तेजस्वी के 'वन फैमिली वन जॉब' एलान पर अर्थशास्त्री का बड़ा बयान, कहा- 'दावे हवा हवाई नहीं', लेकिन पैसे कहां से लाएंगे?
तेजस्वी यादव के ‘वन फैमिली वन जॉब’ वादे पर मानव विकास अर्थशास्त्री प्रोफेसर संतोष मेहरोत्रा ने चौंकाने वाला बयान दिया है. उन्होंने कहा कि यह दावा पूरी तरह असंभव नहीं है, बशर्ते सरकार वित्तीय प्रबंधन और रोजगार संरचना को सही दिशा में ले जाए. मेहरोत्रा ने यह भी कहा कि बिहार की अर्थव्यवस्था को देखते हुए यह योजना लागू करना चुनौतीपूर्ण जरूर है, लेकिन 'हवा हवाई' तो कतई नहीं है.

बिहार चुनाव 2025 में तेजस्वी यादव का सबसे बड़ा दांव ‘हर परिवार से एक सरकारी नौकरी’ अब चर्चा का केंद्र बन चुका है. जहां विपक्ष इसे “अवास्तविक सपना” बता रहा है, वहीं अब देश के प्रमुख मानव विकास अर्थशास्त्री प्रो. संतोष मेहरोत्रा ने कहा है कि इस दावे को खारिज करना जल्दबाजी होगी. उन्होंने कहा कि यदि नीति निर्माण और बजट आवंटन की प्राथमिकताएं बदली जाएं और सरकार की नीयत सही हो तो “वन फैमिली वन जॉब” योजना जमीन पर उतारा जा सकता है. फिलहाल, अहम सवाल यह है कि तेजस्वी यादव ने हर परिवार में एक सरकारी नौकरी देने का वादा तो कर दिया, पर पैसे कहां से लाएंगे? फिलहाल, तेजस्वी के दावे के पक्ष और विपक्ष दोनों तरफ से अपने-अपने तर्क दिए जा रहे हैं.
इसके जवाब खुद देते हुए तेजस्वी यादव ने पटना में चुनावी रैली के दौरान कहा, “हम ऐसा कानून लाएंगे जिससे बिहार के हर परिवार के एक सदस्य को सरकारी नौकरी का अधिकार मिलेगा. सरकार बनने के 20 दिन के भीतर इसकी प्रक्रिया शुरू कर देंगे. इससे बेरोजगारी खत्म होगी और हर घर में स्थिर आय का स्रोत बनेगा.” हालांकि, NDA और बीजेपी ने इस वादे को ‘आर्थिक छलावा’ बताया है.
पहला पक्ष : राजकोषीय दिवालियेपन का नुस्खा तो नहीं?
आंकड़े एक नजर में :
1. दरअसल, बिहार में वादे करने की राजनीतिक आकांक्षाओं पर फलती-फूलती है, लेकिन यह हमेशा अंकगणित को नजरअंदाज कर देती है. तेजस्वी का ऐलान वाहवाही बटोरने के लिए है, ऑडिट के लिए नहीं. वह 2.35 करोड़ अतिरिक्त सरकारी नौकरियां पैदा करने का वादा कर रहे हैं, जो मौजूदा कार्य बल से 10 गुना ज़्यादा है.
2. बिहार के पूर्व उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव का "हर बिहारी परिवार के लिए एक सरकारी नौकरी" का वादा एक सोची-समझी नीति से कम और चुनावी नाटक ज्यादा है.
3. साल 2026 में बिहार की अनुमानित आबादी 13.56 करोड़ है. बिहार में मतदाताओं की संख्या 7.42 करोड़ है. चालू वित्तीय वर्ष का वार्षिक बजट 3.16 लाख करोड़ रुपये
4. इस बात को ध्यान में रखते हुए आर्थिक विशेषज्ञों का कहना है कि यह योजना राज्य की वित्तीय क्षमता से बहुत आगे है. एक्सपर्ट का कहना है कि अगर इसे 'डायरेक्ट गवर्नमेंट जॉब' की बजाय कॉंट्रैक्ट या स्किल-लिंक्ड एम्प्लॉयमेंट के रूप में लागू किया जाए तो बहुत तक दावों के अनुरूप लक्ष्य को हासिल करना संभव है.
5. हाल के राज्य-स्तरीय अनुमानों के अनुसार बिहार की जनसंख्या लगभग 12.7 करोड़ (2025 का अनुमान) है, जिसका अर्थ है लगभग 2.35 करोड़ परिवार.
6. बिहार जाति सर्वेक्षण के अनुसार लगभग 20.5 लाख लोग सरकारी नौकरी में हैं, जो कुल जनसंख्या का लगभग 1.57% है. यह सरकारी कर्मचारियों का वह कार्य बल है जिस पर राज्य पहले से ही अपना वेतन खर्च करता है.
