अब्दुल के गढ़ में BJP की नई चाल, मैथिली ठाकुर को मिला अलीनगर में कमल खिलाने का मिशन, जानें सियासी गणित
Bihar Chunav 2025: अलीनगर सीट से बीजेपी की उम्मीदवार बनीं मैथिली ठाकुर अब्दुल बारी सिद्दीकी के गढ़ में मैदान में हैं. दरभंगा की ये लोकगायिका अब सियासत में भी सुर साधने निकली हैं. क्या मिथिला की बेटी अब्दुल का गढ़ तोड़ पाएंगी? यह सवाल इसलिए पूछा जा रहा है कि अलीनगर सीट पर बीजेपी के लिए जीत हासिल करना आसान नहीं है. इस सीट पर आज भी सिद्दीकी पकड़ मजबूत है. संभवत: इसलिए, बीजेपी ने बड़ा दांव लगा दिया है.

Bihar Elections 2025: बिहार विधानसभा चुनाव 2025 में अलीनगर सीट इस बार सुर्खियों में है. चर्चा में इसलिए कि बीजेपी ने इस बार दरभंगा की लोकगायिका और सोशल मीडिया स्टार मैथिली ठाकुर को आरजेडी के खिलाफ मैदान में उतार दिया है. यह सीट लंबे समय से अब्दुल बारी सिद्दीकी का गढ़ मानी जाती है, लेकिन इस बार मुकाबला दिलचस्प होने वाला है. साल 2020 में आरजेडी ने सिद्दीकी को एमएलसी बना दिया. उसके बाद वह एक्टिव पॉलिटिक्स में कम हैं. उनकी जगह आरजेडी ने ब्राह्मण कार्ड खेला था, जो उल्टा पड़ गया. इसके बावजूद अलीनगर आरजेडी प्रभाव वाला सीट है. हालांकि, अभी तक पार्टी ने अपने प्रत्याशी की आधिकारिक तौर पर घोषणा नहीं की है.
अलीनगर सीट का इतिहास
अलीनगर विधानसभा सीट दरभंगा जिले की एक अहम सीट है. दरभंगा जिले का अलीनगर 2008 के परिसीमन के बाद अस्तित्व में आया था. पहले यह सीट मनीगाछी विधानसभा का हिस्सा था. इस सीट पर मुस्लिम, ब्राह्मण, यादव और राजपूत का वोट निर्णायक माना जाता है. यहां अभी तक केवल तीन बार चुनाव हुए हैं. 2025 के चुनाव में यह चौथा मौका होगा जब अलीनगर के लोग अपना विधायक चुनेंगे.
अलीनगर विधानसभा सीट पर अब तक 2010, 2015 और 2020 के विधानसभा चुनावों में आरजेडी के वरिष्ठ नेता अब्दुल बारी सिद्दीकी चुनाव जीतने में सफल रहे थे. उसके बाद से अब्दुल बारी सिद्दीकी बिहार विधान परिषद के सदस्य बन गए और चुनावी राजनीति से दूर हो गए हैं. साल 2020 में अलीनगर सीट एनडीए के कोटे से वीआईपी के मुकेश सहनी कोर्ट में कई थी. मुकेश सहनी ने मिश्री लाल यादव को मैदान में उतारा था. मिश्री लाल चुनाव जीते भी.
समझें कास्ट कॉम्बिनेशन
यहां पर जीत उसी की होती जो या तो मुस्लिम और यादव मतदाताओं को अपने पक्ष में कर ले या फिर ब्राह्मण और यादव मतदाता के साथ राजपूत कौर भूमिहार जाति के लोगों को अपने पक्ष में कर ले. इसी समीकरण को ध्यान में रखते हुए बीजेपी ने लोकगायिका का कार्ड खेला है. पार्टी का नजरिया है कि लोकगायिका होने के कारण मैथिली ठाकुर को हर तबके के लोग पसंद करते हैं. अगर बीजेपी यादव वोट बैंक में सेध लगा ले तो अपने प्रत्याशी को जीत दिलाने में सफल हो सकती है. यह इस बात पर निर्भर है कि आरजेडी इस सीट से किसी उतारती है. लालू की पार्टी ने यादव का कार्ड खेल दिया तो बीजेपी का जीतना मुश्किल हो सकता है.
यादव-मुस्लिम समीकरण अब्दुल बारी सिद्दीकी को अब तक मजबूत बनाता रहा है. वहीं, बीजेपी मैथिली ठाकुर के जरिए ब्राह्मण, भूमिहार और युवा मतदाताओं को साधने की कोशिश कर रही है. फिलहाल, इस सीट पर इस सीट पर इस बार भी सियासी जंग दिलचस्प होगा. दूसरी तरफ युवा चेहरा. अलीनगर सीट पर यह चुनाव अनुभव बनाम आकर्षण का मुकाबला होगा। मिथिला की भावनाएं बनाम मुस्लिम-यादव समीकरण, दोनों पार्टियां इसे प्रतिष्ठा का प्रश्न मान रही हैं.
