50 साल, अनगिनत मैच, पर नहीं टूटा गैरी गिल्मर का वर्ल्ड कप में बनाया ये रिकॉर्ड
ऑस्ट्रेलियाई तेज गेंदबाज गैरी गिल्मर ने 1975 के पहले वर्ल्ड कप में महज दो मैच खेले, लेकिन इन दो मैचों (सेमीफाइनल और फाइनल) में उन्होंने ऐसा प्रदर्शन किया, जो आज तक कोई नहीं दोहरा सका. इंग्लैंड के खिलाफ सेमीफाइनल में उन्होंने 6 विकेट लेकर टीम को 93 रनों पर समेटा और फाइनल में वेस्टइंडीज के 5 अहम विकेट झटके. बावजूद इसके, उन्हें करियर में कभी स्थायी जगह नहीं मिली. चोट, फिटनेस की अनदेखी और टीम मैनेजमेंट की उदासीनता ने उनके करियर को छोटा कर दिया.

Gary Gilmour 1975 World Cup: उस दिन आसमान में काले बादल मंडरा रहे थे, मानो बारिश आने ही वाली है. ठीक उसी वक़्त हेडिंग्ले के मैदान पर इंग्लैंड के सामने उन मंडराते बादलों का फ़ायदा एक ऐसा शख़्स उठा रहा था, जो अपने पूरे करियर में केवल पांच वनडे मैच खेला और वनडे क्रिकेट के पहले वर्ल्ड कप में अपनी टीम ऑस्ट्रेलिया के लिए केवल दो मैचों में ऐसा प्रदर्शन किया, जिसे 50 साल बाद भी कोई नहीं दोहरा सका. हम बात कर रहे हैं गैरी गिल्मर की, जिन्होंने आज से 50 साल पहले 1975 के वनडे वर्ल्ड कप के सेमीफ़ाइनल में छह और फ़ाइनल में पांच विकेट चटकाने का ऐसा जबरदस्त कारनामा किया, जिसे आज तक कोई और क्रिकेटर नहीं दोहरा सका है.
1975 के प्रूडेंशियल वर्ल्ड कप सेमीफ़ाइनल में चिर प्रतिद्वंद्वी ऑस्ट्रेलिया और इंग्लैंड की टीमें आमने-सामने थीं. ऑस्ट्रेलियाई टीम ने इस टूर्नामेंट में पहली बार गिल्मर को प्लेइंग इलेवन में शामिल किया था. इस टूर्नामेंट की शुरुआत में बताया गया कि गिल्मर अनफ़िट है, जिसकी वजह से वो लीग मैचों में नहीं खेल सके, लेकिन सेमीफ़ाइनल में उनके ज़ोरदार प्रदर्शन के बाद उन्हें (लीग मैचों में उन्हें नहीं उतारे जाने को) ऑस्ट्रेलियाई टीम मैनेजमेंट की रणनीति बताई गई.
जब सेमीफ़ाइनल में कहर बन कर बरसे गिल्मर
वर्ल्ड कप में गिल्मर केवल दो वनडे मैचों का अनुभव लेकर उतरे थे. इन दोनों मैचों में उन्होंने बल्लेबाज़़ी नहीं की थी और कुल 3 विकेट लिए थे, वो भी 55 रन देकर. ये दोनों मैच भी एक साल से ज़्यादा पहले खेले गए थे. लीग मैचों में उन्हें मौका नहीं मिला और वे सीधे हेडिंग्ले में हुए सेमीफ़ाइनल में ही टीम का हिस्सा बने. गिल्मर को सेमीफ़ाइनल में डेनिस लिली के साथ नई गेंद थामने का मौका मिला. उन्हें मैक्सी वॉकर और जेफ़ थॉमसन जैसे तब के नामी ऑस्ट्रेलियाई गेंदबाज़ों पर तरजीह दी गई.
इससे पहले कि इंग्लिश बल्लेबाज़ कुछ समझ पाते कि क्या हो रहा है, गिल्मर चार बल्लेबाज़ों को एलबीडब्ल्यू तो दो अन्य को कैच आउट करवा चुके थे. गिल्मर ने इंग्लैंड के शुरुआती छह बल्लेबाज़ों को पवेलियन लौटाया और स्कोर हो गया छह विकेट पर 36 रन. अपनी क़हर बरपाती गेंदों से गिल्मर इंग्लैंड के टॉप ऑर्डर को तहस-नहस कर चुके थे. गिल्मर को उस दिन खेल पाना लगभग असंभव था. उन्होंने मौसम के साथ-साथ हरे घास से भरी पिच का भरपूर फ़ायदा उठाया, यहां तक कि डेनिस लिली जैसे गेंदबाज़ भी उनके सामने फीके लगने लगे.