7. 20 लाख मौजूदा नौकरियों के साथ प्रति परिवार एक नौकरी के वादे के अनुसार राज्य को 2.35 करोड़ नौकरियों के लिए वेतन देना है. इन आंकड़ों के अलावा, हाल ही में तैयार किए गए राज्य के खातों की जांच करने पर, बिहार का वेतन या मजदूरी पर वार्षिक व्यय 45,000 करोड़ रुपये से अधिक दिखाई देता है. इस हिसाब से आज प्रति सरकारी कर्मचारी औसत वार्षिक वेतन लागत लगभग 2.2 लाख रुपये है.
8. मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के 12 लाख नौकरियों के पहले के आश्वासन का विपक्ष ने अवास्तविक बता कर मजा उड़ाया गया था. यह नया वादा इस कल्पना को और आगे ले जाता है, अतिशयोक्ति से लेकर आर्थिक आत्म-विनाश तक.
9. एक वेतन विधेयक 2025-26 के बजट में बिहार के लगभग 20 लाख कर्मचारियों के वेतन और मजदूरी व्यय का अनुमान लगभग 40,000 से 50,000 करोड़ रुपये लगाया गया है. इस प्रकार प्रति कर्मचारी प्रति वर्ष औसतन 2.17 से 2.2 लाख रुपये की लागत आती है. तेजस्वी के वादे के अनुसार 2.35 करोड़ नए कर्मचारियों की मांग को इससे गुणा करें, तो यह आंकड़ा सालाना लगभग 4.6 लाख करोड़ रुपये बैठता है.
10. बिहार बजट 2024-25 के अनुसार राज्य द्वारा प्रतिबद्ध व्यय पर 92,882 करोड़ रुपये खर्च करने का अनुमान है, जो उसकी अनुमानित राजस्व प्राप्तियों का 41% है. इसमें वेतन (राजस्व प्राप्तियों का 18%), पेंशन (14%), और ब्याज भुगतान (9%) पर खर्च शामिल है. 2024-25 में वेतन पर होने वाले खर्च में वृद्धि दर्ज होने का अनुमान है.
दूसरा पक्ष: 'सरकार की नीयत हो तो लक्ष्य मुश्किल नहीं', अर्थशास्त्री संतोष मेहरोत्रा
राष्ट्रीय जनता दल के नेता तेजस्वी यादव द्वारा बिहार के हर परिवार के एक सदस्य को सरकारी नौकरी दिलाने के दावों पर मानव अर्थशास्त्री संतोष मेहरोत्रा का कहना है, 'उनका दावा हवा-हवाई नहीं है. उन्होंने कहा कि दावों के अनुरूप सभी को सरकारी नौकरी तो नहीं, लेकिन सरकार की नीयत ठीक हो तो सरकारी, गैर सरकारी, संगठित और असंगठित क्षेत्र में उतने लोगों को रोजगार देना संभव है. हां, इसके लिए सरकार को लगातार प्रयास करने होंगे. तेजस्वी यादव सरकार बनने पर हले साल में 7.5 लाख से ज्यादा युवाओं को सरकारी नौकरियां दे सकते हैं.
नीयत ठीक हो तो पहले साल में 7.5 लाख नौकरी देना संभव
प्रोफेसर संतोष मेहरोत्रा की दो साल पहले सिर्फ 'बिहार की अर्थव्यवस्था और रोजगार' पर केंद्रित एक रिपोर्ट 'जनरेटिंग यूथ एम्प्लॉयमेंट इन बिहार' नवंबर 2023 में जारी की थी. रिपोर्ट का सब्जेक्ट है 'कैन बिहार इकोनॉमी वर्कआउट ऑफ इट्स लो इनकम टैक्स'.
अर्थशास्त्री संतोष मेहरोत्रा का कहना है कि बिहार की पुलिस सेवा, स्वास्थ्य सेवा और शिक्षा विभाग में कार्यरत मानव श्रम ही 85 प्रतिशत हैं. इन तीनों सेवाओं में ही स्थायी रोजगार और पहले से वेकेंट पोस्ट लाखों की संख्या में हैं. स्कूल टीचर, एसोसिएट प्रोफेसर, डॉक्टर, इंजीनियर, पुलिस के जवान, एएनएम, आशा वर्कर, सिपाही, चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी, व अन्य को ही जोड़ लें तो तेजस्वी 7.5 लाख लोगों को पहले साल में ही स्थायी रोजगार दे सकते हैं.
निजी क्षेत्र को शामिल करने पर पूर्ण लक्ष्य भी संभव
उन्होंने कहा कि सरकारी के अलावा निजी क्षेत्र में निवेश संगठित और असंगठित क्षेत्र को जोड़ लिया जाए तो तेजस्वी ने जो लक्ष्य किए हैं, उसे तत्काल तो नहीं लेकिन कुछ वर्षों में पूरे किए जा सकते हैं. प्रो. मेहरोत्रा ने ये भी कहा कि सरकार चाहे किसी की हो, अगर उसकी नीयत रोजगार सृजन की है तो ऐसा संभव है. उन्होंने अपनी रिपोर्ट में रोजगार सृजन के अवसर कैसे बनाए जाएं, इसका भी जिक्र किया है. जहां तक सरकार के राजकोष में इजाफे की बात है तो मेहरोत्रा का कहना है कि शराबंदी कर आपने हजारों करोड़ रुपये सरकारी खजाने में चूना लगा रखा है. जबकि शराब माफिया के जरिए घर शराब पहुंचाए जा रहे हैं. संपत्ति कर, चुंगी कर व अन्य सरकारी आय के संसाधनों का आपको आकलन करना होगा और उसकी वसूली तय करनी होगी. इस दिशा में अभी तक काम हुआ ही नहीं है. फिर, रोजगार बढ़ाएंगे और प्रदेश में निवेश को बढ़ावा देंगे तो राजकोष में इजाफा अपने आप होगा.
