1971 की ऐतिहासिक जीत - भारत को इंग्लैंड में मिली पहली जीत की बेहद रोमांचक कहानी
24 अगस्त 1971 को टीम इंडिया ने इंग्लैंड की धरती पर पहली बार टेस्ट मैच जीतकर इतिहास रच दिया. ओवल टेस्ट में भागवत चंद्रशेखर की फिरकी ने इंग्लिश बल्लेबाज़ों को ध्वस्त किया और भारत को 173 रनों का लक्ष्य मिला, जिसे पांचवें दिन भारत ने हासिल कर लिया. यह जीत सिर्फ क्रिकेट नहीं, बल्कि बांग्लादेश युद्ध से पहले देश के मनोबल को भी नई ऊर्जा देने वाली साबित हुई. इसे भारतीय क्रिकेट का टर्निंग पॉइंट कहा जाता है.

भारत को आज़ाद हुए क़रीब 25 बरस गुज़र गए थे. टीम इंडिया तब चार दशकों से क्रिकेट खेल रही थी. लेकिन जिस इंग्लैंड के ख़िलाफ़ उसने पहला टेस्ट खेला था, उससे उसी के घर में पहली बार जीतने में चार दशक का वक़्त लगा. ये कहानी है इंग्लैंड की सरज़मीं पर भारत को मिली उस पहली जीत की जिसे क्रिकेट के जानकार भारतीय क्रिकेट का एक महत्वपूर्ण टर्निंग पॉइंट मानते हैं.
1960 के दशक में भारत ने इंग्लैंड को अपने घर में हराया था. पर ये भी सच्चाई है कि फ़्रेड ट्रूमैन जैसे कई मशहूर इंग्लिश खिलाड़ी तब भारत नहीं आए थे. इसी दौरान इंग्लैंड (1959 और 1967), वेस्ट इंडीज़ (1962) और ऑस्ट्रेलिया (1967-68) में खेली गई टेस्ट सिरीज़ में भारत को व्हाइट वॉश का सामना करना पड़ा था. यानी भारतीय टीम सिरीज़ के सभी मैच हार गई थी. विदेशी धरती पर जीत तो बहुत दूर की बात... एक ड्रॉ मुक़ाबला भी खेलना तब मुश्किल हो रहा था.
ऑस्ट्रेलिया से हारने के बाद टीम इंडिया पहली बार न्यूज़ीलैंड पहुंची
पहली टेस्ट सिरीज़ खेलने के 35 साल बाद टीम इंडिया ने न्यूज़ीलैंड की एक अपेक्षाकृत कमज़ोर टीम के ख़िलाफ़ विदेशी धरती पर पहली बार जीत का स्वाद चखा. कप्तान नवाब पटौदी जूनियर के नेतृत्व में टीम इंडिया चार टेस्ट मैचों की सिरीज़ 3-1 से जीत कर लौटी. फिर आया 1970 का दशक — और साल था 1971. न्यूजीलैंड के साथ सिरीज़ में सबसे अधिक रन बटोरने वाले अजित वाडेकर टीम इंडिया के नए कप्तान बनाए गए. 1971 के फ़रवरी से एप्रील (अप्रैल) के महीने में टीम इंडिया ने वेस्ट इंडीज़ का दौरा किया.
इधर मार्च के महीने में पाकिस्तानी सेना ने ऑपरेशन सर्चलाइट शुरू कर दिया था. भारत की प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी तब अस्तित्व में नहीं आए बांग्लादेश (यानी पूर्वी पाकिस्तान) को समर्थन देने और पाकिस्तान के ख़िलाफ़ युद्ध की संभावनाओं पर जनरल सैम मानेक शॉ से बातचीत कर रही थीं. इसी बीच पोर्ट ऑफ़ स्पेन के क्वींस पार्क ओवल में भारत ने कैरिबियाई टीम को पहली बार उन्हीं की धरती पर हराने के कारनामे के साथ चार टेस्ट मैचों की सिरीज़ 1-0 से जीत ली.
