बिहार चुनाव 2025: क्या खटाई में पड़ रही तेजस्वी यादव की सीएम दावेदारी? इन पांच सीटों पर अटक रही कांग्रेस-आरजेडी की बात
बिहार में नवंबर में होने वाले विधानसभा चुनावों से पहले महागठबंधन (RJD-Congress alliance) में सीट बंटवारे को लेकर खींचतान अपने चरम पर पहुंच गई है. पिछले कई दिनों से चली मैराथन बैठकों के बावजूद दोनों दलों के बीच समझौता नहीं हो सका है. असहमति की वजह सिर्फ पांच सीटें हैं - लेकिन इन्हीं पांच सीटों ने पूरा समीकरण उलझा दिया है.

बिहार विधानसभा चुनाव 2025 से पहले राजद (RJD) और कांग्रेस के बीच सीट बंटवारे को लेकर खींचतान तेज हो गई है. दोनों दलों के बीच पांच सीटों - बैसी, बहादुरगंज, रणिगंज, कहलगांव और सहरसा - पर सहमति नहीं बन पा रही है. कई दौर की बैठकों के बावजूद कोई समाधान नहीं निकला है, क्योंकि दोनों दल एक भी सीट छोड़ने को तैयार नहीं हैं.
विवाद तब और बढ़ गया जब तेजस्वी यादव ने कहलगांव से चुनावी अभियान की शुरुआत की, जबकि कांग्रेस का दावा था कि यह सीट उनके हिस्से में जानी चाहिए थी. इसी के साथ गठबंधन में यह भी मतभेद उभर आया है कि तेजस्वी यादव को महागठबंधन का मुख्यमंत्री चेहरा बनाया जाए या नहीं. कांग्रेस का मानना है कि इससे गैर-यादव ओबीसी वोट बीजेपी की तरफ जा सकते हैं. इस बीच कांग्रेस ने 25 उम्मीदवारों की सूची जारी कर दी है, जिनमें शकील अहमद खान और राजेश राम जैसे प्रमुख नेता शामिल हैं.
विवाद की जड़ - पांच विधानसभा सीटें
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार, जिन पांच सीटों पर गतिरोध है, वे हैं - बैसी (पूर्णिया), बहादुरगंज (किशनगंज), रानीगंज (अररिया), कहलगांव (भागलपुर) और सहरसा. 2020 के चुनाव में इन पांच सीटों में से रणिगंज, सहरसा और बैसी पर आरजेडी ने चुनाव लड़ा था, जबकि कहलगांव और बहादुरगंज कांग्रेस के खाते में गई थीं. दिलचस्प बात यह है कि दोनों ही दल इनमें से कोई सीट जीत नहीं सके.
अब 2025 के चुनाव में स्थिति उलट गई है. आरजेडी चाहती है कि कांग्रेस कहलगांव और बहादुरगंज छोड़ दे, जबकि कांग्रेस बदले में रानीगंज, सहरसा और बैसी पर दावा ठोक रही है. रिपोर्ट के मुताबिक, “घंटों चली बातचीत के बावजूद कोई नतीजा नहीं निकला. दोनों दलों में से कोई भी एक सीट छोड़ने को तैयार नहीं है. गठबंधन में सहयोगी दलों की संख्या बढ़ गई है, जिससे हर दल को पहले से कम सीटें मिलेंगी - यही तनाव की असली वजह है.”
कहलगांव से शुरू हुआ ‘तेजस्वी कैंपेन’
कहलगांव सीट पर विवाद और गहराता जा रहा है. कांग्रेस नाराज़ है कि आरजेडी ने बिना परामर्श के पहले ही इस सीट पर यादव समुदाय के उम्मीदवार को टिकट देने का वादा कर दिया. इसी बीच बुधवार को तेजस्वी प्रसाद यादव ने अपनी विधानसभा चुनावी रैली की शुरुआत कहलगांव से की, जिससे कांग्रेस का असंतोष और बढ़ गया. रैली में तेजस्वी के साथ झारखंड मंत्री संजय यादव के बेटे रजनीश यादव मौजूद थे, जिन्हें आरजेडी का संभावित उम्मीदवार माना जा रहा है - अगर पार्टी को यह सीट मिलती है. 2020 में बीजेपी के पवन कुमार यादव ने कहलगांव सीट जीती थी. उन्होंने कांग्रेस प्रत्याशी शुभानंद मुकेश को 42,893 वोटों से हराया था.
2020 का रिकॉर्ड - कोई भी नहीं जीता
अन्य चार सीटों पर भी नतीजे कांग्रेस और आरजेडी दोनों के लिए निराशाजनक रहे थे. रानीगंज में जेडीयू के अचमित ऋषिदेव ने आरजेडी उम्मीदवार अविनाश मंगलम को सिर्फ 2,304 वोटों से हराया था. सहरसा में बीजेपी के आलोक रंजन झा ने आरजेडी की लवली आनंद को 19,679 वोटों से मात दी थी. बैसी सीट एआईएमआईएम के सैयद रुकनुद्दीन अहमद ने जीती थी. उन्होंने बीजेपी के विनोद कुमार को 16,373 वोटों से हराया, जबकि आरजेडी तीसरे नंबर पर रही थी. बाद में 2022 में अहमद ने आरजेडी जॉइन कर ली. बहादुरगंज में भी एआईएमआईएम के अनज़र नईमी ने वीआईपी उम्मीदवार को 45,215 वोटों से हराया. कांग्रेस प्रत्याशी तौसीफ आलम तीसरे स्थान पर रहे. नईमी ने भी 2022 में आरजेडी का दामन थाम लिया था.
