बिहार चुनाव में क्या रंग लाएगी चाचा-भतीजे की अदावत, चिराग को कितनी चुनौती दे पाएंगे पशुपति पारस?
Bihar Chunav 2025: बिहार चुनाव में चाचा (पशुपति पारस) भतीजे (चिराग पासवान) की अदावत सिर्फ परिवार तक सीमित नहीं है. यह एनडीए के लिए राजनीतिक चुनौती भी है. अगर सीट बंटवारे और प्रचार में तालमेल नहीं हुआ तो यह रार पूरे सियासी समीकरण को बदल सकती है. ऐसा इसलिए कि पशुपति पारस महागठबंधन से चुनाव लड़ने की तैयारी में जुटे हैं.

Bihar Elections 2025: बिहार विधानसभा चुनाव 2025 में एलजेपी रामविलास यानी चिराग पासवान और आरएलजेपी पशुपति पारस के बीच की सियासी जंग एक बार फिर सुर्खियों में है. लोकसभा चुनाव के बाद से पारस गुट कमजोर पड़ गया था, लेकिन चिराग के खिलाफ हार नहीं मानी है. इस बार यह मामला ज्यादा रोचक इसलिए भी है कि चिराग पासवान बनाम पशुपति पारस की अदावत एनडीए बनाम महागठबंधन की जंग से भी जुड़ गया है. दोनों के बीच यह जंग क्या एनडीए समीकरणों को प्रभावित करेगी या वोटरों पर इसका उल्टा असर होगा, यही सबसे बड़ा सवाल है? 2025 के चुनाव में ये पारिवारिक टकराव किसे भारी पड़ेगा, चिराग को या पारस को?
1. पारिवारिक मतभेद से सियासी जंग तक
रामविलास पासवान के निधन के बाद लोजपा दो गुटों में बंट गई. एक तरफ थे चिराग पासवान, जिन्होंने 'बिहार फर्स्ट, बिहारी फर्स्ट' और बिहार अस्मिता के नारे के साथ खुद को रामविलास पासवान का असली वारिस बता रहे हैं तो दूसरी तरफ उनके चाचा पशुपति पारस हैं, जिन्होंने पार्टी का नियंत्रण अपने हाथ में ले लिया. यह विभाजन अब चुनावी मैदान में निर्णायक मोड़ पर पहुंच चुका है. बिहार विधानसभा चुनाव तय हो जाएगा कि कौन शेर और कौन सवा शेर. लोकसभा चुनाव 2024 में एलजेपीआर ने पांच में से पांच सीटों पर बढ़त हासिल कर रखी है. अगर पशुपति पारस का गुट विधानसभा चुनाव में भी कमजोर पड़ा तो इस लड़ाई में चिराग पासवान बाजी मार ले जाएंगे.
2. ‘वन मैन शो’ बन गई LJPR
2020 के बिहार विधानसभा चुनाव के बाद LJP के अंदर नेतृत्व को लेकर मतभेद खुलकर सामने आए. पशुपति पारस ने दावा किया कि पार्टी ‘वन मैन शो’ बन गई है और चिराग अपने तरीके से निर्णय ले रहे हैं. 2021 में पारस ने पार्टी के 6 में से 5 सांसदों को साथ लेकर LJP को दो हिस्सों में बांट दिया. पहला चिराग पासवान का गुट और दूसरा पशुपति पारस का गुट राष्ट्रीय लोक जनशक्ति पार्टी.
3. पार्टी संपत्ति और प्रतीक चिन्ह विवाद
दोनों गुटों का दावा LJP के चुनाव चिन्ह 'बंगला' और पार्टी ऑफिस पर है. चुनाव आयोग ने अंततः दोनों को अलग-अलग इकाई के रूप में मान्यता दी. संपत्ति और पार्टी फंड पर अधिकार को लेकर भी कोर्ट में केस चल चुके हैं.
