बिहार में चुनाव को रोचक बनाएंगी वोट कटवा पार्टियां, जानें क्या है आधार और किसका बिगाड़ेंगी चुनावी खेल
Vote Katwa Party Bihar: बिहार की राजनीति में वोट कटवा पार्टियों की सियासी गतिविधियां एक बार फिर सुर्खियों में है. प्रदेश की ये छोटी- छोटी पार्टियां भले ही सत्ता के सीधे दावेदार न हों, लेकिन उनके मैदान में उतरने से बड़े दलों का समीकरण जरूर गड़बड़ा सकता है. आखिर, उनकी मौजूदगी किसके लिए खतरा बन सकती है. जानें पूरा डिटेल.

Bihar Vote Katwa Party News: बिहार की राजनीति हमेशा से जातीय समीकरणों और स्थानीय गठबंधनों पर होती आई हैं. ऐसे में जब क्षेत्रीय पार्टियां सियासी मैदान में उतरती हैं तो उनका प्रभाव भले सीट जीतने में न दिखे, लेकिन ये बड़े दलों के वोट बैंक में सेंध जरूर लगाती हैं. यही वजह है कि इन पार्टियों को आम बोलचाल में 'वोट कटवा' कहा जाता है. इनकी खासियत यह होती है कि प्रमुख उम्मीदवारों को मिलने वाले वोटों को बांट देती हैं.
इस लिहाज से देखें तो बिहार विधानसभा का चुनाव इस बार काफी दिलचस्प होने वाला है. कई नए राजनीतिक दल इस चुनाव को ताल ठोकने जा रहे हैं. आइए, बताते हैं कि इन पार्टियों की राजनीति क्या है.
वोट कटवा पार्टियां
बिहार विधानसभा चुनाव 2025 में प्रशांत किशोर की जन सुराज पार्टी, अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी, पप्पू यादव की जन अधिकार पार्टी, असदुद्दीन ओवैसी की एआईएमआईएम, मुकेश सहनी की विकासशील इंसान पार्टी, प्रदीप निषाद की विकासशील वंचित इंसान पार्टी, इंजीनियर आईपी गुप्ता की इंडियन इंकलाब पार्टी, चंद्रशेखर आजाद की पार्टी आजाद समाज पार्टी, आईपीएस की नौकरी छोड़कर राजनीति में आए शिवदीप वामनराव लांडे की जय हिंद सेना इन्हीं कटेगरी में आती हैं.
जमीन पर किसका कितना असर?
हालांकि, कुछ नवगठित दल सीमित क्षेत्रों में मजबूत पकड़ रखते हैं. इनका असर खास तौर पर मुस्लिम, यादव, दलित और महादलित बहुल वाली सीटों पर पड़ सकता है. परंपरागत रूप से आरजेडी, जेडीयू या कांग्रेस के पक्ष में माना जाता रहा है. AIMIM की सीमांचल क्षेत्र (कटिहार, पूर्णिया, अररिया और किशनगंज) में अपना दखल बढ़ा रही हैं, जो सीधे तौर पर आरजेडी और कांग्रेस के लिए चिंता का विषय है.
बीजेपी को भी कुछ सीटों पर इन पार्टियों से नुकसान हो सकता है. खासकर शहरी क्षेत्रों में जहां युवाओं और नए वोटरों में छोटे दलों के प्रति आकर्षण बढ़ा है. ऐसे में वोट कटवा पार्टियां खुद भले ही सत्ता में न आएं या चुनाव न जीत पाएं, लेकिन किसे को जिताने या हराने में अहम भूमिका निभा सकते हैं.
1. एआईएमआईएम
असदुद्दीन की पार्टी एआईएमआईएम ने बिहार विधानसभा चुनाव 2020 में सीमांचल क्षेत्र की 20 सीटों पर उम्मीदवार उतारे और 5 सीटें जीतीं. एआईएमआईएम पांच सीटों पर चुनाव जीतकर सभी को चौंका दिया. एआईएमआईएम के प्रत्याशी अमूर, बैइसी, कोचधामन, बहादुरगंज और जोकिआत से चुनाव जीतने में सफल हुए थे. साल 2022 में इन 5 में से 4 विधायक RJD में चले गए. केवल बिहार में AIMIM का एक ही विधायक अमूर से अख्तरुल इमान पार्टी में बने हुए हैं. इस बार एआईएमआईएम का लक्ष्य लगभग 50 सीटों पर चुनाव लड़ने की है. ओवैसी ने RJD व कांग्रेस से महागठबंधन में शामिल होने की पेशकश की है. ताकि मुस्लिम और सेक्युलर वोटों का बिखराव न हो लेकिन RJD नेताओं ने स्पष्ट कहा कि AIMIM चुनाव नहीं लड़े.