युद्ध के माहौल में जोश भर गई थी यह जीत
क्रिकेट में मिली ये सफलता, युद्ध के मुहाने पर खड़े भारत के लोगों के उत्साह और गर्व की भावना में ज़बरदस्त उछाल ले आया. हालांकि वेस्ट इंडीज़ की टीम उस दौर की सबसे कमज़ोर टीमों में मानी जा रही थी - जो पिछले सात सालों से एक भी टेस्ट सीरीज़ नहीं जीत पाई थी. पर लोगों का ध्यान इस पर नहीं गया. भारत की जीत इस क़दर ऐतिहासिक थी कि ऐसी बातें भुला दी गईं.
ओवल का वो ऐतिहासिक मैच
लेकिन इंग्लैंड की बात अलग थी. तब दक्षिण अफ़्रीकी टीम प्रतिबंध के कारण क्रिकेट के दूर थी और इंग्लैंड ने हाल ही में एशेज पर अपना क़ब्ज़ा जमाकर यह साबित किया था कि वो उस वक़्त दुनिया की सबसे मज़बूत टीम थी. उसी साल जुलाई में भारतीय टीम तीन टेस्ट मैचों की सिरीज़ खेलने इंग्लैंड पहुंची. तब भारत का इंग्लैंड की धरती पर शर्मनाक रिकॉर्ड था. इंग्लैंड में टीम इंडिया 19 टेस्ट में से 15 मैच हार चुकी थी. यह आंकड़ा आज़ादी के बाद खेले गए 12 मैचों में इंग्लैंड के पक्ष में 11-0 था. ब्रिटिश शासन से आज़ाद होने के बाद टीम इंडिया को अंग्रेज़ों की धरती पर एक अदद जीत की तलाश थी. लेकिन पहले दो टेस्ट मैच मुश्किल से ड्रॉ हुए थे. तीसरा मैच द ओवल पर खेला जा रहा था.
भागवत चंद्रशेखर की नाचती गेंदों ने बरपाया था कहर
उस ऐतिहासिक मैच में इंग्लैंड ने टॉस जीत कर पहले बल्लेबाज़ी ली और पहली पारी में 355 रन बना दिए. पहली पारी में भारतीय टीम 284 रन बनाकर ऑल आउट हो गई. इंग्लैंड को 71 रनों की लीड मिल गई. दूसरी पारी में इंग्लैंड ने 23 रन बनने तक कोई विकेट नहीं गंवाया. लेकिन फ़िर शुरू हुआ फ़िरकी के उस्ताद भागवत चंद्रशेखर की नाचती गेंदों पर इंग्लिश बल्लेबाज़ों के आउट होने का सिलसिला. इसकी शुरुआत तब हुई जब ब्रायन लकहर्स्ट ने एक ड्राइव किया और गेंद चंद्रशेखर के हाथों को छूकर गेंदबाज़ी छोर के स्टंप्स पर जा लगी और नॉन स्ट्राइकर एंड पर क्रीज़ से बाहर खड़े जॉन जेमसन रन आउट हो गए. इसके कुछ देर बाद, लंच से ठीक पहले चंद्रशेखर ने लगातार दो गेंदों पर दो इंग्लिश बल्लेबाज़ों को पवेलियन लौटा कर तहलका मचा दिया.
बाद में ख़ुद चंद्रशेखर ने मैच के इस पल का वाकया सुनाया. चंद्रशेखर बोले, “मैं अपने रन-अप पर वापस जा रहा था तभी दिलीप सरदेसाई चिल्लाकर बोले, 'अरे चंद्रा, उसे "मिल रीफ" डाल'."
"इंग्लैंड में तब 'मिल रीफ' नाम का एक घोड़ा था, जो सभी बड़ी रेस जीत रहा था. उसकी तेज़ी ज़बरदस्त थी. मैंने सोचा था कि जॉन एडरिच को गूगली डालूंगा, लेकिन फ़िर मैंने सोचा, 'दिलीप सरदेसाई क्रिकेट के अच्छे जानकार हैं'." चंद्रशेखर ने अगली गेंद बिजली की रफ़्तार से डाली - जॉन एडरिच का बल्ला अभी हवा में ही था कि गेंद स्टंप्स उड़ा चुकी थी. ठीक अगली गेंद पर कीथ फ़्लेचर को एकनाथ सोलकर ने शॉर्ट लेग पर लपक लिया.