4. NDA के लिए भी मुश्किलें बढ़ीं
चिराग पासवान जहां एनडीए के सहयोगी दलों के साथ तालमेल में नजर आ रहे हैं, वहीं पशुपति पारस की नाराजगी एनडीए के लिए सिरदर्द बन सकती है. पारस गुट ने कई सीटों पर अपने प्रत्याशी उतारने की तैयारी शुरू कर दी है, जिससे एनडीए के वोटों में सेंध पड़ने का खतरा है. पारस गुट महागठबंधन से संपर्क में है. फिर, पासवान वोट बैंक बिहार की राजनीति में निर्णायक भूमिका निभाता है. खासकर दलित और विशेषकर पासवान समाज में. दोनों ही गुट अपनी-अपनी ताकत दिखाने की कोशिश में हैं.
बिहार में दलितों का वोट 20 प्रतिशत के करीब है. इसमें पासवान समुदाय का वोट सबसे ज्यादा माना जाता है. चिराग जहां युवा चेहरे के रूप में लोकप्रियता बटोर रहे हैं, वहीं, पारस का फायदा उनके अनुभवी चेहरे और जमीनी नेटवर्क से है. वहां से सम्मानजनक सीटें न मिलने पशुपति पारस ने अलग से सभी सीटों पर पार्टी की ओर से प्रत्याशी उतारने का फैसला लिया है.
बिहार विधानसभा चुनाव 2020 चुनाव में चिराग पासवान ने जेडीयू (नीतीश कुमार) के खिलाफ मोर्चा खोल दिया था, जबकि पारस NDA के साथ बने रहना चाहते थे. चिराग ने बीजेपी के समर्थन से चुनाव लड़ा लेकिन नीतीश के खिलाफ प्रचार किया, जिससे NDA में दरार आई. पारस ने बाद में खुद को 'वास्तविक NDA सहयोगी' बताया और मोदी सरकार में मंत्री भी बने.
5. चिराग की लोकप्रियता, पारस की संगठनात्मक पकड़
चिराग पासवान बिहार के युवाओं और पासवान वोट बैंक में खासे लोकप्रिय हैं. वहीं पशुपति पारस के पास संगठन और कार्यकर्ताओं पर मजबूत पकड़ है. खासकर खगड़िया, हाजीपुर और समस्तीपुर जैसे इलाकों में. यही वजह है कि यह मुकाबला दिलचस्प हो सकता है.
6. 'रामविलास की विरासत' का असली वारिस कौन?
दोनों ही नेता खुद को रामविलास पासवान की राजनीतिक विरासत का असली उत्तराधिकारी बताते हैं. चिराग भावनात्मक जुड़ाव पर राजनीति कर रहे हैं, जबकि पारस संगठन और अनुभव के बल पर अपनी जगह बनाए रखना चाहते हैं. इस मामले में पारस का दावा है कि उन्होंने अपने भाई के साथ पार्टी को बड़ा बनाया है. दोनों मिलकर लोक जनशक्ति पार्टी को नई पहचान दी थी.
7. विपक्ष भी भुना सकता है मौका
विपक्षी दल इस अदावत को राजनीतिक हथियार की तरह भुना सकते हैं- महागठबंधन और अन्य दल पासवान वोट बैंक में सेंध लगाने की कोशिश में हैं. अगर चाचा-भतीजे में दूरी बरकरार रही तो इसका सीधा फायदा विपक्ष को मिल सकता है.
8. जनता का मूड क्या कहता है?
जमीनी स्तर पर लोगों के बीच यह चर्चा है कि पारिवारिक कलह से लोजपा का जनाधार कमजोर हुआ है. कुछ लोग चिराग को युवा चेहरा मानते हैं जो नई सोच ला सकते हैं, जबकि पारस के समर्थक उन्हें 'अनुभव और स्थिरता' का प्रतीक बताते हैं, लेकिन उनमें पार्टी के समर्थकों को जोड़कर रखने की क्षमता कम है.
9. नतीजा तय करेगा कौन - चाचा या भतीजा?
बिहार चुनाव में लोजपा की भूमिका निर्णायक हो सकती है. अगर चिराग अपने युवा जोश और मोदी फैक्टर के सहारे सीटें निकालते हैं, तो वे एक बार फिर 'पासवान राजनीति' के असली चेहरा बन जाएंगे. लेकिन अगर पारस गुट वोट बैंक को तोड़ने में सफल होता है, तो चिराग के सामने चुनौती बढ़ जाएगी.