EXPLAINER ‘SIR’: बिहार में चल रहे विशेष गहन पुनरीक्षण यानी ‘सर’ को लेकर ‘हो-हल्ला’ मचाने वालों अंदर की बात भी तो समझो
बिहार में चल रहे Special Intensive Revision (SIR) यानी विशेष गहन पुनरीक्षण को लेकर राजनीतिक घमासान तेज है. विपक्ष इस पर 'वोट चोरी' का आरोप लगाते हुए चुनाव आयोग और केंद्र सरकार पर हमला कर रहा है, जबकि बीजेपी इसे प्रक्रिया का हिस्सा बता रही है. राहुल गांधी ने इसे लेकर पदयात्रा भी शुरू की है. पूर्व विदेश मंत्री सलमान खुर्शीद ने इसे लोकतंत्र पर खतरा बताया, वहीं पूर्व जस्टिस एसएन ढींगरा ने कहा कि यह राजनीतिक शोर ज्यादा है.

इन दिनों देश में अगर को कोई सबसे ज्यादा बवाली या चर्चा वाली खबर है तो वह, बिहार में शुरू किए गए विशेष गहन पुनरीक्षण यानी ‘सर’ (Special Intensive Revision SIR) को लेकर है. भाजपा और उसके समर्थित राजनीतिक दलों को छोड़कर पूरा विपक्ष इस विषय पर देश के मौजूदा मुख्य चुनाव आयुक्त और केंद्र में मौजूद नरेंद्री मोदी-अमित शाह की हुकूमत के पीछे हाथ धोकर पड़ा है. संसद में विपक्ष के नेता और कांग्रेस सांसद राहुल गांधी तो बाकायदा इस गरमा-गरम राजनीतिक मुद्दे को हाथों-हाथ ‘कैश’ कराने की उम्मीद में 16-17 दिन की ‘पदयात्रा’ तक पर निकल पड़े हैं.
यह विशेष गहन पुनरीक्षण यानी ‘सर’ को लेकर आखिर बवाल या सच्चाई है क्या? देश के लाखों-करोड़ों लोग इसके अंदर का मर्म समझे बिना ही बस अखबारों में छपी खबरों और टीवी पर फैली बे-सिर-पैर की पंचायतों को देख-सुनकर ही बिफरे पड़े हैं. इन बिफरने वालों में वे लाखों तमाशबीन भी केंद्रीय सत्ता और बीजेपी को पानी पी-पीकर कोसने में पीछे नहीं हैं, जिनका मतदाता पहचान पत्र के पुनरीक्षण प्रक्रिया से दूर-दूर तक का कोई लेना-देना नही है. बस चूंकि रोज इसे लेकर खबरें अखबारों में प्रमुखता से छप रही हैं. और टीवी पर इस मुद्दे को लेकर रोजाना शाम के वक्त डिबेट के नाम पर ‘महा-पंचायतें’ बैठ या सज रही हैं. तो तमाशबीन भी उसी को सही मानकर बाकी तमाम भीड़ द्वारा मचाई जा रही ‘चिल्ल-पों’ में शुमार होकर खुद भी शोर मचाने पर उतर आए हैं.
आखिर इसकी इनसाइड स्टोरी है क्या?
असल में विशेष गहन पुनरीक्षण यानी ‘सर’ (Special Intensive Revision SIR) की ‘इनसाइड’ स्टोरी है क्या? कितने सही या दमदार हैं ‘सर’ की आड़ में सत्ताधारी दल और मौजूदा भारतीय चुनाव आयुक्त के ऊपर विपक्षी-राजनीतिक दलों द्वारा मढ़े जा ‘वोट-वोटर-चोरी’ के आरोप? इन्हीं तमाम सवालों के जवाब पाने की उम्मीद में स्टेट मिरर हिंदी के एडिटर ने बात की देश के पूर्व केंद्रीय मंत्री, उच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश और राजनीतिक दल के वरिष्ठ वक्ताओं से. ताकि इस ‘सर’ या ‘वोट-चोरी’ के आरोप-प्रत्यारोप की जड़ में छिपी इनसाइड स्टोरी बाहर निकल कर जमाने के सामने आ सके. खासकर उन शोरगुल मचाने वालों के सामने जिन्हें ‘सर’ का भले ही ‘सिर-पैर’ न मालूम हो मगर, शोर मचाने वालों की जमात में सबसे आगे और जोर-शोर से गला फाड़-फाड़कर चीख-चिल्ला यही रहे हैं.
मतलब तो डेमोक्रेसी पर भी प्रश्न-चिन्ह लग गया...
