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Bihar SIR विवाद : राजनीतिक दलों की निष्क्रियता पर सुप्रीम कोर्ट ने उठाए सवाल, कहा - आप कर क्‍या रहे हैं?

बिहार में वोटर लिस्ट के विशेष पुनरीक्षण (SIR) पर सुप्रीम कोर्ट ने राजनीतिक दलों की निष्क्रियता पर कड़ी नाराज़गी जताई. अदालत ने पूछा कि जब राज्य में 1.68 लाख बूथ लेवल एजेंट (BLA) तैनात हैं तो केवल दो आपत्तियां ही क्यों दर्ज हुईं? कोर्ट ने सभी 12 राजनीतिक दलों को आदेश दिया कि वे अपने कार्यकर्ताओं को स्पष्ट निर्देश दें और उन 65 लाख मतदाताओं की मदद करें जिनके नाम ड्राफ्ट लिस्ट से गायब हैं.

Bihar SIR विवाद : राजनीतिक दलों की निष्क्रियता पर सुप्रीम कोर्ट ने उठाए सवाल, कहा - आप कर क्‍या रहे हैं?
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( Image Source:  Sora AI )
प्रवीण सिंह
Edited By: प्रवीण सिंह

Updated on: 22 Aug 2025 2:54 PM IST

बिहार में चल रहे वोटर लिस्ट के विशेष पुनरीक्षण (Special Intensive Revision - SIR) को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने राजनीतिक दलों की निष्क्रियता पर कड़ी नाराज़गी जताई है. अदालत ने सवाल उठाया कि जब राज्य में 1.68 लाख बूथ लेवल एजेंट (BLA) तैनात हैं, तो अब तक केवल दो आपत्तियां ही क्यों दर्ज की गईं? न्यायमूर्ति सूर्यकांत की अध्यक्षता वाली पीठ ने सभी 12 मान्यता प्राप्त राजनीतिक दलों को आदेश दिया कि वे अपने कार्यकर्ताओं को स्पष्ट निर्देश जारी करें ताकि वे उन 65 लाख मतदाताओं की मदद कर सकें जिनके नाम 1 अगस्त को प्रकाशित ड्राफ्ट वोटर लिस्ट से गायब पाए गए.

सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि लोग आधार कार्ड सहित 11 मान्य दस्तावेजों के साथ ऑनलाइन या ऑफलाइन फॉर्म-6 के जरिए आपत्तियां दर्ज करा सकते हैं. विपक्षी दलों ने आरोप लगाया है कि लाखों जीवित मतदाताओं को मृत घोषित कर सूची से हटा दिया गया है, जिससे व्यापक स्तर पर मताधिकार प्रभावित होगा. अदालत ने कहा कि यह राजनीतिक दलों की जिम्मेदारी है कि वे लोगों को जागरूक करें और शिकायत दर्ज कराने में सहयोग करें. सुप्रीम कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि यदि फिजिकल फॉर्म जमा किए जाते हैं तो संबंधित बूथ लेवल अधिकारी इसकी रसीद देना सुनिश्चित करें.

सुप्रीम कोर्ट की सख्त टिप्पणी

न्यायमूर्ति सूर्यकांत और उनकी पीठ ने सुनवाई के दौरान कहा, “हमें यह देखकर आश्चर्य हो रहा है कि बिहार में 1.68 लाख बूथ लेवल एजेंट नियुक्त किए गए हैं, लेकिन अब तक केवल दो आपत्तियां ही दर्ज की गई हैं. यह राजनीतिक दलों की निष्क्रियता को दर्शाता है. आखिर ये एजेंट कर क्या रहे हैं?”

अदालत ने साफ शब्दों में कहा कि सभी राजनीतिक दलों को अपने कार्यकर्ताओं को निर्देश देना चाहिए कि वे मतदाताओं की मदद करें और यह सुनिश्चित करें कि जिनके नाम सूची से गायब हैं, उनकी आपत्ति दर्ज हो.

