Bihar Election 2025: राहुल गांधी ने ‘सासाराम’ से ही पदयात्रा क्यों शुरू की? कांग्रेस का मर्म समझते ही दिल्ली का दिल बैठ जाएगा!
बिहार चुनाव 2025 को लेकर राहुल गांधी ने अपनी वोटर अधिकार यात्रा सासाराम से शुरू की, जिसने सबको चौंका दिया. ऐतिहासिक-राजनीतिक महत्व वाले पटना, वैशाली, भागलपुर या राजगीर की बजाय सासाराम को चुनना कांग्रेस की गहरी रणनीति मानी जा रही है. सासाराम वही जगह है जहां शेरशाह सूरी ने मुगल बादशाह हुमायूं को हराकर दिल्ली की गद्दी छीन ली थी.

भारतीय जनता पार्टी और उसके समर्थक राजनीतिक दलों के बीच ‘पप्पू’ के नाम से मशहूर और लोकसभा में विपक्ष के नेता व कांग्रेसी सांसद राहुल गांधी इन दिनों बिहार में 16-17 दिन की पदयात्रा पर हैं. यह पदयात्रा उन्होंने बिहार राज्य के तमाम ऐतिहासिक-राजनीतिक महत्व के स्थानों को छोड़कर, उस छोटी सी जगह ‘सासाराम’ से शुरू की है जिसकी, राष्ट्रीय या अंतरराष्ट्रीय पटल पर अपनी कोई खास पहचान ही नहीं है. आखिर क्यों?
इसी सवाल का जवाब तलाशने की कोशिश जब स्टेट मिरर हिंदी के एडिटर ने की तो, कई सनसनीखेज बातें निकल कर सामने आईं. वे अंदर की बातें-वजहें जिन्हें जानकर या सुनकर कोई भी हैरत में पड़ जाएगा. राहुल गांधी की 17 अगस्त 2025 से शुरू हुई यह यात्रा आगामी 1 सितंबर 2025 को पटना में एक बड़ी रैली के साथ समाप्त होगी. जिक्र करना जरूरी है कि जैसे ही एक सप्ताह पहले सासाराम से राहुल गांधी के इस पदयात्रा को शुरू करने की सुगबुगाहट शुरू हुई, वैसे ही न केवल बिहार और देश का मीडिया या आमजन हैरान रह गया. अपितु इस खबर की सुगबुगाहट से बिहार राज्य और देश की राजनीति से जुड़े कद्दावर नेता भी चौंक गए. क्योंकि हर कोई इस यात्रा के शुरू किए जाने की जगह-स्थान के बारे में अंदाजा तो राज्य की राजधानी पटना से होने की सोचे बैठा था. अचानक बीच में रातों-रात ‘सासाराम’ का नाम आया तो हर कोई चौंक गया. चकराने वाली बात भी थी, कि जिस सासाराम का कोई महत्व ही न हो वहां से इतनी बड़ी और इतने बड़े कांग्रेसी नेता की पदयात्रा की शुरूआत किए जाने की जड़ में वजह भी कोई न कोई बड़ी ही होगी.
भितिहरवा गांधी आश्रम को भी नहीं चुना राहुल गांधी ने
बिहार में सासाराम के सामने तो इतने बड़े पौराणिक, ऐतिहासिक, राजनीतिक नजरिए से मशहूर स्थान हैं कि यह पदयात्रा उन्हीं स्थानों से शुरू होनी चाहिए थी. जैसे कि बिहार के पश्चिमी चंपारण में जिले में मौजूद भितिहरवा गांधी आश्रम. 1917 में स्थापित इसी आश्रम से कभी महात्मा गांधी ने अंग्रेजों की सत्ता को सत्याग्रह आंदोलन की शुरूआत करके उन्हें खुली चुनौती दी थी. चंपारण में नील की खेती और किसानों के शोषण के खिलाफ आवाज उठाने के लिए इसी आश्रम से आंदोलन शुरू किया गया था. इतने बड़े और चर्चित ऐतिहासिक-राजनीतिक स्थल से भी राहुल गांधी ने अपनी पदयात्रा शुरू नहीं की.
जहां से शुरू हुआ दुनिया का पहला लोकतंत्र वह भी...
