Bihar Election 2025: नीतीश कुमार को महिला वोटरों पर है ज्यादा भरोसा, क्या ‘दसहज़ारी’ योजना बनेगी गेमचेंजर?
बिहार विधानसभा चुनाव के बीच मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की ‘मुख्यमंत्री महिला रोजगार योजना’ (MMRY), जिसे लोग ‘दसहज़ारी योजना’ कह रहे हैं, चर्चा में है. इस योजना के तहत महिलाओं को ₹10,000 की पहली किस्त दी गई है ताकि वे छोटे व्यवसाय शुरू कर सकें. नीतीश कुमार पहले भी साइकिल योजना, पंचायतों में 50% आरक्षण और नौकरियों में 35% आरक्षण जैसी पहलों से महिलाओं को सशक्त बना चुके हैं. अब सवाल है कि क्या ‘दसहज़ारी योजना’ उनका नया चुनावी गेमचेंजर बनेगी?
एक समय था जब बिहार की महिलाएं घर की चौखट से बाहर कदम रखने में हिचकिचाती थीं. शिक्षा, राजनीति और रोज़गार की दुनिया उनके लिए दूर की बात थी. लेकिन पिछले दो दशकों में यह तस्वीर पूरी तरह बदल चुकी है और इस परिवर्तन के केंद्र में हैं मुख्यमंत्री नीतीश कुमार. उन्होंने महिला सशक्तिकरण को न सिर्फ़ सरकार की प्राथमिकता बनाया, बल्कि इसे बिहार मॉडल ऑफ डेवलपमेंट का सबसे मज़बूत स्तंभ बना दिया.
2007 में शुरू हुई मुख्यमंत्री बालिका साइकिल योजना ने लड़कियों को स्कूल तक पहुंचाने की नई राह खोली; पंचायतों में 50% आरक्षण ने महिलाओं को सत्ता के केंद्र तक पहुंचाया; सरकारी नौकरियों में 35% आरक्षण ने उन्हें रोज़गार की मुख्यधारा से जोड़ा; और अब मुख्यमंत्री महिला रोजगार योजना (‘दशहज़ारी’) ने आर्थिक आत्मनिर्भरता की दिशा में नया अध्याय जोड़ा है.
अब जबकि बिहार में विधानसभा चुनाव हो रहे हैं और पहले चरण मा मतदान पूरा हो चुका है, तो ऐसे में सवाल उठ रहा है कि क्या एक बार फिर महिलाओं से जुड़ी योजना नीतीश कुमार की चुनावी नैया पार लगाएगी. जी हां, बात हो रही है नीतीश कुमार की मुख्यमंत्री महिला रोजगार योजना (MMRY) की जो बिहार चुनाव से पहले महिलाओं के बीच लोकप्रियता की नई मिसाल बन गई. इसे लोग प्यार से ‘दसहज़ारी योजना’ कह रहे हैं क्योंकि इसके तहत महिलाओं के खाते में ₹10,000 की पहली किस्त सीधे भेजी जा रही है.
दसहजारी योजना बनेगी चेंजर?
बिहार विधानसभा चुनाव से ठीक पहले लॉन्च हुई मुख्यमंत्री महिला रोजगार योजना (MMRY) को लेकर राज्यभर में अभूतपूर्व चर्चा है. इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार, यह योजना अब सिर्फ सरकारी पहल नहीं रह गई है, बल्कि ‘दसहज़ारी’ नाम से लोगों की जुबान पर चढ़ चुकी है. गांव-गांव में महिलाएं इस योजना की फॉर्म भरने के लिए कतारों में लगी हैं, और जिनके खाते में पैसा पहुंच गया है, वे इसे अपनी ज़िंदगी में बदलाव की शुरुआत मान रही हैं. पटना में काम करने वाली विभा देवी ने सिर्फ इस योजना का फॉर्म भरने के लिए दो दिन की छुट्टी ली और अपने गांव नालंदा पहुंचीं. कुछ ही दिनों में उनके खाते में ₹10,000 आ गए. वह मुस्कुराते हुए कहती हैं, “जेकर खइबय, ओकर ना गैबय? अगर वोट नय देबय त कोढ़ी फुट जइते!” यानी जो हमें खिला रहा है, उसका साथ कैसे न दें?
महिलाओं के लिए ‘कैश डोल’ नहीं, आत्मनिर्भरता का रास्ता
दूसरे राज्यों में लागू योजनाओं जैसे लाड़ली बहना (मध्य प्रदेश) या लड़की बहिन (महाराष्ट्र) के विपरीत, बिहार की यह योजना केवल नकद हस्तांतरण (cash dole) नहीं है. MMRY को एक उद्यमिता प्रोत्साहन कार्यक्रम के रूप में डिजाइन किया गया है. यह योजना 29 अगस्त को घोषित की गई थी और इसके तहत महिलाओं को कुल ₹2.10 लाख तक की सहायता तीन चरणों में दी जाएगी - पहली किश्त ₹10,000 की है, जो जीविका समूह (JEEViKA) से जुड़ी 1.21 करोड़ महिलाओं के खातों में भेजी जा चुकी है. आगे की किश्तें उन्हें छोटे व्यवसाय शुरू करने के लिए दी जाएंगी - जैसे डेयरी, ब्यूटी पार्लर, सिलाई-कढ़ाई, आर्ट एंड क्राफ्ट या किराना दुकान. नीतीश कुमार के एक वरिष्ठ जेडीयू नेता कहते हैं, “मुख्यमंत्री हमेशा से नकद सहायता के खिलाफ रहे हैं. उन्होंने महिलाओं को empower करने की नीति अपनाई है, dole देने की नहीं. लेकिन इस बार चुनावी माहौल को देखते हुए यह योजना एक ‘हाइब्रिड मॉडल’ में बनाई गई है - सशक्तिकरण भी और राहत भी.”