महज 93 रन पर सिमटी इंग्लैंड की टीम
इंग्लैंड के बल्लेबाज गिल्मर के सामने टिक नहीं सके और पूरी टीम सिर्फ 93 रन पर सिमट गई. गिल्मर ने 12 ओवर में 6 मेडन डालते हुए 14 रन देकर 6 विकेट चटकाए. तब यह वनडे का सर्वश्रेष्ठ फ़िगर बन गया, जो अगले आठ वर्षों तक कायम रहा. विज़डन ने गिल्मर की इस गेंदबाज़ी को वनडे के इतिहास का सर्वश्रेष्ठ स्पेल बताया.
फाइनल में भी गिल्मर ने मारा 'पंजा'
इस प्रदर्शन के बाद गिल्मर को स्वाभाविक रूप से फ़ाइनल में भी उतारा गया, लेकिन क्लाइव लॉयड ने केवल 85 गेंदों पर 102 रन बना कर वेस्ट इंडीज़ को चैंपियन बना दिया तो उसकी ही चर्चा बार बार होती है, लेकिन सच तो यह है कि उससे पहले गिल्मर ने फाइनल में भी ऐसा प्रदर्शन किया था कि एक बारगी वो मैच पूरी तरह से ऑस्ट्रेलिया के पक्ष में दिख रहा था. उन्होंने वेस्ट इंडीज़ के पांच बल्लेबाज़ों को आउट किया था, जिसमें विवियन रिचर्ड्स, एल्विन कालीचरण, रोहन कन्हाई, डेरिक मरे और ख़ुद लॉयड जैसे दिग्गज शामिल थे. हालांकि गिल्मर का वो शानदार प्रदर्शन ऑस्ट्रेलिया को वर्ल्ड कप दिलाने के लिए पर्याप्त साबित नहीं हुआ.
गिल्मर ने टूर्नामेंट में केवल दो मैच खेले और 11 विकेट ले लिए. यह बेहद चौंकाने वाला आंकड़ा था. वर्ल्ड कप के सेमीफ़ाइनल और फ़ाइनल में आज तक उनके इस रिकॉर्ड की किसी गेंदबाज़ ने बराबरी नहीं की है. उनका औसत 5.64 तो स्ट्राइक रेट केवल 13 का था. उनके प्रदर्शन को इस लिहाज से भी देखें कि पूरे टूर्नामेंट में केवल तीन बार ही किसी गेंदबाज़ ने एक मैच में पांच विकेट लिए तो उनमें से दो बार यह गिल्मर ही थे.
...पर एशेज में केवल एक बार दिया गया मौक़ा
वर्ल्ड कप में बेहतरीन प्रदर्शन और शानदार आंकड़ों के बावजूद गैरी गिल्मर को उसी साल एशेज में सिर्फ एक ही टेस्ट खेलने का मौका मिला. उन्हें केवल हेडिंग्ले टेस्ट के लिए चुना गया. वो भी शायद वर्ल्ड कप सेमीफाइनल में इसी मैदान पर उनके प्रदर्शन को देखते हुए. एक बार फिर गिल्मर चमक गए, पहली पारी में छह और दूसरी में तीन विकेट ले लिए, पर आश्चर्यजनक रूप से उन्हें अंतिम टेस्ट में प्लेइंग इलेवन में जगह नहीं दी गई. उस दौरे में उन्होंने अभ्यास मैचों समेत 43.22 की औसत से 389 रन बनाए और 28.17 की औसत से 28 विकेट भी लिए, फ़िर भी उन्हें केवल एक टेस्ट और दो वनडे खेलने का ही मौक़ा दिया गया.
गिल्मर ने वेस्ट इंडीज के खिलाफ किया शानदार प्रदर्शन
गिल्मर रुकने वालों में से नहीं थे. हेडिंग्ले टेस्ट तक उन्होंने क़रीब दो वर्षों में केवल 4 टेस्ट खेलने के बावजूद 21 की औसत से 24 विकेट चटकाए थे. जब उसी साल नवंबर में वेस्ट इंडीज़़ के ख़िलाफ़ गाबा टेस्ट के लिए टीम में उन्हें चुना गया तो उन्होंने क्लाइव लॉयड, गॉर्डन ग्रीनिज, फ़्रेडरिक और मरे समेत छह विकेट लिए. छह मैचों की इस सीरीज़ का तीसरा टेस्ट गिल्मर खेल नहीं पाए, लेकिन बाकी के सभी मैचों में उन्हें टीम में रखा गया. छह विकेट से शुरुआत कर सीरीज़ का अंत उन्होंने मेलबर्न में 5/34 के आंकड़ों के साथ किया, जो उनके करियर का अंतिम पांच विकेट हॉल भी बना. वनडे में भी उन्होंने 2/48 लिए, जो उनका अंतिम वनडे भी साबित हुआ.
उस टेस्ट सिरीज़ में गिल्मर ने 20.30 की औसत से कुल 20 विकेट चटकाए और डेनिस लिली और जेफ़ थॉमसन जैसे गेंदबाज़ों से कहीं आगे निकल गए. जब लिली और थॉमसन (8 गेंदों वाले ओवर में) चार की औसत से रन पिटवा रहे थे, गिल्मर की इकोनॉमी 3.11 की रही और वो वेस्ट इंडीज़ के बल्लेबाज़ों के लिए लिली, थॉमसन की तुलना में कहीं अधिक कठिन साबित हुए.
