क्या है 'वोट अधिकार यात्रा' की इनसाइड स्टोरी? राहुल गांधी के इस प्लान को जान RJD वालों के उड़ जाएंगे होश
बिहार विधानसभा चुनाव को लेकर इस बार राहुल गांधी पूरी तरह से गंभीर हैं. न तो वो किसी से समझौता करने के मूड में हैं, न ही कांग्रेस की चुनाव तैयारियों में कोई कमी छोड़ना चाहते हैं. वह, इस बार अपनी नई टीम के खुद चुनावी मैदान में उतरे हुए हैं. पिछले 10 दिनों से वह 'वोट अधिकार यात्रा' पर हैं. इसका मकसद कांग्रेस को पूरे बिहार में विस्तार देना है. ताकि आगामी चुनाव में दूसरे राज्यों में कांग्रेस के सियासी अभियानों को धार देने में मदद मिल सके.
भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष और सांसद राहुल गांधी बिहार में एक ऐसे गुप्त सियासी प्लानिंग पर हैं, जिसके बारे में लोग कयास तो लगा रहे हैं, लेकिन अधिकारपूर्वक कुछ कह नहीं पा रहे हैं. इस लक्ष्य को हासिल करने के लिए राहुल गांधी बिहार विधानसभा चुनाव में बड़े पॉलिटिकल दांव खेलने की तैयारी में हैं. इस बार उनका एक ही एजेंडा है. वो, यह है कि कांग्रेस के राजनीतिक हित को कैसे साधा जाए? बिहार चुनाव से वह कुछ खोना नहीं चाहते, बल्कि पार्टी के लिए बहुत कुछ हासिल करना चाहते हैं.
राहुल गांधी की इस तैयारी को लेकर जेडीयू, बीजेपी, एलजेपी रामविलास, हिन्दुस्तान आवाम मोर्चा सहित सभी विरोधी पार्टियां सतर्क हैं. चौंकाने वाली बात यह है कि महागठबंधन में शामिल प्रमुख सियासी दल आरजेडी नेतृत्व भी अलर्ट मोड में है. राहुल गांधी के चुनावी रणनीति को सहयोगी के साथ विरोधी दलों के नेता तक गंभीरता से ले रहे हैं. यही वजह है कि सभी जानना चाहते हैं कि इस बार राहुल की प्लानिंग सिर्फ बिहार तक सीमित है या यहां के परिणामों से वह अपने लिए दूरगामी लक्ष्य साधना चाहते हैं.
क्या है राहुल गांधी की चुनावी रणनीति?
बिहार के साथ राष्ट्रीय स्तर के सियासी जानकारों का कहना है कि इस बार राहुल बिहार में जमीन पर जिस तरह से सक्रिय दिख रहे हैं, वो उनके विरोधियों को भी असमंजस में डालने वाला है. सूत्रों के मुताबिक, 'वोट अधिकार यात्रा' को ही लें ले तो वह सिर्फ चुनावी माहौल गरमाने के लिए नहीं बल्कि विपक्षी खेमे में भी खलबली मचाना चाहते हैं.
RJD के लिए खतरा क्यों?
खतरा इसलिए कि उनकी यह यात्रा RJD के लिए यह सिरदर्द बन सकती है, क्योंकि राहुल गांधी का यह प्लान सीधे-सीधे बिहार की सियासत को टारगेट करता दिख रहा है. लालू यादव नहीं चाहेंगे की खुद की कीमत पर कांग्रेस को बिहार में ज्यादा मजबूत होने दें. फिर, तेजस्वी यादव इस बार सीएम बनने को लेकर अपने हिसाब से आश्वस्त हैं. ऐसा वह बार-बार दावा भी करते नजर आते हैं. उनकी योजना हर हाल में सहयोगियों के साथ लेकर नीतीश कुमार को सत्ता से बेदखल करने की है. उनके इस राह में इस बार बीजेपी, जेडीयू या अन्य सियासी पार्टियां कम, सहयोगी पार्टियां ही ज्यादा बाधक होने वाली है.