बिहार राज्य की हद में स्थित जिस वैशाली में दुनिया का सबसे बड़ा और पहला लोकतंत्र शुरू हुआ था और जहां अब से करीब डेढ़ दो हजार साल पहले दुनिया की सबसे बड़ी व पहली पार्लियामेंट शुरू हुई थी. ऐसे पुराने खूबसूरत ऐतिहासिक महत्व वाले वैशाली को भी राहुल गांधी ने अपनी पदयात्रा शुरू करने के लिए कोई महत्व नहीं दिया. या फिर बिहार में एक और ऐतिहासिक व राजनीतिक महत्व वाली जगह है ‘राजगीर’. प्राचीन काल में राजगीर विशाल साम्राज्य का केंद्र भी रहा था. जिस राजगीर ने बड़े बड़े साम्राज्यों, सम्राटों राजा-महाराजाओं को चुनौती दी हो. उस राजगीर को भी राहुल गांधी ने अपनी इस पदयात्रा की शुरूआत करने के काबिल नहीं समझा. बिहार की हद में मौजूद जो 'पाटलीपुत्र' सैकड़ों साल तक भारत की राजधानी रही. ऐसे पाटलीपुत्र को भी राहुल गांधी की इस पदयात्रा को शुरू करवाने के लिए कांग्रेस और कांग्रेसियों ने मुनासिब नहीं समझा.
ऐतिहासिक भागलपुर भी कांग्रेसियों को नहीं सुहाया
ऐसा नहीं है कि सासाराम के अलावा और बिहार में ऐसी कोई दूसरी राजनीतिक ऐतिहासिक महत्व की जगहें ही नहीं मौजूद नहीं थीं, जहां से राहुल गांधी की यह पदयात्रा शुरू हो सकती थी. एक जगह था भागलपुर, जिसका अपना सुनहरा सामाजिक-राजनीतिक रुतबा-रसूख रहा है. जिसे दुनिया लंबे समय तक सूत-पुत्र ही समझती रही महाभारत के उन वीर योद्धा दानवीर कर्ण ने भी इसी भागलपुर का सिंहासन राजा बनकर संभाला था. राहुल गांधी की पदयात्रा की शुरूआत करने के लिए कांग्रेसियों को ऐसा भागलपुर भी नहीं सुहाया. आखिर क्यों? यह वही ऐतिहासिक भागलपुर है जिसका जिक्र देश के मशहूर लेखक कवि रामधारी सिंह दिनकर ने भी अपनी कविताओं में खुलकर किया है.
और तो और यह सब छोड़ भी दें तो इस तथ्य को कैसे नजरंदाज कियाजा सकता है कि, राहुल गांधी की दादी और देश की प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने प्राचीन काल में बौद्ध शिक्षा का केंद्र रहे, जिस भागलपुर की हद में मौजूद विक्रमशिला विश्वविद्यालय परिसर से ही कभी विरोधियों को ललकारा था. उन इंदिरा गांधी के पोते राहुल गांधी को ऐसे ऐतिहासिक महत्व वाले और अपनी दादी की यादों से जुड़े भागलपुर से भी अपनी पदयात्रा शुरू करने का ख्याल नहीं आया. बिहार में इतने बड़े और महत्वपूर्ण स्थानों को छोड़कर आखिर राहुल गांधी की इस पदयात्रा के लिए छोटे से अस्तित्वहीन ‘सासाराम’ का ही चयन क्यों?
इसके पीछे के तथ्यपरक मर्म को जानने के लिए स्टेट मिरर हिंदी के एडिटर ने एक्सक्लूसिव बात की वरिष्ठ पत्रकार मुकेश बालयोगी (Journalist Mukesh Balyogi) से. उन्हीं मुकेश बालयोगी से जो बिहार छत्तीसगढ़, झारखंड की राजनीतिक और खोजी पत्रकारिता के मर्मज्ञ कहे जाते हैं. उन्होंने कहा, “दरअसल सासाराम का भी एक ऐसा महत्वपूर्ण पहलू है जो इतिहास के पन्नों में न केवल दफन है. यद्यपि सासाराम के ऐतिहासिक महत्व का यह पहलू इतिहास के पन्नों में भी दबकर सड़ और गलकर गायब हो चुका है. जिसके बारे में आज की पीढ़ी के कुछ ही चुनिंदा या पढ़ने लिखने वाले इतिहास के जानकारों को पता होगा.”
राहुल ने सासाराम को ही क्यों चुना?
