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EBC ही बनेंगे असली ‘किंगमेकर’: बिहार में सरकार की चाबी अति पिछड़ों के हाथ में, जानें सियासी गुना-गणित

बिहार की आबादी में EBC की हिस्सेदारी 36 फीसदी है. जो कि बिहार की राजनीति में अकेले ही निर्णायक वोट बैंक की तरह काम कर सकती है. यदि कोई दल या गठबंधन इस समूह को खींच लेता है तो सरकार बनाने का रास्ता उसके लिए काफी आसान हो जाएगा. इस लिहाज से कहा जा सकता है कि अगली सरकार का कुंजी EBC वोटरों के हाथ में है.

EBC ही बनेंगे असली ‘किंगमेकर’: बिहार में सरकार की चाबी अति पिछड़ों के हाथ में, जानें सियासी गुना-गणित
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बिहार की चुनावी राजनीति में अब सबसे चर्चित पहलू यह है कि अति पिछड़ा वर्ग (EBC) का वोट इस बार किसके पक्ष में जाएगा. 2023 में हुए जाति आधारित सर्वेक्षण ने यह साफ कर दिया है कि EBC अकेला ही किसी भी दल के लिए निर्णायक वोट बैंक और सरकार बनाने में मदद कर सकता है. कुल मतदाताओं में ईबीसी की हिस्सेदारी 36% से ऊपर है. 2005 से यह समूह नीतीश कुमार के साथ खड़ा है. इस बार आरजेडी, कांग्रेस और प्रशांत किशोर की पार्टी जन सुराज ने भी इस पर डोरे डाल दिए हैं. आरजेडी भरपूर कोशिश में जुटी है कि इसका कम से कम 5 से 10 प्रतिशत लालटेन को मिल जाए. ऐसा इसलिए कि उसके बाद तेजस्वी को भरोसा है वो मुस्लिम और यादव वोट बैंक के आधार पर सरकार बना सकते हैं.

ऐसे में यह सवाल अहम है कि बिहार में अगली सरकार किसकी बनेगी? क्या नीतीश कुमार इस बार भी अति पिछड़े मतदाताओं को जेडीयू से जोड़कर रख पाएंगे? इसी सवाल के जवाब में यह छिप है कि किसी चुनाव बाद सरकार बनेगी और किसकी नहीं.

क्या बताते हैं आंकड़े?

बिहार के 2022-23 के जाति सर्वेक्षण के अनुसार कुल आबादी में EBC की हिस्सेदारी लगभग 36.01 % है. इसके अलावा, ओबीसी (OBC) लगभग 27.12 % है. अगर EBC+OBC मिलकर करीब 63% हो जाते हैं. ऊपरी जातियों (General/Forward) की हिस्सेदारी सिर्फ 15.52 % है.

किंगमेकर की है ईबीसी की भूमिका

EBC के भीतर लगभग 130 से अधिक उप-जातियां आती हैं. इनमें तेली, मल्लाह, कनू, धानुक, नाई, लोहड़ आदि हैं. हालांकि, EBC-श्रेणी में किसी भी एक जाति का अकेला हिस्सा 3% से ज्यादा नहीं है. पिछले दो दशकों से मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने इस वोट बैंक को अपने साथ मजबूती से जोड़े रखा है. 36% से अधिक की हिस्सेदारी वाले अति पिछड़ा मतदाता चुनावी गणित में 'किंगमेकर' की भूमिका निभाते रहे हैं. सियासी विश्लेषकों का मानना है कि 2025 के विधानसभा चुनाव में EBC वोटरों को साधना ही निर्णायक हो सकता है.

किसकी, कहां है पकड़?

ग्रामीण इलाकों में EBC-समुदाय की पैठ बहुत बड़ी है. विशेषकर बांध-किनारे, नदी किनारे बसे मछुआरा-समुदाय, तेल व्यापार से जुड़े वर्ग, छोटे कारीगर आदि. शहर-प्रवासी क्षेत्रों में EBC-उपजातियों में शिक्षा, नौकरियों आदि में बढ़ोतरी हुई है, लेकिन राजनीतिक संगठन अभी तक व्यापक रूप से उन्हें एकजुट नहीं कर पाए हैं. EBC वोटर अक्सर 'सपोर्ट मॉडल' में आते हैं. यानी बड़े दल द्वारा बनाई गई योजनाओं से लाभ मिलने पर वोट बदलने की सोच इनमें होती है.