“स्टेट मिरर हिंदी” के एडिटर से साथ विशेष बातचीत में नई दिल्ली में मौजूद पूर्व विदेश मंत्री खांटी कांग्रेसी नेता और सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ काउंसिल सलमान खुर्शीद बोले, “चोरी वोट की हो या फिर किसी और की. चोरी को सही तो नहीं कहा जा सकता है. चोरी और चोरी का शब्द दोनों ही बुरे हैं. लेकिन जब इस शब्द का इस्तेमाल लोकतंत्र में होने लगे तो बेहद खतरनाक है. इस शब्द का डेमोक्रेसी में इस्तेमाल किये जाने का मतलब तो डेमोक्रेसी पर भी प्रश्न-चिन्ह लग गया. यही आज जो भी तथ्य सामने आए हैं. चाहे वह महाराष्ट्र के हों या कर्नाटक के बिहार के हों. यह सब तथ्य साबित करते हैं कि कहीं न कहीं कुछ न कुछ तो बहुत गलत हो रहा है. इस गड़बड़ का फायदा कौन उठायेगा या इसका नाजायाज फायदा किसे लगेगा इसका अंदाजा लगा लेना बेहद आसान है. लेकिन यह गड़बड़ नहीं होनी चाहिए. मैं अपना वोट कहां किसको डालना-देना चाहूं, लोकतंत्र में इसकी स्वतंत्रता तो मतदाता को मिली हुई है ही. तब भी इस पर प्रत्यक्ष अप्रत्यक्ष रूप से सही मगर ब्रेक लगाने की कोशिश क्यों? इस स्वतंत्रता पर अंकुश लगाना तो गलत बात है. इसी मुद्दे पर हमारे नेता राहुल गांधी ने जो कदम खुलकर इसके विरोध में उठाया है, वह सराहनीय है. राहुल गांधी द्वारा सर या वोट चोरी के खिलाफ शुरू की गई लड़ाई को हम अंतिम क्षण तक लड़ते रहेंगे. राहुल गांधी इस मुद्दे पर पीछे नहीं हटेंगे.”
संवैधानिक पद पर बैठा व्यक्ति किसी राजनीतिक दल का नहीं होता
स्टेट मिरर हिंदी के एक सवाल के जवाब में पूर्व विदेश मंत्री सलमान खुर्शीद (Salman Khurshid) बोले, “मैं क्योंकि सुप्रीम कोर्ट हाईकोर्ट वकालत करता हूं. मैं वहां अपने साथियों को यह बताता हूं कि आप अगर व्यवस्था या न्यायायिक व्यवस्था पर ही प्रश्न चिन्ह लगा देंगे तब फिर आप न्याय के लिए जाएंगे किसके पास? हमको यह विश्वास रखना चाहिए कि भारत की संवैधानिक व्यवस्था में न्यायाधीश का पद बहुत बड़ा सम्मानित और विश्वसनीय होता है. न्यायाधीश कहीं से आए किसी भी व्यवस्था के साथ न्यायाधीश बनने से पहले तक वह इनसान जुड़ा रहा हो, किसी भी राजनीतिक पार्टी-दल से उसका कोई भी संबंध रहा हो. मगर जब वह न्यायाधीश के आसन पर बैठता है तो वह सिर्फ और सिर्फ न्यायाधीश होता है. यही गरिमा राष्ट्रपति और उप-राष्ट्रपति के पद की होती है. इन पदों पर आसीन होने वाली शख़्सियत फिर सिर्फ और सिर्फ संवैधानिक व्यवस्था के प्रति जवाबदेह होती है न कि उसका मतलब किसी दल पार्टी या व्यक्ति विशेष से होना चाहिए.
सभी को विश्वास में ले मुख्य चुनाव आयुक्त
हमें विश्वास रखना होगा भारतीय न्याय-व्यवस्था के ऊपर. वहां से कुछ न कुछ सफलता जरूर हमें मिलेगी. संभव है कि एक दो बार हमें न्याय व्यवस्था की ओर से निराशा हाथ लगे. अंतत: न्यायालय से हमें न्याय मिलने की ही सकारात्मक सोच के साथ आगे बढ़ना चाहिए. सर के मामले में भी मुझे और हमारी कांग्रेस पार्टी (Congress on SIR) को पूरी उम्मीद है कि आज नहीं तो कल, देर-सवेर सच निकल कर सामने जरूर आ जाएगा. और सर के मामले में हमारी कोशिशों को सफलता जरूर मिलेगा. जहां तक बात इस बवाल में देश के मौजूदा मुख्य चुनाव आयुक्त ज्ञानेश कुमार की भूमिका की है तो, उनके सामने सवाल कर्नाटक, महाराष्ट्र और बिहार में उनकी भूमिका को लेकर खड़ा है. मुख्य चुनाव आयुक्त के सामने न केवल बिहार अपितु कर्नाटक और महाराष्ट्र का ब्योरा भी रखा गया है. मुख्य चुनाव आयुक्त के सामने सवाल इस बात का है कि वे इन तमाम सवालों का जवाब कैसे अपनी जिम्मेदारी निभाकर देते हैं.
