बिहार SIR विवाद: सुप्रीम कोर्ट ने कहा, यह मतदाताओं के खिलाफ नहीं, बल्कि उनके हित में है - 10 बड़ी बातें
सुप्रीम कोर्ट ने बिहार की विशेष 'Special Intensive Revision' (SIR) प्रक्रिया को 'वोटरों के खिलाफ' नहीं बताया, बल्कि कहा कि इसमें 'लॉजिक' है और चुनाव आयोग को संशोधित मतदाता सूची चलानी चाहिए. कोर्ट ने यह भी पुष्टि की कि नागरिकता के माध्यम से मतदाता सूची से किसी को हटाने का अधिकार आयोग का है, पर ‘SIR’ का समय विधानसभा चुनाव से पहले उपयुक्त नहीं माना. साथ ही, कोर्ट ने Aadhaar, EPIC और राशन कार्ड को दस्तावेजों में शामिल करने पर आयोग को विचार करने का निर्देश दिया.

बिहार में विधानसभा चुनाव से पहले मतदाता सूची संशोधन यानी स्पेशल इंटेंसिव रिवीजन (SIR) को लेकर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई जारी है. विपक्ष का आरोप है कि इस प्रक्रिया के जरिए बड़े पैमाने पर वोटरों के नाम सूची से हटाए जा रहे हैं, खासतौर पर उन लोगों के जो पहले कई चुनावों में मतदान कर चुके हैं. वहीं, चुनाव आयोग का कहना है कि SIR का उद्देश्य किसी को बाहर करना नहीं, बल्कि मतदाता सूची को अधिक सटीक और अद्यतन बनाना है. इसी मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट में वरिष्ठ वकील अभिषेक मनु सिंघवी और कपिल सिब्बल ने विपक्ष की ओर से दलीलें दीं, जबकि आयोग ने अपने बचाव में आंकड़े और नियमों का हवाला दिया.
सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने साफ किया कि अगर पहचान के लिए दस्तावेजों की संख्या घटा दी जाती या सभी 11 दस्तावेज अनिवार्य कर दिए जाते, तब इसे मतदाता-विरोधी कहा जा सकता था. लेकिन SIR में पहचान साबित करने के लिए पहले जहां केवल 7 दस्तावेज मान्य थे, वहीं अब 11 में से कोई भी एक दस्तावेज पर्याप्त है. अदालत ने इसे "मतदाता हितैषी" कदम बताया और आधार कार्ड को नागरिकता का निर्णायक प्रमाण मानने से इनकार किया.
बिहार SIR विवाद – सुप्रीम कोर्ट सुनवाई की 10 बड़ी बातें
- सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि SIR प्रक्रिया मतदाताओं के खिलाफ नहीं है, बल्कि पहले से ज्यादा पहचान के दस्तावेज मान्य कर, मतदाता हित में बदलाव किए गए हैं.
- पहले संक्षिप्त संशोधन में केवल 7 दस्तावेज मान्य थे, अब SIR में 11 में से कोई एक दस्तावेज पर्याप्त है, सभी अनिवार्य नहीं किए गए.
- वरिष्ठ वकील अभिषेक मनु सिंघवी ने ‘लाल बाबू’ फैसले का हवाला देकर कहा, पिछले मतदान कर चुके मतदाताओं को बिना ठोस कारण सूची से नहीं हटाया जा सकता.
- कपिल सिब्बल ने तर्क दिया कि फॉर्म-6 में आधार कार्ड जन्मतिथि प्रमाण के रूप में सूचीबद्ध है, लेकिन SIR में आयोग इसे स्वीकार नहीं कर रहा है.
- सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि आधार कार्ड नागरिकता का निर्णायक प्रमाण नहीं हो सकता, यह केवल पहचान का प्रमाण है; आधार अधिनियम की धारा 9 यही कहती है.
- जस्टिस बागची ने कहा कि दस्तावेजों की संख्या बढ़ना मतदाताओं के पक्ष में है, क्योंकि पहचान के लिए अधिक विकल्प मिल रहे हैं, न कि कोई प्रतिबंध.
- सुप्रीम कोर्ट ने चेतावनी दी कि यदि मृत व्यक्तियों को जीवित या जीवित व्यक्तियों को मृत दिखाया गया है, तो आयोग को जवाब देना होगा और कार्रवाई भी हो सकती है.
- चुनाव आयोग ने कहा कि यह केवल ड्राफ्ट रोल है, जिसमें नागरिकों को आपत्ति और सुधार का अवसर दिया गया है, अंतिम सूची अभी प्रकाशित नहीं हुई.
- आयोग ने बताया कि नियमों के अनुसार गैर-शामिल नामों की अलग सूची या कारण प्रकाशित करना अनिवार्य नहीं है, और यह संवैधानिक अधिकार के तहत कार्य कर रहा है.
- सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि पहले प्रक्रिया की जांच होगी, फिर वैधता पर विचार होगा; विपक्ष को सलाह दी कि पीड़ित सीधे अदालत में शिकायत दर्ज कराएं.