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नीतीश कुमार को क्यों है चुनाव में जीत का भरोसा? 5 प्वाइंट्स में समझें NDA की जीत का फॉर्मूला

बिहार चुनाव 2025 को लेकर सियासी दलों के बीच आरोप-प्रत्यारोप चरम पर है. इसके बावजूद जेडीयू प्रमुख और प्रदेश के सीएम नीतीश कुमार को इस बार भी एनडीए की चुनाव में जीत का भरोसा है. इसके लिए वह चुनावी रैलियों में लोगों को कई आधार गिनाते हैं. इसे समझने के लिए जानिए एनडीए रणनीति, नीतीश का सुशासन मॉडल, गठबंधन समीकरण और विपक्ष की कमजोरी क्या है?

नीतीश कुमार को क्यों है चुनाव में जीत का भरोसा? 5 प्वाइंट्स में समझें NDA की जीत का फॉर्मूला
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( Image Source:  ANI )

बिहार में विधानसभा चुनाव के लिए 6 और 11 नवंबर को वोट डाले जाएंगे. चुनावी जीत को लेकर सियासी दलों के बीच आरोप-प्रत्यारोप चरम पर है. बिहार चुनाव 2025 जैसे-जैसे नजदीक आ रहे हैं, उसी अनुपात में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का जीत को लेकर भरोसा भी बढ़ता जा रहा है. वह चुनावी रैलियों में पूरे आत्मविश्वास के साथ दावा करते हैं कि प्रदेश के मतदाताओं को एनडीए सरकार को एक बार और सरकार बनाने का मौका क्यों देना चाहिए. हालांकि, उनके इस आधार को विपक्ष आंख में धूल झोंकने वाला बताता है.

इसके जवाब में वो कहते हैं कि बिहार की जानता सब जानती है. आखिर कौन से वो कारण हैं, जिसके आधार पर नीतीश को इस बार भी सत्ता में वापसी का भरोसा है? आइए जानते हैं 5 बड़े प्वाइंटृस में सब कुछ.

1. सुशासन और विकास का अनुभव

नीतीश कुमार लगातार अपने “सुशासन बाबू” इमेज को आगे रख रहे हैं. उनका कहना है कि जब वह सीएम बने तो बिहार में एक भी एम्स नहीं था. आज बिहार में दो एम्स हैं. एक पटना में है और दूसरा दरभंगा में निर्माणाधीन है. अब बिहार में आईआईटी भी. पहले बिहार में एक भी केंद्रीय विश्वविद्यालय ने थे. अब दो केंद्रीय विश्वविद्यालय हैं. पहले जंगल राज था. अब बिहार में कानून का राज है. सड़क, बिजली, शिक्षा और महिला सशक्तिकरण की तो कोई चर्चा ही नहीं होती थी. अब बिहार में स्टेट रोड के अलावा 4 और 6 लेन की हाइवे वाली सड़कें हैं.

दरभंगा में हवाई अड्डा नहीं था. अब आधे बिहार के लोग इसी हवाई अड्डे से एयर सेवा का लाभ उठा रहे हैं. पूर्णिया में एयरपोर्ट भी चालू हो चुका है. भविष्य में इसे इंटरनेशनल एयरपोर्ट के रूप में बदलने की तैयारी है. मखाना बोर्ड का गठन करने का एलान हो चुका है. मिथिलांचल में मेडिकल कॉलेज और आईटीआई भी खुले हैं. मिथिला हाट भी है. इसी पूरे बिहार में कई एक्सप्रेस वे और हाईवे विकसित हुए हैं. महिला सशक्तिकरण की दिशा में कई स्तरों पर काम हुए हैं.

2. NDA गठबंधन का मजबूत समीकरण

महागठबंधन में शामिल दलों के बीच टिकट बंटवारे में एकता कहीं नहीं है. सभी अपना अपना राग अलाप रहे हैं. एनडीए में वैसा नहीं है. सभी दलों ने आपसी सहमति से टिकटों का बंटवारा किया और एकजुटता के साथ चुनाव लड़ रहे हैं. महागठबंधन में 10 से ज्यादा सीटों पर तो वे लोग खुद एक-दूसरे के खिलाफ चुनाव लड़ रहे हैं. एनडीए पूरी तरह से एकजुट है.

3. जातीय समीकरण पर पकड़

नीतीश कुमार की राजनीति हमेशा सामाजिक समीकरणों पर आधारित रही है. अति पिछड़ी, कुर्मी, पिछड़ा और महिला वोट बैंक में जेडीयू सभी पार्टियों से बेहतर है. सवर्ण वोट बैंक पर बीजेपी का एकाधिकार है. ईबीसी, दलित, कुशवाहा, कोइरी, दुसाध, पासवान, मल्लाह व अन्य पिछड़ी जातियों पर चिराग पासवान, जीतन राम मांझी और उपेंद्र कुशवाहा की पकड़ है. यानी वोट पर पकड़ आज भी मजबूत है. यही आधार उन्हें जीत का भरोसा देता है.

4. विपक्ष की अंदरूनी कलह

महागठबंधन में लगातार मतभेद, टिकट वितरण से असंतोष और नेतृत्व संकट एनडीए के लिए फायदे का सौदा साबित हो रहा है. नीतीश मानते हैं कि विपक्ष की एकता सिर्फ कागजों पर है. अगर इसकी तुलना महागठबंधन से करें तो केवल आरजेडी का एमवाई वोट मजबूत माना जा सकता है. केवल इसके भरोसे एनडीए को हराना संभव नहीं है. उसके अलावा महागठबंधन में शामिल किसी भी दलों को कोई स्थायी वोट बैंक नहीं है. मुकेश सहनी दावा कर रहे हैं, लेकिन पांच साल पहले उनकी पार्टी को चार सीटों पर जीत बीजेपी की वजह से मिली थी. उनकी लोकप्रियता जमीन पर साबित होना बाकी है.

5. व्यक्तिगत छवि और शासन शैली

नीतीश कुमार अब भी बिहार की राजनीति में सबसे अनुभवी चेहरा हैं. विकास कार्यों और कानून व्यवस्था पर पकड़ की वजह से उन्हें सुशासन बाबू का तमगा भी हासिल है. विपक्षी दलों के नेता भी उनकी ईमानदार और सादगीपूर्ण छवि को स्वीकार करते हैं. यही ‘ट्रस्ट फैक्टर’ उन्हें भरोसा दिलाता है कि जनता फिर से उन्हें मौका देगी.

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