव ने संकेत दिया था कि सपा आने वाले चुनाव में हर वोट को जोड़ने और मजबूत जनाधार बनाने की कोशिश करेगी.

जीत दर्ज कराने में SP अब तक नाकाम

बिहार विधानसभा या लोकसभा चुनाव में सपा ने कई चुनाव लड़े लेकिन इसका वोट आज भी प्रतिशत 1 से भी कम है. यही वजह है कि विधानसभा या लोकसभा की सीटें जीतने में सपा अब तक नाकाम रही है. ज्यादातर चुनावों में सपा ने गठबंधन के सहारे मैदान में उतरने की कोशिश की. कभी कांग्रेस, कभी आरजेडी, तो कभी लेफ्ट के साथ सपा बिहार में चुनाव लड़ती रही है. साल 2015 में महागठबंधन के दौरान अखिलेश यादव ने खुलकर समर्थन दिया था, लेकिन संगठनात्मक रूप से असर नगण्य रहा.

बिहार विधानसभा चुनाव 2000 में वोट न के बराबर मिला. साल 2005 और 2010 के चुनाव में करीब 0.5 प्रतिशत वोट मिले. साल 2015 में सपा को 3.85 लाख वोट मिले, पर सीटों के लिहाज से कोई लाभ नहीं मिला. बिहार विधानसभा चुनाव 2020 में सपा चुनाव मैदान में नहीं उतरी बल्कि राष्ट्रीय जनता दल का समर्थन किया था. कुल मिलाकर सपा बिहार में हाशिए की पार्टी है, और यहां उसका कोई ठोस संगठनात्मक ढांचा या वोट बैंक नहीं है.

इन जिलों में सपा को भविष्य में मिल सकता है लाभ

बिहार की तरह उत्तर प्रदेश की राजनीति में भी यादव मतदाता बेहद अहम माने जाते हैं. यूपी में यादव समुदाय परंपरागत रूप से समाजवादी पार्टी (सपा) का बड़ा वोट बैंक माना जाता है. ये मतदाता मुख्य रूप से पश्चिमी यूपी, पूर्वांचल और मध्य यूपी के कई जिलों में निर्णायक भूमिका निभाते हैं. मैनपुरी, इटावा, कन्नौज, बदायूं, फिरोजाबाद और आजमगढ़ को तो यादव मतदाताओं का सबसे बड़ा गढ़ माना जाते है.

पश्चिमी यूपी के मैनपुरी, एटा, फर्रुखाबाद, कन्नौज, कासगंज, बदायूं, इटावा, और फिराजाबाद, मध्य यूपी में कानपुर देहात, औरैया, कानपुर नगर और हरदोई, पूर्वी यूपी में जौनपुर, गाजीपुर, आजमगढ़, मऊ, गोरखपुर, बलिया, वाराणसी, वाराणसी ग्रामीण इलाके, बुंदेलखंड व अन्य, जालौन और ललितपुर के ​कुछ हिस्सों में यादव मतदाताओं को प्रभाव है. यूपी के इन जिलों में यादव मतदाताओं की संख्या 8 से लेकर 20 फीसदी है, जो चुनावी नतीजों को प्रभावित करती है. यही वजह है कि अखिलेश यादव वोट अधिकार यात्रा का समर्थन करने पहुंचे तो बिहार हैं, लेकिन उसका असर 2027 में यूपी में देखने को मिलेगा.

बिहार विधानसभा चुनाव 2025बिहारअखिलेश यादव
अगला लेख