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अब किसके भरोसे 'आसमान नापेंगे' मुनीर और शहबाज, IMF के दबाव ने कतर दिए पर; नीलाम हो गया PIA

पाकिस्तान की राष्ट्रीय एयरलाइन PIA के निजीकरण ने देश की बदहाल अर्थव्यवस्था के साथ-साथ सत्ता की सुविधाओं पर भी सवाल खड़े कर दिए हैं. 135 अरब रुपये में 75% हिस्सेदारी बिकने के बाद अब यह चर्चा तेज है कि प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ और सेना प्रमुख आसिम मुनीर विदेश यात्राएं कैसे करेंगे. अब तक PIA सत्ता के लिए एक तरह की “सरकारी टैक्सी” रही है, लेकिन निजी हाथों में जाने के बाद विशेष उड़ानों पर रोक लग सकती है. यह सौदा सिर्फ आर्थिक नहीं, बल्कि राजनीतिक और सैन्य व्यवस्था के लिए भी बड़ा झटका माना जा रहा है.

अब किसके भरोसे आसमान नापेंगे मुनीर और शहबाज, IMF के दबाव ने कतर दिए पर; नीलाम हो गया PIA
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नवनीत कुमार
Edited By: नवनीत कुमार

Updated on: 24 Dec 2025 12:34 PM IST

पाकिस्तान की सरकारी एयरलाइन्स PIA नीलाम हो चुकी है. आरिफ हबीब ग्रुप ने इसकी 75% हिस्सेदारी खरीद ली है. पाकिस्‍तान के लिए अगर इसे झटका माना जाए तो उससे कहीं ज्‍यादा उसके हुक्‍मरानों के लिए ये बुरी खबर है. छोटी-छोटी बात को लेकर सऊदी अरब और अमेरिका का दौरा करने वाले उसके हुक्‍मरानों के लिए PIA ही एक मात्र सहारा था, जब मर्जी हो उड़ चलो. लेकिन अब जब वह प्राइवेट हो चुकी है तो सवाल उठ रहे हैं कि शहबाज शरीफ और मुनीर अब विदेश यात्रा कैसे करेंगे. क्‍योंकि निजी विमान से यात्रा करना कंगाल पाकिस्‍तान के बस की बात नहीं लगती.

हर बात के लिए भारत से तुलना करने वाला पड़ोसी इस मामले में वो भी नहीं कर सकता क्‍योंकि भारत में तो अमेरिका व कुछ अन्‍य शक्तिशाली देशों की तरह राष्‍ट्रपति और प्रधानमंत्री व अन्‍य की यात्राओं के लिए एयर इंडिया वन जैसी डेडिकेटेड सेवा मौजूद है, लेकिन पाकिस्‍तान का क्‍या, वहां तो खाने के भी लाले पड़ते रहते हैं.

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अब कैसे उड़ेंगे मुनीर और शहबाज?

PIA के निजीकरण के बाद सबसे बड़ा सवाल यह है कि पाकिस्तान की सत्ता के शीर्ष चेहरे विदेश यात्राएं किस तरह करेंगे. अब तक सरकारी एयरलाइन Pakistan International Airlines शासक वर्ग के लिए एक तरह की “तैयार सुविधा” थी जब चाहा, विमान उपलब्ध. निजी हाथों में जाने के बाद यह सुविधा पहले जैसी नहीं रहेगी, क्योंकि हर उड़ान अब कॉन्ट्रैक्ट, किराया और व्यावसायिक शर्तों से बंधी होगी.

सेना प्रमुख Asim Munir के लिए यह स्थिति इसलिए भी असहज है, क्योंकि सेना खुद को राज्य की सबसे ताकतवर संस्था मानती रही है. लेकिन आर्थिक तंगी के दौर में महंगे चार्टर विमानों का खर्च उठाना न सिर्फ कठिन है, बल्कि राजनीतिक और सार्वजनिक आलोचना भी बुलावा देगा. सैन्य दौरों में अब “लॉजिस्टिक्स” भी रणनीतिक मुद्दा बन सकता है.

वहीं प्रधानमंत्री Shehbaz Sharif के सामने दोहरी चुनौती है. एक तरफ वे निजीकरण को सुधार का प्रतीक बता रहे हैं, दूसरी तरफ हर विदेशी यात्रा पर खर्च का सवाल उठेगा कि जब देश कर्ज, महंगाई और IMF के दबाव से जूझ रहा हो. कुल मिलाकर, अब मुनीर और शहबाज की उड़ानें सिर्फ आसमान में नहीं, बल्कि घरेलू राजनीति और आर्थिक बहस के रडार पर भी रहेंगी.

निजीकरण या मजबूरी का सौदा?

