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कंधों पर बोझ, आंखों में सपना! 12वीं में पढ़ने वाली रीमा ई-रिक्शा चलाकर परिवार की कर रही मदद, हिम्मत से लिख रही नई कहानी

Missamari News: असम में 12वीं कक्षा की छात्र रीमा अपनी पढ़ाई के साथ ई-रिक्शा चलाकर परिवार की मदद कर रही है. वह सुबह उठ कर वे ई-ऑटो 8 बजे से चलाती हैं. पहले स्कूल जाने वाले बच्चे ले जाती हैं और फिर अपनी कॉलेज के लिए निकलती हैं.

कंधों पर बोझ, आंखों में सपना! 12वीं में पढ़ने वाली रीमा ई-रिक्शा चलाकर परिवार की कर रही मदद, हिम्मत से लिख रही नई कहानी
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( Image Source:  sora ai )
निशा श्रीवास्तव
Edited By: निशा श्रीवास्तव

Updated on: 27 Aug 2025 4:11 PM IST

Assam News: आज के समय में महिलाएं सिर्फ घर में बैठकर रोटी ही नहीं बनाती बल्कि पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चल रही हैं. परिवार की जिम्मेदारी उठाने के साथ-साथ दो पैसे कमाने और आत्मनिर्भर बनने के लिए जॉब भी कर रही है. कुछ तो दुकान चला रही हैं और रिक्शा चलाती हैं. ऐसी ही एक असम की 19 साल की रीमा तेजोंगपी की कहानी है.

द असम ट्रिब्यून की रिपोर्ट के मुताबिक, रीमा तेजोंगपी असम–अरुणाचल प्रदेश सीमा पर मिसामारी की रहने वाली हैं. वह स्कूल की ड्रेस पहनकर ई-रिक्शा चलाती है. यह देखकर सब हैरान है कि इतनी सी उम्र में रीमा अपने शिक्षा को हासिल करने के साथ घर चलाने में भी सहयोग कर रही है.

गलियों में रिक्शा चलाती रीमा

रीमा तेजोंगपी बिसवनाथ कॉमर्स सीनियर सेकेंडरी स्कूल में 12वीं कक्षा में पढ़ती है. वह एक मिडिल क्लास फैमिली से आती है. रीमा के पिता रखीराम तेजोंग बढ़ई हैं, जबकि उनकी मां सब्जियां बेचती हैं जिससे परिवार चल सके. आर्थिक समस्याएं और बढ़ते खर्चों को देखते हुए रीमा ने पारिवारिक जिम्मेदारियां उठाने का निर्णय लिया. उसने द असम ट्रिब्यून से कहा, रोजमर्रा की जरूरतें पूरी करना मुश्किल हो जाता है. इसलिए मैंने ई-ऑटो चलाना शुरू कर दिया है. मेरी मां सब्जियां बेचती हैं और मैं अपनी कमाई से जितना हो सके मदद करती हूं.

आत्मनिर्भरता की मिसाल

रीमा पूरे गांव में साहस, दृढ़ता और आत्मनिर्भरता की मिसाल बन चुकी है. हर कोई उसकी मेहनत को सलाम कर रहा है. वह सुबह उठ कर वे ई-ऑटो 8 बजे से चलाती हैं. पहले स्कूल जाने वाले बच्चे ले जाती हैं और फिर अपनी कॉलेज के लिए निकलती हैं. कॉलेज परिसर में ऑटो पार्क करके वे छात्रा की भूमिका में शामिल हो जाती हैं.

रीमा पढ़ाई-लिखाई के बाद दोपहर 3 से 5 बजे तक फिर से ई-ऑटो चलाती है और पैसों अपने माता-पिता को दे देती है. इसके अलावा वे मंथली स्थानीय छात्रों को भी स्कूल तक पहुंचाने का काम करती हैं और वापस लौटते समय अपनी मां के लिए ताजी सब्जियां भी खरीद लाती हैं.

टीचर्स भी करते सपोर्ट

रीमा को उसके परिवार और पड़ोसियों के साथ स्कूल के टीचर्स का भी सपोर्ट मिलता है. एक शिक्षक ने कहा, इतनी कम उम्र में उसकी आत्मनिर्भरता वाकई अद्भुत है. रीमा पढ़ाई और काम के बीच जिम्मेदारी के साथ संतुलन बिठा रही है. वह न केवल परिश्रमी और बहादुर है, बल्कि और पढ़ाई में भी तेज है.

असम न्‍यूज
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