MP कोर्ट का फैसला: अपनी मर्जी से पसंदीदा शख्स के साथ रह सकती है शादीशुदा महिला, परिवार तो क्या समाज भी नहीं रोक सकता
मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय की इंदौर पीठ ने एक ऐतिहासिक फैसले में वयस्क महिलाओं की व्यक्तिगत स्वतंत्रता में बड़ा फैसला सुनाया है. कोर्ट का कहना है कि एक शादीशुदा महिला अपनी मर्जी से अपने पसंदीदा शख्स के साथ रह सकती है. अगर महिला समझदार है और एडल्ट है तो उसे न तो परिवार रोक सकता है न ही समाज रोक सकता है.
मध्य प्रदेश हाई कोर्ट की इंदौर खंडपीठ ने एक बहुत ही महत्वपूर्ण और विचारोत्तेजक फैसला सुनाया है. अदालत ने साफ-साफ शब्दों में कहा है कि अगर कोई महिला पूरी तरह बालिग यानी वयस्क है, तो वह चाहे शादीशुदा हो या नहीं, अपनी मर्जी से किसी भी व्यक्ति के साथ रहने के लिए पूरी तरह आजाद है. कोई भी उसे जबरदस्ती रोक नहीं सकता. कोर्ट ने यह भी जोर देकर बताया कि अपनी जिंदगी जीने का तरीका चुनने का अधिकार और व्यक्तिगत स्वतंत्रता भारतीय संविधान द्वारा दिए गए मौलिक अधिकार हैं. इन अधिकारों को परिवार का दबाव या समाज की सोच के नाम पर कोई नहीं छीन सकता.
यह पूरी बात एक बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका (हेबियस कॉर्पस पिटिशन) की सुनवाई के दौरान सामने आई. यह याचिका राजस्थान के सवाई माधोपुर निवासी धीरज नायक नाम के एक व्यक्ति ने दायर की थी. धीरज नायक ने अपने वकील जितेंद्र वर्मा के जरिए हाई कोर्ट में अर्जी दी थी कि संध्या नाम की एक महिला उनकी अपनी इच्छा से उनके साथ रहना चाहती है, लेकिन महिला के माता-पिता उसे जबरन अपने पास रोककर रखे हुए हैं. वे उसकी आजादी छीन रहे हैं और उसे धीरज के पास नहीं जाने दे रहे हैं.
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क्या कहना है महिला का
शुक्रवार को जब इस मामले की सुनवाई हुई, तो पुलिस की सुरक्षा में संध्या नाम की उस महिला को हाई कोर्ट के सामने पेश किया गया. अदालत में महिला ने बिल्कुल साफ और स्पष्ट शब्दों में अपना बयान दिया. उसने कहा कि वह पूरी तरह बालिग है, अपनी समझ रखती है और पूरी तरह अपनी मर्जी से धीरज नायक के साथ रहना चाहती है. महिला ने यह भी आरोप लगाया कि उसके माता-पिता उसकी इच्छा के खिलाफ उसे घर में कैद करके रख रहे हैं. वे उस पर तरह-तरह का दबाव डाल रहे हैं ताकि वह अपना फैसला बदल ले.
'किसी और के साथ नहीं पति के साथ रहे....'
दूसरी तरफ महिला के माता-पिता ने अदालत में अपनी दलील रखी. उन्होंने कहा कि उनकी बेटी की पहले से ही शादी हो चुकी है, इसलिए उसे अपने पति के साथ ही रहना चाहिए. परिवार की इज्जत, समाज की मर्यादाएं और परंपराएं सब कुछ दांव पर लगी हैं. उनका कहना था कि बेटी का यह फैसला सही नहीं है और इसे रोकना चाहिए.
उसे रोकने का अधिकार नहीं समाज को
लेकिन हाई कोर्ट ने दोनों पक्षों की सभी दलीलों को ध्यान से सुना और फिर अपना फैसला सुनाया. जजों ने कहा कि कानून की नजर में सबसे बड़ा और महत्वपूर्ण तथ्य यह है कि महिला वयस्क है, वह खुद अपने जीवन के फैसले लेने के लिए पूरी तरह सक्षम है. कोर्ट ने यह भी साफ किया कि शादी हो जाना किसी महिला की व्यक्तिगत स्वतंत्रता को खत्म नहीं कर देता. अगर वह अपनी खुशी से किसी दूसरे व्यक्ति के साथ रहना चाहती है, तो उसे रोकने का किसी को अधिकार नहीं है न परिवार को और न ही समाज को.
महिला दोहराती रही बयान
दरअसल, इससे पहले 2 दिसंबर को हुई सुनवाई में हाई कोर्ट ने ही निर्देश दिए थे कि महिला का बयान ठीक से दर्ज किया जाए. कोर्ट के आदेश पर एक न्यायिक मजिस्ट्रेट ने भी महिला से अलग से बयान लिए थे. उन बयानों में भी महिला ने बार-बार यही बात दोहराई थी कि उसके माता-पिता उसे जबरन अपने कब्जे में रखे हुए हैं और वह धीरज के साथ जाना चाहती है. अंत में शुक्रवार की सुनवाई के बाद हाई कोर्ट ने बड़ा और साहसी फैसला लिया. अदालत ने संध्या को धीरज नायक के साथ जाने की पूरी अनुमति दे दी. महिला की सुपुर्दगी भी धीरज नायक को सौंप दी गई. साथ ही कोर्ट ने पुलिस को सख्त निर्देश दिए कि दोनों को सुरक्षित तरीके से सवाई माधोपुर तक पहुंचाया जाए, ताकि रास्ते में कोई अनहोनी न हो और किसी तरह का खतरा न पैदा हो.