पाकिस्तान की सरकारी एयरलाइन Pakistan International Airlines (PIA) का 75% हिस्सा आरिफ हबीब ग्रुप को बेचा जाना सिर्फ एक कारोबारी फैसला नहीं, बल्कि बदहाल अर्थव्यवस्था की मजबूरी भी है. 135 अरब रुपये में हुआ यह सौदा दिखाता है कि कर्ज, घाटा और कुप्रबंधन ने पाकिस्तान को अपनी राष्ट्रीय पहचान से जुड़ी संस्थाएं तक बेचने पर मजबूर कर दिया है. सवाल यह है कि क्या यह सुधार की शुरुआत है या सिर्फ आग बुझाने की एक और कोशिश?

सत्ता और सुविधाओं का पुराना सहारा

PIA सिर्फ एक एयरलाइन नहीं थी, बल्कि सत्ता के गलियारों में इसे “सरकारी टैक्सी” की तरह इस्तेमाल किया जाता रहा. जब चाहा विदेश दौरा, जब चाहा विशेष उड़ान. खासकर सऊदी अरब और अमेरिका जैसे देशों के लिए. अब निजीकरण के बाद वही सुविधा क्या उसी तरह जारी रह पाएगी, या फिर नई प्रबंधन शर्तें सत्ता के लिए असहज साबित होंगी?

शहबाज शरीफ पर उठते सवाल

प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ ने इस सौदे को पाकिस्तान के इतिहास का सबसे बड़ा और पारदर्शी लेनदेन बताया, लेकिन असली सवाल उनकी विदेश नीति और यात्राओं से जुड़ा है. क्या निजी PIA प्रधानमंत्री को उसी तरह विशेष उड़ानें देगी? या फिर कंगाल अर्थव्यवस्था में निजी चार्टर का खर्च उठाना संभव होगा? यह निजीकरण शहबाज सरकार की सुविधाजनक कूटनीति पर सीधा असर डाल सकता है.

आसिम मुनीर और सेना की भूमिका

पाकिस्तान में सेना सिर्फ सुरक्षा बल नहीं, बल्कि सत्ता का एक मजबूत स्तंभ है. सेना प्रमुख आसिम मुनीर की विदेश यात्राएं रणनीतिक और राजनीतिक दोनों मानी जाती हैं. ऐसे में सवाल उठता है कि क्या निजी एयरलाइन सेना के लिए वही प्राथमिकता और नियंत्रण स्वीकार करेगी? या फिर सेना को भी अब संसाधनों की कमी का सामना करना पड़ेगा?

भारत से तुलना क्यों नहीं हो पा रही?

हर मुद्दे पर भारत से तुलना करने वाला पाकिस्तान यहां खुद को असहज स्थिति में पाता है. भारत में राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री की यात्राओं के लिए एयर इंडिया वन जैसी डेडिकेटेड सेवाएं हैं. पाकिस्तान के पास ऐसा कोई स्थायी और सुरक्षित ढांचा नहीं है. ऐसे में PIA का निजीकरण इस अंतर को और उजागर करता है.

निवेश की शर्तें और सरकारी बोझ

सरकार ने PIA की 654 अरब रुपये की देनदारियां खुद उठाईं और निवेशक से अगले पांच वर्षों में 80 अरब रुपये निवेश की शर्त रखी. यह दर्शाता है कि एयरलाइन को बेचने से पहले भी सरकार को भारी कीमत चुकानी पड़ी. निजीकरण से तात्कालिक राहत तो मिली, लेकिन दीर्घकालिक सुधार अभी भी अनिश्चित है.

सुधार की उम्मीद या सत्ता की चिंता?

यदि निजी प्रबंधन PIA को मुनाफे में लाता है, तो यह आर्थिक सुधार का संकेत हो सकता है. लेकिन अगर सत्ता प्रतिष्ठान अपनी पुरानी विशेष सुविधाएं बचाने की कोशिश करता रहा, तो टकराव तय है. यह सौदा असल में पाकिस्तान के शासकों के लिए एक चेतावनी है कि आर्थिक बदहाली अब सीधे उनकी जीवनशैली और कूटनीति को प्रभावित करने लगी है.

आर्थिक हकीकत का आईना

PIA का निजीकरण पाकिस्तान की आर्थिक हकीकत का आईना है. सवाल सिर्फ एयरलाइन का नहीं, बल्कि उस व्यवस्था का है जो वर्षों से विशेषाधिकारों पर टिकी रही. अब देखना यह है कि शहबाज शरीफ और आसिम मुनीर इस नए दौर में खुद को कैसे ढालते हैं, या फिर यह सौदा उनकी सत्ता-सुविधाओं पर सबसे बड़ा झटका साबित होता है.

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