ऐसा इसलिए कि कांग्रेस ने 243 सीटों में से 90 सीटों चुनाव लड़ने की मंशा जाहिर की है. 70 सीटों पर तो पार्टी नेता खुलकर कह रहे हैं कि उससे कम पर समझौता संभव नहीं है. महागठबंधन में शामिल विकासशील इंसान पार्टी के मुकेश सहनी की मांग 60 सीटों की है. सीआईएमएल व अन्य पार्टियां 40 सीटों पर दावा कर रही हैं. तेजस्वी पर लोक जनशक्ति पार्टी पशुपति पारस गुट को भी कुछ टिकट देने की जिम्मेदारी है. ऐसे में गठबंधन को साथ लेकर चलने की रणनीति के तहत वह अपने प्रमुख सहयोगियों की बात मानते हैं तो भी उन्हें खुद के लिए नुकसान दिखता है, नहीं मानने पर भी नुकसान तय है. इसी दुविधा की वजह से सीटों के बंटवारे का मसला आगे लिए टलता जा रहा है.
हालांकि, तेजस्वी यादव वोट अधिकार यात्रा में राहुल गांधी के साथ लगातार दिखाई दे रहे हैं, जिसे उनकी सियासी मजबूरी माना जा रहा है, लेकिन जिस पप्पू यादव को वह अपने पास तक नहीं आने दे रहे थे, वही अब राहुल गांधी की सहमति से उनके इर्दगिर्द मंच पर दिखाई देने लगे हैं.
दलित-ओबीसी और युवाओं के बीच नैरेटिव तैयार करने की कोशिश
लोकसभा चुनाव के बाद कांग्रेस का नया एजेंडा अब साफ होता जा रहा है. राहुल गांधी जिस ‘वोट अधिकार यात्रा’ पर हैं, वह केवल एक राजनीतिक कैंपेन नहीं, बल्कि दलित, ओबीसी और गरीब वोटर्स को लेकर एक नया नैरेटिव खड़ा करने की कोशिश है. पार्टी के अंदरूनी सूत्र बताते हैं कि इस यात्रा के जरिए राहुल गांधी न केवल कांग्रेस को पुनर्जीवित करना चाहते हैं बल्कि सहयोगी दलों, खासकर RJD, के वोट बैंक में भी सेंध लगाने की रणनीति बना रहे हैं. यह यात्रा सीधे इस वोट बैंक को टारगेट करती है.
कांग्रेस अब मंडल-पॉलिटिक्स को नए अंदाज में पेश करने में जुटी है. पार्टी चाहती है कि गरीब, दलित और पिछड़े वर्ग को ज्यादा से ज्यादा पार्टी से जोड़ा जाए. यात्रा में राहुल गांधी बेरोजगारी, शिक्षा और नौकरी के अवसरों को मुद्दा बना रहे हैं. ये सभी मुद्दे पांच साल पहले तेजस्वी यादव ने उठाया था, जिसका लाभ आरजेडी को मिला भी था.
महिला सशक्तिकरण एजेंडा
कांग्रेस महिला आरक्षण और महिलाओं की आर्थिक भागीदारी पर बड़ा वादा करके आधी आबादी को लुभाने की योजना बना रही है. इसके लिए कांग्रेस पैडमैन योजना पर पहले से काम कर रही है.
RJD-कांग्रेस में खींचतान
आरजेडी और कांग्रेस के नेता माने या न मानें अंदरखाने यह चर्चा है कि राहुल की यह यात्रा गठबंधन धर्म से ज्यादा कांग्रेस के ‘स्वतंत्र विस्तार’ की कोशिश है, जिससे RJD की नींव हिल सकती है. इसका संकेत अररिया में भी मिला. जब पत्रकारों ने तेजस्वी की मौजूदगी में राहुल गांधी से पूछा कि महागठबंधन का 'सीएम फेस' कौन होगा तो वह सवाल को टाल गए.
लोकसभा 2029 पर नजर
कांग्रेस पार्टी के सूत्रों का कहना है कि यह यात्रा सिर्फ विधानसभा चुनाव तक सीमित नहीं है, बल्कि कांग्रेस इसे 2029 लोकसभा चुनाव के लिए भी जमीन तैयार करने के रूप में देख रही है.