आरजेडी सेंध लगाने की कोशिश में

बिहार विधानसभा चुनाव 2025 से पहले से ही आरजेडी इस वोट बैंक में सेंध लगाने की कोशिश में जुटी है. ईबीसी वोट बैंक की ताकत को देखते हुए लालू यादव ने हाल ही में वरिष्ठ नेता मंगनी लाल मंडल को बड़े राजनीतिक कार्ड के रूप में पार्टी का प्रदेश अध्यक्ष नियुक्त किया था. उन्हें प्रदेश अध्यक्ष बनाए जाने के पीछे आरजेडी का बिहार में पिछड़ा कार्ड के रूप में देखा जा रहा है. पार्टी के प्रदेश प्रधान महासचिव की जिम्मेवारी भी फिर से रणविजय साहू को सौंप गई है. लोकसभा में सदन के नेता के रूप में औरंगाबाद के सांसद अभय कुशवाहा को जिम्मेवारी दी गई है.

बिहार में 214 जातियों का हुआ सर्वे

दो साल पहले बिहार में महागठबंधन की सरकार के समय जाति आधारित सर्वेक्षण करवाया गया था. इस सर्वे में 214 जातियां शामिल थीं. करीब 14 करोड़ की आबादी में पिछड़ा वर्ग और अत्यंत पिछड़ा वर्ग की आबादी 63.01% दर्ज की गई. पिछड़ा वर्ग में 142 जातियां हैं. इनमें से ईबीसी में कुल 112 जातियां हैं. जबकि पिछड़ा वर्ग में कल 30 जातियां हैं. पिछड़ा और अति पिछड़ा मिलाकर कुल 142 जातियां हैं. इनमें 100 ईबीसी जाति बेहद पिछड़ी जातियों में शुमार है. मुस्लिम जातियों में जुलाहा ही एकमात्र ऐसी जाति है, जिसकी मौजूदगी काफी है. यह कुल आबादी का 3.5% प्रतिशत है. सात अन्य जातियां- नोनिया, चंद्रवंशी, नाई, बरहाई, धुनिया (मुस्लिम), कुम्हार और कुंजरा (मुस्लिम) की आबादी 2% से कम है. इन 12 जातियों के अलावा बाकी 100 ईबीसी जातियों में से किसी की भी कुल आबादी में 1% भी हिस्सेदारी नहीं है.

नीतीश कहीं भी रहें ईबीसी का मिलता है उनको साथ

पिछले दो दशक का चुनाव इतिहास देखें तो हर बार ईबीसी वोटर नीतीश कुमार के साथ दिया है. नीतीश कुमार एनडीए में हों या फिर महागठबंधन में, नीतीश अपने साथ इन वोटरों को लेकर चलते हैं. 2005 के चुनाव में एनडीए को 143 सीटों पर समर्थन मिला. आरजेडी को 54 और कांग्रेस को 10 सीटों पर समर्थन मिला. 2005 में नीतीश कुमार को को EBC का पहला बड़ा समर्थन मिला था.

2010 विधानसभा चुनाव में नीतीश कुमार के साथ 70 प्रतिशत वोटर नीतीश कुमार के साथ दिखे. ईबीसी वोटर के कारण एनडीए को 206, आरजेडी को 22 और कांग्रेस को 4 सीटों पर समर्थन मिला. 2015 में आरजेडी को 80, जेडीयू को 71, बीजेपी को 53 और कांग्रेस को 27 सीटों पर समर्थन मिला.

2020 में एनडीए को 125 और महागठबंधन (राजद व अन्य) को 110 सीटों पर समर्थन मिला. ईबीसी 65–70% वोट नीतीश को को मिला, जिससे सत्ता बची. इस आंकड़ा से साफ हो गया कि नीतीश कहीं भी रहे उनके साथ ईबीसी वोटर चलते जा रहे हैं.

नीतीश कुमार के लिए चिंता की बात यह है कि 2005 से 2020 तक इसका आंकड़ा गिरता नजर आ रहा है. इसलिए आरजेडी ईबीसी में सेंध लगाने की कोशिश में है.

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