सीएम चेहरा: तेजस्वी बनाम कांग्रेस की दुविधा
सीट बंटवारे से इतर, गठबंधन के भीतर मुख्यमंत्री पद का चेहरा तय करने पर भी विवाद है. आरजेडी चाहती है कि तेजस्वी प्रसाद यादव को आधिकारिक रूप से महागठबंधन का सीएम फेस घोषित किया जाए. लेकिन कांग्रेस इस प्रस्ताव से असहज है. कांग्रेस का कहना है कि वह परंपरागत रूप से किसी मुख्यमंत्री उम्मीदवार की घोषणा चुनाव से पहले नहीं करती. हालांकि अंदरखाने यह भी माना जा रहा है कि गैर-यादव ओबीसी वोटरों के तेजस्वी के खिलाफ एकजुट हो जाने का डर कांग्रेस नेताओं में है.
एक वरिष्ठ कांग्रेस नेता के मुताबिक, “हर कोई जानता है कि अगर किसी राज्य में यादव समुदाय से सीएम चेहरा घोषित होता है, तो बीजेपी को ओबीसी वोट एकजुट करने का मौका मिल जाता है. हरियाणा में कांग्रेस को ऐसा नुकसान हुआ था, जब बीजेपी ने एंटी-जाट नैरेटिव चलाया. बिहार में तेजस्वी के सीएम फेस बनने पर वही स्थिति दोहराई जा सकती है.”
दूसरी ओर, आरजेडी का तर्क साफ है, “हम गठबंधन की सबसे बड़ी पार्टी हैं, हमारे सबसे ज़्यादा विधायक होंगे, इसलिए सीएम का फैसला भी हमारा होगा. कांग्रेस या अन्य दलों को उपमुख्यमंत्री या मंत्री पद मिल सकता है, लेकिन मुख्यमंत्री पद पर समझौता नहीं होगा.”
कांग्रेस की रणनीति और उम्मीदवार सूची
सीट बंटवारे की उलझन के बीच कांग्रेस ने अपनी तैयारियां जारी रखी हैं. पार्टी की केंद्रीय चुनाव समिति (CEC) ने बुधवार को दिल्ली में हुई बैठक में 25 उम्मीदवारों के नाम फाइनल किए. इनमें पांच मौजूदा विधायक शामिल हैं - जिनमें प्रमुख हैं कांग्रेस विधानमंडल दल के नेता शकील अहमद खान (कटवा), बिहार कांग्रेस अध्यक्ष राजेश राम (कुटुंबा). बाकी सीटों पर नाम तय करने के लिए स्क्रीनिंग कमेटी की बैठक शुक्रवार को बुलाई गई है. इसके बाद सीईसी एक-दो दिन में शेष उम्मीदवारों की सूची को अंतिम रूप देगी.
गठबंधन के लिए कठिन परीक्षा
बिहार में महागठबंधन के लिए यह चुनाव अहम है. एक ओर एनडीए खेमे में बीजेपी-जेडीयू तालमेल मजबूत दिखा रही है, वहीं महागठबंधन में सीट और नेतृत्व को लेकर असहमति बढ़ रही है. विशेष रूप से सीमांचल और कोसी बेल्ट की ये पांच सीटें - जहां मुस्लिम और यादव मतदाता निर्णायक भूमिका निभाते हैं - चुनावी रणनीति का दिल बन चुकी हैं. अगर कांग्रेस और आरजेडी इन सीटों पर सहमति नहीं बना पाईं, तो इसका सीधा असर वोट ट्रांसफर और गठबंधन की ज़मीनी एकजुटता पर पड़ेगा. राजनीतिक विश्लेषकों के मुताबिक, “इन सीटों पर छोटी सी दरार भी विपक्षी एकता को कमजोर कर सकती है और बीजेपी-जेडीयू गठबंधन को फायदा पहुंचा सकती है.”
बिहार के चुनावी परिदृश्य में जहां एक ओर तेजस्वी यादव की जनसभाएं जोर पकड़ रही हैं, वहीं कांग्रेस अपने पुराने जनाधार को पुनर्जीवित करने की कोशिश में है. लेकिन गठबंधन का यह “पांच सीटों वाला पेंच” - महागठबंधन की एकता की असली परीक्षा बन गया है. अब देखना यह है कि क्या दिल्ली और पटना के नेताओं के बीच कोई अंतिम फॉर्मूला निकल पाता है, या यह विवाद चुनावी घोषणाओं तक लटकता रहेगा.