राजनीतिक दलों को दिए गए आदेश

सुप्रीम कोर्ट ने बिहार के 12 राजनीतिक दलों को आदेश दिया कि वे लिखित रूप से अपने कार्यकर्ताओं को यह निर्देश दें कि लोग फॉर्म-6 भरकर ऑनलाइन या ऑफलाइन आवेदन कर सकें. आधार कार्ड सहित 11 मान्य दस्तावेजों का उपयोग कर सकें. जिन लोगों के नाम सूची में नहीं हैं, उन्हें यह सुविधा दी जाए कि वे आसानी से अपनी आपत्ति दर्ज करा सकें. सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि जब भी कोई व्यक्ति फिजिकल फॉर्म जमा करे, तो संबंधित बूथ लेवल अधिकारी (BLO) उसकी रसीद अवश्य दें.

विपक्ष के आरोप

विपक्षी दलों ने सुप्रीम कोर्ट में दलील दी कि विशेष पुनरीक्षण में कई गंभीर गड़बड़ियां हैं. कई जीवित लोगों को “मृत” घोषित कर दिया गया. जिन लोगों का नाम पहले से वोटर लिस्ट में था, उन्हें ड्राफ्ट से हटा दिया गया. कई मतदाताओं का नाम एक भी सूची में दर्ज नहीं है. कांग्रेस के वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल और अभिषेक मनु सिंघवी ने अदालत से कहा कि उनके बूथ लेवल एजेंटों को शिकायत दर्ज करने की अनुमति ही नहीं दी जा रही.

अदालत का जवाब

अदालत ने विपक्ष की इस दलील को संज्ञान में लिया और कहा कि यदि ऐसी शिकायतें आ रही हैं, तो राजनीतिक दलों को इसे सबूत सहित चुनाव आयोग के सामने रखना चाहिए. अदालत ने इस मामले में 12 मान्यता प्राप्त राजनीतिक दलों को आधिकारिक रूप से पक्षकार (impleaded) भी बना लिया.

आधार और अन्य दस्तावेज मान्य

सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग को निर्देश दिया कि आधार कार्ड को 11 अन्य दस्तावेजों के साथ मान्य दस्तावेज माना जाए. यानी अब लोग वोटर लिस्ट में नाम दर्ज कराने या सुधार कराने के लिए आधार कार्ड का उपयोग कर सकेंगे. अदालत ने यह भी दोहराया कि ऑनलाइन आवेदन की सुविधा सभी को दी जाए और इसके लिए किसी तरह के शारीरिक आवेदन (physical presence) की अनिवार्यता नहीं होनी चाहिए.

बूथ लेवल एजेंटों की भूमिका

अदालत ने BLAs यानी बूथ लेवल एजेंटों की निष्क्रियता पर सवाल उठाया. जब इतने सारे BLAs नियुक्त किए गए हैं, तो वे कर क्या रहे हैं? आखिर उनका काम ही यही है कि वे जनता से जुड़ें और उन्हें मदद करें. यह राजनीतिक दलों की जिम्मेदारी है कि वे अपने कार्यकर्ताओं को सक्रिय करें.” सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि BLAs को यह जांच करनी होगी कि जो 65 लाख नाम सूची से गायब हुए हैं, वे लोग वाकई मृत हैं, कहीं और चले गए हैं या फिर उन्हें गलत तरीके से हटाया गया है.

आगामी चुनावों पर असर

बिहार में विधानसभा चुनाव इसी साल होने हैं और इस विवाद का सीधा असर राजनीतिक माहौल पर देखा जा रहा है. विपक्ष इसे मतदाताओं को वंचित करने की साजिश बता रहा है, जबकि चुनाव आयोग का कहना है कि यह प्रक्रिया पूरी तरह पारदर्शी है और हर नागरिक को आपत्ति दर्ज करने का अवसर दिया गया है.

बिहार विधानसभा चुनाव 2025सुप्रीम कोर्ट
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