2. जन सुराज पार्टी
चुनाव रणनीतिकार के रूप में प्रशांत किशोर का बड़ा नाम है. जन सुराज पार्टी उन्हीं की पार्टी है. कॉरपोरेट की नौकरी छोड़कर कुछ साल पहले वो नीतीश कुनार के जनता दल यूनाइटेड से जुड़े थे, लेकिन जेडीयू से उनका साथ लंबा नहीं चला. जेडीयू छोड़कर उन्होंने राजनीतिक दल बनाने की घोषणा की. राजनीतिक दल की घोषणा से पहले पीके के नाम से मशहूर प्रशांत किशोर ने जन सुराज यात्रा पदयात्रा शुरू की. इस दौरान उन्होंने बिहार के गांवों की पैदल यात्रा की.
प्रशांत किशोर की जन सुराज पार्टी ने अपने चुनाव यात्रा की शुरुआत पिछले साल शुरू की थी. बिहार विधानसभा के चार सीटों पर हुए उपचुनाव उन्होंने पार्टी प्रत्याशियों को उतारा. उप चुनाव में कोई सीट तो उनकी पार्टी नहीं जीती लेकिन दो सीटों पर शानदार प्रदर्शन किया. इमामगंज सीट पर तो जन सुराज के उम्मीदवार ने 37 हजार तक वोट हासिल कर लिया. इन सीटों पर आरजेडी को मिली हार के लिए जन सुराज को जिम्मेदार माना गया. इसके बावजूद, जन सुराज पार्टी का जनाधार इतना मजबूत नहीं है कि बिहार की राजनीति को बदल दें. इस साल होने वाला विधानसभा चुनाव जन सुराज के लिए पहला विधानसभा चुनाव होगा. पार्टी के एजेंडे में पलायन, रोजगार, विकास, युवा, ग्रामीण आबादी, बेरोजगारी, शिक्षा और स्वास्थ्य सहित स्थानीय मुद्दों पर फोकस प्रमुख चुनावी मुद्दे हैं. जन सुराज का मकसद पारंपरिक, जाति और परिवारवादी राजनीति से वोटर्स को बाहर निकाल उनका वोट हासिल करना है. पार्टी का चुनाव चिन्ह 'स्कूल बैग' है.
3. विकासशील इंसान पार्टी
विकासशील इंसान पार्टी (VIP) बिहार की एक क्षेत्रीय राजनीतिक पार्टी है. वीआईपी 2018 अस्तित्व में आई थी. मुकेश सहनी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं. यह पार्टी मुख्य रूप से निषाद (मल्लाह), केवट, बिंद, कश्यप जैसे पिछड़े एवं अति पिछड़े वर्गों के हितों की राजनीति करती है. पार्टी की विचारधारा पिछड़े और दलित समुदायों के हक की लड़ाई और सामाजिक न्याय के मुद्दों पर केंद्रित है. साल 2019 लोकसभा चुनाव VIP ने NDA (राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन) से जुड़ने की कोशिश की, लेकिन सीटों के बंटवारे को लेकर बात नहीं बनी.
साल 2020 बिहार विधानसभा चुनाव VIP ने इस बार NDA गठबंधन (BJP-जेडीयू-हम) के साथ मिलकर चुनाव लड़ा. उसे 3 सीटें (गया, सिमरी बख्तियारपुर, बलरामपुर) मिलीं और उसने तीनों सीटों पर जीत दर्ज की. मुकेश सहनी खुद सिमरी बख्तियारपुर से चुनाव हार गए. साल 2022 VIP की NDA से दूरी बढ़ने के बाद उसके तीनों विधायकों को बीजेपी ने अपने पाले में कर लिए. इसके बाद मुकेश सहनी को मंत्री पद से हटाया गया और VIP एनडीए से बाहर हो गई. लोकसभा चुनाव VIP ने महागठबंधन (राजद, कांग्रेस आदि) का समर्थन किया, लेकिन खुद के लिए कोटे से सीट नहीं मिली. मुकेश सहनी निषाद समाज के लगभग 8-10 फीसदी वोटों पर अपना दावा करते हैं.