जब स्टेडियम में आई 'बेला'
लंच के दौरान स्टेडियम में बेला नाम की एक तीन वर्षीय हथिनी दर्शकों का मनोरंजन करने के लिए लाई गई. गणेश चतुर्थी के अनोखे जश्न के तौर पर बेला को पास के ही एक ज़ू से मंगाया गया था. और उस दिन गणपति बप्पा की विशेष कृपा लंच के तुरंत बाद ही टीम इंडिया पर बरसनी शुरू हुई.
लंच के बाद कप्तान वाडेकर ने एक बेहद आक्रामक फ़ील्ड सजाई. इंग्लिश बल्लेबाज़ों को अपने फ़ील्डरों की फ़ौज से घेर लिया और इंग्लैंड के बल्लेबाज़ों ने अपने बल्ले का बाहरी किनारा लगा कर वाडेकर का पूरा साथ दिया.
लंच के तुरंत बाद टीम इंडिया के उपकप्तान वेंकटराघवन ने बेसिल डी'ओलिवेरा को कैच आउट कराया. वाडेकर की सजाई गई फ़ील्डिंग की सफलता की झलक उस वक़्त मिली जब वेंकटराघवन की गेंद पर ऐलेन नॉट को कैच आउट करने के लिए शॉर्ट लेग पर खड़े एकनाथ सोलकर ने ऐसी फ़ुल लेंथ डाइव लगाई मानो वो शाष्टांग दंडवत कर रहे हों. इस कैच को भारतीय क्रिकेट इतिहास के बेहतरीन कैचों में शुमार किया जाता है.
चंद्रशेखर के सामने नहीं चली इंग्लैंड की
इसके बाद कप्तान रे इलिंग्वर्थ को चंद्रशेखर ने अपनी ही गेंद पर कैच आउट किया. फिर चंद्रशेखर ने 72 के स्कोर तक 33 रन बना चुके सलामी बल्लेबाज़ ब्रायन लकहर्स्ट को पवेलियन लौटाया. इसी स्कोर पर जॉन स्नो को भी अपनी ही गेंद पर चंद्रशेखर ने कैच आउट किया. चंद्रशेखर और वेंकटराघवन इस क़दर अच्छी गेंदें डाल रहे थे कि भारतीय कप्तान अजित वाडेकर को बिशन सिंह बेदी से ओवर डलवाने का मौक़ा तक नहीं मिला. आखिर जब उन्होंने एक ओवर के लिए बेदी को बुलाया तो बेदी ने नौंवे बल्लेबाज़ डेरेक अंडरवुड को चलता कर दिया. अंतिम बल्लेबाज़ जॉन प्राइस को चंद्रशेखर ने एलबीडब्ल्यू आउट कर लंच के बाद क़रीब एक घंटे चालीस मिनट के अंदर ही इंग्लैंड की दूसरी पारी केवल 101 रनों पर समेट दी.
दूसरी पारी में भी चंद्रशेखर को मिले 6 विकेट
इंग्लैंड की दूसरी पारी में चंद्रशेखर ने 38 रन देकर छह विकेट चटकाए और टीम इंडिया को जीत के लिए केवल 173 रनों का लक्ष्य मिला. यह मैच का केवल चौथा दिन था और दिन का खेल अभी बाकी था. भारत की शुरुआत अच्छी नहीं हुई सुनील गावस्कर जल्द ही आउट हो गए. लेकिन अशोक मांकड़ 74 मिनट तक पिच पर डटे रहे. आखिर डेरेक अंडरवुड ने उन्हें 11 रन पर आउट कर दिया लेकिन स्टंप्स तक टीम इंडिया ने केवल दो विकेट गंवाए और स्कोरबोर्ड पर 76 रन जम चुके थे. यानी अब पांचवें दिन जीत के लिए केवल 97 रन और चाहिए थे.