'मुख्य चुनाव आयुक्त से हुई घोर निराशा'
मुख्य चुनाव आयुक्त (Chief Election Commissioner Yogesh Kumar) के लिए जरूरी यह है आज के दौर में कि वह लोगों को किस तरह से विश्वास में लेकर आगे बढ़ पाते हैं. हालांकि, हमारी कांग्रेस पार्टी को आज के वक्त में देश के चीफ इलेक्शन कमीश्नर से घोर निराशा हुई है. इसमें शक नहीं है. देश के लिए हमारी राजनैतिक-संवैधानिक व्यवस्था के लिए यह अच्छी बात नहीं है. ऐसा नहीं है कि वह आज भी इस पर कोई सही कदम न उठा सकें. उन्हें इस पर गंभीरता से सोचना होगा. वे पक्षपात से देश की सेवा नहीं कर सकते हैं. अगर वे गलत हैं तो अपनी गलती पर विचार करें. संभव है कि हम (सर के विरोध में उतरी कांग्रेस पार्टी और उसके समर्थक दल) इस मुद्दे पर कहीं गलत हों. तो वे (मुख्य चुनाव आयोग और आयुक्त) हमें भी हमारी गलती तथ्यों के साथ बताएं-समझाएं. अगर वे (भारत का चुनाव आयोग) गलत हैं तो उन्हें बड़ा दिल करके अपनी गलती को मानकर उसमें सुधार कर लेना चाहिए. लोकतांत्रिक व्यवस्था में संविधान की रक्षा के लिए यही होना भी चाहिए. न कि किसी गलत बात को सही साबित करने की जिद पर अड़ने से संविधान और लोकतंत्र को बचाया जा सकता है.”
हमारे जैसे बड़े देश में संवैधानिक पदों पर बैठे हुए लोगों पर प्रश्न-चिन्ह लगाना आसान
देश के पूर्व विदेश मंत्री और सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) के वरिष्ठ अधिवक्ता सलमान खुर्शीद एक सवाल के जवाब में कहते हैं, ‘हमारे जैसे बड़े लोकतांत्रिक देश में संवैधानिक पदों पर बैठे हुए लोगों के ऊपर प्रश्न-चिन्ह लगाना बेहद आसान होता है. लेकिन उस प्रश्न चिन्ह का भुगतान करना आसान नहीं होता है. हम जहां तक हो सके अपनी बात स्पष्ट रूप से संवैधानिक पदों पर आसीन लोगों के सामने लेकर पहुंचें. ताकि जन-भावनाओं की भी सुरक्षा बनी रहे और संवैधानिक व्यवस्था भी कलंकित न होने पाए. मैं समझता हूं हमारी पार्टी इस मुद्दे पर गहन विचार-विमर्श कर रही है. हां, अब तक जिस तरह से मुख्य चुनाव आयुक्त ने अपना चेहरा दिखाया है, उससे उम्मीद हमारी पार्टी को किसी न्याय के मिलने की तो नहीं रही है. मगर चुनाव आयोग की तरह ही देश का उच्च न्यायालय भी एकदम हाथ खड़े कर लेगा. यह कहना अनुचित है.’
SIR पर शोर शराबा जायज नहीं
इस मुद्दे पर दिल्ली उच्च न्यायालय के सेवानिवृत्त न्यायाधीश जस्टिस शिव नारायन ढींगरा (Justice Shiv Narayan Dhingra Delhi High Court) ‘सर’ के मुद्दे पर स्टेट मिरर हिंदी से एक्सक्लूसिव बातचीत में कहते हैं, “दरअसल यह जितना ज्यादा शोर विशेष पुनरीक्षण प्रक्रिया को लेकर मचा है देश में. वह मेरी नजर में जायज नहीं है. मैं न तो किसी राजनीतिक दल से ताल्लुक रखता हूं न ही मुझे कहीं का राज्यपाल-मुख्यमंत्री बनना है. न ही मैं नेता-मंत्री हूं या बनने का इच्छुक हूं. मैं एक पूर्व न्यायाधीश हूं और जनमानस के मुकदमों को सुनते रहने के अनुभव से अपने निजी विचार व्यक्त कर रहा हूं. सर को लेकर राजनीतिक दल ही क्यों बवाल मचा रहे हैं? आखिर उन्हें ही सर क्यों सबसे ज्यादा अखर रहा है? आम आदमी तो नहीं चीख-चिल्ला रहा है. दरअसल जहां तक मैं समझता हूं यह सिर्फ राजनीतिक मुद्दा भर है. जो आज उछाला जा रहा है या उछल रहा है. आने वाले दिनों में कुछ वक्त बाद सब ठंडा पड़ जाएगा.