4. आम आदमी पार्टी
आम आदमी पार्टी 12 साल पुरानी पार्टी है, लेकिन इसका बिहार के अभी तक कोई स्पष्ट जनाधार नहीं है. अरविंद केजरीवाल की नेतृत्व वाली इस पार्टी ने पहली बार बिहार विधानसभा का चुनाव सभी 243 सीटों पर लड़ने का एलान किया है. बिहार आप के अध्यक्ष राकेश यादव हैं. लोकसभा चुनाव 2014 में AAP ने बिहार की सभी 40 लोकसभा सीटों में से 39 पर उम्मीदवार उतारे, पर किसी भी सीट पर जीत नहीं मिली. साल 2015 विधानसभा चुनाव में AAP ने चुनाव लड़ने के बदले महागठबंधन का समर्थन किया था. लोकसभा चुनाव 2019 में RJD‑Congress से सीट नहीं मिलने पर AAP ने चुनाव नहीं लड़ने का निर्णय लिया. साल 2020 बिहार विधानसभा चुनाव AAP ने एक बार फिर चुनाव नहीं लड़ा. हालांकि, चुनाव लड़ने की घोषणा की थी पर पार्टी चुनाव में शामिल नहीं हुई. फिलहाल, पार्टी पूरे राज्य में सक्रिय चुनावी अभियान चला रही है.
5. इंडियन इंकलाब पार्टी इंजीनियर
बिहार विधानसभा चुनाव के मैदान में इस बार इंडियन इंकलाब पार्टी ने भी चुनाव लड़ने का एलान किया है. इसका गठन इंजीनियर आईपी गुप्ता ने किया है. आईपी गुप्ता इससे पहले कांग्रेस में थे. उन्होंने इस साल अप्रैल में कांग्रेस छोड़ दी थी. चुनाव मैदान में उतरने से पहले ही अप्रैल में आईपी गुप्ता ने पटना के गांधी मैदान में महारैली का आयोजन किया था. इसमें बड़ी संख्या में लोग आए थे. गुप्ता का आधार तांती और ततवा जाति में है. यह जाति इन दिनों अनुसूचित जाति में शामिल होने की लड़ाई लड़ रहा है. इंडियन इंकलाब पार्टी महागठबंधन में शामिल होने की कोशिश कर रही है. असदुद्दीन ओवैसी की एआईएमआईएम के भी संपर्क में है.
6. जय हिंद सेना
भारतीय पुलिस सेवा (आईपीएस) की नौकरी छोड़कर राजनीति में शिवदीप वामनराव लांडे ने जय हिंद सेना के नाम से अपनी राजनीतिक पार्टी बनाई है. उन्होंने 2024 में आईपीएस की नौकरी छोड़ दी थी. महाराष्ट्र के रहने वाले लांडे ने घोषणा की है कि वो प्रदेश की सभी 243 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारेंगे. लांडे का कहना है कि वो विकास की राजनीति करेंगे, जाति या अगड़े-पिछड़े की नहीं.
7. विकास वंचित इंसान पार्टी
विकास वंचित इंसान पार्टी या वीवीआईपी का गठन किया है हेलीकॉप्टर बाबा के नाम से मशहूर प्रदीप निषाद ने की. वह इससे पहले विकासशील इंसान पार्टी (वीआईपी) में थे. मुकेश सहनी से मतभेदों लेकिन पार्टी प्रमुख मुकेश सहनी से मनमुटाव के बाद वो उनसे अलग हो गए थे. बीते शनिवार को उन्होंने वीवीआईपी का गठन कर चुनाव मैदान में उतरने की घोषणा की.
बिहार में यह पार्टी अभी शुरुआती चरण में है। इसका आधार मुख्यतः दलित, महादलित और वंचित वर्गों में बनने की कोशिश की जा रही है। भीम आर्मी और चंद्रशेखर आज़ाद की लोकप्रियता के कारण युवाओं में थोड़ी पकड़ है, लेकिन मजबूत सांगठनिक ढांचा अभी विकसित हो रहा है। 2020 बिहार विधानसभा चुनाव आजाद समाज पार्टी ने बिहार में कुछ सीटों पर उम्मीदवार उतारे थे, लेकिन कोई भी सीट नहीं जीत पाई और न ही बहुत ज़्यादा वोट हासिल कर सकी. बिहार में आजाद समाज पार्टी के पास अभी तक कोई बड़ा स्थानीय चेहरा नहीं है.