गांव-गांव से आ रही हैं सफलता की कहानियां
बेगूसराय, मुंगेर, सिवान, गोपालगंज, दरभंगा और मधुबनी जैसे जिलों की महिलाओं ने इस योजना को जीवन-परिवर्तनकारी बताया. बेगूसराय के मटिहानी प्रखंड की सुमन कुमारी (35) कहती हैं, “हमारी गांव की ज्यादातर महिलाओं को ₹10,000 मिल गए हैं. अब हम सोच रहे हैं कि कौन-सा काम शुरू करें.” वह बताती हैं कि यह योजना नीतीश की पहले की पहलों - साइकिल योजना, यूनिफॉर्म योजना और लड़कियों की फीस माफी - की कड़ी है.
मुंगेर की प्रियंका कुमारी, जो बिहार पुलिस में कॉन्स्टेबल हैं, कहती हैं - “मैं अपने परिवार की पहली महिला हूं जिसे सरकारी नौकरी मिली. यह तभी संभव हुआ जब नीतीश सरकार ने 2013 में सरकारी नौकरियों में 35% आरक्षण दिया.” अब उनकी मां को भी ₹10,000 मिले हैं और वह सिलाई सेंटर खोलने की योजना बना रही हैं. पश्चिम चंपारण की सावित्री देवी (43) बताती हैं कि उनके पति की मौत के बाद त्योहारों में खर्च चलाना मुश्किल था. “लेकिन अचानक जब पैसे खाते में आए, तो लगा भगवान ने सुन ली,” वह भावुक होकर कहती हैं.
राजनीतिक प्रभाव और सामाजिक बदलाव
नीतीश कुमार के समर्थकों का दावा है कि यह योजना चुनाव में ‘वोट बैंक गेमचेंजर’ साबित होगी. एक जेडीयू नेता कहते हैं - “महिलाएं अब सबसे मजबूत मतदाता वर्ग बन चुकी हैं. ‘दशहज़ारी’ ने NDA की महिला फोर्स को और व्यापक कर दिया है.” लेकिन इसके सामाजिक प्रभाव भी सामने आ रहे हैं. गोपालगंज के भोर गांव में राजेंद्र शर्मा कहते हैं - “नीतीश मेहरारुन के मनबढ़ु बना देलखिन. अब ऊ लोग बाते नहीं मानती.” यानी महिलाओं के आत्मनिर्भर होने से पारिवारिक समीकरण बदल रहे हैं. मधुबनी के प्रदीप ठाकुर, जो नाई का काम करते हैं, हंसते हुए कहते हैं - “अब घर में मर्द के कुछ सुनता नहीं. महिलाएं खुद मार्केट चली जाती हैं, खुद फैसले लेती हैं. नीतीश ने उनको बहुत ताकत दे दी.”
राजनीतिक विश्लेषकों की राय
राजनीतिक विश्लेषक और पूर्व विधान पार्षद प्रेम कुमार मणि कहते हैं कि नीतीश कुमार की महिलाओं के प्रति नीतियों की प्रेरणा इंदिरा गांधी के गरीब और महिला वर्ग पर केंद्रित अभियानों से आई थी. वह याद करते हैं, “नीतीश ने एक बार मुझसे कहा था - ‘लोग मेरी सरकार की आलोचना करेंगे, लेकिन कोई बिहार के मुख्यमंत्री को गाली नहीं देगा.’” मणि कहते हैं, “नीतीश ने 50% पंचायत आरक्षण से शुरुआत की, फिर साइकिल योजना और शिक्षा योजनाएं आईं. अब यह ‘दसहज़ारी’ योजना उनके राजनीतिक करियर का सबसे सटीक चुनावी दांव बन सकती है.”
‘मुख्यमंत्री महिला रोजगार योजना’ फिलहाल बिहार की राजनीति में केंद्र में है. जहां विपक्ष इसे चुनावी रिश्वत बता रहा है, वहीं समर्थक इसे ‘नीतीश मॉडल ऑफ़ एम्पावरमेंट’ कह रहे हैं. चाहे यह योजना वोट बटोरने में कितनी कारगर साबित हो, लेकिन इसमें कोई संदेह नहीं कि बिहार की महिलाएं अब राजनीति और समाज दोनों में पहले से कहीं ज़्यादा मुखर, आत्मविश्वासी और निर्णायक भूमिका निभा रही हैं.