वोट अधिकार यात्रा का रूट
बिहार कांग्रेस ने वोट अधिकार यात्रा में आरजेडी,सीपीआईएमएल, वीआईपी, सीपीआई के कहने पर यात्रा रूट में कुछ जिले शामिल हैं. यात्रा को लेकर एक महीने से कांग्रेस प्लानिंग में जुटी थी. यह यात्रा सासाराम से शुरू होकर औरंगाबाद, गया, नवादा, शेखपुरा, मुंगेर, जमुई, भागलपुर, कटिहार, पुर्णिया, अररिया, सुपौल, दरभंगा, मधुबनी, मुजफ्फरपुर, सीतामढ़ी, पश्चिम चंपारण, गोपालगंज, सीवान, सारण, भोजपुर होते हुए पटना जिले में खत्म होगी. यात्रा 17 दिनों में 1300 किलोमीटर से ज्यादा की दूरी तय करेगी. 50 विधानसभा सीटों पर गुजरेगी. इनमें से 20 सीटों पर कांग्रेस साल 2020 में विधानसभा चुनाव लड़ी थी, लेकिन उसे सफलता केवल 8 सीटों पर मिल थी. यात्रा रूट में अधिकांश सीट वे हैं, जिन पर कांग्रेस इस बार अपना प्रत्याशी उतारना चाहती है.
अब तक की वोटर अधिकार यात्रा से दो बातें साफ हैं. पहली ये कि यात्रा राहुल गांधी की पिछली भारत जोड़ो यात्रा से बिल्कुल अलग है. भारत जोड़ो यात्रा में राहुल करीब 3,500 किलोमीटर पैदल चले थे. वहीं वोटर अधिकार यात्रा में वे सिर्फ गाड़ी से यात्रा कर रहे हैं. दूसरी की यात्रा के जरिए मैसेज दिया जा रहा है कि महागठबंधन एकजुट है. राहुल यात्रा का चेहरा हैं, लेकिन ड्राइविंग सीट पर तेजस्वी ही हैं. बता दें कि 17 अगस्त सासाराम से हुई थी शुरुआत 50 सीट 23 जिले को कवर करते हुए एक सितंबर को पटना में इसका धूमधाम से समापन होगा.
बिहार के वरिष्ठ पत्रकारों का कहना है कि में कांग्रेस बिहार में खुद को फिर से जिंदा करने की कोशिश में जुटी है. यात्रा का रूट भी उसी हिसाब से बनाया गया है. यात्रा का रूट की ज्यादातर सीटों पर कांग्रेस का स्ट्रांग होल्ड रहा है. हालांकि 1990 के बाद अधिकांश जगहों पर कांग्रेस कमजोर हो गई. यात्रा के जरिए पार्टी के नेता उसी मनोदशा से बाहर आना चाहते हैं. खास बात यह है कांग्रेस अपनी रणनीति के तहत RJD को इग्नोर नहीं कर रही है.
2020 के परिणाम से कांग्रेस को मिली थी निराशा
साल 2020 के बिहार विधानसभा चुनाव में महागठबंधन ने कुल 243 सीटों में से 110 सीटें जीती थीं. कांग्रेस ने 70 सीटों पर चुनाव लड़ा और 19 सीटें जीतीं, जो महागठबंधन के भीतर सबसे कम स्ट्राइक रेट (27.14%) था. लोकसभा चुनाव की बात करें तो 2019 में महागठबंधन ने सिर्फ एक सीट जीती थी. ये एक सीट भी कांग्रेस को मिली थी. 2024 में गठबंधन की सीटें बढ़कर 9 हो गईं. RJD ने 23 सीटों पर चुनाव लड़ा और 4 सीटें जीतीं. कांग्रेस ने 33.3% के स्ट्राइक रेट से 9 में से 3 सीटें जीतीं.NDA ने 30 सीटें जीतकर बिहार में अपना दबदबा बनाए रखा.





