Kisse Netaon Ke: पिता ने लिया दहेज तो नीतीश कुमार ने शादी से कर दिया इनकार, फिर क्या हुआ?
Kisse Nitish Kumar Ke: नीतीश कुमार की शादी 22 साल की उम्र में उनके पिता ने मंजू से तय की थी, लेकिन उन्होंने रम्स निभाने से पहले साफ कर दिया कि कोई दहेज नहीं, एक पैसा भी नहीं, अगर पैसा लिया है तो वापस. इस तरफ या उस तरफ से कोई उपहार नहीं. कोई रीति-रिवाज नहीं, कोई जश्न या समारोह नहीं, विवाह पटना में रजिस्ट्रार के ऑफिस में होगा, अर्थात कोर्ट मैरिज होगी. अन्यथा विवाह की बात खत्म समझी जाए.
Kisse Nitish Ke: 22 फरवरी 1973 की बात है. मकर संक्रांति को गुजरे महज एक हफ्ते ही हुए थे. ठंड अपने चरम पर थी. एक घर के बाहर बैंड बज रहा था और ख़ुशी का माहौल था. गांव वालों को पता चला कि वैद्य जी के बेटे की शादी है. वो वैद्य जी का बेटा और कोई नहीं बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार थे. नीतीश कुमार की शादी मंजू सिन्हा से हुई थी. वहां का रिवाज था कि शादी में दहेज़ लिया जाता है. ये बात जब नीतीश कुमार को पता चली तो उन्होंने नरेंद्र सिंह से कहा था, जाकर पिता जी से कह दो, कोई दहेज नहीं, एक पैसा भी नहीं, इस तरफ या उस तरफ से कोई उपहार नहीं. कोई रीति-रिवाज नहीं, कोई जश्न या समारोह नहीं, विवाह पटना में रजिस्ट्रार के ऑफिस में होगा, अर्थात कोर्ट मैरिज होगी. अन्यथा, विवाह की बात खत्म समझी जाए.
उस समय मंजू पटना विश्वविद्यालय में समाजशास्त्र की छात्रा थीं. उसी समय नीतीश कुमार ने इंजीनियरिंग की डिग्री हासिल की थी और इलेक्ट्रिकल इंजीनियर बनने की तैयारी में जुटे थे. उसी समय नीतीश को पता चला कि उनके पिता वैद्य रामलखन ने उनकी शादी तय कर दी है. जबकि नीतीश कुमार की उम्र उस समय बाईस पूरे होने में कुछ समय बाकी ही थे. इस बात का जिक्र संकर्षण ठाकुर ने अपनी पुस्तक बंधु बिहारी: कहानी लालू यादव व नीतीश कुमार की' के अकेला नीतीश के सेक्शन के 'निर्मल और धुन का पक्का घुमक्कड़' चैप्टर में किया है.
लेखक के अनुसार, इंजीनियरिंग करने के बाद नौकरी करने के बजाय जब पटना में नीतीश सार्वजनिक गतिविधियों में दिन रात बिताने लगे तो बख्तियारपुर में उनके पिता यानी वैद्य राम लखन के घर-बार में चिंता के बादल मंडराने लगे थे. नीतीश का घर जाना कम हो गया था. अखबारों में उनका नाम - छात्र नेता नीतीश कुमार के रूप में आने से परिवार में चिंता के बादल मंडराने लगे थे. एक-दो बार जब वैद्य रामलखन पटना में अपने बेटे से मिलने पहुंचे तो नीतीश उन्हें न तो क्लास में मिले और न बिहार कॉलेज ऑफ इंजीनियरिंग के हॉस्टल नं. 1 में. उस समय वह कहीं विरोध या प्रदर्शन में छात्रों को संबोधित कर रहे होते थे या मीडिया को देने के लिए प्रेस रिलीज तैयार कर देते थे. या फिर आंदोलन की योजना बना रहे होते थे.
