लालू के सामने कांग्रेस की कितनी चलेगी? अब तक सीटों को लेकर नहीं बन पाई है बात
बिहार में महागठबंधन के भीतर सीट बंटवारे को लेकर स्थिति अब भी साफ नहीं है. आरजेडी और कांग्रेस के बीच लगातार बैठकों के बावजूद भी अभी तक कोई नतीजा नहीं निकला है. सूत्रों के अनुसार कांग्रेस अपने पुराने हिस्से पर अड़ी है. जबकि लालू यादव की आरजेडी इस बार ज्यादा सीटों की दावेदार है. ऐसे में सवाल उठता है, लालू के सामने कांग्रेस की कितनी चलेगी?

बिहार चुनाव 2025 से पहले महागठबंधन में सीट शेयरिंग को लेकर मतभेद पहले से ज्यादा गहरा गया है. लालू यादव और कांग्रेस के बीच मतभेद अब खुलकर सामने आने लगे हैं. कांग्रेस 70 से ज्यादा सीटों की मांग कर रही है, जबकि आरजेडी इसे 50 के भीतर सीमित रखना चाहती है. इस खींचतान के बीच महागठबंधन में दरार की आशंका भी जताई जा रही है.
लालू की नीति: 'बड़ी पार्टी, बड़ा हिस्सा'
आरजेडी प्रमुख लालू यादव जहां गठबंधन की बड़ी पार्टी होने के नाते अधिक सीटों का दावा कर रहे हैं. जबकि कांग्रेस भी अपने पुराने जनाधार के दम पर हिस्सेदारी बढ़ाने की कोशिश में है. कांग्रेस का कहना है कि कायदे से उसे एक-तिहाई सीटें चाहिए. कांग्रेस के इस रुख की वजह से लालू यादव और तेजस्वी अंतिम निर्णय नहीं कर पा रहे हैं. ऐसा इसलिए कि कांग्रेस को 60 से 70 सीट देने पर महागठबंधन के अन्य दलों को न्यूनतम सीटें देना भी मुश्किल होगा. अगर कांग्रेस जिद पर अड़ी रही तो महागठबंधन के टूटने का खतरा ज्यादा है.
आरजेडी प्रमुख लालू यादव का मानना है कि पिछले चुनाव में आरजेडी ने कांग्रेस की तुलना में कहीं अधिक प्रदर्शन किया था, इसलिए इस बार गठबंधन की अगुवाई उन्हीं के हाथ में रहनी चाहिए.
कांग्रेस की जिद: 'पुराने फार्मूले पर चलें'
इस मामले में कांग्रेस का रुख साफ है कि 2020 के विधानसभा चुनाव में जितनी सीटें उसे दी गई थीं, कम से कम उतनी तो मिलनी ही चाहिए. पार्टी प्रदेश नेतृत्व का तर्क है कि अगर उन्हें पर्याप्त सीटें नहीं दी गईं, तो संगठन कमजोर हो जाएगा और महागठबंधन की एकता पर असर पड़ेगा. फिर बिहार में कांग्रेस के जनाधार में बढ़ोतरी हुई है. इस बात को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता.
दिल्ली से लेकर पटना तक गतिरोध
सूत्रों के मुताबिक दिल्ली में हुई बैठक में भी कोई अंतिम सहमति नहीं बन पाई. इससे पहले तेजस्वी यादव भी पटना में स्टेट के नेताओं से तालमेल बिठाने में विफल रहे थे. लालू यादव और कांग्रेस हाईकमान के बीच कई दौर की बातचीत के बावजूद सीट शेयरिंग का फॉर्मूला तय नहीं हुआ है. वहीं, राज्य स्तर पर कांग्रेस नेता मान रहे हैं कि आरजेडी 'दबाव की राजनीति' कर रही है.
महागठबंधन में बढ़ी बेचैनी
बिहार विधानसभा सीटों को लेकर जारी इस रस्साकशी से महागठबंधन के अन्य सहयोगी दल भी असहज महसूस कर रहे हैं. सीपीआई-एमएल और वीआईपी जैसे दल चाहते हैं कि जल्द ही सीट शेयरिंग पर फैसला हो, ताकि चुनाव प्रचार की तैयारी शुरू की जा सके. सीटों का बंटवारा न होने से छोटे दल भी ऊहापोह की स्थिति में हैं.
क्या टूट की कगार पर है इंडिया गठबंधन?
अभी तक किसी ने गठबंधन से बाहर जाने की बात नहीं कही है, लेकिन अंदरूनी असंतोष स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है. अगर कांग्रेस और आरजेडी में सहमति जल्द नहीं बनी, तो इसका सीधा असर बिहार चुनावी समीकरणों पर पड़ सकता है.
दरअसल, बिहार महागठबंधन में आठ दल हैं. आरजेडी और कांग्रेस के अलावा इस गठबंधन में सीपीआई-एमएल, सीपीआई, सीपीएम, वीआईपी, जेएमएम और आरएलजेपी पारस शामिल हैं. आरजेडी 135 से 140 सीटों पर चुनाव लड़ना चाहती है. हालांकि, उसकी मंशा 150 सीटों तक चुनाव लड़ने की है. कांग्रेस की मांग 70 सीटों की है. कांग्रेस 61 से 65 सीट मिलने पर भी गठबंधन के चुनाव लड़ने के लिए राजी हो सकती है. वीआईपी पार्टी कम से कम 20 सीट और डिप्टी सीएम पद का आश्वासन मिलने पर ही गठबंधन के साथ चुनाव लड़ेगी. इस मामले में मुकेश सहनी के तेवर भी सख्त हैं.
वहीं तीनों वामपंथी पार्टियों को भी 40 से 50 के बीच में सीट चाहिए. आरएलजेपी पारस के पशुपति पारस के कहना है कि उन्हें सम्मानजनक सीटें नहीं मिली तो वह 243 सीटों पर अपना प्रत्याशी उतारेंगे. इसके अलावा, लालू यादव की जिम्मेदारी झारखंड के एक साथ चुनाव लड़ने और गठबंधन में होने की वजह से जेएमएम को भी सीटें देने की है.