ऐसा न करने पर बिहार में सुधार की गुंजाइश कम
प्रोफेसर संतोष मेहरोत्रा के मुताबिक अगर कर्मचारी बड़े पैमाने पर भर्ती नहीं किए गए तो वहां की सरकार सेवाओं में सुधार की आप कल्पना भी नहीं कर सकते. ऐसा इसलिए कि वहां, आम जनता में कौशल की बहुत कमी है. शिक्षा, स्वास्थ्य और पुलिसिंग सिस्टम बहुत कमजोर है.
उन्होंने कहा, "हकीकत यह है कि बीजेपी शीर्ष नेता पीएम मोदी और जेडीयू प्रमुख नीतीश कुमार मूल बात पर किसी का ध्यान नहीं जाने दे रहे हैं. नीतीश कुमार ने पिछले 20 सालों में बिहार की अर्थव्यवस्था की रीढ़ की हड्डी तोड़ दी है. नीतीश 15 साल के जंगल रात की बात कर लोगों को बरगला रहे हैं."
20 साल में प्रति व्यक्ति आय में नहीं कर पाए बढ़ोतरी
नीतीश सरकार के दौरान आप लोगों की प्रति व्यक्ति आय की बात करेंगे तो आप पाएंगे कि 2005 में बिहार के लोगों की जो औसत आया है वो राष्ट्रीय औसत की 30 प्रतिशत ही थी. आज भी राष्ट्रीय औसत की तुलना में बिहार की स्थिति वही है. यानी 2005 से लेकर 2025 तक नीतीश को बिहार को संवारने का मौका मिला. इसके बावजूद आय के लिहाज से बिहार वहीं है, जहां दो दशक पहले हुआ करता था. इस दौरान पलायन करने वालों की संख्या में इजाफा जरूर हुआ.
सीएम नीतीश कुमार ने संगठित और असंगठित क्षेत्र में रोजगार के अवसर पैदा करने के लिए कुछ नहीं किया. उद्यमियों के सुरक्षा की चिंता नहीं की. उनके कार्यकाल के दौरान जो नाम मात्र का रोजगार बढ़े हैं, वो कंस्ट्रक्शन और रियल स्टेट से जुड़े रोजगार हैं. बिहार की बच्चियों के लिए उन्होंने साइकिल योजना की शुरुआत की थी, जिसका असर पूरे देश पर हुआ. माध्यमिक शिक्षा में लड़कियों की संख्या में इजाफा भी हुआ, लेकिन उनकी उस योजना की अहमियत को समझते हुए दूसरे राज्यों में इस क्षेत्र में बेहतर काम किया. इस मामले में नीतीश की योजना पर अमल कर दूसरे राज्यों ने अच्छा परफॉर्म किया.
संतोष मेहरोत्रा ने अफसोस जाहिर करते हए कहा, "नीतीश कुमार पेशे से इंजीनियर थे, लेकिन इंजीनियरिंग विधा का इस्तेमाल उन्होंने बिहार और उसके युवाओं के भविष्य निर्माण के लिए नहीं किया. इसका इस्तेमाल उन्होंने सिर्फ अपनी सरकार बचाने के लिए किया. उनकी वर्तमान योजनाएं सियासी 'रेवड़ी' के अलावा कुछ नहीं है."
प्रोफेसर मेहरोत्रा का कहना है कि हर घर की महिलाओं को 10 हजार रुपये देने की योजना नीतीश सरकार की बहुत बड़ी भूल है. इससे बिहार सरकार के राजस्व को सालाना 25 हजार करोड़ रुपये का नुकसान होगा. ऐसे ही रेवड़ी बांटने का काम जारी रहा तो बिहार का कल्याण संभव नहीं है.
मानव विकास अर्थशास्त्री संतोष मेहरोत्रा संयुक्त राष्ट्र के यूएनडीपी और यूनिसेफ बतौर अर्थशास्त्री काम कर चुके हैं. जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी, इलाहाबाद यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर भी रहे हैं. वर्तमान में वह ब्रिटेन के बाथ यूनिवर्सिटी और मॉस्को यूनिवर्सिटी में विजिटिंग प्रोफेसर हैं. बिहार की अर्थव्यवस्था और रोजगार पर उनकी एक पुस्तक दो से तीन महीने में प्रकाशित होने वाली है.