'बड़ी बातें करने लगा है, अच्छा बोलता है'
राम लखन वैद्य की उत्कंठा एक दिन उन्हें वहां खोज ले गई, जहां नीतीश यूनिवर्सिटी के अंदर की भीड़ को संबोधित कर रहे थे. उनके करीबी नरेंद्र सिंह बताते हैं कि पिता को बेटे की स्पीच सुनकर अच्छा लगा तो कहा - "बड़ी बातें करने लगा है, पॉलिटिक्स और इश्यू पर पकड़ है. उन्हें कुछ संतुष्टि की गंध मिली होगी. इस बात का कुछ एहसास हुआ होगा कि उनके जीवन में जो कमी रह गई, उसे उनका बेटा पूरा करेगा. एक दिन उनका बेटा लोगों की नजर में छा जाएगा. बड़ा आदमी बनेगा और यश बटोरेगा.'
'वैद्य नहीं चाहते थे नीतीश के लिए ऐसा जीवन'
किंतु उनकी आशा के विपरीत उनका बेटा नीतीश जिस दिशा में बढ़ रहा था, उसे लेकर उनके मन में शंकाएं अधिक थीं. राजनीति एक कठोर और बेरहम मार्ग था, पूरी तरह थका देने वाला रास्ता था और इस बात की संभावना थी कि यह आपको भंवर के बीच भटकने के लिए छोड़ देगा. वैद्य के साथ यही हुआ था. वह अपने बेटे के लिए ऐसा जीवन नहीं चाहते थे.
उन्होंने सोचा कि लड़के उस रास्ते से हटाने के लिए नौकरी की ओर मोड़ने और उसका विवाह कर देना एक उत्तम उपाय सिद्ध हो सकता है.
जब घुमक्कड़ी से रोकने के तय कर दिया शादी
सियोदा गांव में नीतीश के लिए एक लड़की मिल गया; यह गांव न तो कल्याण बीघा से दूर है और न बख्तियारपुर से. कृष्णनंदन सिन्हा गांव में स्कूल के प्रधानाध्यापक को एक सुसम्मानित वंश परंपरा से थे. उनकी पुत्री मंजू पटना के मगध विश्वविद्यालय में समाजशास्त्र की छात्रा थी. पति इंजीनियर और शिक्षक बनने की चाह लड़की जोड़ा अच्छा बन रहा था.
नीतीश के घनिष्ठ मित्रों को ऐसा लग रहा था कि नीतीश इतनी जल्दी विवाह के के फेर पड़ना नहीं चाहते थे? लेकिन एक सीमा के आगे उन्होंने विवाह का विरोध भी नहीं किया. विवाह के लिए मान जाने पर उन्होंने अपने मित्रों को उकसाया कि वे मंजू को महिला कॉलेज के द्वार के बाहर बुलाकर देख लें और आकर उन्हें बताएं कि वधू कैसी रहेगी. दुबली-पतली, सीधी-सच्ची, तुनक मिजाजी से दूर, रंग नीतीश को अच्छा लगा सुनकर. नरेंद्र सिंह को नीतीश की ओर से कुछ ऐसा ही संकेत मिला."सब कुछ बढ़िया चल रहा था कि एक दिन बवाल हो गया."
'शादी रद्द कर देंगे'
इस बीच नीतीश को भनक लग गई कि उनके पिता ने मंजू के पिता से दहेज के रूप में 22,000 रुपये लिये हैं. उन दिनों जातिगत गुटों के दो परिवारों के बीच परस्पर बातचीत के द्वारा तय की गई शादियों में ऐसा चलन आज की अपेक्षा तब अधिक था. परिवारों में इस तरह का लेना-देना खुशी से होता था. यह एक तरह से समझौते पर पक्की मुहर लगाने जैसी एक औपचारिकता हुआ करती थी, लेकिन वृद्ध वैद्य को यह उम्मीद रहा होगा कि उनका बेटा इसके लिए हामी भरेगा. उन्होंने नीतीश की पीठ पीछे दहेज लिया. नरेंद्र सिंह ने बताया कि जब उन्हें इस बात का पता चला तो नीतीश आग-बबूला हो गए. वह तुरंत बख्तियारपुर जाकर अपने पिता से इस संबंध में सवाल-जवाब करना चाहते थे के, "वह शादी रद्द कर देंगे."
