क्या बिहार NDA में सब ठीक है? उपेंद्र कुशवाहा नाराज, चिराग की सीटों पर नीतीश और मांझी ने उतारे उम्मीदवार
बिहार राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन में सीट शेयरिंग का एलान के बाद से अंदरूनी खींचतान तेज हो गई है. उपेंद्र कुशवाहा नाराज बताए जा रहे हैं, वहीं चिराग पासवान की सीटों पर जेडीयू और हम ने अपने उम्मीदवार उतारकर सियासी तापमान बढ़ा दी है. क्या चुनाव से पहले एनडीए में दरार के संकेत हैं? फिलहाल अपडेट यह है कि अमित शाह से मुलाकात के बाद उपेंद्र कुशवाहा ठंडे पड़ गए हैं.

बिहार में एनडीए (NDA) में शामिल दलों के बीच सीट बंटवारे के बाद सवाल उठने लगे हैं. सीट बंटवारे के बाद जहां चिराग पासवान (LJP-R) को कुछ सीमित सीटें दी गई, वहीं अब उन्हीं सीटों पर जेडीयू और जीतन राम मांझी की पार्टी ‘हम’ ने भी अपने-अपने प्रत्याशी उतार दिए हैं. दूसरी ओर, उपेंद्र कुशवाहा ने मंगलवार को पटना में खुले तौर पर कहा था कि एनडीए में कुछ भी सही नहीं है, लेकिन बुधवार को अमित शाह से मुलाकात के बाद उनके तेवर बदल गए हैं. सभी की नजर एक बार इस बात पर है कि चिराग पासवान अपने हिस्से की सीटों पर क्या कदम उठाते हैं?
क्यों बढ़ी कुशवाहा की नाराजगी?
राष्ट्रीय लोक जनशक्ति पार्टी (RLJP) के बीच सीट बंटवारे को लेकर जो असंतोष था, अब वही बात उपेंद्र कुशवाहा की रालोसपा (RLSP) में भी दिख रही है. पार्टी सूत्रों के अनुसार जेडीयू ने जिस तरह बिना समन्वय के उम्मीदवारों की घोषणा की, उससे कुशवाहा को लगा कि उनकी भूमिका सिर्फ 'चेहरा' बनकर रह गई है.
चिराग की सीटों पर नीतीश-मांझी का दांव
लोजपा (रामविलास) को जो सीटें दी गई थी, उन पर अब जेडीयू और हम (हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा) ने भी अपने उम्मीदवार उतार दिए हैं. उदाहरण के तौर पर जमुई और खगड़िया जैसी सीटों पर बीजेपी और जेडीयू दोनों की तरफ से सक्रियता बढ़ी है. इससे एनडीए के अंदर तालमेल पर सवाल खड़े हो रहे हैं.
नीतीश का तालमेल फॉर्मूला
नीतीश कुमार की रणनीति साफ है कि हर जातीय समूह को संतुष्ट रखना है, लेकिन यह 'संतुलन' अब एनडीए के भीतर असंतोष का कारण बनता जा रहा है. सहयोगी दलों को लग रहा है कि जेडीयू अपने संगठन और उम्मीदवारों को आगे बढ़ाने में जुटी है.
BJP की चुप्पी, लेकिन नजर सब पर
बीजेपी फिलहाल चुप है, लेकिन भीतर खाने हर हलचल पर नजर रखी जा रही है. पार्टी नहीं चाहती कि नीतीश के नेतृत्व वाले गठबंधन में फिर से टूट की स्थिति बने, जैसा 2022 में हुआ था. इसके बावजूद राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि अगर उपेंद्र कुशवाहा और चिराग पासवान खुले तौर पर नाराज हुए तो इसका सीधा असर एनडीए के अति-पिछड़ा और दलित वोट बैंक पर पड़ेगा, जो विपक्षी महागठबंधन के लिए वरदान साबित हो सकता है.
इसके पहले उपेंद्र कुशवाहा ने दिल्ली निकलते समय कहा था कि NDA में सबकुछ ठीक नहीं है. उनके इस बयान के बाद कई तरह के कयास लगाए जा रहे थे, जिनमें NDA छोड़ने का संभावित फैसला भी था. हालांकि, अंत में ऐसी पटकथा नहीं लिखी गई.
क्या कहा उपेंद्र कुशवाहा ने
फिलहाल, जीतन राम मांझी के बाद अब उपेंद्र कुशवाहा भी NDA में घमासान छोड़ शांति के रास्ते पर आते दिख रहे हैं. बुधवार को उपेंद्र कुशवाहा की बंद कमरे में केंद्रीय राज्य मंत्री नित्यानंद राय के साथ गृहमंत्री अमित शाह के साथ बातचीत हुई. इस बातचीत के बाद उपेंद्र कुशवाहा के तेवर काफी बदले हुए दिखे. अब उनकी बातों में गर्मी की जगह नरमी ने ले ली है. उपेंद्र कुशवाहा ने कहा कि 'हमने गृह मंत्री से मुलाकात की और इस मुद्दे पर चर्चा हुई.
अब कोई कठिनाई नहीं- उपेंद्र कुशवाहा
उपेंद्र कुशवाहा ने कहा कि 'पटना में सुबह ही कहा था कि गठबंधन के कंटेक्स्ट में कुछ इश्यू है, जिस पर विमर्श की जरुरत है. इसी विमर्श के लिए हम और नित्यानंद राय और गृह मंत्री अमित शाह से आज मिले. बातचीत के बाद कहा - सब ठीक है. NDA की सरकार निश्चित रुप से बनेगी. हर तरह से NDA के घटक दलों के सभी लोग तैयार हैं.'
क्या थम गया NDA में घमासान?
दूसरी तरफ नीतीश कुमार को सीट बंटवारे का एलान होने के बाद इसका एहसास हुआ कि बंटवारे में कुछ चूक हुई है. उन्होंने 3 से 4 सीटों पर दावा ठोक दिया है, जो हिस्से में चिराग पासवान की पार्टी को गई हैं. नीतीश ने उन सीटों पर अपने उम्मीदवारों को सिंबल भी दे दिया. चर्चा तो यह भी है कि नीतीश अपने दोनों सिपहसालारों से भी खफा हैं, जिन्हें उन्होंने सीट शेयरिंग पर बातचीत के लिए अधिकृत किया था.
समीकरण थोड़ा बिगड़ने पर चिराग वाली पांच सीटों पर जेडीयू ने उम्मीदवार उतार दिए हैं. अगर ऐसे में चिराग भी शांत रहते हैं तब ही ये तय हो सकता है कि NDA के अंदर मचा संग्राम थम गया है. अब चिराग पासवान इस पर क्या स्टैंड लेते हैं, इसका सभी को इंतजार है.
वहीं, चिराग ने 15 अक्टूबर को अपने नेताओं को दिल्ली तलब किया है. इस मुद्दे पर ही बैठक में चर्चा होगी. चिराग का अगला कदम क्या होगा, यह बैठक के बाद पता चलेगा, लेकिन इसे लेकर उनकी नाराजगी तो देखना ही चाहिए. एनडीए में सीटें बंट तो गईं, लेकिन जेडीयू, हम, और आरएलएम नेताओं के मन में खटास है. किसी को कम सीटें मिलने की तकलीफ है तो किसी को वांछित सीट न मिलने का दर्द है. स्थिति यह है कि सभी दलों के समर्थक इस खींचतान को मौन होकर देख रहे हैं.