सीरीज़ में उन्होंने बल्ले से भी कमाल किया, कुल 185 रन बनाए. सबसे बेहतरीन पारी उन्होंने एडिलेड में खेली, जब महज 94 गेंदों में 95 रन ठोक दिए, वो भी एंडी रॉबर्ट्स और माइकल होल्डिंग जैसे तूफ़ानी गेंदबाज़ों के ख़िलाफ़. दिलचस्प बात ये रही कि पूरी टीम का स्कोर तब सिर्फ 146 रन था.
करियर की शुरुआत और ऑलराउंडर क्षमता का प्रदर्शन
1970 के दशक के मध्य में गैरी गिल्मर एक ख़तरनाक लेफ्ट-आर्म स्विंग गेंदबाज़ और प्रतिभाशाली बल्लेबाज़ के रूप में अपने चरम पर थे. अक्सर उनकी तुलना न्यू साउथ वेल्स के सेंट्रल कोस्ट से ही आए एक और लेफ़्ट-आर्मर एलन डेविडसन से की जाती थी. जनवरी 1972 में न्यू साउथ वेल्स के लिए अपने पहले ही मैच में गिल्मर ने 122 रन बनाए. दो साल बाद न्यूज़ीलैंड के ख़िलाफ़ उन्होंने टेस्ट में बेहतरीन डेब्यू किया. जब वो बल्लेबाज़ी के लिए उतरे, तब ऑस्ट्रेलिया का स्कोर सात विकेट पर 381 रन था, और उन्हें अपने अंदाज में बैटिंग करने की पूरी आज़ादी दी गई थी. उन्होंने पिच पर आते ही हेडली ब्रदर्स समेत सभी गेंदबाज़ों की जमकर धुनाई की और ताबड़तोड़ 52 रन बनाए,
गिल्मर के क्रीज़ पर रहते हुए 81 रन बने. बल्ले से वार्मअप करने के बाद गिल्मर ने गेंद से भी कमाल किया और न्यूज़ीलैंड के चार बल्लेबाज़ों को पवेलियन लौटा दिया. इससे कीवी टीम को फ़ॉलोऑन के लिए मजबूर होना पड़ा. ऑस्ट्रेलिया ने वो मैच पारी के अंतर से जीत लिया. गिल्मर ने डेब्यू मैच में 52 रन बनाने के साथ 4 विकेट चटकाने का ऑलराउंड प्रदर्शन किया तो अगले टेस्ट में भी अपने फ़ॉर्म को बरकरार रखते हुए चार विकेट चटकाए.
लेकिन फ़िटनेस में लापरवाही बनी करियर के लिए घातक
गिल्मर गेंद को बल्ले से ज़ोरदार हिट करने वाले एक आक्रामक बल्लेबाज़ थे तो एक ऐसे गेंदबाज़ थे, जो कभी अपनी इन-स्विंग तो कभी आउट-स्विंग से बल्लेबाज़ों को छकाने, परेशान करने और पवेलियन लौटाने की असाधारण क्षमता से संपन्न थे. गिल्मर वो ऑलराउंडर बन सकते थे, जिसकी ऑस्ट्रेलिया को 1970-80 के दशक में सख़्त ज़रूरत थी. लेकिन वेस्टइंडीज के ख़िलाफ़ प्रभावशाली घरेलू सीरीज़ के बाद उनकी गेंदबाज़ी की धार अचानक कम होती चली गई, यहां तक कि सेंचुरी टेस्ट में उन्होंने 9 ओवर डाले जो बिल्कुल बेअसर साबित हुए. दरअसल, तब वो अपने पैर में एक गंभीर चोट से जूझ रहे थे, जो उनके करियर में आगे बहुत बड़ी बाधा बन गई. फ़िटनेस और ट्रेनिंग को लेकर गिल्मर के हल्के-फ़ुल्के रवैये ने इसमें ठीक वैसे ही काम किया जैसे आग में घी करती है.
लगातार दो सीज़न टीम से बाहर रहने के बाद गिल्मर 1979-80 में दो मैच खेलने लौटे, लेकिन अपना पुराना प्रदर्शन दोहराना तो दूर, तीन टेस्ट में उन्हें कुल दो विकेट मिले. इसके बाद उन्होंने हर तरह के क्रिकेट से संन्यास ले लिया. छोटा करियर आर्थिक तौर पर भी तंगी लाया. जब 2005 में उन्हें लिवर ट्रांसप्लांट कराना पड़ा तो उसका खर्च उनके 1975 वर्ल्ड कप के कप्तान इयान चैपल द्वारा आयोजित एक नीलामी से जुटाया गया. ज़िंदगी ने फिर एक और गहरा झटका दिया, उनके बेटे क्लिंट का 33 साल की उम्र में ब्रेन कैंसर से निधन हो गया. आख़िर 2014 में गैरी गिल्मर भी चल बसे.