रात ज्यादा हो रही थी और आखिरी गाड़ी जा चुकी थी, लेकिन नीतीश जिद पर अड़े थे, इस कारण हमने एक तिपहिया वाहन लिया और बख्तियारपुर के लिए चल पड़े. उसने हमसे सौ रुपए से अधिक मांगे, जो हमारे पास नहीं थे. नीतीश ने अपने पिता से भाड़ा चुकता कराया. फिर, एक शब्द भी बोले बिना, वह सीढ़ियों से ऊपर चले गए. सारी बातचीत का जिम्मा मेरे ऊपर छोड़ दिया गया था.
'कोई दहेज नहीं, कोई उपहार नहीं'
नरेंद्र सिंह के संलापन न करने योग्य कई विषयों पर बातचीत करने की जिम्मेदारी दी गई थी. कोई दहेज नहीं, एक पैसा भी नहीं, इस तरफ या उस तरफ से कोई उपहार नहीं. कोई रीति-रिवाज नहीं, कोई जश्न या समारोह नहीं, विवाह पटना में रजिस्ट्रार के ऑफिस में होगा, अर्थात कोर्ट मैरिज होगी. अन्यथा विवाह की बात खत्म समझी जाए.
वैद्य रामलखन ने नीतीश के दूत को समझाने का प्रयास किया कि दहेज लेना कोई इतनी बड़ी बात नहीं थी, यह कोई बड़ी रकम भी नहीं थी, वधू के परिवार ने खुशी से वह रकम दी थी, और अब अगर वह दहेज की रकम लौटाने जाते हैं, उन्हें खुद कितनी परेशानी से गुजरना पड़ेगा.
लिया हुआ धन वापस
नरेंद्र सिंह ये सारी बातें नीतीश को बताने के लिए ऊपर गए. "लिया हुआ धन वापसी? तुम्हारा मतलब है कि दहेज पहले ही मेरे परिवार के पास जमा हो चुका है?" नीतीश ने शिकायत की, "यह विवाह नहीं हो सकता, जाओ और मेरे पिता तथा सियोदा के लोगों को जाकर बता दो, यह विवाह लेन-देन की बातचीत पूरी तरह अस्वीकार्य है."
राम मनोहर लोहिया का अनुयायी है, उसके नियम अलग हैं
नरेंद्र सिंह सियोदा भी गए. कृष्णनंदन सिंह ने नरेंद्र से कहा कि उन्हें नीतीश के इतने पक्के विचारों की जानकारी नहीं थी और वह समझते थे कि नया-नया लड़का है, मान जाएगा या उसे मना लिया जाएगा. अब चूंकि नकदी का हस्तांतरण हो चुका है. इसके बारे में हो-हल्ला या शिकायत करने का कोई अर्थ नहीं है, यह हमारी प्रथा है. जाकर उसे कह दो कि यहां सब ठीक है, हमने जो दिया है, खुशी से दिया है और हम खुश हैं. नरेंद्र सिंह ने अपना सिर झटका और उसके संदेश का दूसरा भाग सियोदा के प्रधानाध्यापक को सुना दिया, "दहेज स्वीकार न करने के अलावा, मेरे दोस्त ने एक और शर्त रखी है. कोई समारोह, अनुष्ठान या रीति-रिवाज नहीं मनाया जाएगा; यह सब कोर्ट मैरिज होगी. उसने कहा है कि आप इस पर विचार करें : क्या आप और आपकी बेटी से विवाह के लिए तैयार हैं? वह एक समाजवादी है, राम मनोहर लोहिया का अनुयायी है, वह अपना जीवन भिन्न नियमों के अनुसार जीता है."