बिहार विधानसभा चुनाव 2020 में वीआईपी के मिश्री लाल यादव ने आरजेडी के विनोद मिश्रा को हराया था. मिश्री लाल यादव ने 61,082 वोट हासिल किए, जबकि आरजेडी के विनोद मिश्रा 57,981 वोट पाकर दूसरे नंबर पर रहे. 2015 के विधानसभा चुनाव में मिश्री लाल यादव बीजेपी के प्रत्याशी थे और आरजेडी के अब्दुल बारी सिद्दीकी से हार गए थे.
ब्राह्मण और मुस्लिम वोट निर्णायक
मैथिली ठाकुर जिस अलीनगर सीट से अपनी राजनीतिक पारी की शुरुआत कर रही हैं, वहां का कास्ट कॉम्बिनेशन भी दिलचस्प है. अलीनगर बिहार की उन चुनिंदा विधानसभा सीटों में है जहां ब्राह्मण और मुस्लिम वोटर निर्णायक रोल निभाते हैं. अलीनगर में अनुसूचित जाति के करीब 12.37 फीसदी और मुस्लिमों की 21.2 फीसदी आबादी है. ब्राह्मण वोटरों की तादाद भी ठीक ठाक है. ऐसे में यही कहा जाता है कि अलीनगर में जो प्रत्याशी ब्राह्मण और मुस्लिम वोटरों का कॉकटेल बना लेता है उसी को जीत मिलती है. यहां पर बीजेपी मिश्री लाल के जरिए यादव वोट को साध ले तो मैथिली ठाकुर चुनाव जीत सकते हैं.
अब्दुल का किला है अलीनगर
अब्दुल बारी सिद्दीकी इस सीट पर दशकों से सक्रिय हैं. स्थानीय स्तर पर उनका गहरा जनाधार है. वह नीतीश-लालू दौर में मंत्री भी रह चुके हैं. उनके सामने बीजेपी के लिए चुनौती बड़ी है, लेकिन मैथिली का चेहरा भाजपा के लिए ‘इमोशनल कनेक्ट’ का जरिया बन सकता है.
आरजेडी नेता, पूर्व मंत्री और एमएलसी अब्दुल बारी सिद्दीकी का दरभंगा जिले के अलीनगर के रूपसपुर गांव के रहने वाले हैं. उनके पिता अली अहमद बिहार सरकार के कृषि विभाग के चतुर्थवर्गीय कर्मी थे. पहली बार विधायक बने सिद्दीकी को कर्पूरी मंत्रिमंडल में संसदीय कार्य मंत्री बनाया गया. उसके बाद 1980, 1985 और 1990 के विधानसभा का चुनाव सिद्दीकी हार गए. आरजेडी सरकार में सिद्दीकी बिहार कैबिनेट में संसदीय कार्य, शिक्षा, कृषि, पीडब्ल्यूडी, आबकारी, अल्पसंख्यक कल्याण समेत कई महत्वपूर्ण विभाग संभाल चुके हैं. वे जेपी आंदोलन से भी जुड़े थे.
अब्दुल बारी की पत्नी भी जेपी आंदोलन से जुड़ी थीं. वे दोनों यहीं पर मिले और तमाम विरोध के बावजूद दोनों की शादी हुई. उनकी पत्नी का नाम नूतन सिन्हा है.
कौन हैं मैथिली ठाकुर?
मैथिली ठाकुर सिर्फ गायिका नहीं, मिथिला की सांस्कृतिक पहचान भी हैं. उनके सोशल मीडिया पर करोड़ों फॉलोअर्स हैं. वह सबसे पहले तब चर्चा में आईं, जब वह अपने दो भाइयों के साथ मिलकर गीतों के वीडियो यूट्यूब पर अपलोड करती थीं. मैथिली की उम्र 25 साल है. यूट्यूब पर उनके 5 मिलियन से ज्यादा सब्सक्राइबर्स हैं. इंस्टाग्राम पर उनके 6.4 मिलियन फॉलोअर्स हैं. मैथिली मधुबनी जिले से ताल्लुक रखती हैं, जो मैथिली भाषी लोगों का गढ़ है. दरभंगा जिले से अलग होकर ही मधुबनी जिले अस्तित्व में आया था. मैथिली की परवरिश और पढ़ाई-लिखाई दिल्ली से हुई है. उनके पिता रमेश ठाकुर भी संगीतकार हैं.
बीजेपी चाहती है कि लोकगायिका की लोकप्रियता को सियासी वोट में बदला जाए. युवा लोकगायिका ब्राह्मण हैं. मुस्लिमों की ठीक ठाक आबादी वाली सीट पर अगर मैथिली चुनाव जीतती हैं तो बीजेपी इसके जरिए एक मैसेज देने की कोशिश कर सकती है. मैथिली ठाकुर कई टीवी रियल्टी शो में हिस्सा ले चुकी हैं. इसके अलावा, वह लाइव शोज के अलावा यूट्यूब पर अपनी सुरीली आवाजों के चलते काफी चर्चित हैं.