गणेश चतुर्थी को था मैच का पांचवां दिन
मैच का पांचवां दिन मंगलवार का था और भारत में उस दिन गणेश चतुर्थी की छुट्टी थी. जब इंग्लैंड में पांचवें दिन का खेल शुरू हुआ तब भारत में शाम के साढ़े तीन बज रहे थे. पूरे भारत में जश्न की तैयारी चल रही थी. लेकिन पांचवें दिन की शुरुआत कप्तान अजित वाडेकर के रन आउट के साथ हुई. तब पिछले दिन के स्कोर में एक भी रन नहीं जुड़ा था. वाडेकर ने आउट होने से पहले 45 रन बनाए थे. इंग्लिश कप्तान रे इलिंग्वर्थ ने अपने बाएं हाथ के गेंदबाज़ डेरेक अंडरवुड को आक्रमण पर लगाया. पर चौथे विकेट के लिए दिलीप सरदेसाई और गुंडप्पा विश्वनाथ ने 48 रन जोड़ दिए. आखिर अंडरवुड, दिलीप सरदेसाई को आउट करने में कामयाब रहे. सरदेसाई 40 रन बनाकर आउट हुए. जल्द ही अंडरवुड ने एकनाथ सोलकर को भी आउट कर दिया. यहां से फ़ारुख़ इंजीनियर और गुंडप्पा विश्वनाथ बिल्कुल धीमी गति से बल्लेबाज़ी करने लगे. विश्वनाथ 30 रन बना कर 170 के स्कोर पर आउट हुए, तब जीतने के लिए केवल तीन रन और चाहिए थे.
आखिर, जीत के रन के लिए स्पिनर ब्रायन हर्स्ट की गेंद को आबिद अली ने स्क्वायर कट किया और गेंद तेज़ी से सीमा रेखा की ओर जाने लगी... गेंद अभी बल्ले से निकली ही थी कि भारतीय समर्थक जश्न मनाने के लिए दौड़ पड़े. इसी के साथ भारत ने इंग्लैंड को उसी के घर में पहली बार हरा दिया. भारतीय टीम न केवल मैच जीती, बल्कि सिरीज़ भी अपने नाम कर लिया और साथ ही पिछले 10 सिरीज़ से अपाराजित रही इंग्लैंड के विजयी रथ को भी रोकने पर मजबूर कर दिया.
मैच के बाद जब इंग्लैंड के मैनेजर भारतीय ड्रेसिंग रूम में कप्तान अजित वाडेकर को बधाई देने पहुंचे तो बताया जाता है कि वो सो रहे थे. इंग्लैंड के मैनेजर ने उन्हें उठाया और बताया कि भारत जीत गया है. बाद में वाडेकर ने ख़ुद बताया कि उन्होंने इंग्लैंड के मैनेजर से तब कहा था कि, “मैं आश्वस्त था कि हम जीतने वाले हैं.”
इस जीत के बाद भारत की आर्थिक राजधानी बॉम्बे (मुंबई) में लोगों के जश्न का अभूतपूर्व दृश्य देखने को मिल रहा था. वो सड़कों पर नाच रहे थे. बसों में चढ़ कर सफ़र कर रहे लोगों को इस जीत की ख़बर सुना रहे थे. भारत की जीत की ख़बर सुना रहे थे बीबीसी के ब्रायन जॉन्सटन और उनके इस ख़बर के प्रसारण के साथ ही लोग जश्न में रेडियो को ही माला पहना रहे थे. युद्ध से घिरे देश को केवल चार महीने के दौरान विदेशी धरती पर मिली ये दूसरी जीत, तब भारतीय क्रिकेट के लिए बहुत बड़ी सफलता थी, जिसने लाखों भारतीय के दिलों में 24 अगस्त 1971 के दिन को हमेशा हमेशा के लिए बेहद ख़ास बना दिया.