फणीश्वरनाथ रेणु ने इस पर क्या कहा?
नीतीश का दहेज से खुलेआम इनकार करना सनसनीखेज चर्चा का विषय बन गया. उस समय के एक उदीयमान पत्रकार जुगनू शारदेय ने 'धर्मयुग' के लिए नीतीश का इंटरव्यू लेने का मन बनाया. इस भेंटवार्ता के माध्यम से वह जानना चाहते थे कि बिहार के नवयुवकों के मन में महिलाओं, विवाह और समाज के बारे में यदि कोई नए विचार, नई धारणाएं जन्म ले रही हैं, तो वे क्या हैं? नीतीश उस भेंटवार्ता में दहेज तथा आडंबरपूर्ण विवाहों के विरोध में बोले. उन्होंने कहा कि महिलाओं को चाहिए कि वे स्वयं को शिक्षित करें और व्यवसायी बनें तथा सिर्फ घर एवं चूल्हा-चौके से ही बंधे रहकर कुछ बड़े महत्त्वपूर्ण काम करने की ओर कदम बढाए, जैसा कि लोहिया तथा किशन पाठक ने महिलाओं की वकालत करते हुए कहा था. जब महान उपन्यासकार फणीश्वरनाथ रेणु ने इंटरव्यू पढ़ा, तो उन्होंने शारदेय से कहा कि वह नीतीश जैसे से किसी नवयुवक को अपने दामाद के रूप में देखना चाहेंगे.
लेकिन कृष्ण नंदन सिंह एक रूढ़िवादी समुदाय के एक रूढ़िवादी सदस्य थे. संभव है नरेंद्र सिंह ने स्वयं अपने विवेक से सियोदा में उनके सामने यह सवाल रखा हो कि वह नीतीश जैसा दामाद और अपनी पुत्री के लिए उसके जैसा पति पाने के लायक है?
नीतीश का इरादा पक्का था
उन्होंने उज्जवल भविष्य की संभावना रखने वाले एक योग्य इंजीनियर, सुशिक्षित, अच्छे घर के लड़के से पुत्री का विवाह करने के लिए बातचीत आगे बढ़ाई थी। उसके सामने एक ऐसा युवक मिलने वाला था, जो आंदोलन फैलाने में विश्वास रखता है और समय की चिंताओं के व्यक्र रहता है. लोक जीवन की अनिश्चितताओं ने जिसे पहले अपनी गिरफ्त में ले लिया है, जिसके जीवन में आगे कठिन राह और अस्थायित्व के अलावा कुछ नजर नहीं आता है, जो किसी ऐसी मंजिल को पाने की चाह में एक पक्का इरादा बनाए हुए है. जिसके बारे में खुद उसे निश्चित रूप से कुछ पता नहीं है. उनके माँ-बाप थे उस समय कैसे इन सब बातों को जान पाते? और अगर जान भी गए होते, तो आगे पीछे हटने के लिए बहुत देर हो चुकी थी. नरेंद्र सिंह उस विवाह को बचाने का प्रयास कर रहा था, जो वेदी तक पहुंचने से पहले ही टूटने के कगार पर आ गया था.
कोई दहेज नहीं लिया जाना था, कोई परंपरागत अनुष्ठान नहीं होना था. हालांकि नीतीश को इस बात के लिए अवश्य मना लिया गया कि वह रजिस्टार की अदालत के सामने दुल्हन रखवाने की जिद छोड़ दें. नीतीश ने पटना के गांधी मैदान के पश्चिम में स्थित लाजपत राय भवन के स्वागत कक्ष में मंजू के साथ मालाओं का आदान-प्रदान किया. उस समय दोनों परिवार मौजूद थे. और बेशक मित्रगण भी मौजूद थे, जिनमें से अधिकांश दूल्हे के साथ इंजीनियरिंग कॉलेज छात्रों द्वारा अपहृत सरकारी बसों में भरकर आए थे.