सासाराम बेशक आज की पीढ़ी की नजर में कोई महत्वपूर्ण स्थान न हो. मगर जहां तक मुझे लगता है कि कांग्रेस और कांग्रेसियों ने जिसके चलते अपने नेता और कांग्रेस सांसद राहुल गांधी की पदयात्रा की शुरूआत के लिए सासाराम का चुनाव किया है, वह वजह बेहद अहम है. दरअसल यह सासाराम से राहुल गांधी की पदयात्रा की शुरूआत भर नहीं है. यह सीधी सीधी चुनौती और इशारा है केंद्र में मौजूद भारतीय जनता पार्टी की सरकार के लिए. इशारा है नरेंद्र मोदी और उनकी सरकार के लिए कि, समझ सको तो समझ लो कि राहुल गांधी ने आखिर सासाराम से ही पदयात्रा क्यों शुरू की है?
इतिहास में दर्ज है सासाराम को चुने जाने की वजह
यह वही सासाराम है जिसके शासक ने अब से सैकड़ों साल पहले दिल्ली के मुगल बादशाह हुमायूं को धूल चटाकर, उससे दर-दर भटकने को मजबूर कर दिया था. सासाराम के ही शासक की वह कुव्वत थी जिसके चलते दिल्ली के शासक हुमायूं को करीब ढाई साल मारे-मारे फिरते रहना पड़ा था. सासाराम के ही शासक शेरशाह सूरी का दम-खम था कि उसने, दिल्ली जाए बिना ही न केवल दिल्ली के मुगल बादशाह हुमायूं को दर-ब-दर भटकने को मजबूर कर दिया, वरन् सासाराम में बैठकर ही उसके शासक शेरशाह सूरी ने दिल्ली पर ढाई साल राज-काज संभाला. उस जमाने में भारत आज का सा सीमित देश नहीं था. तब पाकिस्तान, अफगानिस्तान, बर्मा, म्यामांर, बंग्लादेश, भूटान, नेपाल, कंबोडिया, श्रीलंका, इंडोनेशिया के कुछ हिस्से भी भारत का ही हिस्सा हुआ करता था. तब उस जमाने में भी सासाराम के राजा ने दिल्ली को यहीं बैठे बैठे कब्जा कर, हुमायूं को पनाह मंगवा दी थी. जबकि उस जमाने में हुमायूं की फौज को उसकी सल्तनत को ‘सुल्तान-ए-हिंद’ कहा जाता था. इसी सासाराम का बादशाह रहते हुए शेरशाह सूरी ने पहले हुमायूं के गवर्नर जलालुद्दीन को बिहार से हराकर भगाया था. उसके बाद उसने ढाई साल के लिए हुमायूं से उसकी दिल्ली का शासन भी छीन लिया था.
इसके बाद चौसा (बिहार) के युद्ध में हुमायूं ने अपनी विशाल सेना के बलबूते सासाराम के बादशाह-शासक शेरशाह सूरी को चुनौती दी थी. उस भयंकर जंग में करीब 3 लाख सैनिक दोनों सेनाओं के मारे गए थे. इसके बाद भी मगर 26 जून 1539 को लड़ी गई उस भीषण जंग में भी अंतगोत्वा जीत सासाराम के बादशाह शेरशाह सूरी की ही हुई थी. और वहां भी मुगल बादशाह हुमायूं को अफगान शेरशाह सूरी की संख्या बल में बेहद कम और कमजोर सेना से हार का ही मुंह देखना पड़ा था. यह वही पौराणिक महत्व वाला सासाराम है जहां कभी भगवान श्री राम ने ताड़का का वध महर्षि विश्वामित्र की मदद से किया था.
विशेष बातचीत के दौरान स्टेट मिरर हिंदी के एक सवाल के जवाब में वरिष्ठ पत्रकार मुकेश बालयोगी कहते हैं, “सासाराम से राहुल गांधी की पदयात्रा शुरू कराने के अंदर संभव है कि यही मर्म या संदेश भाजपा के लिए छिपा हो, कि आने वाले वक्त में अब कांग्रेस के लिए बिहार के बाद दिल्ली भी दूर नहीं रहेगी. मतलब, राहुल गांधी दिल्ली को संदेश देना चाहते हैं कि, बिहार विधानसभा 2025 के बाद अब कांग्रेस के लिए दिल्ली अपराजेय-या दूर नहीं होगी.”