तुम्हारे हाथ खून से सने हैं... कौन हैं तमिलनाडु की ये 'लेडी सिंघम' IPS ईशा सिंह, पढ़ें वकील से अफसर बनने का सफर
दक्षिण भारतीय सिनेमा में ईमानदार और निडर पुलिस अधिकारी को लंबे समय से नायक के रूप में दिखाया जाता रहा है. तमिल सिनेमा से शुरू होकर बॉलीवुड तक पहुंचा ‘सिंघम’ फेनॉमिना ने पुलिस की छवि को एक पौराणिक साहसिक व्यक्तित्व में ढाला. लेकिन मंगलवार, 9 दिसंबर को यह सिनेमा और हकीकत की लकीर पुडुचेरी के एक मैदान में धुंधली पड़ गई और इस बार असली ‘सिंघम’ यूनिफॉर्म में थी, जबकि अभिनेता विजय जो अक्सर पर्दे पर ऐसी भूमिकाएं निभाते हैं इस पूरे घटनाक्रम के सामने मात्र दर्शक बनकर रह गए.
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पुडुचेरी के उप्पालम पोर्ट ग्राउंड में विजय की पार्टी ‘तमिलगा वेट्री कळगम (TVK)’ की एक बड़ी रैली आयोजित हुई, जहां अनुमति 5,000 लोगों की थी, लेकिन भीड़ उससे कई गुना ज्यादा उमड़ पड़ी. इसी अफरातफरी के बीच एक वायरल वीडियो में एक युवा महिला IPS अधिकारी- पुडुचेरी की एसपी ईशा सिंह. मंच पर चढ़कर माइक छीनते हुए दिखाई दीं. और फिर भीड़ के शोर को चीरते हुए उनका तीखा सवाल गूंजा कि 'तुम्हारे हाथ इतने लोगों के खून से सने हैं. चालीस लोग मर चुके हैं. तुम क्या कर रहे हो?
करूर त्रासदी का दर्द और एक अफसर का साहस
यह टिप्पणी सीधे उस करूर स्टांपेड पर प्रहार थी, जिसमें 28 सितंबर को TVK की विशाल रैली में भगदड़ मचने से 41 लोगों की मौत हो गई थी. वायरल वीडियो में देखा गया कि ईशा सिंह TVK के जनरल सेक्रेटरी बसी आनंद से माइक छीनती हैं और फिर मंच से कड़ा संदेश देती हैं.
लेकिन यह सब अचानक नहीं हुआ. रैली से एक सप्ताह पहले ही ईशा ने अपने वरिष्ठों को चेतावनी दी थी कि करूर जैसी घटना के बाद विजय की रोड शो या मेगा रैली को इजाज़त देना जोखिम भरा होगा. फिर भी जब उन्हें आयोजन की निगरानी का दायित्व मिला, उन्होंने भीड़ नियंत्रण और सुरक्षा को लेकर जमीनी तैयारी में कोई कमी नहीं छोड़ी.
घर से मिली लड़ने की विरासत
1998 में मुंबई में जन्मीं ईशा सिंह का व्यक्तित्व उस परिवार में ढला जहां न्याय और साहस एक परंपरा की तरह पीढ़ी दर पीढ़ी चला आ रहा है. उनके पिता योगेश प्रताप सिंह, 1985 बैच के IPS अधिकारी, भ्रष्टाचार को उजागर करने के कारण सालों तक “सज़ा पोस्टिंग” झेलते रहे और अंत में इस्तीफा दे दिया. उनकी मां अभा सिंह, इंडियन पोस्टल सर्विस छोड़कर एक फायरब्रांड वकील बन गईं. उन्होंने कई हाई प्रोफाइल मामलों में लड़ाई लड़ी. जिसमें सलमान खान हिट-एंड-रन केस भी शामिल है. ऐसे माहौल में पली-बढ़ी ईशा के लिए कानून और साहस किसी किताब का हिस्सा नहीं, जीवन का हिस्सा था.
वकील से पुलिस अधिकारी बनने तक का सफर
IPS बनने से पहले ईशा सिंह एक वकील थीं. नेशनल लॉ स्कूल, बेंगलुरु की छात्रा ईशा ने कॉरपोरेट करियर छोड़कर मानवाधिकार और पब्लिक इंटरेस्ट से जुड़े मामलों में काम करना चुना.
उनकी प्रमुख कानूनी उपलब्धियां
मुंबई में सेप्टिक टैंक की सफाई करते हुए मारे गए तीन मजदूरों की विधवाओं के लिए 10 लाख रुपये का मुआवज़ा दिलवाया. झूठे मुकदमों में फँसी महिलाओं और कमजोर वर्गों के लोगों के लिए लड़ाई लड़ी. एक शक्तिशाली अफसर के दबाव में दर्ज किए गए जालसाजी के बढ़ा-चढ़ा कर लगाए गए आरोपों में एक महिला को जमानत दिलाई. इन मामलों ने उन्हें न्याय व्यवस्था की खामियों से रूबरू कराया. जहां कई लोग सिर्फ इसलिए हार जाते हैं क्योंकि उनके पास लड़ने की ताकत या साधन नहीं होते.
इसी अनुभव ने उन्हें महसूस कराया कि न्याय केवल कोर्ट में नहीं मिलता-कभी-कभी बदलाव लाने के लिए सिस्टम के भीतर जाना पड़ता है. इसी सोच के साथ लॉकडाउन में उन्होंने UPSC की तैयारी की और दूसरे प्रयास में ऑल इंडिया रैंक 133 के साथ IPS चुना.
मैदान में उतरने वाली अधिकारी- डेस्क तक सीमित नहीं
पुडुचेरी में तैनाती के बाद ईशा सिंह की पहचान सिर्फ आदेश देने वाली अफसर की नहीं रही. वह रात में सड़कों पर गश्त करतीं. ऑटो ड्राइवरों से बात करतीं. कॉलेज छात्रों और देर रात लौटने वाली महिलाओं से सुरक्षा की जानकारी लेतीं. स्कूल और कॉलेजों में जाकर बच्चों, युवाओं और महिलाओं को सुरक्षा, नशे से बचाव, सड़क सुरक्षा और मानवाधिकार पर जागरूक करतीं. स्थानीय मीडिया उन्हें ‘लगातार मैदान में रहने वाली अफसर’ बताता है.
'लेडी सिंघम' का टैग नहीं-उनकी पहचान काम से है
भले ही सोशल मीडिया उन्हें 'लेडी सिंघम' कह रहा हो, लेकिन जिन्हें ईशा को नज़दीक से देखने का मौका मिला है, वे जानते हैं कि वह सिर्फ एक वायरल क्लिप नहीं- बल्कि एक पैशनेट, निडर और कानून को उसकी असली ताकत में जीने वाली अधिकारी हैं. वह वही सवाल पूछती हैं, वही जवाब मांगती हैं, जो फ़िल्मों में नायक पूछता है—लेकिन यह सब असली दुनिया में, असली मंच पर, असली सत्ता से.