शादी के दिन नीतीश ने टू-पीस सूट पहना था
उस अवसर पर खींची गई नीतीश की एक तस्वीर है, जिसमें वह अपनी नव वधू के बगल में खड़े हुए हैं, गले में एक चमकदार किंतु साधारण माला पहने तथा मस्तक पर सिंदूर का एक तिलक लगाए. उस चित्र पर नजर डालने से आपको ऐसा प्रतीत होगा. जैसे उस क्षण वह किसी यंत्रणा से गुजर रहे हों. उन्होंने कैमरे से आंख मिलाने से मना कर दिया. उनके चेहरे पर एक उदासी झलक रही है, उनकी दृष्टि कहीं और टिकी है मानो वह कहना चाहते हों कि वहां उनकी मौजूदगी प्रकाशनार्थ नहीं है. नीतीश ने उस अवसर के लिए अपनी ट्रेड मार्क दाढ़ी पर उस्तरा फेर दिया था और एक टू-पीस सूट पहना था तथा टाई लगाई हुई थी. दाढ़ी के बगैर और अंग्रेजी पोशाक में यह उनका
अपरिचित सा चित्र है. माला उन्होंने बेपरवाही से पहनी हुई थी और टीका किसी चुनौती के समान था.
पत्नी को लेकर VIP गाड़ी से पहुंचे बख्तियारपुर
औपचारिकताओं से मुक्ति पाकर, वर एवं वधू एक सफेद रंग की फिएट कार से बख्तियारपुर के लिए रवाना हो गए, जो वहां से करीब सौ किलोमीटर के फासले पर स्थित है. गाड़ी पर वी.आई.पी. नंबर प्लेट लगी थी बी. आर. पी. 111. चालक की सीट पर एक पारिवारिक मित्र और वह आदमी जिसने सिर्फ चार वर्ष बाद, सन् 1977 में थे हट्टे-कट्टे भोला प्रसाद सिंह, नीतीश के अपने इलाके के एक लब्धप्रतिष्ठ को पहले ही चुनाव में हरनौत से हराया.
मंजू को पता चल गया - घर गृहस्थी जमाने वाला इंसान नहीं है
संघर्ष फिर से आरंभ करने के लिए पटना लौट गए और शीघ्र ही उन्हें आंतरिक नीतीश ने मंजू के साथ बख्तियारपुर में ज्यादा समय नहीं बिताया. नीतीश को अनुरक्षण अधिनियम (मीसा) के तहत गिरफ्तार कर लिया गया. मंजू भी बहुत दिन तक नहीं ठहरी. उसे जल्द इस बात का एहसास हो गया कि उसका पति कोई नौकरी तलाशने और घर गृहस्थी जमाने वाला इंसान नहीं है. वह प्रक्षेपण-पथों के साथ-साथ भटकता रहेगा. क्योंकि उसमें अभी तक यह निर्णय करने की क्षमता नहीं है कि कौन सा पथ चुनना है, लेकिन वह भटकना नहीं छोड़ेगा. उसने उसने बख्तियारपुर में दांपत्य-प्रेम के कोमल क्षणों में शायद मंजू को यह बता दिया था कि उसे कोई पारंपरिक जीवन नहीं चाहिए. कुछ महीनों बाद जब उससे शिक्षित नवयुवकों में व्याप्त बेरोजगारी की समस्या के विरोध में आयोजित एक प्रदर्शन में अपनी इंजीनियरिंग की डिग्री फूंक डाली. तभी मंजू को विश्वास हो गया था. अधिकतर छात्रों ने फोटोस्टेट प्रतियां जलाई थीं. नीतीश ने अपनी डिग्री की मूल प्रति ही आग के हवाले कर दी, मंजू को तभी विश्वास हो गया. अधिकतर छात्रों ने फोटोस्टेट प्रतियां जलाई थी. नीतीश ने अपनी डिग्री की मूल प्रति ही आग के हवाले कर दी.





