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बिहार में सीमांचल की सीटें क्यों हैं खास, इन सीटों पर हार जीत के मायने, इसको लेकर चर्चा में क्यों हैं असदुद्दीन ओवैसी?

बिहार की रजानीति में सीमांचल के चार जिलों का अलग महत्व है. इन जिलों में मुस्लिम मतदाताओं की बहुलता की वजह से कांग्रेस के लिए यह क्षेत्र हमेशा से मुफीद रहा है, लेकिन पिछले कुछ चुनावों से यह क्षेत्र कांग्रेस के लिए चुनौती भरा हो गया. असदुद्दीन ओवैसी ने इस क्षेत्र में पांच सीटों पर चुनाव जीतकर कांग्रेस की मुसीबत बढ़ा दी है तो पप्पू यादव आरजेडी के लिए बड़ी चुनौती बनकर उभरे हैं.

बिहार में सीमांचल की सीटें क्यों हैं खास, इन सीटों पर हार जीत के मायने, इसको लेकर चर्चा में क्यों हैं असदुद्दीन ओवैसी?
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बिहार में चुनाव आयोग ने अभी चुनावी कार्यक्रमों के एलान नहीं किया है, लेकिन अलग-अलग सियासी दलों के नेता खुद की जीत को सुनिश्चित करने के लिए 2025 के चुनावी जंग में एक-दूसरे के खिलाफ जमकर आग उगल रहे हैं. सियासी दलों की गंभीरता का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि कांग्रेस ने चुनाव के दौरान 5 लाख सेनेटरी पैड महिलाओं को देने का एलान किया है. ये बात अलग है कि बीजेपी ने इसे महिलाओं का अपमान करार दिया है.

फिलहाल, बिहार विधानसभा चुनाव 2025 में सबसे दिलचस्प लड़ाई सीमांचल में नजर आ रही है, जहां सबकी नजरें मुस्लिम वोटरों पर हैं. बिहार की राजनीति में सरकार बनाने के लिहाज से सीमांचल के 4 जिलों की 24 सीटें बेहद अहम मानी जाती हैं. यहीं से तय होता है कि बिहार की गद्दी पर कौन बैठेगा? इस इलाके में सबसे बड़ी चुनौती कांग्रेस और आरजेडी के सामने है. यही वजह है कि कन्हैया कुमार भी आजकल सीमांचल की गलियों में घूमते नजर आ जाते हैं.

सीमांचल की सीटें अहम क्यों?

बिहार के चार जिलें सीमांचल क्षेत्र में शामिल हैं. इन जिलों में विधानसभा की 24 सीटें हैं. पूर्णिया में 7, कटिहार में 7, किशनगंज में 4, अररिया में 6 सीटें हैं. सीमांचल की अहमियत आप ऐसे भी समझ सकते हैं कि बिहार में जनता दल (यूनाइटेड) और भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) का गठबंधन टूटने के बाद केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने 23 सितंबर 2022 को पूर्णिया जिले के रंगभूमि मैदान में 'जन भावना रैली' को संबोधित किया था, जहां उन्होंने 2025 के विधानसभा चुनाव के लिए हुंकार भरी थी. शाह ने इस रैली में लोगों से बीजेपी को पूर्ण बहुमत देने की मांग की थी.

नीतीश कुमार की पार्टी का भारतीय जनता पार्टी से गठबंधन तोड़ने और राष्ट्रीय जनता दल (राजद) के साथ महागठबंधन बनाने के बाद तेजस्वी यादव ने भी पहली बड़ी रैली 25 फरवरी 2023 को पूर्णिया में ही की थी. इस 'एकजुटता रैली' में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार, तेजस्वी यादव, और महागठबंधन के अन्य वरिष्ठ नेताओं ने हिस्सा लिया था. दोनों रैलियों का मकसद एक ही था. सीमांचल की 24 सीटों पर कब्जा जमाना.

2020 में कैसा रहा था नतीजा

साल 2020 के बिहार विधानसभा चुनाव में सीमांचल क्षेत्र में भारतीय जनता पार्टी (BJP) को 6, ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (AIMIM) को 5, कांग्रेस (INC) को 4, जनता दल (यूनाइटेड) (JDU)) को 4, राष्ट्रीय जनता दल (RJD) को 3, और भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी-लेनिनवादी) (CPI(ML)) को 1 सीट मिली थी.

सीमांचल सियासी समीकरण

साल 2011 की जनगणना के आंकड़ों के मुताबिक बिहार में करीब 17 फीसदी (16.87%) मुस्लिम हैं. बिहार की कुल मुस्लिम आबादी का 45 से 75 फीसदी हिस्सा (कहीं कम, कहीं ज्यादा) सिर्फ सीमांचल के चार जिलों में बसा है.

अब अगर सीमांचल की मौजूदा राजनीति और वोटों के गणित की बात करें तो ये सच है कि पिछले विधानसभा चुनाव में एनडीए ने इस इलाके में अपनी स्थिति मजबूत बनाई थी, लेकिन इस बार यहां चुनौती थ्री डाइमेंशनल (त्रिकोणीय) हो चुकी हैं. इलाके की मुस्लिम बहुल आबादी पर हर पार्टी नजरें गड़ाए हुए है और वोटरों को अपने पाले में लाने की कोशिश में जुटी है.

पहले इस इलाके में मुख्य तौर पर दो ध्रुव थे, एक एनडीए ( जेडीयू+बीजेपी) और दूसरा महागठबंधन (आरजेडी+कांग्रेस+लेफ्ट) लेकिन जिस तरह से बीते चुनाव में AIMIM ने इस इलाके में महागठबंधन को चौंका दिया था. इसका लाभ बीजेपी को फायदा मिला था. उसी तरह इस बार सीमांचल में एक नई ताकत का उभार हुआ है, जिसका नाम पप्पू यादव है.

RJD के लिए चुनौती सबसे बड़ी क्यों?

लोकसभा चुनाव में आरजेडी को पूर्णिया और अररिया जैसे मुस्लिम बहुल इलाके में भी काफी कड़ी चुनौती का सामना करना पड़ा था, जिसे पहले लालू की पार्टी का कोर वोटर माना जाता था. अररिया में बीजेपी के प्रदीप सिंह ने आरजेडी के शाहनवाज को हराया था.

सीमांचल में इस बार सबसे बड़ी चुनौती आरजेडी के लिए ही नजर आ रही है. पूर्णिया में पार्टी की सबसे बड़ी नेता बीमा भारती लगातार दो चुनाव हार चुकी हैं और यादुका हत्याकांड में उनके पति और बेटे की भूमिका ने लोगों के बीच उनकी लोकप्रियता को रसातल में पहुंचा दिया है. उन्हें मौजूदा विधायक शंकर सिंह से कड़ी टक्कर मिली है, जो इस वक्त जेडीयू के पाले में हैं

फिर, आरजेडी के लिए मुश्किलें खड़ी करने में असदुद्दीन ओवैसी और पप्पू यादव ने कोई कमी नहीं छोड़ी है. एक तरफ जहां पप्पू यादव ने कई इलाकों के मुस्लिम वोटरों पर अपनी पकड़ बना ली है, वहीं यादव समुदाय पर भी उनका अच्छा खासा प्रभाव नजर आ रहा है, जो आरजेडी के लिए बिल्कुल अच्छी खबर नहीं है.

बिहार विधानसभा चुनाव 2025बिहार
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