वोट चोरी कर डालने जैसी बात कहां से आ पड़ी है?
मेरी समझ में जितना आ रहा है उसके मुताबिक सरकार उन मतदाताओं को पहचान कर बाहर कर रही है सरकारी अभिलेखों से, जो रिकॉर्ड में तो मौजूद हैं मगर वास्तव में उनका कोई अस्तित्व नहीं है. कई ऐसे भी मतदाता इस छंटनी में बाहर किए जा रहे होंगे जिन्होंने लंबे समय से अपने मतदान के अधिकार का सदुपयोग ही नहीं किया होग. कुछ ऐसे भी हो सकते हैं इस छटनी के जरिए बाहर किए जाने वालों में जिन्होंने अपने कई कई मतदाता पहचान पत्र बनवा रखे होंगे. कुछ ऐसे भी हो सकते हैं इस अभियान में छांटकर बाहर किए जाने वालों जो, मूल रूप से भले ही बिहार के रहने वाले हों. मगर वे देश के किसी अन्य स्थान पर लंबे समय से रहकर वहां का अपना मतदाता पहचान पत्र बनवाकर उसी स्थान पर ही अपने मताधिकार का भी उपयोग कर रहे होंगे. ऐसे में अगर कोई हुकूमत इन मृत-प्राय: पड़े वोटरों को छांटकर सरकारी रिकॉर्ड से बाहर कर रही है. ताकि एक्टिव मतदाताओं की सही गिनती हो सके. तो इसमें विरोधी या वोट चोरी कर डालने जैसी बात कहां से आ पड़ी है? इसमें तो किसी जायज इंसान को कोई आपत्ति ही नहीं होनी चाहिए. बाकी राजनीतिक दल क्या कर रहे हैं, क्यों कर रहे हैं? यह वे जानें. इससे मेरा कोई वास्ता नहीं है. हां, इतना जरूर है कि इस मामले में सुप्रीम कोर्ट भी आंख मूंदकर तो कोई फैसला जल्दबाजी में नहीं लेगा-देगा. क्योंकि जो बिंदु मैं इंगित कर रहा हूं सुप्रीम कोर्ट भी उन बिंदुओं पर नजर जरूर डालेगा. सुप्रीम कोर्ट वही करेगा जो उसे संवैधानिक रूप से दिखाई दे रहा होगा. सुप्रीम कोर्ट अगर अपनी जगह सही होगा तो वह न तो किसी राजनीतिक दल की ओर देखेगा न ही चुनाव आयोग की ओर विशेष नजर से देखेगा. वह वही करेगा और करना भी चाहिए जो उसे कागज पर रिकॉर्ड में दिखाई देगा.”
'भाजपा की कथनी और करनी में फर्क अंदर तक जानता हूं'
इस मामले में स्टेट मिरर हिंदी से विशेष बातचीत में समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय प्रवक्ता आईपी सिंह ने कहा, “यह काम सिर्फ और सिर्फ भारतीय जनता पार्टी बिहार विधानसभा 2025 चुनावों में अपनी सत्ता के खिसकते सिंहासन की सलामती के लिए कर रही है. जिसमें उसे सफलता नहीं मिलेगी. मान भी लूं कि बिहार की मतदाता सूची में कहीं कोई कोर-कसर या संदेह था भी तो फिर, भाजपा और उसके सहयोगी दलों को यह बिहार विधानसभा के बीते चुनाव के वक्त क्यों नहीं दिखाई दिया. दरअसल भारतीय जनता पार्टी इस वोट-चोरी अभियान की आड़ में बिहार व अन्य उन राज्यों में जहां बीजेपी की हुकूमत नहीं है, राजनीतिक कब्जा करने की बदनीयती से यह वोट-चोरी का काम कर रही है. इसका सच आज नहीं तो कल भारत की जनता के सामने आना ही है. मैं चूंकि 29 साल भारतीय जनता पार्टी का कर्मठ कार्यकर्ता रहा हूं. अब मैं समाजवादी पार्टी का कारिंदा हूं. इसलिए मैं भारतीय जनता पार्टी की कथनी और करनी का फर्क बेहद अंदर तक का जानता हूं. भाजपा स्वहित के लिए किसी भी हद तक गिर सकती है.”